प्रेम जीवन की सच्चाई-नंदलाल

राजा रणसिंह और राजा अरिमर्दन सिंह एक दूसरे के घनिष्ठ मित्र थे मित्र भी ऐसे की जैसे एक  जिस्म दो जान एक दूसरे के पूरक या यूं कहें एक सिक्के के दो पहलू दोनों की मित्रता एक मिशाल थी यह वास्तविकता सोलहवीं शताब्दी की है जब छोटे छोटे रियासतो में भारत बंटा था और निहित छुद्र स्वार्थों के लिये आपस मे रियासते लड़ती भिड़ती और समाप्त होती जन्म लेती पुरानी रियासते दम तोड़ती नए शक्ल में जन्म लेती आम जनता को रजवाड़े की राज नीति से कोई मतलब नही था वह अपने ही हाल बेहाल परेशान रहती जब भी मौका मिलता एक रियासत दूसरी मजबूत होती रियासत को समाप्त करने के लिये किसी विदेशी आक्रांता को आमंत्रित कर भारत भूमि पर आक्रांताओं के आतंक को आमंत्रित करते इतिहासकारो का मत है कि लोदी से लड़ने के लिये राणा संग्राम सिंह ने बाबर को आमंत्रित किया था जिसने देश की शक्ल ही बदल दी और राणा संग्राम सिंह की सल्तनत को रौंद दिया इसी प्रकाए गोरी जय चंद पृथ्वीराज का इतिहास सभी जानते है।। व्यक्तिगत आकांक्षाओं के लिये सामरिक सामाजिक हितों को प्रति दिन रौंदा जाता था राजा रण सिंह और राजा अरिमर्दन सिंह भारतीय उप महाद्वीप अतीत और राजनीति से भलीभांति परिचित थे।।

रण सिंह के पुराने पुश्तैनी शत्रु किशन गढ़ के राजा गजराज सिंह थे सदैव अवसर की तलाश में रहते और जब भी मौका मिलता राजा रण सिंह को नीचा दिखाने का कोई अवसर नही चूकते राजा गजराज सिंह नेऔरंगजेब के मजबूत किलेदार रियासतों से  मिलकर राजा रण सिंह पर आक्रमण कर दिया राजा रण सिंह अकेले अपनी छोटी विश्वत सेना लेकर निकल पड़े संभावना यही थी  जंग से लौटना मुश्किल था उधर  राजा अरिमर्दन सिंह को जब पता लगा कि उनका मित्र संकट में है अपनी सेना लेकर दूसरी तरफ से रण सिंह के दुश्मन सेनाओं को ललकारा बहुत भयंकर भयानक युद्ध हुआ और दुश्मन सेना को सामने पीछे दो छोटी छोटी सेनाओं मगर समर्पित जाबांज राजपूत योद्धाओं से लड़ना पड़ा राजा गजराज सिंह के मंसूबो पर पानी फिर गया वह स्वयं युद्ध मे भाग नही ले पाया था  मुगल रियासतों को लगा कि गजराज सिंह ने धोखा दिया है सभी ने एक साथ एक तो राजा रण सिंह एव अरिमर्दन सिंह के हाथों शर्मनाक हार और दूसरी तरफ राजा गजराज सिंह पर धोखे गद्दारी का शक मुगल रियासतों की संयुक्त शक्ति को हिला दिया सारे मुगल संयुक्त मुगल रियासत  ने राजा गजराज सिंह से युद्ध मे हुये नुकसान के लिये मुवाज़े की मांग की राजा गजराज की इतनी औकात नही थी अतः मुगल रियासत की सयुक्त संगठन जिसे राजा गजराज ने राजा रण सिंह के खात्मे के लिये रजामंद किया था मिलकर गजराज सिंह की पूरे खानदान की हत्या कर दी और उसके रियासत को बंदरो की तरह बाँट लिया ।।उधर रण सिंह और अरिमर्दन सिंह के हौसले आसमान पर थे रण सिंह की पत्नी रानी मीनाक्षी और अरिमर्दन की पत्नी अहिल्या गर्भवती थी और दोनों रियासतो में खुशियों के आगमन के आसार थे राजा रण सिंह और राज अरिमर्दन सिंह ने आपस मे एक दूसरे को वचन दिया था कि यदि रण के यहॉ लड़का होगा और अरिमर्दन सिंह के यहा लड़की दोनों का वैवाहिक संबंध निश्चिंत होगा यदि अरिमर्दन के यहॉ लड़का होगा और रण सिंह के यहां लड़की होगी तब भी वैवाहिक संबंध निश्चित है यदि दोनों घरों में लड़की या लड़का ही होते है इस स्तिथि में सम्बंध संभव नही होगा राज रण और राजा अरिमर्दन दोनों ही 

