कवर फोटो – अमनप्रीत सिंह कक्षा -8 शहर-चंडीगढ़
पात्र परिचय
धरा –
वायु
पानी
इंसान ( बडे,छोटे ओरतें)
सूर्य
धराः ( सिसकने की आवाज़) ऊं ,ऊं ..ओह, मै तो घबरा रही हूँ कया करूं।
वायु-: ये आवाज कैसी है ,आप कोन है कयूं घबरा र ही हो।
धरा-: मैं धरा हूँ मैं बहुत ही परेशान हूँ देखो ना बहन मैं कितना सहन कर रही हूँ।
वायु-: हाँ बहन मेरा भी यही हाल है,जितनी गंदगियों को तुम झेल रही हो वही तो दुषित होकर उड़- उड़ कर मुझे भी बेहाल कर रही है।
पानी-: (ये कैसी आवाजे आ रही है) आप ..ओह..बहनों मै भी कांच जैसा साफ निर्मल था मगर आज इस इंसान ने मुझे कैसा मैला कर दिया सारी गंलगी कूडा ,पोलीथीन, खाया ओर वही बहा दिया।
धरा-: इंसान इतना स्वार्थी कैसे बनता जा रहा। पैडों काटता जा रहा मेरी छाती को चीरता जा रहा।
दूसरा दृश्य
(कई आवाजे बहुत जने अपनी-अपनी राय)
एक आदमी-:अरे ये सब कया हो रहा।
एक औरत-:अचानक एक बच्चा बीमार हो गया।
दूसरा आदमी-: कल घूमने गये वहां के पानी मे नहाया तब से ।
पहला आदमी -: यही होगा ,गंदा पानी पहले इंसान खुद करता फिर परिणाम भोगता।
तीसरा दृश्य
(धरा,वायु, पानी, सूरज दा इनकी बातें सचन रहे थे)
धराः सूरज दा आपका स्वागत है
(तीनों एक साथ बोलते है)
सूरज दाः मै तुम तीनों की दर्द भरी बातें सुन कर ही आया।
वायु -: दा मै तो इतनी सुगंधित थी कि मनुष्य मेरी शरण मे आ सभी गम भूल जाता शरीर को तरोताजा करता पर अब इंसान के लोभ ने मुझे ऐसा जहरीला बना दिया कि मास्क लगाना पड गया।(सभी आवजेंआती) हमने ही धरा ,वायु, पानी, सब को दुषित किया ।जिसका परिणाम भोग रहे है। हम धरा पर हरियाली लायेंगे। हम पेड़ लगायेगे। पर्रयावरण को शुद्व बनायेगे।।
हेमलता दाधीच उदयपुर(राज.) 73574 15790
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