राशि आज सुबह से ही बहुत खुश थी, मानो उसमें आत्मविश्वास पुनः जागृत हो गया था… जल्दी-जल्दी घर के कार्यों से निवृत होने के बाद वह दफ़्तर से छुट्टी लेकर एक उद्योग के उद्घाटन समारोह के लिए जाने को तैयार होने लगी। अपने शैक्षिक कार्यकाल से ब्रेक लेने के लिए मीडिया इंडस्ट्री ज्वाइन कर ली, इस क्षेत्र में जाने के बाद, वह कल के विवाद के बारे में सोच ही रही थी कि तब तक रश्मि आ गई और बोली- “क्या बात है आज बहुत चहक-महक रही हो? किसकी पार्टी हैं?” राशि ने नजर उठा कर उसे देखा और मुस्कुरा कर बोली- “हां रश्मि बहुत लंबी कहानी हैं, मैं आज बहुत खुश हूं। कभी-कभी ऐसा होता हैं कि हम सोच भी नहीं सकते कि एक छोटा सा बच्चा भी हमें प्रेरणा दे सकता हैं।” रश्मि ने उत्सुकता से पूछा- “आखिर हम भी तो जाने? क्या बात हैं?” राशि बोली- “दरअसल आज से करीब ग्यारह-बारह वर्ष पहले की बात हैं।
मैं एक विद्यालय में सह-प्राचार्य के पद पर कार्यरत रहीं। आर्थिक रूप से अस्थाई होने से और सौरभ के पास भी अच्छी नौकरी नहीं थी, इसलिए विद्यालय के बाद एक कोचिंग कक्षा में भी पढ़ाने जाना पड़ता था। बीच में एक घंटा फुरसत का मिला जाता था, अतः समय के उपयोग की दृष्टि से, पास में ही एक लायब्रेरी में जाया करती थी। उस लायब्रेरी में अभय नाम का एक लड़का लाइब्रेरियन (पुस्तकालय अध्यक्ष) के रुप में कार्य करता था। वह सेंट जोसेफ केंद्रीय विद्यालय का एक कुशल और बेहद ही अनुशासित छात्र था। लायब्ररी में अक्सर मेरे सहयोगी भी मिल जाया करते थे। कभी-कभी लायब्रेरी के सामने वाली चाय की टप्री पर उनसे भी बात हो जाया करती थी।
कुछ समय बाद अभय भी मेरी कोचिंग में पड़ने आने लगा।धीरे-धीरे अभय का मन पढ़ाई से उठने लगा, पर उसका दिमाग बहुत तेज था। अपने कार्यकाल में मेने अभय के मन को जिज्ञासा से भरा हुआ पाया, मगर कुछ दिन बाद वह बोला- “मेम आप दोपहर में लायब्रेरी आती हैं, शाम को क्यों नहीं?” थोड़ा अजीब लगा क्योंकि लायब्रेरी का समय शाम का हैं। और अधिकतम पाठक शाम को ही आते हैं, इसलिए हो सकता है किसी ने अभय को कुछ कहा हो।मैं बोली- “क्यू दोपहर में आने पर कुछ एतराज हैं क्या?” जब पूछा तो अभय थोड़ा डर कर उदास होकर गर्दन हिलाने लगा, और मना करने का इशारा करने लगा। अभय शीघ्र ही मुझसे घुलने लगा था। वे मेरे भावों को बेहद बेखूबी से समझने लगा था। उसमें आस-पास की खबरों का खजाना भरा हुआ होता था, धीरे-धीरे मेरी संगति के साथ पढ़ाई में अनुशासन के साथ पढ़ाई में बेहतर होने लगा। और साम्यिकी के बारे में हमेशा अद्यतन रहता था। उसकी इच्छा और शैक्षिक स्तर को देखते हुए, मैंने उसका मन भरने के लिए सप्ताह में दो-तीन बार शाम को लायब्ररी जाने का निश्चय किया।
जब एक माह बीत गया तब मैंने उससे कहा- “क्यों अभय अब तो तुम खुश हो न? अब तो में शाम को भी लायब्ररी आती हैं।”वह थोड़ा उदास होकर बोला- “हां मेम आप आती तो हैं, पर आप मुझसे उस तरह बात नहीं करती जैसे ‘सर’ लोगों से करती हैं।”में आश्चर्य रह गई!मन ही मन में सोचने लगी, की क्या वास्तव में उस नन्हे शिशु और मेरे सह प्राध्यापकों में बात करने के ढंग में अन्तर था? किन्तु शायद यह वास्तविकता थी। वह मेरे सहयोगी थे, जबकि अभय एक छोटा मासूम लड़का। मैंने उससे हंस कर कहा- “क्या तुम भी मेरी तरह गुरु बनना चाहते हो?”उत्तर में वह कुछ सोचते हुए कापी में आड़ी-तिरछी लकीरें बनाने लगा।परीक्षा समय नजदीक आ रहा था, मैंने अभय से कहा- “ठीक से पढ़ाई करो, वरना कैसे पास होगे?”वह फट से बोला-“मेम मैं पढूंगा पर चिटिंग से, नहीं तो नम्बर बढ़वा लेगें न?”मेने उसे समझाया, फिर डांटा, इस तरह कक्षा उत्तीर्ण करने से क्या फायदा? उस वक्त मैंने ईमानदारी पर छोटा सा लेक्चर सा दे डाला।”ठीक हैं मेम, अब मैं इमानदारी से परीक्षा दूंगा।” अभय ने कहा।