राजपूताने आन बान शान के शक्तिशाली प्रतीक प्रतिबिंब थे समय बीतता गया और दोनों परिवारों में खुशियों के फूलों के चमन बाहर आ गए रण सिंह के परिवार में बेहद खूबसूरत लड़की का जन्म हुआ तो राजा अरिमर्दन के यहां खूबसूरत राज कुमार का जन्म हुआ जिनके रिश्ते पहले ही दोनों रियासतों के मुखिया रण सिंह और अरिमर्दन सिंह द्वारा तय किये जा चुके थे।।दोनों ही परिवारो की प्रथम संताने जाने कितनी खुशियों के वर्तमान और भविष्य लेकर पैदा हुये थे।समयानुसार दोनों परिवारों ने अपने अपने संतानों के सभी संस्कार विधिवत सम्पन्न कराए रण सिंह ने अपनी बेटी का नाम  मित्रबिन्दा रखा और अरिमर्दन सिंह ने  बेटे का नाम अजीत सिंह रखा जब दोनों की आयु पांच वर्ष की हुए तब राजा रण सिंह एव राजा अरिमर्दन सिंह ने मित्रबिन्दा और अजीत का विवाह पूरे धूम धाम से करवाया ।।आब दोनों रियासते मित्रता के दायरे से भी आगे सम्बन्धी रिश्ते में बंध चूके थे जब मित्रबिन्दा और अजीत सिंह का विवाह हुआ दोनों को विवाह जैसे गम्भीर संबंध की कोई जानकारी नही थी दोनो अल्हड़ बचपन की शरारतों में  अपने अपने घर खेलते उनकी शरारतों से दोनों परिवारों में खुशियों का माहौल था।। धीरे धीरे समय बीतने लगा और दोनों की शिक्षा दीक्षा शुरू हुई राजकुमार अजित सिंह को अस्त्र शस्त्र राजनीति धर्म आदि की शिक्षा दी जाने लगी तो मित्रबिन्दा को घर परिवार समाज राजनीति अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी जाने लगी धीरे धीरे दोनों ही अपनी शिक्षा के पारंगत होने लगे राजा रण सिंह के राजकीय सलाहकार थे पदम् सिंह उनका बड़ा बेटा था विघ्नेश्वर सिंह मित्रबिन्दा और विघ्नेश्वर सिंह साथ साथ अस्त्र शस्त्र की शिक्षा ग्रहण करते अक्सर साथ रहते मित्रबिन्दा और विघ्नेश्वर  की आयु में समानता भी थी और  जितनी खूबसूरत कुशाग्र मित्रबिन्दा थी उतना ही खूबसूरत बीर पुरूषार्थी विघ्नेश्वर था दोनों को जो भी साथ देखता बरबस उसके दिल से आवाज़ आती क्या भगवान ने जोड़ी बनाई है राजा रण सिंह को मित्रबिन्दा और विघ्नेश्वर की नजदीकियां किसी अनजाने अपशगुन का संकेत देती उन्होंने ने मित्रबिन्दा के साथ चार पाँच हम उम्र अपने विश्वस्त को उसकी देख रेख के लिये साथ रख दिया ताकि उसकी विघ्नेश्वर सिंह की नजदीकियों की वास्तविकता जानी जाए और पूर्व रिश्ते की डोर को मजबूत किया जाय।एक दिन मित्रबिन्दा अपने सहेलियों के साथ सुबह  सैर करने अपने ही रियासत के अभ्यारण्य गयी घूमते घूमते वह राज्य सीमा से कुछ दूर आगे निकल गयीं उसके साथ कुछ घुड़सवार और सहेलियां ही थी तभी कही से आती मुगल सिपाहियों की एक टुकड़ी की नज़र मित्रबिन्दा और उसकी सहेलियों पर पड़ी मुगल सिपाहियों ने मित्रबिन्दा और उसकी सहेलियों के साथ अभद्र आचरण  शुरू कर दिया मित्रबिन्दा के साथ गए घुड़सवारो ने विरोध किया झड़प हो गयी और मित्रबिन्दा के सारे घुड़सवार मारे गए अब मित्रबिन्दा और उसकी सहेलियां मुगल सैनिकों की चंगुल से निकलने का प्रायास करने लगी और तब मित्रबिन्दा ने अकेले ही मुगल सैनिकों से लोहा लिया और लगभग दो तिहाई मुगल सैनिकों को मार डाला और अपनी सहेलियों के साथ रियासत लौट आयी जब यह बात राजा रण सिंह को पता चली तब मंत्री सलाहकार पदम् सिंह को बुलाया और सारी सच्चाई बयां कर राजनीतिक नियमानुसार अग्रिम कार्यवाही के लिये परामर्श किया पदम् सिंह ने बताया कि  नीति यही कहती है कि बचे सैनिकों को भी उनके किये का दंड मिलना चाहिये तुरंत ही विघ्नेश्वर सिंह के नेतृत्व में एक सैन्य टुकड़ी को राजा रण सिंह ने रवाना किया क्षिप्रा नदी के किनारे मुगलों की बची टुकड़ी और अजीत सिंह की मुलाकात हो गयी साथ मित्रबिन्दा भी गयी थी बहुत भीषण संग्राम हुआ सारे मुगल सिपाही मारे गए अजीत सिंह और मित्रबिन्दा के संयुक्त रणकौशल की चर्चा पूरे रियासत में कौतूहल का विषय थी।।

