*गोपालराम गहमरी पर्यावरण सप्ताह 30 मई से 05 जून में आप सभी का स्वागत है* *आज दिनांक 01 जून को आनलाइन कार्यक्रम के तीसरे दिन चित्र पर कहानी*
आयुष की बाल क्रीड़ाओं को देख माधव बीते दिनों की उन यादों में खो गया, “जब वो भी ऐसे ही मिट्टी में खेला करता था। तब उनके खेलने का स्थान भले ही घर का आंगन न रहा हो, लेकिन आंगन में फल-फूल और साग-सब्जियाँ खूब उगी होती थी। आंगन के एक कोने पर गाय और उसकी बछिया मध्यम वर्गीय किसान परिवार होने की जैसे मुनादी कर रही होती।”
अब आयुष 4 साल का हो चला था। माधव का बड़ा पोता था वह। सेवानिवृत्ति के बाद माधव का अधिकांश समय आयुष के साथ खेलते ही बीतता । कुछ ही दिन पहले उसने पर्यावरण दिवस पर रोपित करने के लिए पौधों की एक बड़ी खेप तैयार की थी। वो हर वर्ष इस दिन पर बच्चों के साथ मिलकर गाँव के वीरान पड़े स्थलों पर वृक्षारोपण करता आ रहा था। उसकी इसी मुहिम का ही फल था कि गाँव की सीमा से लगे निर्जन स्थानों पर अब बाँज बुराँश के पेड़ लहलहाने लगे थे। वह गाँव भर के बच्चों के साथ मिलकर हर हफ्ते इन पेड़ों की देखरेख और निराई गुड़ाई करता आ रहा था। देखा देखी में गाँव के कई बड़े-बुजुर्ग और गर्मियों की छुट्टियों में दादा-दादी के पास आये अप्रवासी बच्चे भी हर हफ्ते निर्धारित समय, पानी के डिब्बे और गोबर की खाद लेकर माधव का साथ देते। पिछले पाँच सालों में वे दौ सैकड़े से कुछ अधिक पौधों को जीवित रखने में सफल हुए थे। लेकिन आज आयुष की बाल क्रीड़ाओं को देखकर माधव न केवल विस्मित ही हुआ था बल्कि सोचने पर मजबूर भी हुआ था कि ये आयुष की बाल क्रीड़ा है या भविष्य के वातावरण की तस्वीर। हुआ कुछ यों था कि अपने ही आंगन की मिट्टी खोदकर माधव पिछले पाँच सालों से रोपण के लिए पौधों की खेप तैयार करता था। इसकी भरपाई वो अन्य दिनों में जंगल से मिट्टी लाकर आँगन में बिखेर देता था। इसी मिट्टी में पड़ोसी अवतार सिंह के घर से गोबर लाकर मिलाया जाता, ताकि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे। इसी उर्वर मिट्टी को वो मालू (जंगली चौड़े पत्ते वाला वृक्ष) के पत्तों को सिणकों (कांटेनुमा सीकों) की मदद से बुनकर, बनाये गये गमलों में भरकर बरसाती सीजन के लिए पौध तैयार करते थे। आयुष भी कमरे की खिड़की पर खड़े होकर उनके इस काम को कौतूहल से देखा करता। आज सुबह तड़के ही माधव ने रामऔतार के साथ मिलकर डेढ़ सौ पौध को रोपण के लिए मालू के पत्तों से बने गमलों में करीने से लगाया था। ये काम उन्होंने सुबह ग्यारह बजे तक पूरा कर लिया था।
नहा-धोकर माधव टी वी देखने लगा। टी वी पर चल रही राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप की उबाऊ डिवेट के बीच उसे कब नींद आई, पता ही नहीं चला। नींद खुली तो नजर सीधे खिड़की से आंगन की मिट्टी में खेल रहे आयुष पर गयी। आयुष पापा का गैस हेलमेट पहन प्लास्टिक की बाल्टी में मिट्टी भर रहा था। पास ही रखे मुरझाए पौधों से आभास हो रहा था कि वो पौध रोपण के लिए मिट्टी भर रहा है। इस दृश्य को देखते ही जैसे माधव की आँखों में भविष्य का वो वातावरण तैर गया जब, लोग पीठ पर ऑक्सीजन सिलेंडर लादे, मुँह पर गैस मास्क लगाकर, धरती पर प्राणवायु देने वाले पौधों को ढूँढ कर पालने-पोषने का काम करेंगे। तब उन्हें अपने वृक्षारोपण न करने पर अफसोस हो रहा होगा और वो सोच रहे होंगे कि हमने अपने जीवन काल में पौधों को क्यों नहीं महत्व दिया होगा। माधव खिड़की बंद कर बाहर चले आया और आयुष को गोद में उठा बाथरूम की ओर चल पड़ा। आयुष ने भी नाक से मास्क उतार लिया था।
भविष्य की तस्वीर” @हेमंत चौकियाल रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) 97599 81877