चित्र आधारित कहानी
दादी जी ये गंगा मैया का किनारा है ???? हां बेटा… एक जमाने में यहां ऊंची ऊंची लहरें तन मन को भिगोकर पवित्र कर जाती थीं । परंतु अब देखो जैसे गंगा का अस्तित्व डूब रहा हो कितने गहरे में चली गई गंगा मैया जैसे मनुष्य से रूठ गई हों कटे पटे किनारे , ऊबड़ खाबड़ सतह पर ढेर सारा कचरा जमता ही जा रहा है मनुष्य ये पीर क्यूं नहीं समझ रहा । बस आते हैं सब यहां अपने-अपने पाप धोने पुण्य कमानेऔर निशानियां यहीं छोड़ जाते हैं।
किसी ने नहीं सोचा इस पवित्र पावनी जीवनदायिनी के संरक्षण के बारे में..अरे हां दादी जी…. कल ही मेरी टीचर ने यह बताया था कि गंगा नदी को लुप्त होने से बचाने के लिए हमें क्या प्रयास करना चाहिए। उन्होंने बताया की बढ़ते तापमान और प्रदूषण को रोकने के लिए हमें कई तरह के प्रयास करना होंगे । हमें ऑक्सीजन देने वाले पेड़ पौधे पीपल, बरगद, नीम औषधीय पेड़ पौधे अधिक से अधिक लगाने होंगे बड़ी-बड़ी फैक्ट्रीयों का प्रदूषित जल नदियों में ना मिले इस हेतू लोगों में जागरूकता लाना होगी ।और भी सभी कुछ मैंने याद कर लिया है दादी…और वो देखो वहां पर लोगों की इतनी लंबी कतार क्यूं लगी है ? और वो देखिए किनारे पर आग जल रही है। हां बेटा… ये देह अग्नि में स्वाहा होना ही जीवन का अंतिम सत्य है किसी शव का अंतिम संस्कार किया जा रहा है। पर दादी…यहां क्यूं ?? लगता है गंगा मैया के भाग जागे हैं यह बच्चे, युवा बड़े बूढों की जो लंबी कतार है लगता है वो मानव श्रृंखला बनाकर संकल्प ले रहे हैं कि हमें किसी तरह एक होकर पर्यावरण को, हमारी पवित्र पावनी जीवन दायिनी गंगा मैया और भारत की सभी नदियों को सूखने से बचाना है। चलो…. एक बार फिर शुरुआत तो हुई। और हां बेटा…तुम्हारी टीचर ने जो बताया जो तुमने याद किया है,उसे पूरा करने का वक्त आ गया है बेटा…जाओ मानव श्रृंखला से जुड़कर इस पुनीत कार्य का हिस्सा बनकर लोगों में जगरूकता लाओ और हां… मेरा अंतिम संस्कार गंगा किनारे न करना।
नीता चतुर्वेदी
विदिशा लेखिका संघ
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इतना प्यार लेखन इतने अच्छे शीर्षक पर लिखा हमारे मित्र लेखिका नीत चतुर्वेदी के लिए बहुत-बहुत बधाई