मित्रबिन्दा के बाद राजा रण सिंह को दो पुत्र पुरुश्र्वा और मयंक हुए ठीक उसी समय राजा अरिमर्दन सिंह को एक कन्या एक पुत्र की प्राप्ती हुई जान्हवी और काल सिंह जो राजा रण सिंह के पुरुश्र्वा मयंक के ही समक्ष थे उधर अजीत सिंह के सौर्य पुरुषार्थ पराक्रम की चर्चा चारो तरफ फैल रही थी उसका नाम सुनते ही दुश्मनों के छक्के छूट जाते अजित सिंह पराक्रमी कुशल योध्या और चतुर रणनीतिकार था राजा अरिमर्दन सिंह को अपने कुलभूषण अजित पर अभिमान था उंसे भरोसा था कि अजित के नेतृत्व में छोटे भाई काल बहन जान्हवी का भविष्य तो सुरक्षित है साथ ही साथ रियासत भी अक्षय अक्षुण सुरक्षितः है

राजा रण सिंह और राज अरिमर्दन सिंह की दोस्ती पल प्रहर नए आयाम अंदाज़ के साथ मजबूत होती।अरिमर्दन सिंह के राज्य में लग्भग आधा भाग जंगलों से घिरा था जिसमे जंगली जातियां निर्द्वंद निर्विघ्नं रहती विचरण करती उनको कोई समस्या नही थी अक्सर राज परिवार अपने रियासत के जंगलों में शिकार खेलने  सैर करने की नीयत से जाता।एक दिन अजित सिंह अपने पिता राजा अरिमर्दन सिंह से अपने राज्य के जंगलों में शिकार के लिये जाने की अनुमति मांगी राजा अरिमर्दन सिंह को  बेटे अजित की काबिलियत पर पूरा भरोसा था अतः शिकार पर जाने की अनुमति देने में कोई दिक्कत नही राजा अरिमर्दन सिंह महसूस नही हुई बेटे अजित के साथ एक सैन्य टुकड़ी को जाने का आदेश दिया राजकुमार अजित सिंह पूरे लाओ लस्कर के साथ शिकार पर निकल पड़े। एक दो दिन कि यात्रा के बाद अजित सिंह अपने रियासत के जंगली क्षेत्र में पहुंचे वहाँ सैनिकों ने अपना अस्थायी आवास बनाया जिसमें एक दो माह रहा जा सकता है और रात्रि विश्राम किया सुबह शिकार पर अपने सैन्य टुकड़ी के साथ निकल पड़े शाम को अपने शिविर लौट आए यही शिलशिला चलता सुबह राजकुमार अजित सैन्य टुकड़ी के साथ शिकार पर निकलते और शाम को अपने शिविर लौट आते और अपनी जन जातीय प्रजा की शिकायत उनका निवारण करते यही शिलशिला चलता रहा लगभग बीस दिन बीत गए कृष्ण पक्ष समाप्त हो चुका शुक्ल पक्ष की चाँद चाँदनी शैने शैने अपनी पूर्णिमा की छटा की तरफ बढ़ रहे थे एक दिन सुबह राजकुमार अजित सिंह शिकार करने अपने सैन्य टुकड़ी के साथ निकले जंगल मे बहुत दूर निकल चुके थे तभी एक भालू जो एक पेड़ पर लगे मधुमख्खी के शहद के छत्ते को नोच कर शहद खुद खाना शुरू किया और छत्ते को नीचे फेंका ठीक उसी समय राजकुमार अजित सिंह का घोड़ा उस पेड़ के नीचे पहुँचा और मधुमक्खी का छत्ता उनके ऊपर आ गिरा नतीजन मधुमक्खियों ने राजकुमार अजित पर एव उनके घोड़े पर धावा बोल दिया अब घोड़ अनियंत्रित होकर इधर उधर भागने लगा राजकुमार अजीत सिंह की सैन्य टुकड़ी बहुत पीछे छूट गयी राजकुमार अजित सिंह को उनका घोड़ा लेकर  बहुत दूर निकल गया जब तक मधुमक्खियों के आतंक से निजात मिली राजकुमार इतने घने जंगल मे पहुंच चुके थे जहां दिन रात का फर्क करना बहुत मुश्किल था राज कुमार अजित को एक तो मधुमखईयो के काटने का जलन और फिर जंगल मे रास्ते का भटकाव दोनों से एक साथ जूझना पड़ रहा उधर राजकुमार की सैन्य टुकड़ी दिनभर राजकुमार की तलाश में भटकती शाम को शिविर लौट आयी राज कुमार अपने शिविर लौटने के रास्ते की तलाश की तरकीब निकाल ही रहे थे कि उनके सर पर बहुत कठोर पत्थर नुमा कोई वस्तु गिरी राजकुमार अचेत हो गये राजकुमार अजित का घोड़ा गरुण बहुत होशियार स्वामिभक्त एव जांबाज था उंसे अंदाज़ा लग गया कि उसके राजकुमार बड़ी मुसीबत में फंस गए है फिर क्या था गरुण सीधे भागने लगा भागते भगते वह एक तालाब के पास रुका और राजकुमार को अपने पीठ से बड़ी चालकी से उतार कर तालाब से जल लाकर उनके चेहरे पर डालता करीब आठ दस बार ऐसा करने पर राजकुमार अजित को चेतना  तो आ गयी मगर सर से अधिक रक्तस्राव हो जाने के कारण उठने की हिम्मत नही हो पा रही थी अब रात्रि का पहला प्रहर ढल चुका था राजकुमार अजित की समझ मे कुछ भी नहीं आ रहा था क्या करे।तभी वहाँ बेहद सुंदर बाला तालाब से जल लेने आयी उसने देखा एक व्यक्ति असहाय निराश  बैठा है वह सोच ही रही थी तबहियो गरुण उसके पास गया और उसका हाथ पकड़ कर उसे राजकुमार अजित के पास ले गया बाला ने एक साथ राजकुमार अजित से कई सवाल कर डाले जैसे कौन हो कहां से आये हो इतने घनघोर जंगल मे कैसे पहुंचे राजकुमार अजित ने सिलसिलेवार सारी बातों का जबाब दिया और बताया कि वह राजा अरिमर्दन सिंह का पुत्र और रियासत का राजकुमार है  फिर उस सुंदरी का नाम जानना चाहा और यह भी जानना चाहा कि इस घने जंगल मे वह क्या कर रही है तब उस खूबसूरत कन्या ने बताया वह एक ऋषि कुल कन्या है उसके पिता ऋषभ की कुटिया है यहां जँगली जीव तो हमारे सहचर मित्र है मुगलों की दुर्नियती से यहां हम लोगों को कोई भय नही है क्योंकि यहाँ तक वे पहुंच ही नही सकते अपना नाम कृतिका बताया और बोली राजकुमार आप मेरे आदरणीय अतिथि है आप चिंता ना करे और बोली आप और आपका घोड़ा साथ चले कृतिका और राजकुमार अजित घोड़ा गरुण साथ साथ ऋषभ की कुटिया पहुंचे वहाँ पहुंचते ही ऋषभ ने कृतिका से पूछा पुत्री तुम्हारे साथ कौन है कृतिका ने राजकुमार का पूरा परिचय दिया और बोली आज ये लोग हमारे अतिथि है ठीक उसी समय उस आश्रम के आस पास रहने वाले और भी संतो की कुटिया से सारे लोग निकल कर बाहर आये और राजकुमार अजित के आने का स्वागत किया और  कृतिका को राजकुमार अजित की सेवा की लिये जिम्मेदारी सौंपी कृतिका ने राजकुमार अजित के सर पर बनौषधियो का लेप लगाया और मधुमख्खियों के काटने से होने वाले जलन के लिये औषधि युक्त जल से पूरे  शरीर को अनेंको बार पोछा कृतिका अपने आतिथ्य धर्म का बड़ी निश्छलता से निर्वहन कर रही थी और राजकुमार अजित भी अतिथि धर्म का लेकिन नीति नियंता को तो कुछ और ही मंजूर था कृतिका ने राजकुमार अजित को कंद मूल फल आदि भोजन के लिये दिया और स्वय पास कुछ दूरी पर शयन के लिये चली गयी मध्यरात्रि व्यतीत होने के बाद राजकुमार अजित सिंह को तेज ज्वार उठा और वह ऐसे कांपने लगे जैसे तूफान में बृक्ष की डाली पत्ते कृतिका ने पिता ऋषभ और आस पास के कुटिया के लोंगो को जगा कर अजित के पास ले गयीं सभी ने उपलब्ध सभी जड़ी बूटियों से अजित सिंह की चिकित्सा की लेकिन अजित सिंह का स्वस्थ बिगड़ता ही जा रहा था तभी ऋषभ ध्यान लगा कर देखा तो उनका माथा ठनक गया चन्द्रमा अस्त होने वाला था और उससे पूर्व कृतिका और अजित का मिलन नही हुआ तो अजित की जिंदगी समाप्त हो जाएगी क्योकि दोनों ने पिछले जन्म में समंदर की लहरों में एक दूसरे को अस्त होते चद्रमा के समक्ष वचन दिया था कि हम लोग फिर मिलेंगे ऋषभ के सामने बहुत बड़ा धर्म संकट था कृतिका उनकी पुत्री थीं उन्होंने कृतिका और अजित के विषय मे अपनी जानकारी सबको बताई और जानना चाहा हमे क्या करना चाहिये सभी ने एक स्वर से कहा आतिथ्य धर्म यही कहता है कि  जैसे सम्भव हो राजकुमार अजित सिंह के प्राणों की रक्षा करनी चाहिये ऋषभ ने कहा विधाता तेरी दुनियां तेरा न्याय तेरा जीवन ब्रह्मांड तेरे ही लिखे भविष्य में अपनी पुत्री कृतिका की बलि चढ़ाने जा रहा हूँ बहुत

