बच्चों की शरारत
बात कुछ पुरानी है। हमारी शादी को 6-7 वर्ष गुजर चुके थे हम संतान सुख से वंचित थे। डाक्टर, इलाज एवं आयुर्वेद से इलाज करा चुके थे धन अभाव के कारण इलाज रुक रुक कर चलता था इन वर्षों में श्रीमती जी सन्तान प्राप्ति हेतु बहुत व्याकुल रहती थी कभी उपवास, व्रत करती सोमवार पिले सोमवार, मंगलवार, शुक्रवार तो कभी जिसने भी जो बताया वह करने को तन मन धन से लग जाती थी। इसमें प्रमुख था,, उपवास, कभी पुरा दिन कुछ नहीं खाना, कभी ज़मीन पर भोजन रख कर भोजन गृहण करना, डेली नहीं छोड़ना, इसके अलावा गोंद भरवाना और न जाने कैसे कैसे कठोर नियम लिए और पुरी इमानदारी से उसका पालन किया।
फिर वह शुभ दिन भी आया जब हमे 14 जनवरी 2004 को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। होले होले दिन बितने लगे बच्चा भी अपने उम्र के हिसाब से कुछ चंचल प्रगतिशील था एक वर्ष के पुर्व ही बोलना सुरु कर चुका था आंगन में दौड़ लगाता था उसे देख संतोष होता था समय पर अपनी तरक्की करता आ रहा था। जब यही बच्चा कुछ बड़ा हुआ तो मां पुत्र में भी नोंक झोंक होने लगती। तुषार भी गम्भीर रुप से सटीक जवाब देता। उसकी बुद्धि कौशल को सभी मानते हैं।
एक दिन हमारे दोनों बच्चे भोजन कर रहे थे तब तुषार 6+ वर्ष का था तो जैनिश 3+ वर्ष का था वहीं मां बेटे में किसी विषय पर तकरार हो गई मैं भी सामने पलंग पर बैठ कर सब देख सुन रहा था। मां तुषार से कह रहीं थी नालायक क्यों हमारे यहां जन्म लिया और कहीं जन्म लेता क्यों हमारा नसीब फोड़ा। तुषार तुरंत बोला! क्या है मम्मी वहां भगवान के घर मुझे ले जाने के लिए लम्बी लाइन लगी थी और सभी चाहते थे मेरे घर चलों मेरे घर चलों मुझसे विनती कर रहे थे पर मुझे तुम्हारी तपस्या तप उपवास व्रत देखकर मुझे तुम पर दया आ गई और मैं आपके घर आ गया वर्ना मैरे पास बहुत सारे रास्ते थे इस लिए कहता हूं हमारी विशेष फिक्र किया करों। 6 वर्षीय तुषार कि बाते सुन मैरी हंसी नहीं रुक रही थी 60 वर्ष का बच्चा और एसी सोच हंसी के साथ साथ मैं भी और श्रीमती जी हैरान परेशान हो अपने पुत्र को निहार रही थी।
कुंदन पाटिल
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