गंगा नदी के किनारे एक गांव था जिसका नाम था ‘गंगापुर’। यह गांव अपनी प्राकृतिक सुंदरता और गंगा के पवित्र जल के लिए प्रसिद्ध था। गांव के लोग गंगा को माँ मानते थे और उसकी पूजा करते थे। परन्तु समय के साथ, गंगा का जल प्रदूषित होने लगा और उसके किनारे कटाव होने लगे। एक दिन, गांव के प्रमुख ने एक सभा बुलाई। उन्होंने कहा, “हमारी माँ गंगा संकट में है। अगर हमने अभी कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढ़ियाँ इसका खामियाजा भुगतेंगी। हमें गंगा की सुरक्षा के लिए कुछ करना होगा।” सभा में सभी गांववासी एकजुट होकर सहमत हुए।
अगले दिन, गांव के लोग गंगा नदी के किनारे मिट्टी के ऊँचे टीले पर खड़े होकर एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए एक श्रृंखला बनाए खड़े हो गए। उनकी आँखों में गंगा की सुरक्षा का संकल्प और दिल में उसकी पवित्रता को बनाए रखने की इच्छा थी।गांव की सबसे बुजुर्ग महिला, दादी सावित्री, सबसे आगे खड़ी थीं। उन्होंने ऊँची आवाज़ में कहा-“हमारी गंगा माँ की रक्षा के लिए हमें हर संभव प्रयास करना होगा। हमें इसे साफ रखना होगा, इसका सम्मान करना होगा और इसके किनारों को सुरक्षित रखना होगा।”
बच्चे, युवा, और बुजुर्ग सब एक स्वर में गंगा की सुरक्षा का संदेश देने लगे। उन्होंने मिलकर गंगा के किनारों पर पौधारोपण शुरू किया, ताकि कटाव रुक सके। उन्होंने गांव में स्वच्छता अभियान चलाया और गंगा में कचरा न डालने की शपथ ली।
इस सामूहिक प्रयास का प्रभाव जल्दी ही दिखने लगा। गंगा का जल फिर से स्वच्छ होने लगा, किनारे स्थिर होने लगे और गंगापुर का सौंदर्य फिर से लौट आया। गंगा के तट पर हर सुबह सूरज की पहली किरणों के साथ जब गांववासी प्रार्थना करते, तो गंगा की लहरें मानो उनकी पुकार का जवाब देते हुए मधुर संगीत सुनातीं।गंगापुर के लोग गंगा की रक्षा के इस संदेश को दूर-दूर तक फैलाने लगे। दूसरे गांवों और शहरों के लोग भी इस पहल से प्रेरित होकर गंगा की सुरक्षा के लिए आगे आए। धीरे-धीरे गंगा का पूरा तटवर्ती क्षेत्र सुरक्षित और स्वच्छ होने लगा।
एक साल बाद गांव वालों के सामने एक बड़ी चुनौती आती।गांव के पास एक फैक्ट्री लगाने की योजना बनाई गई, जिससे गंगा के प्रदूषित होने का खतरा था।गंगापुर के लोगों को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने एक बार फिर से एकजुट होकर इसका विरोध करने का निर्णय लिया।
गांव के प्रमुख और दादी सावित्री के नेतृत्व में, गांव के लोग जिला मुख्यालय पहुंचे और वहाँ के अधिकारियों से मिले। उन्होंने फैक्ट्री लगाने के संभावित नुकसान और गंगा के प्रदूषण की समस्या के बारे में बताया। उनकी आवाज में दृढ़ता और सच्चाई थी, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता था। उनकी एकता और गंगा के प्रति उनकी भावनाओं ने अधिकारियों को प्रभावित किया, और अंततः फैक्ट्री लगाने की योजना को रद्द कर दिया गया।इस सफलता ने गंगापुर के लोगों को और भी अधिक प्रेरित किया। उन्होंने गंगा की सुरक्षा के लिए एक स्थायी समिति बनाई, जो नियमित रूप से गंगा की स्थिति की निगरानी करती और लोगों को जागरूक करती रहती थी।
गंगा की सुरक्षा की इस मुहिम के बाद, गंगापुर में एक नई परंपरा शुरू हुई। हर साल गंगा दिवस मनाया जाने लगा, जिसमें पूरे गांव के लोग गंगा किनारे एकत्र होते, हाथों में हाथ डालकर एक विशाल श्रृंखला बनाते और गंगा की महत्ता को याद करते। इस दिन विशेष रूप से गंगा की सफाई की जाती और पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाई जाती।इस अभियान के तहत, गंगा के तट पर एक सुंदर पार्क बनाया गया, जहाँ लोग आकर ध्यान और योग कर सकते थे। इससे न केवल गंगा की सुंदरता बढ़ी, बल्कि लोगों में गंगा के प्रति प्रेम और आदर का भाव भी गहरा हुआ।गंगापुर की कहानी धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गई। दूसरे गांव और शहर भी इस पहल से प्रेरित होकर गंगा और अन्य नदियों की सुरक्षा के लिए आगे आने लगे। गंगा की पवित्रता और स्वच्छता को बनाए रखने के इस अभियान ने एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया।इस तरह, गंगापुर और गंगा की कहानी एक प्रेरणा बन गई, जो आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाती रहेगी कि जब लोग एकजुट होकर किसी महान उद्देश्य के लिए खड़े होते हैं, तो वे बड़े से बड़े संकट का सामना कर सकते हैं और अपने पर्यावरण और संस्कृति की रक्षा कर सकते हैं।
गंगा अब भी बह रही है, अपने पवित्र जल से हर किसी का कल्याण कर रही है, लेकिन गंगापुर के लोग यह कभी नहीं भूले कि यह सब उनकी एकजुटता और समर्पण का परिणाम है। और इस तरह, गंगा की पुकार ने लोगों के दिलों में एक नया जोश और जिम्मेदारी का भाव जागृत कर दिया, जो आने वाले समय में भी बना रहेगा।
सीमा रानी
पटना