न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा’
मक़बूल शायर राहत इंदौरी साहब की ग़ज़ल का यह मिसरा अपने आप में गहरे अर्थ समेटे बहुत कुछ कहता है।आस और उम्मीद एक ऐसा शब्द है जो इंसान को शिथिल और निष्क्रिय बनाता है। यही आस और उम्मीद जब हम दूसरों से बांध लेते हैं ।तो हम अपनी सामर्थ्य को नज़र अंदाज़ कर स्वयं को ढीला छोड़ देते हैं, और कुछ समय के लिए सुस्ताने लगते हैं। ये आस और उम्मीद पूरी होगी भी या नहीं इसका भी हमें पूर्ण विश्वास नहीं होता।और हम भावनाओं के सागर में गोते खाते हुए ऊपर नीचे होने लगते हैं, अतः कह सकते हैं कि ये आस और उम्मीद हमें कमज़ोर बनाती है।और जब हम संघर्षों से जूझने का रास्ता इख़्तियार करते हुए सफलता की मंज़िल पर पहुंचते हैं तो हमारे आत्मविश्वास में तो वृद्धि होती ही है और जीवन की कई पाठशालाओं से रूबरू होते हुए हम आत्मविकास की सीढ़ी चढ़ते है।संघर्षों की भट्टी में तपकर हम कुंदन समान चमकने लगते हैं। यह पंक्ति व्यक्ति, समाज, कौम, और देश पर समान रूप से लागू होती है। कोई भी व्यक्ति, समाज, कौम और देश दूसरों के बल बूते पर तरक्की कभी नहीं कर सकता और यदि कोई ऐसा आधार ढूंढता भी है तो कालांतर वही उसके शोषण का कारण बनता है। हमारे सामने ऐसी कई मिसालें हैं। ब्रिटेन ने छप्पन देशों को छल पूर्वक अपना उपनिवेश बनाया, लूट खसोट से अपनी धरा को समृद्ध किया। समय उपरांत क्रांति का बिगुल बजाकर उन्होंने अपनी स्वतंत्रता हासिल की।
द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर किये गए परमाणु बम हमले के बाद भी जापान ने जिस तरह से तरक्की कर खुद को अपने ही बलबूते पर खड़ा किया वह दुनिया भर में एक मिसाल है। सूर्योदय का देश कहा जाने वाला जापान विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। यह जापान के लोगों की कार्य संस्कृति का ही नतीजा है कि हर वर्ष तमाम भूकंपों का भार सहते हुए भी वह नई ऊर्जा के साथ दोबारा अपने को स्थापित कर लेता है।एडोल्फ हिटलर किसी के लिए हीरो हो सकता है तो किसी के लिए विलेन। एडोल्फ हिटलर बीसवीं सदी का सबसे क्रूर तानाशाह था, जब वह 1933 में जर्मनी की सत्ता का काबिज़ हुआ, उसने छः साल में करीब साठ लाख यहूदियों की हत्या कर दी। यूरोप में यहूदियों पर किये गए अत्याचारों के बाद ही एकमात्र यहूदी देश इस्राएल राष्ट्र अस्तित्व में आया, जिन्होंने अपने बुद्धि, कौशल ज्ञान और विवेक से नये मुकाम हासिल कर तरक्की और विकास की नई मिसालें पेश कीं। दुनिया में कहीं कोई चीज़ मुफ़्त में नहीं मिलती हमें उसकी कीमत चुकानी होती है। जो कौम समय के साथ तालमेल नहीं बना पाईं वह न शीघ्र पतन को प्राप्त होती है।
ये संसार का नियम है कि हर व्यक्ति समाज कौम और देश को अपने को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ती है और समय के बहाव के साथ बदलना भी होता है। जो इन सब में तालमेल नहीं बना पातीं वह सभ्यताएं शीघ्र नष्ट हो जातीं हैं। इंसान अपने कर्मों से ही समाज में अपने लिए स्थान बनाता है और मार्गदर्शक बन चहुं दिशाएं आलोकित करता है मोहनदास करमचंद गांधी अपने कर्मों से ही स्वतंत्रता संग्राम के अग्रिम नायक बन महात्मा कहलाए और लोगों में जागृति लाकर देश में आज़ादी के वाहक बने। कोई व्यक्ति दूसरों के कांधे बंदूक रखकर गोली कब तक चला सकता है। रविन्द्र नाथ टैगोर ने ‘एकला चलो रे’ के गीत द्वारा संदेश दिया-
‘अगर तुम्हारे साथ कोई नहीं चलता तो तुम अकेले ही चलो’
हाॅं, तुम्हारे उद्देश्य सर्व हिताए और सर्व सुखाएं होने चाहिए,
तो जल्दी ही कारवां बन जाता है।
गौतम बुध ने अप्प दीपो भव अर्थात अपने दीपक आप बनो का उपदेश दिया ये सांसारिक अर्थ में भी है और आध्यात्मिक अर्थ में प्रयुक्त होता है।परमात्मा ने ये संसार बहुरंगी बनाया है।जीवन में साथी, हमसफ़र, दोस्त, मित्र, सखा, बंधु का साथ तो ज़रूरी है ये हमारे ज़िंदगी के सफ़र को खुशनुमा बनाते हैं और हम एक दूसरे का साथ पाकर आगे बढ़ते जाते हैं पर हमारे कर्म का फल हमें ही मिलेगा चाहे वो अच्छा हो या बुरा। हमारा खाया हुआ हमारे ही शरीर को पोषित करेगा, हमारे कष्ट और समस्याओं का निवारण भी हमें स्वयं ही करना होगा, ये बात तो पक्की है।
मनजीत कौर ‘मीत , गुरुग्राम हरियाणा, 9873443678