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अभिभावक  की महत्वाकांक्षा में खोता  बचपन-मनोरमापंत 

आज की दुनिया पूर्ण बनने के पीछे पागल है और इसी धुन में दुनियां अवसाद तथा दुःख से गुजर रही है । भारत  जैसे देश में  बच्चों को  पूर्ण बनने की धुन में  अभिभावक  उनका बचपन  स्याह  कर रहे हैं ।  जिससे  आत्महत्याओं  का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। दुनियाभर  की आत्महत्याओं में भारतीय  किशोरों तथा  युवाओं  का 17.5 प्रतिशत  है । याद रखे पूर्णता अस्वाभाविक है। अधूरापन या अपूर्णता प्राकृतिक है। उपनिषद में  कहा गया  है –
पूर्णमिदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते,
 पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णामेवा वशिष्यते। 
यह मंत्र  परब्रह्म  की दिव्य पूर्णता तथा सम्पूर्णता को बतलाता हैै। 
परब्रम्ह के अतिरिक्त  किसी भी  इंसान  में पूर्णता केवल एक  भ्रम  है । पूर्ण बनने में असफल रहे माता पिता अपने बच्चों को पूर्ण बनाने की जिद में उनका सुनहरा बचपन बहुत ही छोटी छोटी खुशियों से वंचित कर उन्हें जेलबंदी से जीवन व्यतीत करने पर मजबूर  कर रहे हैं। उन्हें आत्महत्या के लिये मजबूर कर रहे हैं।इस वर्ष  कोटा में  सत्ताइस  बच्चे आत्म हत्या कर चुके हैं ।अपनी महत्वाकांक्षा के कारण पालक बच्चे के साथ गुलामों के समान व्यवहार  करते हैं ।उनकी इच्छा /अनिच्छा  का ध्यान  नहीं रखने से उनकी बालसुलभ क्रियाएं  /गतिविधियाँ दम तोड़ देती है ।उसके लिए  एक टाइम  टेबल बना दिया जाता है कि उसे कब उठना है ,कब खाना है। और खेलना?उसके लिए  भी तय है कि उसे कौन से खेल खेलना है चाहे उसे वह खेल  पसंद  हो या नहीं ।उससे यह उम्मीद  की जाती है कि वह उनकी रुचि के अनुसार  ही विषय ले ,चाहे बच्चे की उस विषय  में रुचि  नहीं हो ।मैं सीधे सीधे कहना चाहूंगी कि अभिभावक  अपनी खुशी ,अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण  करने के लिए  बच्चों का बचपन छीन लेते हैं ।ऐसे बच्चे हमेशा सहमे सहमे रहते हैं और यदि वे पढने में कमजोर  होते हैं,तो उनमें हीनता की ग्रंथि उत्पन्न  हो जाती है ।वे अन्तर्मुखी  हो जाते हैं ।
हमें इस मामले में नीदरलैंड से सबक लेना चाहिए। नीदरलैंड के बच्चे दुनिया में सबसे खुशहाल माने जाते हैं। दरअसल यहां विद्यालयों में विश्वविद्यालय में रिसर्च एवं प्रोफेशन बेस्ट दोनों तरह की पढ़ाई करवाई जाती है ।यूनिसेफ की “द स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड चिल्ड्रन “की रिपोर्ट के अनुसार यहां के कॉलेज में एडमिशन की प्रक्रिया भी आसान होती है ।बच्चों को बिना कोई कट ऑफ क्लियर किये ही अपने पसंद के कॉलेज  मनचाहे  कोर्स मिल जाते हैं ।यहां यह धारणा प्रचलित है कि सफल होने के लिए बच्चों के अंकों  से ज्यादा महत्व सोशल स्कील  का होता है ।बच्चों पर अधिक अंक लाने के लिए जोर नहीं डाला जाता है ।वहां उनपर पूर्ण  बनने के लिए माता पिता या शिक्षकों का कोई  दबाव  नहीं होता ।इसी वजह से यहां के बच्चे तनाव से दूर रहते हैं ।प्रसिद्ध अभिनेता अनुपम खेर ने अपने बारे में लिखा-” मुझे विद्यार्थी  जीवन में 38% से ज्यादा अंक कभी नहीं मिले। मैं सोच भी नहीं सकता था कि मैं लेखक बनूँगा  ।आज मैं हूं। मैं ऑक्सफोर्ड मिट्टी कोलंबिया आईआईएम जैसे तमाम इंस्टीट्यूट में मोटिवेशनल लेक्चर दिए हैं यह सब इसलिए संभव हुआ कि मेरे ऊपर कोई  दबाव नहीं था अधिक अंक लाने का ।।”अब आप समझ गये होगे कि  वे क्या कह रहे हैं। 

मनोरमापंत  ,भोपाल 
वरिष्ठ  साहित्यकार  
सेवानिवृत्त  शिक्षका ,केंद्रीय  विद्यालय  
मोबाइल  92291131 95

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