जहाँ तक मैं समझता हूँ भारतीय संविधान में आरक्षण की व्यवस्था लाने का मुख्य कारण था ”समाज में दबे कुचले लोगो को आगे लाना”। यह जरूरी भी था कि समाज को बराबरी पर लाया जाये, मगर इसके साथ यह भी देखना होगा कि कहीं हम समाज को बराबरी पर लाते लाते कही देश और मानव जाति का अहित तो नहीं कर रहे हैं। आज की आरक्षण व्यवस्था की रूपरेखा देख कर यह कहना कही से गलत नहीं होगा कि यह देश के विकास में ही नहीं सुरक्षा और मानव जाति की जिन्दगी पर भी खतरा है। शिक्षा ही विकास का आधार है। जाति के आधार पर , अज्ञानता के आधार पर विकास कदपि नही हो सकता है। तब यह कहना पड़ता है कि शिक्षा के, बिना ज्ञान के मानव और देश का विकास कोई कैसे करेगा? यह प्रश्न एक बहुत ही गंभीर प्रश्न मेरे निगाहो से है, आप की निगाहो में यह प्रश्न कैसा है? आप किस प्रकार से देखते हैं मैं नहीं जानता? अपने इस प्रश्न और आरक्षण विधान के द्वारा परीक्षाओं में कम अंक पाकर सफल/चयनित हुए अभ्यर्थियों का जब मुल्यांकन करता हूँ तो जो परिणाम सामने आता है वह काफी भयावह होता है, क्योकिं सरकार और परीक्षाओं को नियंत्रण करने वाली संस्थाएं स्पष्ट रूप से स्वीकार करती हैं कि परीक्षा में पूछे गये प्रश्न ज्ञान के साथ-साथ संबंधित विभाग में उम्मीदवारों की जानकारी लेने वाले प्रश्न होते हैं, परीक्षा में किसी प्रकार कि दादागिरी या दंबगई नहीं चलती,कोई पैसो के दम पर प्रश्न-पत्र गोपनीय ढ़ग से नहीं खरीद सकता तो फिर कम अंक पाने वाले का क्यों चयन होता है,? क्या कम अंक प्राप्त करना इस बात का प्रमाण नहीं है कि उसकी जानकारी कम है, वह इसके योग्य नहीं है? तो क्या एक मेडिकल में, इंजिनियरिंग में, प्रशासनिक सेवाओं में कम आने वाले का ज्ञान कम नहीं है, वह कैसे इस विभागों में उत्तम कार्य कर सकेगा। वह विकास के लिए कैसे योगदान कर पायेगा, वह किस प्रकार अपनी अल्प ज्ञान के आधार पर एक विकसित राष्ट्र का निर्माण करेगा। एक कम अंक पा कर चयनिय हुआ अध्यापक किस आधार पर बच्चों को ज्ञाना देगा। इन प्रश्नों के जबाब में काँप उठता है गहमरी का अवोध मन। भगवान ने ज्ञान प्राप्त करने का अधिकार सबको दिया है, सबको बल बुद्वि दिया है, जिसका प्रयोग हो सकता है समाज का दबा कुचला तबका धन और व्यवस्थाओं के आधार पर नहीं कर पा रहा है। जैसा कि आकड़ो से साफ पता चलता है कि आजादी के बाद से लेकर आज तक आरक्षण के वावजूद जहॉं दलित और पिछडे़ अपनी जगह पर कायम रहे, वही इनकी राजनीत कर हजारो नेता जमीन से आसमान पर जा बैठे। मैं ऐसा नेताओं को नाम लेकर इस पोस्ट को राजनैतिक नहीं बनाना चाहता मगर आप खुद जानते है मैं किसका किसका नाम लिख सकता हूँ। जहॉं तक मैं इस आरक्षण व्यवस्था पर अपनी बात रखता हूँ, कहता हूॅं कि अब समय यह है कि सरकारें जिसको उचित समझती हो, दलित, अनुसूचित जाति, अनुसुचित जन जाति, पिछडा सभी को उत्तम शिक्षा के लिए हकीकत की धरातल पर उतर कर कार्य करें, गॉंवो में, आदिवासी इलाको में, संसार की मुख्यधारा से दूर बनवासीयो में शिक्षा और ज्ञान के प्रति जागरूकता पैदा करें उन्हे मुख्य धारा में लाने व प्रशासनिक व्यवस्था का अंग बनाने के लिए गॉंवो, शहरो में हर जगह आधुनिक संसाधनो से युक्त शिक्षा व्यवस्था करें । उनकी सुविधाओं में उनकी व्यवस्थाओं में चार चॉंद लगाये, गॉंव से विदेश तक जाकर पढ़ने के लिए पैसा दें। उनकी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए विशेष शैक्षिक सत्र आयोजित करें , मगर परीक्षाओं में पास होने के लिए, साक्षात्कार में पास होने के लिए सभी के अंक बराबर रखे, ताकि जिसकी जानकारी उत्तम हो वही चिकित्सा, इंजिनियरिंग, प्रशासनिक सेवा जैसे महत्वपूर्ण पदो पर आसीन हो। वह भारत के विकास में, समाज के विकास में योगदान कर सके। आरक्षण शिक्षा व्यवस्था हो न कि ज्ञान में। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ऐसा कोई भारतीय सरकार नहीं करेगी, क्योकि तब सही मायने में दलितो का, अनुसूचित जातियों का, अनुसुचित जन जातियों का, पिछडो को विकास होगा, देश की समस्याएं खत्म होगी, देश विकास के पथ पर अग्रसर होगा और इसका खामियाजा नेताओं को भुगतना पड़ेगा क्योकि तब उनके पास लूट-खसूट का संसाधन खत्म हो जायेगा, उनकी राजनीति खत्म हो जायेगी, उनके पास सिवा विकास के कोई मुद्वा नहीं रह जायेगा, वह झूठ बोल कर दिल्ली तक पहुँच पायेगें, माइको में चिल्ला कर दिल्ली तक नहीं पहुँच पायेगें। उन्हें तो बस चाहिए आरक्षण की चाशनी में लिपटा दिल्ली का सिंहासन न कि देश और देश के गरीब, दबे कुचले लोगो का विकास ।
अखंड गहमरी, गहमर, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश।