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‘पधारो म्हारे देश’-प्रतिभा

एक नवम्बर 1956 के दिन अजमेर, जो कि अब तक एक केन्द्र शासित प्रदेश था, के राजस्थान संघ में विलय के बाद राजस्थान अपने वर्तमान स्वरूप में आया। राजस्थान में अनोखी महत्त्ता लिए दस संभागों में से अजमेर सम्भाग अपने में अजमेर, भीलवाड़ा, टौंक और नागौर जिले लिए हुए है। अजमेर को केन्द्र मान अपने शब्दों में पिरोकर आप को अजमेर बतलाने का छोटा सा प्रयास
कर रही हूं। जब आप घूमने के लिए स्थान का चयन करें तो अजमेर को प्राथमिकता देने को आपका दिल स्वयं कहेगा। राजस्थान की पद्मश्री मांड गायिका अल्लाह जिलाई बाई के गीत ‘पधारो म्हारा देश रे’ से आज आप का स्वागत करती हूं। अजमेर फ़ प्रख्यात तीर्थस्थली पुष्कर को अपनी अरावली श्रृंखला की गोद में लिए हुए है। ब।राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग एक सौ चौंतीस किलोमीटर दूर अजमेर आने के लिए भारतीय रेल, सरकारी बसें और निजी वाहन हमेशा उपलब्ध हैं। अब तो अजमेर में किशनगढ़ में एयरपोर्ट की सुविधा भी उपलब्ध है जिससे आप कम समय में ही इस मनोरम, पाक भूमि में
पधारकर खुद की यात्रा को सजह सार्थक कर सकते हैं।
बावन घाटों के बीच स्थित पुष्कर सरोवर, जिसे स्वयं ब्रम्हा के द्वारा बनाया गया है, इस पावन भूमि की पौराणिकता का प्रमाण देता है। सावन मास में जहां कांवड़ियों की भीड़ महादेव के अभिषेक के लिए सरोवर का जल लेने उमड़ती है वहीं कार्तिक में श्रद्धालु सरोवर में स्नान कर, पूर्वजों को अर्घ्य दे उनके मोक्ष की कामना करते हैं। कार्तिक मास की ग्यारस से पूर्णिमा तक यहां रंगीले ग्राम्य जीवन की छटा बिखेरता मेला लगता है जो कि राजस्थान के लख्खी मेलों में से एक है। पुष्कर के अलौकिक आकर्षण से बंधे विदेशी पर्यटक वर्ष भर यहां घूमने आते हैं। महर्षि विश्वामित्र ने यहां तपस्या की और विश्व के कल्याण की कामना से गायत्री मंत्र की रचना की। विश्व का एकमात्र ब्रम्हा मन्दिर पुष्कर में ही है।
इन तीर्थस्थलों के साथ साथ अजमेर स्वयं की ऐतिहासिक पहचान भी रखता है। दसवीं से बारहवीं सदी में राजस्थान के राजाओं, महाराजाओं ने अपने अपूर्व शौर्य व साहस से भारतीय इतिहास को गौरवान्वित किया है। ई. 1113 के आसपास चौहान राजा अजयराज ने अजमेर को अपनी राजधानी बनाया। इन्हीं के पुत्र अर्णोराज (आना) ने युद्ध में विजय प्राप्ति के बाद भूमि की शुद्धि के लिए बाँडी नदी से पानी लेकर सरोवर बनवाया जो आज अनासागर से रूप में जाना जाता है। जैसे पुष्कर से दर्शनार्थी लौटते
समय अपने संग जल शीशी में डाल श्रद्धा से ले जाते हैं उसी तरह दरगाह में आने वाले जायरीन आना सागर के पानी को पाक मानकर ले जाते हैं। अभी तो सरकारी तव्वजो की बदौलत यहाँ सरोवर के चारों तरफ़ सुंदरता देखते ही बनती है। अजमेर आनेवाले अपनी यादों में यहाँ की खूबसूरती भी शामिल कर सकते हैं।