परीक्षा परिणाम आया और अभय बेहद ही कम अंकों से असफल रहा।विद्यालय खुलने पर उसने पुनः उसी कक्षा में प्रवेश लिया।वह नियमित आता। गणित में वह बहुत तेज था। पर पढ़ता कम और इधर-उधर की गतिविधियों में ज्यादा व्यस्त रहता।
में उसका रिजल्ट देख चुकी थी अतः उसे पुनः चेतावनी दी- “तुम पढ़ाई नहीं कर रहे हो। अभी से ध्यान दो, तो जरूर पास होगे। नहीं तो फिर वहीं होगा, याद हैं मम्मी-पापा की वह डाट?”उसने बेफिक्री से जवाब दिया- शुरू से तो किसी ने मुझे ढंग से पढ़ाया नहीं। वैसे आपसे वादा किया हैं, तो गलत तरीके से परीक्षा उतीर्ण नहीं करूंगा।जब परिणाम आया तो वह पुनः अनुत्तीर्ण था। परिणाम देखकर मुझे बहुत दुख हुआ, क्योंकि अब अभय ने पढ़ाई छोड़ दी थी।
समय ऐसे ही बीतता गय…नए छात्र आते और अच्छे अंकों से परीक्षा में सफल होते।पर फिर भी अभय ने मेरे दिल पर उसकी स्मृतियां छाप दी।कभी-कभी वह मेरे पास आ जाता, उसे देखकर मुझे लगता कि मैंने अभय के साथ अन्याय किया हैं। उसे आदर्श और इमानदारी का पाठ पढ़ा कर उसे शिक्षा से वंचित कर दिया। उससे चिटिंग करने को कह देती तो वह कुछ अधिक अंक प्राप्त कर गया होता। मुझे अपने ऊपर गुस्सा आने लगा।जब भी उसके घर के सामने से गुजरतो तो मन पश्चाताप से भर जाता, किन्तु अभय के व्यवहार में कोई अन्तर नहीं आया। उसके वही नन्हे हाथ और उदासी सी मुस्कुराहट मन को कसौट जाती। कुछ समय बाद मुझे अपना स्वतन्त्र कार्य करने का अवसर मिला, और मुझे कुछ व्यक्तियों की आवश्यकता की महसूस हुई। मेने अपने पति और सहकर्मी सौरभ से अभय को अपने यहां नियुक्ति देने का प्रस्ताव रखा। अभय से सौरभ अच्छी तरह परिचित था सौरभ की स्वीकृति से मैने दूसरे दिन उसे अपने पास बुला कर सारी रुपरेखा समझा दी। अभय ने काम पर आने के लिए सहर्ष स्वीकृति कर दी।यह बात बात रश्मि को बताते, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैने बहुत बड़ा पुण्य किया हो। पुण्य करने से जो आत्म संतुष्टि मिलती हैं, वही एहसास मुझे उस दिन हुआ था। मुझे अभय पर पूरा भरोसा था अतः में निश्चित थी।रश्मि मुझसे आगे के सफर के बारे में संवाद की गुस्ताख करने लगीं।
इसी संवाद की गुस्ताख को जारी रखते हुए मैंने आगे की बात बताई की, कुछ समय बाद ही काम के बारे में अभय को शिकायते आनी शुरू हो गई। हमारे प्रिय ग्राहकों ने कहा- “आपने अभय को किस आधार पर रखा है?” क्या हैं इसका व्यक्तित्व और शिक्षा का स्तर हैं? उसके शैक्षिक स्तर को देखा हैं आपने…? जब पूछा कौनसी डिग्री हैं तो बोलता हैं 8वी फैला मैंने किसी की बात पर ध्यान ही नहीं दिया, क्योंकि मुझे विश्वास था, कि अभय एक दिन अवश्य अपने अन्य साथियों से आगे निकल जाएगा, किन्तु अफसोस, अभय की लापरवाही और बढ़ती ही चली गई और शिकायतों का ढेर सा लग गया। मुझे बहुत दुख हो रहा था।