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मां गंगा का अवतरण लघु नाटिका

गंगा का अवतरण
पात्र
महाराज भगीरथ
भगवान शिव जी
मां गंगा
मंत्रीगण एवं
देवता
प्रथम दृश्य नरेश भागीरथ। ( उदासी से राजसिंहासन पर बैठे है) मेरे पूर्वजों को यदि में जलांजलि मां गंगा के जल से नही दे पाया तो उनका उद्धार न हो पाएगा।मैं क्या करू जिससे मां गंगा पृथ्वी लोक पर अवतरित हो जाय। (नरेश इधर उधर चहलकदमी कर रहे है) नरेश हे मंत्रियों आप सब ध्यान से सुने।मैने विचार किया है कि मैं अपने पितामह महाराज सगर के पुत्रों, मेरे पुरखो कोमुक्ति दिलाने हेतु तपस्या करूंगा।आप सभी राज्य एवम मेरे परिवार की रक्षा सम्हाले।
मंत्रीगण_ जो आज्ञा महाराज।
( भागीरथ वन में जाकर दोनो भुजा उठाकर महीनो खड़े रहते है ।एक हजार वर्ष बीत जाने पर_ (यह पीछे से कथाकार द्वारा बोला जा रहा होगा)
ब्रह्मा जी का आगमन_
ब्रह्मा जी_ हे वत्स तुम्हारी तपस्या सेमैं प्रसन्न हुआ वर मांगो पुत्र। नरेश _ प्रभु बस मैं इतना चाहता हूं कि मैं अपने पूर्वज सगर के समस्त पुत्रो को गंगाजल से जलांजलि दू और वे मुक्त होकर देव धाम को जाय।
ब्रह्मा जी_ तथास्तु
वत्स ये है हिमालय की जयेष्ठ पुत्री गंगा।
( गंगा जी को बालिका रूप में प्रस्तुत किया जाएगा)
नरेश गंगा का वेग इतना प्रबल और तीव्र है की पृथ्वी सहन नही कर सकेंगी। अतः तुम भगवान शंकर को मनाने के लिए तपस्या करो।एक वही है जो गंगा के तेज को धारण कर सकते हैं।
( ब्रह्मा जी गंगा बालिका की और देख कर)
हे गंगे आप नरेश भागीरथ की कठोर तपस्या का मान रखते हुए इनकी मनोकामना पूर्ण करे और मृत्युलोक में अवतरित हो।
( ब्रह्माजी का देवलोक की और प्रस्थान करना)
नरेश मुझे किसी भी हाल में भगवती हेमवती गंगा जी को पृथ्वी पर लाना है अब मैं पुनः तपस्या करूंगा और भगवान शंकर के उपासना करके उन्हें प्रसन्न करूंगा। (कथानकनरेश अंगूठी के अग्रभाग पर 1 वर्ष तक तपस्या में लगे रहे ।पात्र बालक इस तरह से खड़े होकर दिखाएगा) भगवान शिवपुत्र मैं तुम्हारी कठिन तपस्या से बहुत प्रसन्न हूं ।मैं निश्चय हीहिम गिरी राजकुमारी गंगा देवी को अपने मस्तक पर विराजित करूंगा तथास्तु ! गंगासर्वप्रथम नरेश भागीरथ ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया और अब भगवान शंकर को भी इस नरेश ने प्रसन्न कर लिया है तो ठीक है मैं भी अपना रूप दिखाऊंगी और इतने प्रचंड वेग से भगवान शंकर के मस्तक पर गिरकर उन्हें भी लेकर रसातल में चली जाऊंगी मेरे मन के विरुद्ध में धरती पर कदापि नहीं जाऊंगी।
शिवजीअरे यह क्या गंगा तो अहंकारी हो गई है मुझे भी साथ में रसातल ले जाना चाहती है।अब मुझे इनका अहंकार तोड़ना ही होगा । गंगाजीअरे रे यह क्या हुआ भगवान शंकर की जटा तो इतनी उलझी हैं घने जंगल की तरह अब मैं कैसे निकलूंगी अब मैं कैसे बाहर जाऊंगी यहां से तो मैं अब आगे बढ़ ही नहीं पा रही हूं ।