चौहान वंश के विद्वान राजा बीसलदेव (विग्रहराज चतुर्थ) ने अपने शौर्य से चौहानों की ख्याति को चार चांद लगाए। ईस्वी 1152 में उन्होंने सरस्वती मन्दिर बनवाया जो आज ढाई दिन के झोंपड़े के रूप में पर्यटकों से साथ ही इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के लिए भी आकर्षण का बिंदु है। 1153 से 1163 ई. तक विग्रह चतुर्थ अजमेर के राजा रहे। उनके समय चौहान राज्य की उन्नति हुई औऱ सम्मानित शासक के रूप में सराहे गए। राजा अजयराज ने पहाड़ी पर अजयमेरू दुर्ग बनवाय जो तारागढ़ दुर्ग औऱ गढ़ बीठली नाम से भी जाना गया। अजय जिसे जीता ना जा सके और मेरु मतलब पर्वत। इस अजयमेरु दुर्ग को राजस्थान का जिब्राल्टर भी कहा जाता है। बाद में आगे चलकर दिल्ली के राजा अनंगपाल ने अपनी पुत्री के चौहान वंशज बेटे पृथ्वीराज तृतीय को अपना राज्य दे दिया । पृथ्वीराज चौहान कम उम्र में दिल्ली की गद्दी पर बैठे लेकिन अपनी वीरता के परिचय से सभी में सम्माननीय बने। आगे अपने अच्छे गुणों औऱ योग्यता के बल पर पृथ्वीराज चौहान महान वीर शासन के रूप में प्रसिद्ध हुए। तराइन का पहला युद्ध उनकी वीरता बतला गया औऱ दूसरा हार के बाद घायल अवस्था में कैदी होते हुए भी अंधी आंखों से मौहम्मद गौरी को शब्दभेदी बाण मारना इतिहास बन गया। पृथ्वीराज चौहान की वीरगाथाओं में अपने मौसेरे भाई कन्नौज नरेश जयचंद की बेटी संयोगिता संग उनकी प्रेमगाथाएं भी आज राजस्थानी गानों में बड़े ही चाव से शामिल की जाती हैं। इनमें अजमेर की घूघरा घाटी का जिक्र भी आता है कि पृथ्वीराज चौहान से संग घोड़े पर बैठी संयोगिता की पायल का एक घुंघरू यहां गिरा था इसलिए इसका नाम घूघरा घाटी पड़ा।
मुगलकाल में बादशाह अकबर दरगाह में इबादत करने आया औऱ ईस्वी 1570 में एक दुर्ग का निर्माण करवाया। यह किला अपने में बहुत अनोखा इतिहास समेटे हुए है । यहीं से अकबर के बेटे जहाँगीर ने अंग्रेजी राजदूत सर टॉमस रो को भारत में व्यापार की अनुमति दी थी। भारतीय क्रांतिकारियों से संघर्ष के समय अंग्रेज यहां गोला बारूद रखने लगे। इसलिए यह किला मैगजीन भी कहलाने लगा। अजमेर में जैन धर्मावलंबियों से जुड़े भी बहुत से दर्शनीय स्थल हैं। सोनी जी की नसियां, दो भवनों में बनी एक इमारत जिसमें मुख्य प्रतिमा ऋषभदेवजी की है, का 1864 में सेठ मूलचन्द सोनी ने शिलान्यास करवाया था। आधुनिक काल का नारेली तीर्थस्थल भी पर्यटन की सूची में अग्रिम स्थान रखता है। थकान उतारने के लिए शहर में दौलतबाग, जिसे सुभाष उद्यान भी कहा जाता है, से बेहतर कोई जगह नहीं है। यह दौलतबाग बनवाया था बागों के शौकीन मुग़लसम्राट जहाँगीर ने। हिलोरें लेते आनासागर को देख अजमेर के प्राकृतिक सौंदर्य को निहारते हैं तो पाल पर बनी पाँच बारहदरियाँ भी ध्यान आकर्षित करती हैं जिन्हें मुग़ल सम्राट शाहजहां ने बनवाया था। खाने पीने के शौकीनों के लिए यहां कितने ही अच्छे ठिकाने हैं पर अजमेर के सोहनहलुए और पुष्कर के मालपुओं का कोई सानी नहीं है।
