धर्म कर्म के प्रति हिन्दुत्व आस्था और विश्वास पूर्वजों द्वारा स्थापित सदियों पुरानी एक जीवंत आदर्श परंपरा है। जिसमें निर्जीव प्रतिमाएं सजीवता का दर्शन कराते हुए सनातनी परंपरा को पुख्ता कर अकाट्य उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। सनातन धर्म के विश्वास- पथ पर बलवती होती हिंदुत्व की उत्कट अभिलाषाएं आस्तिक जनों के अन्तर्मन् को बर्बस आह्लादित करती रहती हैं।
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार मनुष्य को जीवन में एक बार अवश्य पवित्र धार्मिक पौराणिक तीर्थ स्थलों का दर्शन किया जाना चाहिए। बुजुर्गो के मुताबिक ऐसा नहीं करने से मानव जीवन मोक्ष को नहीं प्राप्त करता। यही वजह है कि धार्मिक यात्रा और तीर्थाटन करने वालों की प्रायः पवित्र धार्मिक और पौराणिक तीर्थ स्थलों पर भारी भीड़ उमड़ती रहती है।
हमारे मन में भी धार्मिक पौराणिक तीर्थ स्थलों के तीर्थाटन करने की जिज्ञासा प्रायः उत्पन्न होती परंतु किसी न किसी व्यवधान के चलते सफलता की सीढ़ियां नहीं चढ़ पाती।यह भी सच है कि हर कार्य की नियति तिथि और शुभ घड़ी निश्चित होती है। संयोग जब बनेगा तो उसे कोई नहीं रोक सकता। असंभव संभव बनकर सम्मुख खड़ा हो जाता है।मेरे अपने अति निकटस्थ संबंधी बड़े भैया पवन कुमार पांडेय जी (शाला)और बड़ी भाभी श्रीमती प्रेमा पाण्डेय जी (सलहज)के द्वारा प्रायः हर साल कलकत्ता घुमने का स्नेहिल आग्रह किया जाता ।इसलिए कि कलकत्ता में शिक्षा दीक्षा से लेकर शिक्षक पद पर आसीन रहने तक कलकत्ता में ही स्थायी तौर से रह रहे थे। हर बार मेरे द्वारा समय का अभाव बताकर कार्यक्रम निरस्त कर दिया जाता। और प्लान बनाकर मिस् कर दिए जाने पर मेरी पत्नी (श्रीमती पूनम पाण्डेय) द्वारा कड़ी नाराजगी जाहिर की जाती।इस साल भी मेरा कलकत्ता जाने का कोई इरादा नहीं था। परंतु संयोग लिवा जाने पर अड़ा था। मेरी एकलौती बेटी सपना और दामाद बाबू अभिषेक द्वारा प्रेरित किए जाने पर हम दम्पति शारदीय नवरात्र के पावन अवसर पर कलकत्ता घूमने का निश्चय किया। कलकत्ता आगमन की सूचना पाकर भैया पवन कुमार पांडेय और भाभी श्रीमती प्रेमा पाण्डेय के मानो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। जबतक हम दोनों कलकत्ता नही पहुंच गए तब-तक दूरभाष पर यात्रा कुशलता की कुशलक्षेम द्वय जन पूछते रहे।
कलकत्ता रेलवे स्टेशन पहुंचने पर पवन भैया स्वयं हम दोनों को लेने पहुंचे। कलकत्ता से मामूली कुछ दूरी पर ही स्थित श्याम बाजार मैट्रो स्टेशन था जहां से रवीन्द्र सरोवर तक की यात्रा मैट्रो से संपादित की गई। तत् पश्चात् प्राईवेट बस से उनके आवास पर पहुंचे । ट्रेन और बस यात्रा के दौरान कलकत्ता के स्थानीय यात्री जनों में जो बुजुर्गो और महिलाओं के प्रति जो सम्मान भाव दिखा वह हृदयात्मक आभार जताने लायक रहा।बहरहाल चाय नाश्ता स्नान भोजन ग्रहण किया गया। इसके बाद देर शाम क्षेत्र के महावीर तला स्थित महावीर मंदिर शिव मंदिर मे भगवद् दर्शन किया गया। अगले दिन से कलकत्ता दुर्गा पूजा महाउत्सव पाण्डाल दर्शन का सिलसिला प्रति दिन देर रात्रि तक चलता रहा। भैया भाभी के साथ में बालक शिवा की उपस्थिति तो कलकत्ता घुमने में मानो चार चांद लगाने जैसा था।
