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पर्यावरण पर विजयशंकर मिश्र की एकांकी

कवर फोटो -खुशबू कक्षा -बारहवीं शहर -चंडीगढ़

(पूर्व पीठिका : ज्येष्ठ मास का प्रथम प्रहर, महाराज विक्रमादित्य के अमात्य कौटिल्य का आश्रम,महाराज और उनके साथ पर्यावरण अमात्य को प्रवेश द्वार पर आया देखकर महामात्य का उठकर खड़े होना ,महराज का आगमन,अंगरक्षक भी महाराज के साथ फाटक के अंदर आ जाते हैं।)
महामात्य : महाराज पधारें,आपका स्वागत है।
महाराज : गुरुदेव आपका शिष्य आपको प्रणाम करता है।
महामात्य : कल्याण हो राजन्,आपका राज्य अक्षय हो।प्रजा का मंगल हो।ऋतुएँ कल्याणकारी हों।
माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः पर्जन्यः पिता स उ नः पिपर्तु॥” नृपश्रेष्ठ आप आसन ग्रहण करें।
पर्यावरण अमात्य : भारत का पर्यावरण अमात्य आपका वंदन करता है महामात्य ।
महामात्य : आप यशस्वी और वर्चस्वी हों,विराजें।
(महाराज और उनके पर्यावरण अमात्य निर्दिष्ट आसनों पर बैठ जाते हैं।महामात्य दोनों को मिट्टी के पात्रों में जल और मधु मिश्रित पेय अर्पित करते हैं।)
महामात्य : अब आप अपने आने का प्रयोजन बताएँ।
पर्यावरण अमात्य : अमात्यश्रेष्ठ! इस समय नौतपा-काल चल रहा है।सूर्यदेवता अग्निवर्षा कर रहे हैं।हमारे प्रजाजन भयंकर लू से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।हमने कड़ी धूप में बाहर न निकलने की राजाज्ञा जारी कर दी है।फिर भी पशुओं,पक्षियों,वनस्थलियों पर संकट है।नदियों का जल बहुत तेजी से सूख रहा है।आपसे पर्यावरण संरक्षण का अकाट्य उपाय जानने के लिए ही हमने आपको कष्ट दिया है।
महामात्य : आप और हमारे महाराज के प्रयास स्तुत्य हैं।आपने वृक्षारोपण अभियान चलाकर धरती माता को समृद्ध किया है, सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगवाए हैं।पीपल, बरगद और पाकड़ के वृक्षों से प्राणवायु का अक्षय कोश आपने संचित कर लिया है।उद्यानों का विकास करके आपने हर ऋतु में फल देनेवाले वृक्षों से राज्य की समृद्धि को बढ़ाया है।औषधीय वृक्षों और वनस्पतियों को आरोपित करने के प्रोत्साहन से भी नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा सुनिश्चित की है।गोवंश संरक्षण के प्रति महाराज की प्रतिबद्धता जगविश्रुत है।यह अभियान बढ़ता ही रहना चाहिए।
पर्यावरण अमात्य : आपने अपने आशीर्वचन में,”माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः पर्जन्यः पिता स उ नः पिपर्तु॥”कहकर जो संदेश दिया है, यदि इसके विशेषार्थ का बोध कराने हेतु आपका अनुग्रह प्राप्त हो तो हम कृतकृत्य होंगे।
महामात्य : “माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः का अर्थ है यह भूमि (पृथ्वी) हमारी माता है और हम सब इसके पुत्र हैं।”पर्जन्यः पिता स उ नः पिपर्तु॥”का अर्थ है ‘पर्जन्य’ अर्थात मेघ हमारे पिता हैं और ये दोनों मिल कर हमारा ‘पिपर्तु’ अर्थात पालन करते हैं।
पर्यावरण अमात्य : धरती माता और पर्जन्य का संबंध भी व्याख्यायित करें आर्य!
महामात्य : पुनः आगे कहा गया है – “यस्यां वेदिं परिगृह्णन्ति भूम्यां यस्यां यज्ञं तन्वते विश्वकर्माणः।” अर्थात इस भूमि पर हम ‘विश्वकर्माण’ अर्थात सृजनशील मनुष्य यज्ञवेदियों का निर्माण करके यज्ञों का विस्तार करने वाले बनें।यज्ञ आहुति द्वारा ही भूमि और मेघ मिल कर हमारा पालन करते हैं, हम सृजनशील मनुष्यों को इसका लोक कल्याण के हेतु विस्तार करना है।यह जो पृथ्वी माता हैं,यह मात्र मनुष्यों की ही नहीं अपितु समस्त प्राणियों का पालन-पोषण समान रूप से करती हैं।उसकी दृष्टि में सभी एक समान ही हैं।मनुष्य को अपने चित्त में सदा इस बात को रखते हुए कर्म करना चाहिए कि इस पृथ्वी पर जितना अधिकार हमारा है; उतना ही अधिकार सभी प्राणियों का है और इस तरह से सामंजस्य बनाकर रहना ही सुरक्षित,सुदृढ़ और विकसित भविष्य की आधारशिला है।
