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विश यू अनहैप्पी पर्यावरणम – राम भोले शर्मा


पर्यावरण को अशुद्ध रहना ही चाहिए अन्यथा कई प्रकार की अन्य समस्याएं उत्पन्न हो जाएँगी। मसलन पानी बेचने वालों ,डॉक्टरों , पाँच रुपये की दवा के पत्ते पर पचास प्रिंट करके बेचने वाली दवा कंपनियों, बीड़ी- सिगरेट बनाने,बेचने और पीने वालों का क्या होगा? निर्धारित रेट की रकम मिलने के बाद बाग या जंगल के दिन- दहाड़े मर्डर होने पर अपनी आँखें बंद रखने वाले रेंजर ,फारेस्टर और दरोगाजी का क्या होगा? धरती माता के स्वास्थ्य को उत्तमम बनाए रखने की कसम खाए पॉलीथीन उत्पादकों और और कर्मठ उपभोक्ताओ का क्या होगा? आदि -आदि। कितने लोग बेरोजगार हो जाएंगे? देश वैसे ही बेरोजगारी से त्राहिमाम कर रहा है। अब ये और बात है कि इसीलिए प्रदूषणासुर और उसके भाई-बहन मान न मान मै तेरा मेहमान की तर्ज पर अपनी भारतभूमि पर ही रोहंगिया की तरह निवास करने की जिद ठाने हैं? राम जी की गंगा इतनी मैली हो चुकी है कि प्रदूषण के सेंसेक्स का उच्चतम बिन्दु फलांग चुकी है। जबकि हम लोग हर साल पर्यावरण देवता की खुशहाली के लिए होने वाले सरकारी यज्ञ में अरबों मुद्राएं स्वाहा किए जा रहे हैं। किन्तु बेचारे पर्यावरण का चेहरा दिनबदिन हैप्पीलेस होना बदस्तूर जारी है। ये पर्यावरण दिवस की जयन्ती है या मखौल उडन्ती। जैसे किसी महापुरुष की जयन्ती या निर्वाण दिवस पर हम उन्हें याद करके कृतार्थ हो लेते हैं और स्वर्गीय फलाने भी अपने को धन्य ही मान लेते होंगे कि चलो अभी भी हमारे महापुरुष होने का स्टेटस तो बरक़रार है। आज फैशनस्वरूप कितने पर्यावरण हितैषी महारथियों ने वृक्षारोपण करते हुए सेल्फी का स्टेटस लगाकर श्रीमान मोबाइल महोदय की गलियां एक दिन के लिए चकाचक कर डाली हैं। चलो कम से कम पर्यावरण प्रेम के लिए इतनी विकट आस्था के दुर्लभ दर्शन तो हुए। पिछले साल की तरह फिर एक बार पर्यावरण की गिरती सेहत के सम्बंध में टीवी चैनलों पर काँव- कांव कुछ जाने-माने महानुभावों के प्रवचन,बाइट्स में जिम्मेदारों के घड़ियाली आंसू और अखबारों के सम्पादकीय पेज राष्ट्रीय चिन्ता से ग्रस्त तो हुए। अरे जब हम अपने माता पिता का ख़याल नहीं रखते तो इनका क्यो करें? ऐसा भी नहीं है कि वृक्षारोपण होता ही नहीं है,ये झूठ बोलने का पाप कम से कम मैं नहीं कर सकता। करोड़ों पौधे लगाने की औपचारिक रस्म निभाई जाती है। मीडिया बुलाई जाती है। बिल्कुल उत्सव जैसा ही तो है सबकुछ। एक पौधा पकड़े आठ लोग फोटो खिंचाते हैं जिनमें से उसकी परवाह करने वाला एक भी नहीं? इस नशे की जवानी फोटोसेशन के बाद रात बारह बजे तक ही रहती या अगले दिन शराबियों की तरह रात गयी और बात गयी। बाक़ायदा गा-बजा के ,बाज़ीगरी दिखाकर करोड़ों के वारे-न्यारे करने का उत्सव। फिर हफ्ता-पंद्रह दिन में ये लापरवाह सदाचारी इन भूखे – प्यासों को बकरियाँ के हवाले कर देते हैँ जो कि चर के पर्यावरण दिवस को फिर अपर्यावरण दिवस में बदल डालती हैं। अरे!जब हम इतने सालों से नहीं सुधरे तो अब क्या सुधरेंगे? माननीय पर्यावरण महोदय की सेहत सुधर तो जाए लेकिन ऐसा चाहता कौन है? यदि गंगा निर्मल हो गयी, तालाब अमृत सरोवर हो गये, त्तो फिर हर साल ये महोत्सव मनाने का क्या मतलब रह जायेगा? अतः उनके लिए ऐसे आवरण की सुव्यवस्था की जाती है जिसकी उम्र ज्यादा से ज्यादा एक सप्ताह हो। अपने निकम्मेपन की कसम सब्जी और राशन पालीथीन में ही लेकर आएँगे, मूतने भी बाइक से ही जाएँगे, लॉट साहिबी जिंदाबाद रहे इसलिए अंजुरी बाँध के तेल पीने वाले वाहन ही चलाएँगे,क्योकि बीमारियों को जिन्दा रहना ही चाहिए। यदि वे नहीं होंगी तो आपदा जीवी डॉक्टरों का क्या होगा? उनके बच्चों को ब्रेड-बटर कहाँ से आएगा। अतः उन्हें ऑक्सीजन देने का दिखावा भी तो ज़रूरी है न! भले ही भविष्य में पानी की बोतलों की तरह ऑक्सीजन क्यों न खरीदने पड़े????

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