शारदीय नवरात्र में दुर्गा पूजा बेशक काबिले तारीफ लगा। मूर्ति कला का उत्कृष्ट अद्भुत अकल्पनीय चित्रकारी एवं पाणडालों की आकर्षक साज-सज्जा तो बर्बस मन को खींच लेने वाली थी।दो दर्जन से अधिक देखा जाने वाला दुर्गा पूजा पांडाल में सुरुचि संघ और त्रिधारा जैसी नं०1 की देवी मूर्तियों से सुसज्जित पांडालों का तो कोई जबाब ही नहीं था। अपने रिस्तों में बहुत खास भैया पवन कुमार पांडेय भाभी श्रीमती प्रेमा पाण्डेय के सान्निध्य में बालक हर्ष कुमार (शिवा) के साथ हम पति-पत्नी को कलकत्ता स्थित टालीगंज के चतुर्दिक सुदूरवर्ती क्षेत्रों में स्थित और स्थापित विश्वविख्यात धर्म स्थलों और चुनिंदा तीर्थ स्थलों जैसा भव्य और दिव्य मंदिरों का निकट से प्रत्यक्ष दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पूर्वी भारत के पश्चिम बंगाल का विश्व प्रसिद्ध दुर्गा पूजा का वाकई कोई जबाब नहीं था। न्यू अलीपुर चिल्ड्रेन्स पार्क,गोल पार्क के दुर्गा पूजा पाण्डाल तो बेहतर थे ही । इसके अलावा कलकत्ता के ब्रूरोशीब तल्ला जनकल्याण समिति द्वारा दुर्गा प्रतिमा के अलावा जो पाण्डाल की साज-सज्जा की गई थी।उसकी कलाकृतियां तारीफों के पुल बांधने को विवश कर देने वाली थी।
पांडाल परिसर के जमीनी तल पर लंबी घनी सरपत की सुसज्जित घासें,विजली की रोशनी में नहाता पांडाल, परिसर के आकाश पटल पर नकली चिड़ियों की असली चहचहाहट मन को आह्लादित कर देने वाली थी। सौभाग्य से काली घाट तथा दक्षिणेश्वर मंदिर भी जाने का सपना फलीभूत हुआ।कल-कल निनादिनी भगवती गंगा के पावन तट पर स्थित दक्षिणेश्वर मंदिर काली मां के परम भक्त रामकृष्ण परमहंस की यादें आज भी ताजा करता है। बताया गया कि उक्त धाम पर आदि-शक्ति की साधना में लीन स्वामी रामकृष्ण परमहंस भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर काली मां ने श्री रामकृष्ण परमहंस को अपने हाथ से खीर खिलाकर अपना स्नेहिल आशीर्वाद दिया था। मंदिर में स्थापित द्वादश ज्योतिर्लिंगों के अलावा स्थापित श्रीकृष्ण और अन्य देवताओं का भी दर्शन हुआ। अगले दिन विक्टोरिया पार्क घूमकर देखा गया। जहां ब्रिटिश हुकूमत से संबद्ध अनेकों स्मृतियों और प्रदर्शनियों का अवलोकन किया गया। अगले दिन बिड़ला तारा मंडल देखने का अवसर मिला । जहां भौगोलिक गतिविधियों और अंतरिक्ष में घटित खगोलीय घटना क्रमों पर आधारित प्रत्यक्ष दृश्यांकन मन को आश्चर्य चकित कर देने वाला था।आधे घंटे का हिंदी शो अविस्मरणीय बनकर हृदय में समा गया।
घर वापसी से पूर्व गंगा सागर की यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।जो अत्यंत मार्मिक और रमणीय रहा। गंगा सागर की यात्रा के संबंध में एक कहावत सर्वविदित है कि सब तीर्थ बार बार गंगा सागर एक बार। तथा गंगा सागर स्नान का फल दश अश्वमेध यज्ञ और सहस्राणि गौवों के दान कर पुण्य लाभ अर्जित करने के बराबर है। ऐसा पौराणिक कथाओं में वर्णित है।इसी कथ्य को मूल मानते हुए सनातन धर्म की आस्था से जुड़े धर्म स्थल गंगा सागर की यात्रा की गई । जहां कपिल मुनि के श्राप से श्रापित महाराजा सगर के साठ हजार पुत्र काल के गाल में समा गए थे।जिनके मोक्ष हेतु मोक्षदायिनी मां गंगा को सूर्य वंशीय धर्मात्मा राजा भगीरथ अपनी घोर कठोर तपस्या के बलबूते धरती पर लाये। गंगा और सागर दो शब्दों के मेल से बना गंगा सागर शब्द है। एक साथ गंगा सागर शब्द को प्रयोग में लाया जाना यह स्पष्ट करता है कि गंगा का जहां सागर में विलय होता है वही स्थान गंगा सागर के नाम से प्रसिद्ध है। गंगा सागर तट के करीब ऋषि कपिल मुनि की कुटी भी है। जनश्रुतियां हैं कि वर्ष में एक बार बर्षा ऋतु में गंगा और सागर संयुक्त रूप से मुनि के कुटी पर पहुंच कर अपनी प्रचंड लहरों से तपोभूमि का पद प्रक्षालन करते हैं। खैर ! गंगा