देश का गौरव, आस्था से परिपूर्ण, भारतीय संस्कृति का ओज तथा मोक्षदायिनी देवनदी की महिमा का वर्णन अकथनीय है। सूर्यवंशी राजा भागीरथी के घोर तप अथक परिश्रम द्वारा विष्णुपदी का धरा पर आगमन सर्वविदित है। किंतु आज के संदर्भ में देखा जाए तो मालिनता को स्वच्छ करने वाली आज स्वयं मलिन होती जा रही है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? हम,समाज या फिर अन्य । अगर इस पर दृष्टिपात किया जाए तो इसके मूल में हम ही नजर आएंगे। अतः गंगा को संरक्षित करने की सर्वप्रथम जिम्मेदारी हमारी अर्थात् समाज की ही है। आस्था के नाम पर जो धार्मिक अनुष्ठान एवं संस्कार जो हम करते हैं उनके तरीकों में थोड़ा बदलाव लाना होगा, अपनी सोच में परिवर्तन करना होगा। पूजा के अवशेष, खंडित मूर्तियाँ, पुराने वस्त्र, सड़े हुए पुष्प एवं पत्तियाँ,प्लास्टिक की थैलियां इत्यादि को नदी के किनारे या फिर नदी में प्रवाहित करने पर रोक लगानी होगी।नदी के किनारे कपड़ों को धोना और जानवरों को नहाने के लिए छोड़ देना भी उचित नहीं है। नदी किनारे शवों का दहन और उनको जल में प्रवाह करने से बचना होगा। ना सिर्फ स्वयं अपितु दूसरों को भी ऐसा करने से रोकना होगा। छोटे बच्चों को आरंभ से ही स्वच्छता की सीख देनी होगी। ऐसा करने से हम गंगा मैया को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं। जलस्तर का कम होना, ग्लोबल वार्मिंग इन सबके पीछे शहरीकरण और वृक्षों की कटाई ही है । इसलिए हमारा दायित्व बनता है कि हम अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें ताकि भूमि के कटाव को रोका जा सके। खेतों में कम से कम रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग करना होगा ताकि वो जल के साथ मिलकर नदी के जीवाणुओं एवं विषाणुओं को नष्ट ना करें , जिसके कारण गंगा स्वयं को शुद्ध करती है।
राज्य सरकारों द्वारा समय-समय पर जो अभियान चलाए जाते हैं उसमें अपना सम्पूर्ण योगदान देकर भी हम अपने कर्तव्य का पालन सकते हैं। हमें स्वयंसेवी संगठनों का निर्माण करना होगा जो जागरूकता के साथ- साथ लोगों को अपने स्तर पर गंगा स्वच्छता मिशन में सहयोग करने के लिए प्रेरित करें।
जहाँ तक राज्य सरकार की बात है तो समय समय पर सरकार ने गंगा की सफाई हेतु विभिन्न मिशन तो चलाए और इनमें करोड़ों की धनराशि भी मंजूर की गई किंतु उसका परिणाम भी उचित ढंग से निकल कर नही आया। राज्य सरकारों को चाहिए कि प्लास्टिक प्रतिबंधन पर सख्त कानून बनाएं। प्लास्टिक कचरे का निस्तारण पुनर्चक्रण के द्वारा किया जाना चाहिए या फिर उसे किसी अन्य काम में ले लेना चाहिए । राज्य सरकार द्वारा तालाबों के निर्माण पर जोर दिया जाना चाहिए। ताकि बाढ़ का पानी और स्थानीय गंदगी को उचित तरीके से वहीं पर ही विघटित किया जा सके। उद्योगों का निर्माण रिहायशी इलाकों से दूर किया जाना चाहिए ताकि आवासीय और औद्योगिक क्षेत्रों के अपशिष्ट का निस्तारण सामान्य विधि और इलेक्ट्रोलाइट विधि द्वारा अलग अलग तरीकों से वहीं के वहीं किया जा सके। इससे उद्योगों के रसायन और आवासीय सीवर को नदियों में छोड़ने से रोका जा सकता है। जल संरक्षण निगम बोर्ड की स्थापना पर विचार किया जाना चाहिए ताकि इसमें नियुक्त कर्मचारी पूरी निष्ठा के साथ अपने कर्त्तव्यों का अनुपालन करें। गंगा की स्वच्छता की जिम्मेदारी सभी को मिलकर लेनी होगी,चाहे वो समाज हो, राज्य हो या फिर देश। इस क्षेत्र में किया गया छोटे से छोटा प्रयास भी गंगा को निर्मल बनाने में मदद कर सकता है।
किरण बाला (चंडीगढ़)