साथियों कई दिनों से मेरे मन में एक प्रश्न उठ रहा था जो आज आप सभी के समक्ष रख रहा हूं और आप सभी के विचार जानना चाहता हूं।जैसा कि आप सभी देखते हैं कि इन दिनों फेसबुक पर साहित्यिक मंचों का अम्बार सा लगा हुआ है। मातृभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार तथा साहित्य साधना के उद्देश्य से स्थापित इन फेसबुक पटलों पर आए दिन कोई न कोई लेखन प्रतियोगिता आयोजित होती रहती है। दैनिक लेखन प्रतियोगिताओं के साथ-साथ अवसर विशेष पर आयोजित होने वाली लेखन प्रतियोगिताओं में प्रतिभागियों को विभिन्न प्रकार के सम्मान पत्र देकर इन मंचों द्वारा आकर्षित किया जाता है। विशेषकर नवोदित रचनाकारों का फेसबुक पटलों से मिलने वाले सम्मानपत्रों के प्रति अच्छा खासा लगाव देखने को मिलता है। दो-चार फेसबुक साहित्यिक मंचों से श्रेष्ठ कवि/कवित्री का सम्मानपत्र पाकर वे अपने आपको किसी राष्ट्रीय कवि से कम नहीं समझते हैं। फेसबुक साहित्यिक पटलों द्वारा दैनिक लेखन प्रतियोगिताओं के प्रतिभागियों को न केवल सम्मान पत्र दिया जाता है बल्कि समय-समय पर पटल द्वारा प्रकाशित किए जाने वाले शुल्क आधारित साझा संग्रहों में भी शामिल किया जाता है।वर्तमान में सैकड़ों फेसबुक साहित्यिक मंच सक्रिय हैं जिनसे हजारों-लाखों की संख्या में रचनाकार जुड़े हुए हैं। प्रारंभ में इन फेसबुक साहित्यिक पटलों द्वारा मात्र लेखन प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती थी फिर बाद में इन मंचों द्वारा ऑनलाइन कवि सम्मेलनों का आयोजन भी किया जाने लगा।
कोरोना काल के दौरान फेसबुक मंचों द्वारा शुरू हुआ आनलाइन लेखन व कवि सम्मेलनों का यह कारवां अब बहुत आगे निकल आया है। अब इन पटलों द्वारा एक नया ट्रेड शुरू किया गया है वो है पटल के सक्रिय रचनाकारों का शुल्क आधारित साझा संग्रह प्रकाशन एवं शुल्क आधारित सम्मान पत्र प्रदान किया जाना। बहुत से फेसबुक पटलों द्वारा समय-समय पर विषय आधारित रचनाएं आमंत्रित की जाती हैं और फिर इनमें से रचनाओं का चयन शुल्क आधारित साझा संग्रह एवं सम्मान पत्र के लिए किया जाता है। हर नवोदित रचनाकार का सपना होता है कि उसकी रचनाएं किसी पुस्तक में प्रकाशित हों और उसे समाज में सम्मान मिले।अपने इस सपने को साकार करने के लिए नवोदित रचनाकार अच्छी खासी कीमत अदा करने को भी तैयार रहते हैं। शुल्क देकर मिलने वाले श्रेष्ठ कवि-कवित्री, श्रेष्ठ शब्दशिल्पी, साहित्य साधक, साहित्य शिरोमणि, कलम के सिपाही, कलम के जादूगर आदि सम्मान पत्र पाकर नवोदित रचनाकार फूले नही समाते। पैसे देकर खरीदे गए इन सम्मान पत्रों को पाकर उन्हें लगता है कि वो देश के नामी-गिरामी रचनाकारों की श्रेणी में शामिल हो गए। बहुत से फेसबुक पटल संचालक नवोदित रचनाकारों की इस लालसा का नाजायज फायदा उठाते हैं। उन्हें विभिन्न प्रकार के सम्मान पत्रों का प्रलोभन देकर शुल्क आधारित साझा संग्रहों में सह रचनाकार बनाकर आर्थिक लाभ कमाते हैं।कुछ फेसबुक पटल संचालकों ने तो साहित्य सेवा के नाम पर शुरू किए इस कार्य को पूर्णतः व्यवसाय में परिवर्तित कर दिया है।
ऐसे मंच संचालकों का एक मात्र उद्देश्य साहित्य साधना की आंड़ में धन कमाना है।फ़ेसबुक पटलों पर आए दिन कोई न कोई शुल्क आधारित साझा संग्रह प्रकाशन तथा शुल्क आधारित सम्मान समारोह में प्रतिभागिता के विज्ञापन इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। एक दौर था जब रचनाओं के प्रकाशन से पूर्व संपादकीय टीम द्वारा रचनाओं को अच्छी तरह जांचा-परखा जाता था रचनाओं में अपेक्षित सुधार किया जाता था तब कहीं जाकर रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाती थी।पर आज विभिन्न फेसबुक पटल संचालकों द्वारा जो साझा संग्रह प्रकाशित किए जाते हैं उनमें आपकी रचनाओं पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है। आपकी रचना चाहे जैसी भी हो आप शुल्क देकर किसी भी साझा संग्रह में शामिल होकर श्रेष्ठ कवि/कवित्री का प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते हैं। साथियों आज हमें विचार करना होगा कि पैसों से मिलने वाले इन सम्मान पत्रों की हमारे समाज में क्या कोई उपायदेता है। क्या इन सम्मान पत्रों की तुलना राज्य अथवा राष्ट्र स्तरीय साहित्यिक संस्थाओं से मिलने वाले उन सम्मान पत्रों से की जा सकती है जो किसी रचनाकार को उसकी श्रेष्ठ रचनाओं या कृतियों के मूल्यांकनोपरांत उसे प्रदान की जाती है।पैसे से खरीदे गए सम्मान पत्रों से आप अपनी फेसबुकवाल या घर की दीवारों को तो सजा सकते हैं परंतु इन सम्मान पत्रों की बदौलत समाज में वह मान-सम्मान कभी नहीं प्राप्त कर सकते जो किसी रचनाकार को उसकी श्रेष्ठ रचनाओं/कृतियों के लिए राज्य या राष्ट्र स्तरीय साहित्यिक संस्थाओं द्वारा प्रदान किया जाता है।
सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।
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