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अभिभावक की महत्वाकांक्षा पर खोता बचपन-सुनीता

“बचपन से ही तो रूठ गई
बचपन की मासूमियत
जब अभिभावकों की महत्वाकांक्षा
का सैलाब हर सपने को समेट गया
रह गई केवल माँ पिता की इच्छा
जिन्हें पूरा करने में उम्र गुजर गई l”
विश्व के किसी भी देश में जा कर सर्वेक्षण कर लीजिए अविभावक और बच्चों लेकर सभी जगह एक जेसी स्थिति है l
सच तो यही है कि हर अभिभावक का सपना होता है उसका बच्चा अपने क्षेत्र में कामयाबी हासिल करे चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो ,खेलकूद का ,गायन का ,या बिजनैस का ,जब बच्चे क़ामयाब नहीं होते तो उनके सपन चूर चूर हो जाते हैं और वह अपने आप पर कंट्रोल नहीं कर पाते हैं ,सारी गलती बच्चों पर थोप दी जाती हैं , बच्चे क्यों कामयाब नहीं है इसका कारण बहुत कम लोग जानने की कोशिश नहीं करते हैं l यही एक कारण जिनसे बच्चे अंदर से अपने को टूटा हुआ महसूस करते हैं और कई एसे उदाहरण है जहां बच्चे कुंठित हो जाते हैं l इंदौर की एक शिक्षा संस्था का ही उदाहरण लीजिए ,जहां बच्ची ने आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला को समाप्त कर दिया l
सर्वेक्षणों से निम्नलिखित कारण उजागर होते हैं;
1.पढ़ाई का बढ़ता दबाव –आजकल बच्चों के प्रति माता-पिताओं की अपेक्षाएं बहुत बढ़ गई है। अपना स्टेट्स बच्चों के उनकी मनचाही फिल्ड में सफल हो य़ह सपना होता है किन्तु सपने झरे फूल से गीत चुभे शूल से….कि तर्ज पर बच्चों को प्रताडित किया जाता है (इसमें दो राय नहीं ,बच्चे के लिए अभिभावक तन – मन -धन लगा देते हैं) पर बच्चा सफल क्यूँ नही हो रहा य़ह जाने बिना बच्चों को प्रताडित किया जाता है उदाहरण स्वरूप इंदौर की एक प्रसिद्ध कोचिंग क्लास में जहां वार्षिक शुल्क 40 हजार है (अपनी गाडी कमाई का पेसा ,घर खर्च में कटौती कर शुल्क जमा किया) वहाँ बेटी को पढ़ने भेजा किन्तु कोचिंग टीचर पढ़ाते कम बच्ची के शरीर को छुते ज्यादा ,जब बेटी ने माँ को बताया तो माँ ने गुड़ बाड़ी टच ,बेड बाडी टच को समझना शुरू किया ,साथ ही उलाहना भी इतनी फीस जमा कर चुके ,माँ की आखें जब खुली जब बेटी एबारशन कराना पड़ा। हर माता-पिता चाहे स्, अपने बच्चे को आईएएस, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर बनने पर तुले हुए हैं। ‘हम दो हमारा एक का नारा चल रहा है। माता-पिता दोनों नौकरी कर रहे हैं। वे अपने बच्चे की पढ़ाई पर चाहे जितना खर्च करने को तैयार हैं और उसकी एवज में वे बच्चे से 90 प्रतिशत से अधिक अंक की आशा रखते हैं। यही अपेक्षा दबाव का रूप ले लेती है। जब बच्चा किशोरावस्था में आता है और जब सही मायने में उसे अन्य बच्चों के साथ प्रति-स्पर्धा करनी पड़ती है, तब उसे उस स्थिति से पार पाना नहीं आता और वह आशाभरी दृष्टि से माता-पिता की ओर देखता है। पर माता-पिता पहले ही उसे अपनी शर्तों की बोझ से लाद चुके हैं। ऐसे में बच्चा ऐसा सहारा ढूंढ़ता है, जहां उसे उस बोझ से छुटकारा मिले। ऐसे में या तो वह बुरी संगत में पड़ता है या फिर आत्महत्या की राह पर चल पड़ता है।
2.बच्चों का स्कूल परीक्षा में सफल नहीं होना – 80%माता-पिता बच्चों के अनुतीर्ण हो जाने पर उन्हें प्रताडि़त करते हैं, लेकिन अनुतीर्ण होने के लिए क्या सिर्फ बच्चे दोषी हैं। शिक्षक और अभिभावक नहीं? तो फिर बच्चों को इसके लिए प्रताडि़त क्यों किया जाता है?एक ही कक्षा में पढऩे वाले सभी बच्चों का बौद्धिक स्तर समान नहीं होता और न ही उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि एक समान होती है। यही कारण है कि एक ही शिक्षक से समान शिक्षा पाने वाले कुछ छात्र जहां श्रेणी में उत्तीर्ण होकर मेरिट लिस्ट में स्थान पाते हैं, वहीं कुछ को पास होने के भी लाले पड़ जाते हैं और वे असफल हो जाते हैं।बहुत से माता-पिता अपने बच्चे की असफलता को बर्दाश्त नहीं कर पाते और बेरहमी से उसकी पिटाई करते हैं।
मानसिक अवसाद – अभिभावकों एवं शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों को मानसिक अवसाद की स्थिति में भी कामयाबी हासिल नहीं कर पाते हैं कभी-कभी टिफिन को लेकर , कपड़े जूते को लेकर ,अपनी आर्थिक स्तिथि को लेकर परेशान रहते हैं और हीन भावना से ग्रसित हो जाते है l पार्टी ,गेम ,फैशन नशा , वीडियो गेम सिगरेट पीना ,पाउच खाना भी इसके लिए दोषी हैं ,बच्चों को डांस पार्टी में भेजना आदि कई अमीर अभिभावक अपनी शान समझते हैं l माँ पिता का अत्यधिक नियंत्रण बच्चों के व्यक्तित्व के लिए हानिकारक होता है। बच्चे डर के कारण अपने अभिभावकों से मन कि बात नहीं कह पाते हैं l यह कारण उनके व्यक्तित्व को निखरने नहीं देता है l
माँ पिता दोनों का नोकरी करना-जहाँ माता पिता दोनों ही जाब करते हैं वहाँ अक्सर बच्चे कामयाब नहीं हो पाते हैं ,उनके पास अपने बच्चों के लिए समय नहीं होता वे महंगे कपड़े ,खिलौने ,खाना ला सकते हैं पर समय नहीं दे पाते हैं l इस जगह बच्चा अपने आप को अकेला महसूस करता है और सबसे कटा कटा रहता है l
7.पेरेंट्स का केरियर बाधक-बहुत बार कामकाजी दंपत्तियों को बच्चे अपने करियर में अवरोध लगने लगते हैं।ऐसे में स्वयं सचेत होना होगा कि बच्चे आपके ऊपर हमेशा निर्भर नहीं रहने वाले हैं। वे जल्दी ही बड़े हो जाएंगे और आत्म निर्भर भी।आपको उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद करनी है,अपने सभी काम वे स्वयं करें।यदि माता पिता सिर्फ अपने बारे में सोचेंगे तो बच्चे भी स्वार्थी और आत्मकेंद्रित हो जाएंगे।

डॉ सुनीता श्रीवास्तव
इंदौर ,मप्र
9826887380

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