बात कई वर्ष पुरानी है। परन्तु आज भी याद आती है तो मन को कचोटती है। दीवाली से चार पांच दिन पहले छोटी बहन का फोन आया। ” दीदी अम्मा आपको याद कर रही हैं। उनका आपसे मिलने का बहुत मन है। यदि अा सको तो भाई दूज पर घर अा जाना। उनकी तबियत भी कई दिन से ठीक नहीं है।”मैंने घर पर फोन मिलाया। अम्मा से बात की। उनको समझाने की कोशिश की कि इस बार मेरा जाना सम्भव नहीं हो पाएगा। सातवां महीना चल रहा था और ट्रेन का सफ़र बहुत लंबा था। उन्होंने मेरी बात सुनी। फोन रख दिया। चेहरे पर क्या भाव थे मैं नहीं देख पाई। वीडियो कॉल का जमाना नहीं था। फोन रखने से पहले इतना ही बोली थी ” तुझे देखने का बहुत मन था” ।
और फोन रख दिया। ऐसा हर बार ही होता था। अम्मा बात करते करते भावुक हो जाती। कुछ बोल नहीं पाती। दिवाली हो गई। भाईदूज भी। अगले दिन मन विचलित सा होता रहा। रात में जल्दी सो गई। लगभग बारह बजे एक फोन आया। पति ने कुछ बात की और फोन रख दिया। मैं नींद में थी। सोचा कोई जरूरी फोन नहीं होगा इसलिए मुझे जगाया नहीं।सुबह उठी तो पति तैयार खड़े थे। मेरे मन में कुछ खटका। पूछा तो उन्होंने बताया अम्मा ज्यादा बीमार हैं। उन्हें देखने जाना ही पड़ेगा । तुम जल्दी से तैयार हो जाओ। मैंने तत्काल में टिकट ले लिया है। ज्यादा सवाल जवाब किए बिना में भी तैयार हो गई।
स्टेशन पहुंचे तो गाड़ी चलने ही वाली थी। दो तीन लोगों ने मिलकर मुझे ऊपर चढ़ाया। पति दूसरे डब्बे में चढ़े। हमारे चढ़ते ही गाड़ी ने गई पकड़ ली।घर जाकर देखा तो अम्मा जमीन पर लेटी थी। फूलमालाओं से उनका शरीर ढका था। पूरा माहौल शोकमग्न। हर तरफ से रोने की आवाज अा रही थी।परन्तु मेरे कानों में बस उनके ही शब्द गूंज रहे थे।” तुम्हे देखने का मन था।” काश उनकी बात समझ पाती। उन्होंने आखिरी बार मुझे बुलाया था। अब कभी नहीं बुलाएंगी।
51, सरदार क्लब स्कीम, चंद्रा इंपीरियल के पीछे, जोधपुर राजस्थान।
संपर्क – 9461286131
ई मेल- tyagiarchana31@gmail.com