स्कूल की घन्टी बजते ही 10 साल की लक्ष्मी ने अपना बस्ता उठाया और अपनी सहेली मीरा से यह कह कर भाग निकली मेरे पापा कल आठ महीनों बाद घर आ रहे हैं। और मुझे उन्हें बावरी के बारे में बताना है ताकि वो मेरी मदद कर सकें।
लक्ष्मी के पापा एक फ़ौजी हैं और वो बहुत कम घर आते हैं यह बात मीरा को पता थी इसलिए उसने लक्ष्मी को नहीं रोका।
घर पहुँचते ही लक्ष्मी ने दादी माँ को प्रणाम करते हुए कहा माँ को कहना मैं बावरी के पास जा रही हूँ क्योंकि पापा के आने से पहले मुझे देखना है कि सब कुछ ठीक है।
अन्दर से माँ कीं आवाज़ आई लक्ष्मी रुक तुम्हें कुछ बताना है। माँ मैं अभी वापिस आ जाऊँगी और यह कह कर लक्ष्मी भाग निकली।
नदिया किनारे एक छोटे से शहर में लक्ष्मी अपने माँ पापा और दादी माँ के साथ रहती थी। कुछ हफ़्ते पहले वो दादी माँ के साथ नदी किनारे बैठ कर सावन की कहानियाँ सुन रही थी तो अचानक से दादी माँ ने नन्ही चिड़िया को देखते हुए कहा अरी बावरी यह कहाँ अपना घोंसला बना रही है? नन्हे बारिश की बूंदों के आते ही नदिया में गिर जाएँगे। उसी पल से लक्ष्मी ने चिड़िया को बावरी नाम दे दिया था। पहले तो बावरी लक्ष्मी को देखते ही उड़ जाती थी पर आहिस्ता आहिस्ता दोनों में दोस्ती हो गई थी और अब तो बावरी लक्ष्मी के हाथ से दाना चुगती थी। लक्ष्मी अपने पापा को इस दोस्ती का तोहफ़ा देना चाहती थी।
किनारे पहुँचते ही लक्ष्मी ने अपनी जेब से लिफ़ाफ़ा निकाला बावरी को दाना खिलाने के लिए। दो दिन पहले बावरी के तीन चूज़े हुए थे और लक्ष्मी को पता था बावरी भूखी होगी।
लक्ष्मी ने अपनी हथेली पर दाने डाले और बावरी को खिलाने के लिए हाथ आगे किया मगर ना वहाँ बावरी थी और ना ही उसका घोंसला। लक्ष्मी हैरान और परेशान होकर रोने लगी क्योंकि अभी तो सावन की पहली बारिश भी नहीं हुई थी तो फिर बावरी कहाँ चली गई?
वो रोते-रोते घर के लिए मूडी और यह सोच रही थी कि वो अपने पापा को अब क्या तोहफ़ा देगी? घर पहुँचते ही लक्ष्मी दादी माँ के साथ लिपट कर रोए जा रही थी और रोते रोते दादी माँ को बावरी के गुम होने के बारे में बता रही थी कि पीछे से उसके पापा ने आहिस्ता से उसे दादी माँ की गोद से उठा कर अपने सीने से लगा लिया। लक्ष्मी के आंसू एक दम थम गये और वो चीख कर बोली पापा आप तो कल आनेवाले थे! ? पापा ने हँसते हुए कहा मुझे एक दिन पहले ही छुट्टी मिल गई इसलिए मैं जल्दी आ गया और मेरे पास तुम्हारे लिए एक खूबसूरत तोहफ़ा है! लक्ष्मी उदास आवाज़ में बोली पापा जो तोहफ़ा मैं आपको देना चाहती थी वो ना जाने कहाँ गुम हो गया है।
पापा ने लक्ष्मी का हाथ अपने हाथ में लिया और उसे आँगन में लाकर आम के पेड़ तले खड़ा किया और कहा वो देखो क्या है? लक्ष्मी ने देखा बावरी अपने घोंसले में आराम से बैठी थी और उसके चूज़े भी वहीं थे। लक्ष्मी कभी अपने पापा को देख रही थी और कभी घोंसले को उसे तो अपनी आँखों विश्वास ही नहीं हो रहा था।
पापा ने लक्ष्मी को अपनी बाँहों में समेटते हुए सब समझाया कि वो बावरी को यहाँ क्यों लेकर आए हैं ताकि ना ही बारिश में उसका घोंसला गिरेगा और ना ही लक्ष्मी को उसे दाना खिलाने नदिया किनारे जाना पड़ेगा।
लक्ष्मी की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था और वो अपने पापा के गले लगकर बोली पापा मैं आपको बहुत प्यार करती हूँ।
Arun Ann “Heer”
London UK