के सहारे सागर की यात्रा स्टीमर के जरिए की गई। विस्तृत क्षेत्र में फैले समुद्र की विशाल जलराशि पर गतिमान होता स्टीमर अत्यंत सुखद अहसास कराते हुए अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचा। जहां से भाड़े के वाहन से हम पांच लोग(पवन कुमार पांडेय श्री मती प्रेमा पाण्डेय गौरीशंकर पाण्डेय श्रीमती पूनम पाण्डेय शिवा पाण्डेय सहित दो अन्य गिरीश चन्द्र शुक्ल और श्रीमती प्रभा शुक्ला (बस्ती बासी)जो अपरिचित होते हुए भी एक दूसरे से ऐसे घुल मिल गए मानो पहले से ही परिचित रहे हों। कुल सात लोग गाड़ी में सवार हुए और हम सब एक साथ अपने गंतव्य स्थान तक पहुंच गए। जहां मेरे अनुज सह शिक्षक साथी कलकत्ता प्रवासी नागरिक कुशल शिक्षक सतीश चौबे जी के निर्देशन में स्थानीय साहू समाज के धर्म शाला में ठहरे। जहां व्यवस्थापक अभय सिंह (झारखंड वाला) के द्वारा रहने खाने की मुकम्मल व्यवस्था सुलभ हुई।
अगले दिन अति प्रातः शौच और मुखमंजन नित्य क्रिया से निवृत्त होकर गंगा सागर धाम पहुंचे। मुख्य धाम स्थल पर लहराता जल राशियों का अपार पारावार जहां झुकता आसमान, श्रद्धालुओं का स्नान, बहुत ही दिव्य लगा। हम सबने भी स्नान उपरांत मंत्रोच्चार विधि से संकल्प छुड़वाया और यथाशक्ति दान पुण्य किया। इसके बाद कपिल मुनि कुटी पर पहुंच कर दर्शन पूजन वंदन किया । गौरतलब हो कि सागर द्वीप अथवा गंगा सागर मिलन केंद्र पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना जिला के समुद्र तट पर स्थित है।भारत के अधिकार क्षेत्र में आता है जो कलकत्ता से 150कि०मी०अत:दक्षिण में अस्सी मिल का एक द्वीप है।जो पश्चिम बंगाल सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में है। जिसमें एक लाख साठ हजार के आसपास जनसंख्या से युक्त कुल तैंतालीस गांव शामिल हैं।जिसका क्षेत्रफल तीन सौ वर्ग किलोमीटर है।हिलोरें मारती सागर की लहरों के बीच मस्ती में स्नान किया गया। बड़ा आनंद आया। जगह-जगह फोटो ग्राफी और सेल्फी की सनक भी हाबी रही। ख़ास बात यह रही की हम सात लोग एक जाति विशेष से जुड़े होने के साथ साथ एक दूसरे के शिक्षा दीक्षा आचार विचार से भी बखूब मेल खाते थे।। गंगा सागर तक यात्रा मंगलमय और सुखद रही। इसके बाद मेरी पत्नी का स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारण भ्रमण यात्रा स्थगित करनी पड़ी।
सादर आभार भैया भाभी का सादर आग्रह कर प्रेम पूर्वक कलकत्ता बुलाकर घुमाने के लिए भैया(पवन) भाभी(प्रेमा )का हृदय से बहुत बहुत आभार। जिनका सादर स्नेह और अपनों के प्रति आगत के स्वागत का उच्च उदार भाव अति सराहनीय लगा। जहां प्रेमा भाभी का शारदीय नवरात्र में नौ दिनों का अन्न वर्जित अविचल व्रत उपवास होने के बावजूद उनके द्वारा हम सबको समय से चाय नाश्ता भोजन आदि का प्रबंध किया जाना सरस अनुरक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण रह। वहीं भैया पवन कुमार पांडेय जी द्वारा प्रेम प्रगाढ़ता की कोई सीमा नहीं थी। शिवा के प्रेम माधुर्य का क्या कहना? पठन पाठन के प्रति झुकाव तथा संगीत के प्रति विशेष रुचि सदाबहार प्रतिभा संपन्न बालक हर्ष पाण्डेय उर्फ शिवा की प्रखर बुद्धि मत्ता,व्यवहार कुशलता, सचमुच काबिले तारीफ रही। प्रायः शिवा के मुखमंडल का प्रसन्न चित्त भाव ,मातृ-पितृ भक्ति वत्सलता तो अच्छे संस्कारों का प्रतीक ही था।और अन्य बालकों के लिए अनुकरणीय भी। शिवा के लिए शुभ स्नेह और उज्जवल भविष्य की कामना।
गौरीशंकर पाण्डेय सरस, गीतकार पत्रकार एवं शिक्षक।