अब अजमेर ने अपने देखने आनेवालों के लिए सात अजूबों को भी अपने में शामिल कर लिया है। दुनिया के सात अजूबे, जिन्हें देखना हर एक आदमी का स्वप्न होता है। उन्हें देखने के लिए जीवन भर की जोड़ी पूँजी व्यय करने से भी वह गुरेज नहीं करता। जब 27 सितंबर विश्व पर्यटन दिवस के रूप मनाया जाता है तो यहाँ यह लिखना भी लाजिमी है कि यायावरी का शौख तारीखों से परे होता है और एक यायावर की मोहब्बत सिर्फ उसकी दुनिया देखने की चाह होती है। यहाँ भारत में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़े राजस्थान के दिल कहे जाने वाले अजेमर शहर के सेवन वंडर्स के बारे में लिखते हुए, अपने शहर की इस प्रगति पर, दिल
हर्षोल्लास के चरम पर है। वीर शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान के पितामह अर्णोराज (ईस्वी 1135-1150 ) ने बाँडी नदी के प्रवाह क्षेत्र में बनाई आनासागर झील के किनारे बनाया गया यह सेवन वंडर्स पार्क यहाँ आने वालों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।
भोर के सूरज की किरणें आनासागर के जल से टकरा, परावर्तित हो कर इन पर गिरती हैं तो रोशनी से नहाये ये अजूबे अलसुबह ही तर-ओ-ताजा नज़र आते हैं। यह वंडर्स पार्क अब अजमेर आने वालों के लिए दर्शनीय स्थलों की फ़ेहरिस्त में शामिल हो गया है और यहाँ इसे देखने में लगे टिकट के दस रुपये कम ही महसूस होंगे अगर इन्हें भी संरक्षित किया जाए।
अब जब अजमेर की इन सात धरोहरों को प्रस्तुत कर ही रही हूँ तो विश्व की प्रसिद्ध सात धरोहरों को जानना भी हमारे ज्ञान में बढ़ोतरी करेगा ही, क्योंकि यहाँ इस पार्क में तो उन सात में से सिर्फ चार ही मौजूद हैं। विश्व के सात आश्चर्य या बेजोड़ संग्रहीत धरोहरों में सर्वप्रथम भारत के ताजमहल से शुरूआत करते हुए मिस्र के पिरामिड, इटली के रोमन कोलोज़ियम, मेक्सिको का चिचेन इटज़ा, पेरू के माचू पिचू, ब्राजील के क्राइस्ट द रिडीमर, जोर्डन का पेट्रा और चीन की दीवार का उल्लेख कर बिन देखे ही मैं स्वयं की मौजूदगी वहीं महसूस करने लगी हूँ। एक आम नागरिक जब यह लिखते हुए ही सदियों के इतिहास का खजाना, इन धरोहरों से आकर्षित हो इन्हीं स्थानों में रम जाता है, तो वहाँ उन्हें देखना लक्ष्य बने इससे इनकार नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि अपनी ओर आकृष्ट करते, प्राचीन संरक्षित कलाकृतियों के ये छोटे स्वरूप आज यहाँ सेवन वंडर्स की ख्याति प्राप्त कर पर्यटकों को अपनी और खींच रहे हैं।