दुर्भाग्यशाली पिता हूँ जो अपनी पुत्री को एक अनजाने व्यक्ति के जीवन के लिये उंसे वह करने का आदेश देने जा रहा है जो किसी पिता के लिये घोर पाप है फिर भी विधाता तेरे आदेश को शिरोधार्य करता इतना कहते हुए ऋषभ ने सभी को अपनी अपनी कुटिया में वापस भेजने के उपरांत कृतिका से आदेशात्मक स्वर में कहा पुत्री मुझे यह बात तुमसे नही कहनी चाहिये किंतु आतिथ्य धर्म विवश कर दिया है तुम अबिलम्ब राजकुमार अजित के पास जाकर उसे अपने श्वषन से श्वसन देते हुये अपने शरीर से ताप दो कृतिका ने पिता के आदेश पर कोई प्रश्न नही किया औए तुरंत पिता के आज्ञा अनुसार अजित के शरीरं को अपने शरीर से  ढँक लिया और श्वसन  और शरीर का ताप देना शुरू किया कुछ ही पल में अजित सामान्य हो गया और चंद्रमा के अस्त होने से पूर्व ही दोनों का मिलन हो गया।सुबह ऋषभ एव आस पास कुटियो के लोग जागे और राजकुमार अजित और कृतिका को देखकर बेहद खुश हुये और भविष्य भगवान पर छोड़ दिया।।

