आज बचपन की एक घटना याद आई जो गाँव जाते ही याद आ जाती है। पर्यावरण के पांच तत्वों में पानी की भी सबसे अहम भूमिका है। पेड़ो को हरा-भरा रखने बडा़ होने के लिये पानी सींचना आवश्यक बहुत है वरना वो सूख जायेगें। इसी तरह इस भयानक लू लपटों मे हमारे लिये भी पानी एक अमृत का काम करता है।
मेरे संस्मरण का शीर्षक भी यही है। . .* जल है अमृत*
खिलखिलाता बचपन सारी
चिंताओं से दूर हां जो काम माँ पापा ने बताया वो करा ।बस जिम्मेदारीयों से दूर। गर्मी की छुट्टीयों के दिन हमे दोनो बहने एवं भाई को खाना लेकर खेत पर जाना होता था । वहां जो पापा बताते वो काम करना ।पास मे पडोसी के घने पेड आम लगे वो हम बच्चों को देते माँ बढीया टीपन भर के देती। पेड़ों की ठंडी हवा पंखे /कूलर से बढी़या।पानी के लिये एक छोटी केटली उसे डोर से बांधकर कुयें से पानी निकालते पानी इतना ठंडा मीठा की पीते ही रहो।मैं सबसे बडी़ थी शायद पांचवीं कक्षा मे होऊंगी ।पानी मुझे ही निकालने की परमिशन थी । घर से बहुत समझा कर भेजते इन दोनो को कूंये के पास मत आने देना आदि।एक दिन ऐसा हुआ खेत पर जाते ही ।पानी की तेज प्यास लगी ।पानी निकाल रही थी ,छोटी बहन बोली ला आज मुझे भी निकालने दे। मेरे हाथ से रस्सी लेली मै उसे धीरे-धीरे चलाना सिखा रही थी , परन्तु उसने लास्ट का सिरा जो केटली को खीचनें हाथ मे रखते वो भी छोड़ दिया ।फिर डरकर मुझे बोली पापा से मत कहना।वो तो ठीक है पर आज पूरे दिन ऐसी गरमी मे पानी कैसे पियेगें।ओर घर पे माँ पापा को पता भी कैसे चलेगा।हे भगवान कुछ तो करो । पापा शाम को आते थे। ढोरों के घास लेने।
दोनो छोटे भाई बहन के गले सूख रहे थे पर ।केटली कुयें मे कैसे गिरी?तूने बच्चों का ध्यान नही रखा?मेरे सिर मे पापा का डर? ओर इतने प्रश्न घुम रहे थे। तभी एक बकरियां चराने वाला जिसे हम जानते थे।बकरियों को बबूल की पतियाँ, फलियाँ खिलाने आया। उसका नाम सरजू था । हमारे उतरे चेहरे देख पूछने लगा मैने सारी बात बताई। वो हमसे काफी बडा़ था पहले हंसने लगा । फिर मैने गुस्से से कहा कुछ भी करो पानी पिलाओ ।उसके पास भी पानी पीने का कोई साधन नही था।बेचारा उपाय सोचने लगा।फिर उसने पती काटने वाली हेलडी के खांकरे के पत्तों का बडा सा दोना बना कर दरांती वाले भाग पर बांध कर पानी निकाल कर हमें पिलाया। उस दिन वो पानी हमे अमृत जैसा ही लगा। हमनें उसे बहुत धन्यवाद दिया। घर पर सारी बात बताई माँ ने पापा को डांट लगाई ,। आपकी केटली जाये भाड़ मे।मेरे बच्चे कुंये मे गिर जाते तो। फिर अकेले हमे खेत पर कभी नही भेजती।सूरजभाई ने खूब हंसाया बामण तरसियां मर गया। (मेवाडी भाषा) जल देव से प्यास बुझे,
जल देव से पेड़ पले।
जल से तन-मन निर्मल भये।
जल में श्री नारायण का वास भये।। प्रकृति सदा खिली रहे।🌿🌿🙏
हेमलता दाधीच
उदयपुर(राज.)