विश्व के सेवन वंडर्स में कभी संरक्षित धरोहरों की तालिका में प्राचीन आश्चर्य रोड्स के कोलोसस, गीज़ा के महान पिरामिड, बेबीलोन के लटकते बगीचे, ओलंपिया में ज़ीउस की मूर्ति, इफिसस में आर्टेमिस का मंदिर, हैलिकार्नसस में समाधि और अलेक्जेंड्रिया का प्रकाश स्तम्भ रहे हैं जो समय की मार में कभी भूकंप तो कोई आग से नष्ट हुए। यही वजह रही कि सन 2000 में स्विस फाउंडेशन द्वारा चलाए अभियान के अंतर्गत लोगों की सहमति से 2007 में दुनिया को सात नए आश्चर्य मिले। सात आश्चर्य कहें या कीमती धरोहरें, इनमें चीन की मशहूर दीवार प्रथम स्थान पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाती है। चीन के पहले सम्राट किन शी हुआंग की बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा की कल्पना ने सैकड़ों साल बाद चीन की दीवार का स्वरूप अख्तियार किया। पृथ्वी पर यह एक एकमात्र मानव निर्मित कृति है जो चंद्रमा से भी झिलमिल लकीर के रूप में दिखाई देती है। हाँ, यह कसक भी है कि अजमेर के सेवन वंडर्स में इसकी कमी खलती है। देश यो या विदेश, प्रेम को सब ने शीर्ष और श्रेष्ठ स्वीकारा है, और उसमें कला समायोजित हो तो वह धरोहर बन ही जाती है। कलात्मक नक्काशियों से तराशे संग-ए-मरमर से निर्मित ताजमहल भारत की पहचान है, और सिर्फ विदेशी ही नहीं भारतीयों के लिए भी महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है।
अजमेर के सेवन वंडर्स पार्क के प्रवेश द्वार से सामने देखने पर ताजमहल की हूबहू प्रतिकृति आपको मंत्रमुग्ध कर देती है, भले ही पास खड़ा एफ़िल टॉवर अपनी त्यौरियां चढ़ा ले। मुग़ल सम्राट शाहजहाँ (1628-1658) द्वारा अपनी बेगम मुमताज की याद में बनाया ताजमहल दुनिया के लिए प्रेम की अनुभूतियों का आकार में परिणीत होना है। नवीं और दसवीं शताब्दी में मेक्सिको के युकाटन राज्य में फली फूली 365 सीढ़ियों से बनी अनोखी दूसरी संरचना चिचेन इट्जा है जो एक टोलटेक शैली की उत्कृष्ट कलाकृति है। और पेट्रा, जो सात आश्चर्य में तीसरे क्रम पर है, कभी जॉर्डन का मसालों के लिए प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र था। इसे जॉर्डन में खज़नाह (खजाना) कहा जाता है । मंदिरों और कब्रों की बलुआ पत्थर की तराशों से सजा, अपनी कलात्मक से आज सदियों बाद भी अपनी ओर आकर्षित कर ही लेता है लेकिन समय की धारा ने इनसे भी मुंह फेर लिया इसलिए न ये दुनिया के सात अजूबों में शामिल है न ही अजमेर के सात में। इन्हीं सात में अपनी उपस्थिति लिए है चौथे नंबर पर पेरू के पास स्थित 1911 में हिराम बिंघम द्वारा खोजा गया माचू पीचू, जो अपने संग इतिहास की बहुत सी परतें लपेटे हुए है, जिन्हें आज सतत मेहनत और देखरेख की दरकार है, जिनके खुलते ही हम आज में होते हुए भी कल से जरूर रूबरू हो जाएंगे। पेट्रा की ही तरह माचू पीचू भी अजमेर पार्क की चयन प्रणाली जगह नहीं पा सके।
