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सनातन धर्म का नववर्ष है चैत्र शुक्ल प्रतिपदा-सत्येन्द्र

सत्येन्द्र कुमार पाठक
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होने वाला हिन्दू नववर्ष , गुड़ी पड़वा , मराठी-पाडवा और हिन्दू नव संवत्सरारम्भ माना जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि एवं युगादि कहा गया है। गुड़ी’ का अर्थ ‘विजय पताका’ है। शालिवाहन ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शक का पराभव करने के कारण विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ व युगादि और महाराष्ट्र में ‘ग़ुड़ी पड़वा’ पर्व मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि का प्रारम्भ होता है । सनातन धर्मग्रंथों में वेदसंहिता , वेदांग , ब्राह्मणग्रन्थ , आरण्यक , उपनिषद् · श्रीमद्भगवद्गीता , रामायण · महाभारत , पुराण , वचनामृत , ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने द्वारा चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को निर्मित सृष्टि के देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों , रोगों और उनके उपचारों , मनु की सृष्टि किया गया है । मनु द्वारा मन्वंतर , कल्प , संवत्सर , नावसंबत्सर , संबत प्रारम्भ किया गया है। चैत्र में वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस है। जीवन का वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा द्वारा प्रदान करने के कारण औषधियों और वनस्पतियों का राजा चंद्रमा है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में सारे घरों को आम के पेड़ की पत्तियों के बंदनवार से सजाया जाता है। सुखद जीवन की अभिलाषा के साथ-साथ यह बंदनवार समृद्धि, व अच्छी फसल के भी परिचायक हैं। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग ‘ की रचना की थी । वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्तों में गुड़ीपड़वा की गिनती होती है। शालिवाहन शक संबत एवं विक्रम संबत का प्रारंभ है। शालिवाहन के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूँक दिए और इस सेना की मदद से शिक्तशाली शत्रुओं को पराजित करने और विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ। भगवान राम ने वानरराज बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी । बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (ग़ुड़ियां) फहराए थे । घर के आंगन में ग़ुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। आंध्र प्रदेश में घरों में ‘पच्चड़ी/प्रसादम‘ प्राप्त करने एवं निराहार सेवन करने से मानव निरोगी बना रहता है। चर्म रोग दूर होता है। इस पेय में मिली वस्तुएं स्वादिष्ट होने के साथ-साथ आरोग्यप्रद होती हैं। महाराष्ट्र में पूरन पोली या मीठी रोटी गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम। गुड़ मिठास के लिए, नीम के फूल कड़वाहट मिटाने के लिए और इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती हैं। आम को आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में खाया जाता है। नौ दिन तक मनाया जाने वाला यह त्यौहार दुर्गापूजा के साथ-साथ, रामनवमी को राम और सीता के विवाह एवं चैत्र शुक्ल षष्टी एवं छठ पूजा के साथ सम्पन्न होता है।
ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का सृजन , मर्यादा पुरूषोत्‍तम श्रीराम का राज्‍याभिषेक , माँ दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्‍भ , युगाब्‍द , युधिष्‍ठिर संवत् , का आरम्‍भ तथा उनका राज्याभिषेक , उज्‍जयिनी सम्राट- विक्रमादित्‍य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्‍भ , शालिवाहन शक संवत् (भारत सरकार का राष्‍ट्रीय पंचांग) का प्रारम्‍भ , महर्षि दयानन्द द्वारा आर्य समाज की स्‍थापना का दिवस , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्‍थापक केशव बलिराम हेडगेवार का जन्‍मदिवस , सिख धर्म के द्वितीय गुरु अंगद देव जी के जन्म दिवस , सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल का प्रकट दिवस , झूलेलाल जयंती , चंद्र दर्शन ,चसीटी चंद्र दिवस , चित्रा नक्षत्र दिवस , सृष्टि दिवस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है।भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा प्रकृति के खगोलशास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निर्पेक्ष है । दो ऋतुओं का संधिकाल एवं रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। महाराज विक्रमादित्य ने 2 080 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और अरब में विजयश्री प्राप्त कर यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई थी ।। उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी और यह क्रम पृथ्वीराज चौहान के समय तक चला। महाराजा विक्रमादित्य ने समस्त विश्व की सृष्टि की। सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया। इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया। यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है। इसी दिन महाराज युधिष्टिर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया। आज भी यह दिन हमारे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होने वाला हिन्दू नववर्ष , गुड़ी पड़वा , मराठी-पाडवा और हिन्दू नव संवत्सरारम्भ माना जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि एवं युगादि कहा गया है। गुड़ी’ का अर्थ ‘विजय पताका’ है। शालिवाहन ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शक का पराभव करने के कारण विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ व युगादि और महाराष्ट्र में ‘ग़ुड़ी पड़वा’ पर्व मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि का प्रारम्भ होता है । सनातन धर्मग्रंथों में वेदसंहिता , वेदांग , ब्राह्मणग्रन्थ , आरण्यक , उपनिषद् · श्रीमद्भगवद्गीता , रामायण · महाभारत , पुराण , वचनामृत , ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने द्वारा चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को निर्मित सृष्टि के देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों , रोगों और उनके उपचारों , मनु की सृष्टि किया गया है । मनु द्वारा मन्वंतर , कल्प , संवत्सर , नावसंबत्सर , संबत प्रारम्भ किया गया है। चैत्र में वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस है। जीवन का वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा द्वारा प्रदान करने के कारण औषधियों और वनस्पतियों का राजा चंद्रमा है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में सारे घरों को आम के पेड़ की पत्तियों के बंदनवार से सजाया जाता है। सुखद जीवन की अभिलाषा के साथ-साथ यह बंदनवार समृद्धि, व अच्छी फसल के भी परिचायक हैं। ‘उगादि‘ के दिन पंचांग तैयार होता है। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग ‘ की रचना की थी । वर्ष के साढ़े तीन मुहूतारें में गुड़ीपड़वा की गिनती होती है। शालिवाहन शक संबत एवं विक्रम संबत का प्रारंभ है। शालिवाहन के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूँक दिए और इस सेना की मदद से शिक्तशाली शत्रुओं को पराजित किया। इस विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ। भगवान राम ने वानरराज बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी । बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (ग़ुड़ियां) फहराए। घर के आंगन में ग़ुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तिथि तक सनातन धर्म ग्रंथों एवं हिन्दू पंचांग के अनुसार शाक्त धर्म के उपासक माता शक्ति की आराधना , सौरधर्म के उपासक चैत्र शुक्ल चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि चार दिवसीय छठ पूजा , भगवान सूर्य को अर्घ्य एवं उपासना और प्रतिपदा को माता शैलपुत्री , द्वितीय माता ब्रह्मचारिणी , तृतीया को माता चन्द्रघण्टा , चतुर्थी को माता कुष्मांडा ,पंचमी को स्कंदमाता , सप्तमी को माता कालरात्रि , अष्टमी को माता गौरीकी एवं नवमी को माता सिद्धिदात्री की उपासना कर चैइति व चैत्र नवरात्रि मानते है । भगवान राम की अवतरण दिवस चैत्र शुक्ल नवमी को मानते है । सप्तम वैवस्वतमनु का अवतरण , मन्वंतर दिवस , 14 मनुमय सृष्टि दिवस मनाते है ।
करपी , अरवल , बिहार 804419
9472987491

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