इधर अजित के साथ आई सैन्य टुकड़ी प्रति दिन राजकुमार अजित की तलाश करती और शिविर में लौट जाती बिना राजकुमार के राज्य वापस लौटने पर सर कलम होना निश्चिंत था  राजकुमार अजित को गए लगभग बीस दिन से अधिक बीत चुके थे मगर कही पता नही चल रहा था रियासत लौटने की समय सीमा बीते दस दिन से अधिक हो चुके थे मगर अरिमर्दन सिंह को कोई चिंता नही थी क्योंकि उनको राजकुमार अजित पर पूरा भरोसा था।।पदम् सिंह के बेटे विघ्नेश्वर और मित्रबिन्दा के बीच नजदीकियां बढ़ती जा रही थी जिसे देखकर रण सिंह को अनेकों चिंताएं अनहोनी की आशंकाएं  चिंतित करती जा रहीं थीं लेकिन कुछ भी कर सकने में असमर्थ थे अतः नियत और समय पर ही भविष्य को छोड़ दिया धीरे धीरे मित्रबिन्दा के ससुराल जाने का समय नजदीक आने लगा मित्रबिन्दा की आयु सत्रह वर्ष और राजकुमार अजित की उम्र ऊँन्नीस वर्ष हो चुकी थी लेकिन विघ्नेश्वर और मित्रबिन्दा को जैसे इस बात से कोई फर्क नही पड़ने वाला दोनों निश्चिन्त निर्द्वंद साथ साथ सदैव देखे जाते दोनों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण और प्रेम अन्तर्मन से प्रफुटित हो चुका था लेकिन राजवंश की परंपरा और मर्यादा की लक्षण रेखा ने दोनों को विवश कर दिया रखा था एक दिन राजा रण सिंह के मंत्री पदम् सिंह ने राजा साहब को अकेला और प्रसन्न चित्त देखकर बोले महाराज विघ्नेश्वर और राजकुमारी के बीच नजीकीया बढ़ती जा रही है जो शुभ सकेत नही है क्योंकि राजकुमारी का विवाह पांच वर्ष की उम्र में ही राजकुमार अजित से हो चुका है ऐसी स्तिथि में मैं आपका नमक खाने के कारण आपको किसी भी असमंजस की स्थिति से आगाह करते हुये विनम्र निवेदन करता हूँ कि आप समय रहते हुये कोई ठोस निर्णय लेने की कृपा करें और सम्भव हो तो राजा अरिमर्दन सिंह को बुलाकर बधुप्रवेश की शुभ तिथि पर अजित सिंह के साथ विदा कर दे जिससे कि मित्रबिन्दा और विघ्नेश्वर एक दूसरे से दूर हो जाएंगे और बात समाप्त हो जाएगी राजा रण सिंह को पद्म सिंह को बात पसंद आई उन्होंने दूसरे दिन राज पण्डित की शुभ  मुहूर्त निकलवाकर राजा राजा अरिमर्दन के व्यक्तिगत पत्र लिखकर बधुप्रवेश के लिये अनुरोध किया  राजा    रण सिंह जी ने पण्डित नाई और सैनिकों के साथ सगुन के थाल को लेकर एक सेना की टुकड़ी भेजा राजा रण सिंह जी का निमंत्रण संदेश लेकर रण सिंह की दूत राजा अरिमर्दन सिंह के रियासत पहुंचे राजा अरिमर्दन सिंह ने बड़े ही गर्मजोशी से स्वागत किया और रण सिंह के पत्र को पढ़ने के बाद अपनी सहमति प्रदान की एक माह बाद मित्रबिन्दा को विदा करने जाना था राजा रण सिंह के पंडित सेना और अन्य लोग लौट कर खुशखबरी सुनाई राजा अरिमर्दन सिंह जी ने राजकुमारी मित्र बिन्दा को विदा कराने आएंगे जब यह बात मित्रबिन्दा को मालूम हुई वह उदास हो गयी और सीधे राजकुमार विघ्नेश्वर के पास गई और बोली राजकुमार विघ् हम लोग इस जन्म में एक दूसरे के साथ नही सम्भव नही है क्योंकि मेरा विवाह पांच वर्ष की उम्र में कर दिया गया जब मैं और मेरे पति राजकुमार अजीत प्रेम ,नारी ,पुरुष विवाह आदि विषयों से अपरिचित थे अजित और मैं दोनों ही राजपूताने शान परम्परा और जिद की भेंट चढ़ गए जब हमें प्रेम संबंधों और सामाजिकता का ज्ञान हुआ तब तुम मेरे मन मस्तिष्क हृदय में प्रेम प्रवाह लेकर आये और बदकिस्मती की मेरा समर्पण वहां तय है जिसे मैंने कभी देखा तक नही जब विवाह हुआ तब मैं अपनी माँ की गोद मे नीद में सो रही थी और अजित अपने पिता की गोद मे सुबह नीद खुली तो मेरी मांग में सिंदूर था जब मैंने अपने अंजान बचपन के भाँवो से अपने माँ बाप से सवाल किया तो उन लोंगो ने मुझे बताया भगवान का आशीर्वाद है विघ्नेश्वर बड़े संयमित स्वर बोला राजकुमारी आपके माता पिता ने बचपन मे विवाह के संबंध में आपके सवाल पर यही बताया था कि भगवान का आशीर्वाद है राजकुमारी आप भगवान पर भरोसा करिए अभी एक माह का समय बाकी है राजकुमारी मित्रबिन्दा और उदास रहने लगी उसका खिलखिलाना बिंदास अंदाज जाने कहाँ खो गया राजा रण सिंह एव रानी को लगा कि बाबुल का घर छूटने के करण राजकुमारी मित्रबिन्दा के स्वभाव में परिवर्तन है इसे सामान्य बात मानकर उसकी बिदाई की तैयारियों में जुट गए उधर अरिमर्दन सिंह के यहॉ भी वधु के आगमन की खुशियों में तैयारियां शुरू हो गयी समय बीतने लगा।।

