गोपालराम गहमरी पर्यावरण सप्ताह 30 मई से 05 जून में आप सभी का स्वागत है* *आज दिनांक 01 जून को आनलाइन कार्यक्रम के तीसरे दिन चित्र पर कहानी*
धुंधलाती शाम थी, और सूरज अपने आखिरी किरणें बिखेर रहा था। छोटे से गाँव के पास एक विशाल कारखाना खड़ा था, जिसकी चिमनियों से धुआं लगातार निकल रहा था। उसी कारखाने के पास, मिट्टी के ढेर के पास, छोटू अपने छोटे-छोटे हाथों से मिट्टी निकाल रहा था।छोटू के चेहरे पर एक फेसमास्क था, जो उसकी माँ ने उसे पहनने के लिए दिया था ताकि वह धुएं और फाग से बच सके।वह हर दिन वहाँ पर खेलता था। एक शाम खेलते-खेलते ही कारखाने की धुएँ की वजह से छोटू की तबीयत बहुत खराब हो गई। उसकी स्थिति दिन पर दिन खराब होती जा रही थी। घरवालों से उसकी स्थिति देखी नहीं जा रही थी।
छोटू का एक बड़ा भाई भी था, जिसका नाम रोहित था।उसने मन ही मन ये फैसला किया कि मैं गाँव की स्थिति सुधारने के लिए कुछ भी करूंगा। रोहित का गाँव पहले बहुत हरा-भरा और सुंदर हुआ करता था। यहाँ के लोग खेती-बाड़ी करते थे और जीवन शांति से बिताते थे। लेकिन कुछ साल पहले, इस गाँव के पास एक बड़ा कारखाना बन गया। इस कारखाने ने गाँव के जीवन को बदल कर रख दिया। हवा में धुआं और प्रदूषण बढ़ गया, और लोगों को सांस लेने में मुश्किल होने लगी। लेकिन सबसे ज्यादा असर बच्चों पर हुआ।
रोहित के पिता उस कारखाने में काम करते थे, और उसकी माँ घर का काम संभालती थी। रोहित को पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था, लेकिन जब से कारखाना बना था, उसकी पढ़ाई में भी बाधा आने लगी थी। प्रदूषण के कारण वह अक्सर बीमार पड़ जाता था, और स्कूल जाना मुश्किल हो जाता था। वह जानता था कि कारखाने के पास की मिट्टी में धुएं और फाग की वजह से पौधे नहीं उग पा रहे थे। उसने सुना था कि अगर मिट्टी को साफ किया जाए और उसमें अच्छे बीज डाले जाएं, तो फिर से पौधे उग सकते हैं। अपने छोटे-छोटे हाथों से वह मिट्टी निकालता और पास की नदी के साफ पानी से धोता। वह कई दिनों तक यह काम करता रहा, बिना किसी से शिकायत किए। एक दिन, गाँव के अन्य बच्चे भी रोहित के पास आ गए और उसकी मदद करने लगे। सभी ने मिलकर मिट्टी को साफ किया और नए बीज बोने शुरू किए। धीरे-धीरे, उस जगह पर छोटे-छोटे पौधे उगने लगे। गाँव वालों ने जब यह देखा तो उन्हें रोहित और बच्चों पर गर्व हुआ। उन्होंने कारखाने के मालिक से बात की और उसे प्रदूषण कम करने के लिए कदम उठाने के लिए मजबूर किया।
धीरे-धीरे, कारखाने में सुधार हुए और गाँव की हवा फिर से साफ होने लगी। रोहित की मेहनत रंग लाई। उसके छोटे-छोटे हाथों ने बड़े सपनों को साकार कर दिखाया। गाँव के लोग उसे एक नायक मानने लगे, और उसकी कहानी हर जगह प्रेरणा का स्रोत बन गई। रोहित ने यह साबित कर दिया कि सच्ची मेहनत और निष्ठा से किसी भी मुश्किल का सामना किया जा सकता है, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो।छोटू भी स्वस्थ हवा पाकर धीरे-धीरे ठीक होने लगा।
सीमा सिन्हा पटना, बिहार