जहानाबाद । विश्व गुड़िया दिवस के अवसर पर साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि विभिन्न भावनाओं की रचनात्मक कार्यशैली दर्शाता गुड़िया है। विश्व गुड़िया दिवस प्रत्येक वर्ष जून के दूसरे शनिवार को मनाया जाता है। विश्व गुड़िया दिवस 14 जून 1986 को मिल्ड्रेड सीली द्वाराप्रथम बार मनाया गया था। गुड़िया खिलौने हज़ारों सालों से मानव सभ्यता का हिस्सा रहे हैं। मिट्टी, पत्थर, लकड़ी, हड्डी, हाथी दांत, चमड़ा, मोम और अन्य सहित कई तरह की सामग्रियों से गुड़िया बनाया जाता है। प्राचीन गुड़ियां 21वीं शताब्दी ई. पू . के मिस्र के कब्रों में पाई गई और प्राचीन मिट्टी की गुड़ियां प्राचीन ग्रीक और रोमन गुड़िया बच्चों की कब्रों में पाई गई थीं। गुड़िया प्लास्टिक सामग्री मानव गुड़िया जैसा दिखने के लिए डिज़ाइन एवं अलग-अलग पोशाकों में सजा कर बच्चों के लिए रचनात्मकता को व्यक्त करने और विभिन्न भावनाओं का पता लगाने का एक शानदार तरीका बन जाते हैं। गुड़िया दिवस की परंपरा सर्वप्रथम 1986 में गुड़िया संग्रह की लेखिका मिल्ड्रेड सीली द्वारा शुरू की गई थी । गुड़िया संग्रह और गुड़िया से संबंधित उद्यमिता की विश्व में उल्लेखनीय व्यक्ति थीं। बच्चों के विकास में रचनात्मकता और नवाचार के महत्व को दर्शाने और समाज को आकार देने में गुड़िया की सकारात्मक भूमिका को बढ़ावा देने का दिन है। रचनात्मकता को बढ़ावा देने और गुड़िया के साथ खेलना बच्चों को सामाजिक कौशल विकसित करने, संवाद करने का तरीका सीखने और अपनी भावनाओं को प्रबंधित करने में मदद करता है। गुड़िया निर्जीव वस्तुएँ वर्षों से युवा और वृद्ध लोगों की कल्पना में नाम, व्यक्तित्व, परिवार, घर, कार और ज़िंदगी की कहानियाँ मनोरंजन किया है। गुड़िया ने दोस्ती और साझा करने के बारे में महत्वपूर्ण सबक सीखने में मदद , लंबे, उदास और अकेले दिनों से निपटने में मदद , और व्यक्तियों के रूप में विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विश्व गुड़िया दिवस बचपन से ही हमारे जीवन में गुड़िया की भूमिका को उजागर करने के लिए भाग्यशाली बच्चों के साथ अपने बचपन के जादू को साझा करने का तरीका है।
विश्व गुड़िया दिवस के अवसर पर, यूनाइटेड फेडरेशन ऑफ डॉल क्लब विशेष कार्यक्रम आयोजित कर बच्चे अपनी गुड़ियाएं एक-दूसरे के साथ साझा कर नए दोस्त और यादें बनते हैं। भारतीय संस्कृति में लड़कियों द्वारा प्रत्येक वर्ष दीपावली के दिन गुड़िया बनाकर घरौंदा बना कर में रखती है । यह परंपरा वर्षों से होती आरही है ।