इधर राजकुमार अजित सिंह और कृतिका आश्रम के विशिष्ठ अतिथि हो गए निर्विघ्न थे क्योंकि सभी को कृतिका और अजित के संबंध के विषय मे ज्ञात था मित्रबिन्दा के बिदाई की तिथि नज़दीक आ रही थी और अजित सिंह अभी तक लौटे नही थे राजा अरिमर्दन सिंह ने अपना दूत राजा रण सिंह के पास भेजा और वधु प्रवेश की तिथि बढ़ाने के लिये अनुरोध किया जिसे रण सिंह जी ने स्वीकार कर लिया और मित्रबिन्दा के बिदाई की तिथि एक माह आगे बढ़ा दी गयी मगर अरिमर्दन सिंह की चिताएं राजकुमार अजित के वापस ना लौटने से चिंतित थे उन्होंने स्वयं अजित को खोजने का निर्णय लिया और सेना के साथ अपनी रियासत के जंगलों की तरफ कुंच किया उधर राजकुमार अजित सिंह के साथ गयी सैन्य टुकड़ी प्रति दिन राजकुमार का तालाश करती और निराश होकर लौट आती दो दिन बाद राजा अरिमर्दन सिंह जी की मुलाकात राजकुमार के सैन्य टुकडी से हो गयी उन्होंने अजित सिंह के बिछड़ने के कारण परिस्थितियों पर विचार विमर्श किया उन्हें विश्वास था कि राजकुमार अजित सिंह को कोई ताकत इस जंगली क्षेत्र में ना तो हरा सकती है ना ही उन्हें कोई मार सकता है अतः राजा अरिमर्दन सिंह जी विल्कुल निश्चित भाव से अजित सिंह को खोजने निकल पड़े।इधर महात्मा ऋषभ ने कहा राजकुमार बेटियाँ बोझ तो नही होती फिर भी कोई बाप अपनी बेटी को उम्र भर नही रख सकता है अतः कृतिका को ससम्मान अपनी पत्नी के रूप में रियासत ले जाओ राजकुमार अजित महात्मा ऋषभ एव उनके समाज के स्नेह सम्मान में इस कदर घुल मिल गए थे कि उनके मन मस्तिष्क ने अपने बचपन के विवाह के विषय मे बताना ऊँचीत नही  समझा औए बड़े सम्मान के साथ कृतिका को विदा कराकर अपने वफादार गरुण पर बैठाया और चल दिये उधर से राजा अरिमर्दन सिंह अपनी सेना के साथ राजकुमार अजित को खोज रहे थे दोनों की मुलाकात हुई आमना सामना हुआ दोनों ने बड़े आदर के साथ एक दूसरे का अभिवादन आशीर्वाद का आदान प्रदान किया औपचारिकताओ के बाद राजा अरिमर्दन सिंह ने पूछा राजकुमार इतने दिनों कहां थे राजकुमार अजित ने सारी घटना का सिलसिलेवार वर्णन किया फिर पिता अरिमर्दन से कृतिका से परिचित करवाते बोले पिताश्री यह राजघराने की बधू कृतिका है यह सन्त ऋषभ जी की पुत्री है और फिर अपने जीवन और मृत्य के बीच कृतिका का जीवन बनकर दृढ़ चट्टान की तरह खड़ा हो जाने की पूरी सच्चाई बताई राजा अरिमर्दन सिंह ने पुत्र अजित सिंह के शब्द शब्द ईश्वर के आशीर्वाद की प्रेरणा की तरह प्रभावित कर रहे थे उन्हने कहा राजकुमार आप बिलकुल चिंता ना करे मैं आप और मित्रबिन्दा के बचपन के विवाह के संदर्भ में राजा रण सिंह और विद्वत जन से विचार विमर्श करूंगा कोई सार्थक रास्ता अवश्य निकलेगा ।।