(गंगा बालिका इधर-उधर निकलने का प्रयास करेगी पर असफल रहेगी और धीरे से परदे के पीछे अदृश्य हो जाएगी)
नरेशहे भगवान यह क्या हुआ मां गंगा तो अदृश्य हो गई क्या मेरे पुरखों को मां गंगा की जलांजलि नहीं मिल सकेगी है भगवान हे भगवान नहीं नहीं मैं पुनः तपस्या करूंगा भारी तपस्या करूंगा बिना आहार के करूंगा। (पात्र बालक तपस्या में लीन होता दिखेगा। तदुपरांत शिव जी का प्रगट होना) शिवजी_ हे हेमवती गंगे मैं तुम्हें जटा से मुक्त करता हूं तुम पृथ्वी लोक के वासियों के कल्याण हेतु पृथ्वी पर जाओ और भागीरथ नरेश की प्रतिज्ञा पूर्ण करो कल्याण हो तुम्हारा। गंगा जय हो महादेव की।
(बालिका गंगा छहदिशाओं में एक एक कदम चलती हैं फिर सातवी धारा के रूप में नरेश भागीरथ के रथ के पीछे पीछे चलने लगती है) (मां गंगा के मृत्यु लोक अर्थात पृथ्वी पर अवतरण होने की प्रक्रिया को देखकर देवता गण खुशी से फूल बरसने लगता हैं यहां पर पात्र बालक देवता गण पुष्प बरसाएंगे)
(स्टेज पर जहां-जहां भागीरथ जा रहे हैं वहां वहां गंगा भी जा रहीं हैं इस दृश्य को दिखाया जाएगा और स्टेज पर पीछे के परदे पर उन स्थानों के नाम डाले जा सकते हैं जहां-जहां से गंगा बहकर ऊंचे नीचे सभी स्थानों से निकली है जैसे ऋषिकेश हरिद्वार गढ़मुक्तेश्वर इलाहाबाद बनारस पटना आदि।) (भागीरथ गंगा जल से पुरखो को जलांजलि देते है एवम पात्र बालक उठकर स्वर्गलोक को जा रहे है ऐसा दृश्य बनाया जा सकता है)
गंगा_ भागीरथ नरेश क्या मुझे तुम्हारे पीछे पीछे ही चलना होगा सदा?
नरेश_ नहींमां आप हमारी मां है ।मां पृथ्वी पर रहेगी तो अपने बच्चों का कल्याण करेगी आपके जल से अपने पुरखों का तर्पण कर उन्हें मोक्षदिला पाया यह सब आपका ही प्रताप है ।
गंगातुम्हारी इस वाणी से मैं प्रसन्न हुई नरेश तुम्हारे अथक प्रयत्न तपस्या से मैं प्रसन्न हूं पृथ्वी पर मेरा एक नाम भागीरथी भी होगा अब मैं चाहती हूं कि मैं सागर से मिल जाऊं। नरेशमां आप अवश्य सागर में जाकर विश्राम करे ।परंतु अब मैं इस सागर का नाम गंगा सागर रखूंगा। जो भी यहां स्नान करेगा उसे मोक्ष मिलेगा।जय हो मां गंगे।
( पात्र बालिका और नरेश धीरे धीरे परदे के पीछे चले जाते है।)
नाटककार का वाचन __इस तरह मां गंगे भागीरथ प्रयासों से पृथ्वी पर अवतरित होकर आज तक और सदा तक के लिए हम सब का कल्याण करेंगी। सब बच्चों युवाओं से विनम्र अनुरोध है नरेश भागीरथ जिस तरह गंगा को अपने विशिष्ट अथक प्रयास से ले आए हैं आप सब भी आज मां गंगा के संरक्षण की प्रतिज्ञा ले ।
(समस्त पात्र एवं दर्शक अपने स्थान पर खड़े होकर मां के संरक्षण के प्रतिज्ञा लेते हैं।)
नवनीता पांडेय
। विदिशा मध्य प्रदेश
9174127417

उपरोक्त जानकारी महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण से साभार ली गई है

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