एक दिन मैने अभय से कहा- “अभय तुम्हारा काम में मन क्यों नहीं लग रहा है? क्या बात हैं बचपन में भी तुम पढ़ाई में भी पीछे रह जाते थे, पर तुम्हारा मस्तिष्क बहुत तेज हैं, फिर क्यों तुम अपने गुणों का दुरुपयोग कर रहें हो? अभय ने क्रोध के साथ कहा- “आप मुझे निकाल क्यों नहीं देती?”मैंने उसे समझाया, अभय आजकल बहुत बेरोजगारी हैं। नौकरी मिलना बहुत मुश्किल हैं, तुम अच्छे से काम करो। उसने कुछ जवाब नहीं दिया।तीन-चार दिन बाद वह मेरे पास आया और बोला- “मेरी भोपाल में अच्छी नौकरी लग गई हैं।” सुनकर खुशी और आश्चर्य दोनों हुआ। मेने जानना चाहा तो वह बोला- अरे वो जो श्यामला हिल्स स्तिथ बहुत ही प्रसिद्ध “टाइम्स ऑफ इंडिपेंडेंट इंडिया” हैं न, वहा पर सिटी रिपोर्टर के पद मिला हैं।उसके लिए में परेशान तो थी ही तो झुंझलाहट के साथ कह दिया- “ठीक है ज्वाइन कर लो। बाद में किसी बड़ी मीडिया हब में भी जॉब लग सकती हैं।”लगभग एक सप्ताह बाद ही मैंने उसे वापस सड़क पर पहले की तरह घुमते-फिरते देखा।मुझे खयाल आया क्या कहीं अभय ने मुझसे झूठ तो नहीं बोला? मैंने उसके कार्यस्थल में मालूम किया तो पता चला मेरा अनुमान सही था।मैंने दूसरे दिन उसे अपने स्कूल में बुलाकर पूछा- “क्यों तुमने झूठ क्यों बोला?”अभय बोला- “मैंने “हिंदुस्तानी साहित्य” में आवेदन दिया था, “टाइम्स ऑफ इंडिपेंडेंट इंडिया” में नहीं।दुखी मन से मैंने कहा- “आखिर तुमने, यहां से क्यों नोकरी छोड़ी? मुझे मालूम हैं, तुमने जानबूझकर लापरवाही की थी जिससे सब तुम्हारी शिकायत करें हैं न?”
अभय गम्भीर होकर बोला- “मेम, आप जो काम करना चाह रही हैं उसमें मेरे जैसे कई लोगों की जरूरत हैं। में तो सदैव ही आपके साथ हूं। में काम नहीं करूंगा तो आप किसी और को अपने पास रख सकेंगी। इस प्रकार ऐसे व्यक्ति, जो आपको समझ सकें, और मदद कर सके, उनकी संख्या बढ़ती जाएगी।अभय की बात सुनकर में आश्चर्यचकित रह गई। मुझे सारे उद्योगपति, धनी और अमीर, इस 16 वर्षीय लड़के के समान बहुत छोटे नजर आने लगे। एक छोटे से गरीब बच्चे ने मुझ में एक ‘नई सोच’ भर दी। मुझे उसके तीन-चार वर्ष पहले कहे हुए शब्द याद आ गए- “मेम आप मुझसे उस तरह बात क्यों नहीं करती…. और आज वास्तव में वह मेरा गुरू बन बैठा था। किन्तु मुझे अभय के बेरोजगार और अनपढ़ होने का दुःख तो था।पर रश्मि, मैं आज इसलिए खुश हूं कि अभय ने अपने भाई के साथ स्वयं का छोटा सा उद्योग शुरू कर दिया था। और जैसे-जैसे समय बीतता गया लोग आते गए और कारवां बनता गया…।उसको बैंक द्वारा कर्ज़ा भी मिल गया, और अच्छा याद दिलाया रश्मि क्या वक्त हो रहा हैं?रश्मि ड्राइविंग रूप में लगी घड़ी पर देख कर बोली- “चार बजने में 10 मिनट की देर हैं।”
राशि हैरान होकर बोली- “अरे मैं तो बहुत लेट हो रहीं हु आज तो मुख्यमंत्री द्वारा अभय के व्यापार का उद्घाटन हैं! अब अभय बेरोजगार नहीं हैं, अब मेरा हुनहार अनपढ़ और बेरोजगार छात्र एक सफल इंटरप्रिन्योर की राह पर हैं…। में अब अपने अन्य विद्यार्थियों को भी उसी आत्मविश्वास से एक नई सोच, आदर्श और इमानदारी का पाठ किसी पुस्तक से नहीं बल्कि अपने कार्यकाल के अनुभव से पढ़ा सकूंगी रश्मि, क्या तुम मेरे साथ उसी उद्घाटन समारोह में चलना पसंद करोगी?अभय के संघर्ष से सफलता की कहानी सुनकर रश्मि खुशी-खुशी समारोह में चलने के लिए राज़ी हो गई। और दोनो सखी तैयार होने लगें।
डॉ. सुनीता श्रीवास्तव
इंदौर, मध्यप्रदेश
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