पर्यावरण अमात्य : आर्य!यह तो समझ में आ रहा है।किंतु नौतपा के नौ दस दिनों के भगवान् भास्कर के उग्र होने का क्या रहस्य है,वह भी समझाने की कृपा करें।इस समय घरों में रहनेवाली नारियों की दशा परम कष्टकर हो रही है।दिनरात तलातल पसीना चू रहा है।
महामात्य : प्रकृति का हर कार्य अद्भुत योजना के अनुसार चलता है।उसमें किसी तरह की छेड़छाड़ या दखलंदाजी असंतुलन को जन्म दे सकती है और मानव जाति के लिए कष्टप्रद हो सकती है।नौतपा के पहले दो दिन यदि लू न चले तो चूहों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हो सकती है।इससे किसानों की फसल चौपट हो जाएगी।
पर्यावरण अमात्य : ऐसा चमत्कारी प्रभाव!आर्य आगे बढ़ें।
महामात्य : उसके अगले दो दिन लू न चले तो फसल को नुकसान पहुँचाने वाले कीटों की संख्या बहुत अधिक हो जाएगी।इसके बाद के दो दिन अगर लू नहीं चली तो टिड्डियों के अंडे नष्ट नहीं होंगे।चौथे चरण के दो दिन अगर तापमान अधिक नहीं रहा तो बुखार लाने वाले जीवाणु नहीं मरेंगे।अंतिम दो दिन लू न चली तो सांप-बिच्छू नियंत्रण से बाहर हो जाएँगे।
पर्यावरण अमात्य : आर्य!धन्य हैं आप।इस जानकारी को देश के जन-जन तक पहुँचाना ही होगा।हमें नौतपा के और भी अवदानों को बताने की कृपा करें आर्य!
महामात्य : हमें प्रकृति के हर बदलाव और व्यवहार को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए।पेड़ों पर लटके आमों को पकाने में,जामुन को रसवंती बनाने में,धरा को गंधवती बनाने में,गन्ने के कल्लों की संख्या बढ़ाने में नौतपा का बहुत बड़ा योगदान होता है।माता और पिता का क्रोध भी पुत्र के लिए बहुत बड़ा अनुग्रह होता है।
पर्यावरण अमात्य : प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर ही हम स्वस्थ और प्रसन्नमना जीवन का अनुभव कर सकेंगे।प्रकृति ने हमें अपने द्वारा दी जानेवाली पीड़ा का उपाय भी तो किया होगा आर्य!
महामात्य : आप परम चतुर हैं।महाराज मंद मंद मुस्कान बिखेर कर अपने पर्यावरण अमात्य के बुद्धिकौशल पर मुग्ध हो रहे हैं।प्रकृति ने हमें अलग अलग ऋतुओं में फूलने फलनेवाली शाक-सब्जियाँ और फल प्रदान किए हैं।गर्मी में बेल का शरबत,पपीता,आम का पना,पोदीना का पेय,छाछ आदि के द्वारा जीवनरक्षा करते हुए थोड़ा ताप सहकर कड़ी धूप बचाते हुए नौतपा को झेल लेना ही हम सबके लिए श्रेयस्कर है।
महाराज और पर्यावरण अमात्य (एकसाथ) : महामात्य की जय हो।धरती माता की जय हो।
महामात्य : भारत के महाराज की जय हो।पर्यावरण की रक्षा हो।
पर्यावरण अमात्य : महामात्य की सम्मति और महाराज की अनुमति से यह राजाज्ञा जारी करने की अनुशंसा की जाती है,
हर कोई दस पेड़ लगाए।
पशु-पक्षी उद्यान बचाए।।

सभी करें जल का संरक्षण।
गोवंशों का हो अभिवर्धन।।

गोबर खेतों में पहुँचाएँ।
धरती माँ की शक्ति बढ़ाएँ।।

हरे पेड़ को कभी न काटें।
नित्य निरंतर खुशियाँ बाँटें।।

विजयशंकर मिश्र ‘भास्कर’
लखनऊ

संपर्क : 701-बी,संतुष्टि एन्क्लेव-1,सुशांत गोल्फसिटी 226030,लखनऊ।
चलभाष : 9450048158

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