ॐ पूर्णभदः पूर्णामिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥’
इस श्लोक का अर्थ है कि हम प्रकृति से उतना ग्रहण करें जितना हमारे लिए आवश्यक हो तथा प्रकृति की पूर्णता को क्षति न पहुंचे। लेकिन आज का मानुष लोभ, लालसा में लिप्त होकर प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है जिसके फलस्वरूप रेत उत्खनन, ,ग्लोबल वार्मिंग व सांभर झील में हजारों परिंदो की मौत जैसी समस्या अपने विकराल रूप में सामने आई लेकिन इंसान का स्वार्थ थमा नहीं और तब ईश्वर ने धरा पर मनुष्य के कर्मों का हिसाब करने के लिए कोरोना रूपी यम को भेजा और तब इंसान हजारों संसाधनो के होते हुए भी बेबस था और घरों में कैद l
इंसान के कैद होते ही आसमान साफ, नदियों का जल स्वच्छ, खगों की उन्मुक्त उड़ान और पशुओं का निश्चिंत होकर घूमना जैसे प्राकृतिक सौंदर्य देखने को मिले l इतिहास गवाह है कि प्रकृति एक माँ के समान निस्वार्थ प्रेम लुटाती हैl मनुष्य अगर प्रेम का बर्ताव करें तो प्रकृति उसे दोगुना प्रेम और यश सौंपती हैl इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण है कि प्रकृति ने इंसान को साधारण से असाधारण बनाया है l पेड़ से सेब का जमीन पर गिरने से “न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम “अस्तित्व में आये, भगवान “गौतम बुद्ध” ने भी बौद्ध धर्म का प्रचार -प्रसार प्रकृति के सानिध्य यानि बोधि वृक्ष के नीचे किया , भगवान “परशुराम “ने केरल में वन बनाकर मानो धरती पर स्वर्ग का निर्माण किया हो lविश्व प्रसिद्ध प्रकृति प्रेमी जिनका हाल ही में देहांत हुआ है “सुन्दरलाल बहुगुणा” जी व राजस्थान के “खेजड़ली” में चिपको आंदोलन प्रकृति के प्रति प्रेम का अमिट उदाहरण है l ये महाररथी प्रकृति के प्रति सदा ऋणी रहें और प्रकृति ने उन्हें अजर, अमर किया l हमें अपने पुरोधाओं से शिक्षा लेनी चाहिए कि प्रकृति से आवश्यकता से अधिक ग्रहण न करें और साथ ही इसके संरक्षण का संकल्प भी लें l पर्यावरण संरक्षण हमारे विचारों के प्रभाव का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप भी है l अच्छे व शक्तिशाली विचार प्रकृति के साथ ही हमें भी सुन्दर व सक्रिय बनाते हैं l सुन्दर तरीकों जैसे सालगिरह, शादियों और रिटायरमेन्ट के सुअवसरों पर पेड़ लगाए, खादी वस्त्रों का प्रयोग करें, घरों में फिल्टर से निकलने वाले पानी को कूलर भरने या पोंछा के काम में ले l गाड़ी की जगह साईकिल का भी इस्तेमाल करें और साथ ही सप्ताह में एक दिन फोन व ए.सी बंद रखकर हम इनसे निकलने वाली हानिकारक विकिरण से पक्षियों को बचा सकते हैं और साथ ही प्लास्टिक की बोतल, मग, प्लेट का इस्तेमाल करने की जगह कुम्हार का अस्तित्व बनाये रखने के लिए कुल्हड़ का व प्लास्टिक की जगह पत्ते से बने दोना -पत्तलों का प्रयोग करें lहम कृत्रिम की जगह प्राकृतिक अपनायें l कृत्रिम ऑक्सीजन की पूर्ति असम्भव है पिछले दो माह में यह बारीकी से देखने को मिला है l इसलिए प्राकृतिक ऑक्सीजन के लिए इन छोटे -छोटे प्रयासों द्वारा यकीनन ही पर्यावरण संरक्षण में हम जरूरी भूमिका निभा सकेंगे ।
शिल्पी पचौरी
जयपुर राजस्थान