राजा अरिमर्दन सिंह राजकुमार अजित सिंह कृत्तिका सेना के साथ रियासत पहुंचे और राजा अरिमर्दन सिंह ने अपने राज्य की विद्वत जनों को आमंत्रित किया और मंत्री देवल राव को बुलवाया और आम सभा बुलाई गई और रियासत के आम जन को आमंत्रित किया गया विद्वत जन के समक्ष मित्रबिन्दा राजकुमार अजित के बचपन मे हुये विवाह और कृतिका से मुलाकात का का सम्पूर्ण व्योरा रखा और जनता एव विद्वत जन का निर्णय जानना चाहा विद्वत जन सर्वसम्मत से इस निष्कर्ष पर पहुंचा की जिस विषय मे किसी को ज्ञान न होने पर उसकी अज्ञानता में यदि कोई संस्कार सामाजिक व्यवहारिक आचरण सम्पादित कराए जाते है बाद में समझ जानकारी होने पर स्वीकार करना बाध्यता नही होती।। मित्रबिन्दा और अजित सिंह का विवाह पांच वर्ष की उम्र में राजपुताना वचनबद्धत राजपूताने स्वाभिमान के निर्वहन के लिये किया गया ना तो मित्रबिन्दा ना ही अजित को विवाह जैसे गम्भीर संस्कार की जानकारी नही थी यहॉ तक कि अजित अपने पिता एव मित्रबिन्दा अपनी माँ की गोदी में गहरी निद्रा में थे जब वैवाहिक सांस्कारो को जैसे फेरे सिंदूरदान आदि संस्कार पूर्ण किये गए अजित और मित्रबिन्दा को के लिये बचपन का विवाह सुंदर स्वप्न की वास्तविकता भी नही हो सकता।। यह दोनों मासूमो के साथ अन्याय या यूं कहें अपराध किया गया क्योकि बाल विवाह एक आपराधिक कृत्य है और राजा अरिमर्दन सिंह की प्रजा ने उसका समर्थन किया राजा अरिमर्दन सिंह जी अपने राज्य के विद्वत समाज के साथ राजा रण सिंह जी के यहां पहुंचे और उनको बस्तु स्थिति से अवगत कराकर अपने रियासत के विद्वत जन एव जनता की आम सभा बुलाने के लिये कहा राजा रण सिंह ने ऐसा ही किया और पूरी सभा दोनों पक्षो के विद्वतजन ने बाल विवाह को बच्चों के साथ अपराध की संज्ञा दी अब नीर्णय यह हुआ कि मित्रबिन्दा और विघ्नेश्वर का विवाह होगा और कन्या दान राजा अरिमर्दन सिंह करेंगे और कृतिका और अजित का विवाह होगा जिसका कन्या दान राजा रण सिंह करेंगे शुभ तिथि पर विवाहोत्सव का आयोजन किया गया कृतिका का कन्यादान राजा रण सिंह ने किया और मित्रबिन्दा का कन्यादान रजा अरिमर्दन सिंह इस अवसर पर कृतिका के पिता ऋषभ और संत ऋषि औए उनके परिजन उपस्थित थे दोनों रियासतो में अरिमर्दन और रण की सूझबूझ भरी दोस्ती और एक सड़ी गली परंपरा बाल विवाह प्रथा के अंत के शुभारंभ के लिये सर्वत्र चर्चा और प्रशंसा प्राप्त हो रही थी दोनों रियासतो को चारों तरफ जै जै कार हो रही थी।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

अपने विचार साझा करें

    About sahityasaroj1@gmail.com

    Check Also

    प्‍यार के भूखे बच्‍चे-ज्‍योति सिंह

    प्यार के भूखे बच्चे-ज्‍योति सिंह

    राधा और किशन एक ही कॉलेज में पढ़ते थे धीरे-धीरे उन दोनों में आपसी प्रेम …

    Leave a Reply

    🩺 अपनी फिटनेस जांचें  |  ✍️ रचना ऑनलाइन भेजें  |  🧔‍♂️ BMI जांच फॉर्म