दुनिया के इन्हीं सात आश्चर्यों में पाँचवीं संरचना है क्राइस्ट द रिडीमर, यीशु की विशाल प्रतिमा जो रियो डी जेनेरो में माउंट कोरकोवाडो के ऊपर स्थित है। ब्राजील की पहचान बनी ईसा मसीह की यह प्रतिमा स्थानीय इंजीनियर हीटर डा सिल्वा कोस्टा, कार्लोस ओसवाल्ड और फ्रांसीसी मूर्तिकार पॉल लैन्डोव्स्की द्वारा डिजाइन की गई है। यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्ट डेको मूर्ति है। समय की मार और कड़कड़ाती बिजलियों से इसे बचाना अब हमारी जिम्मेदारी बनती है, वरना आगे आश्चर्य के नये संकलनों में इसकी उपस्थिति न होना हमारी हार घोषित कर देगा। अपनी विशेष संरचना से दुनिया को अपनी ओर खींचने वाली, पहाड़ी पर स्थित यीशु की यह प्रतिमा छोटा स्वरूप लिए अजमेर के सेवन वंडर्स पार्क में एक ऐसी कलाकृति बन गई जिसका जलवा देखेने वालों में उतना ही गज़ब उत्साह है जितना रियो डी जेनेरो में। मिस्र के पिरामिड का उल्लेख होते ही त्रिभुजाकार पत्थरों की आकृति आँखों के समक्ष कौंध जाती है, साथ ही अपने साथ ले आती है जिज्ञासा भरा पिटारा कि पिरामिड क्यों और कैसे बनें साथ ही इनके भीतर क्या है ? इतिहास की गर्भ में कई अनसुलझी कड़ियों को जोड़े यह विशालकाय पिरामिड हर उम्र को खुद से मिलवाने की कोशिश में तत्पर हैं। मिस्र के पिरामिड हमेशा से पुरातत्वविदों के कौतूहल का विषय रहे हैं। फिरौन खुफू के तकरीबन 4600 साल पुराने मकबरे को पिरामिड के रूप में बनाने का उल्लेख भी मिलता है। अजमेर के सेवन वंडर्स में उसी का प्रतिरूप आकर्षित तो करता ही है, लेकिन वहाँ लगा नोटिस बोर्ड सीमा के अंदर प्रवेश की मनाही बतला इसकी महत्ता भी दर्शा देता है।
दुनिया के सात आश्चर्यों में संरक्षित कोलोसियम धरोहर भी शामिल है, जिसकी प्रकृति अजमेर के सेवन वंडर्स पार्क में भी सँजोई गई है। ईटली के रोम नगर में स्थित रोमन साम्राज्य की यह संरचना रोमन स्थापत्य और अभियांत्रिकी का एक उत्कृष्ट नमूना माना जाता है। कोलोसियम का अर्थ प्राचीन रोमन सभ्यता में गुलामों को आपस में लड़ने और भयानक जानवरों से संघर्ष करने के लिए बनाया गया अखाड़ा होता है। इसके ईस्वी सन 72 में निर्माण शुरू होने के उल्लेख मिलते हैं। समय और हालात के थपेड़ों ने इसे कुछ कुछ खंडहर में तब्दील कर दिया है, लेकिन फिर भी पर्यटकों को लुभाने में इसने कोई कमी नहीं छोड़ी है, न रोम में और न ही यहाँ अजमेर में।
अब पार्क के बाकी बचे वंडर्स को देखने से पहले यहाँ बने फूड कोर्ट में नाश्ता कियाजा सकता है। उसके बाद पीसा की झुकी मीनार देखने से पहले यहाँ राजस्थानी वेशभूषा पहन अपनी फोटो भी खिंचवाई जा सकती है। यहाँ सेवन वंडर्स लोगों के मनोरंजन और ज्ञानवर्धन के साथ स्थानीय लोगों को रोजगार भी मुहैया करवा रहा हैं तो यहाँ आना अपने लिए यादगार बनाते
हुए अन्य को भी यादें देकर आया जा सकता है। जहां एक तरफ बच्चे खिलौनों के खरीदी कर बड़ों की तसल्ली से अजूबों को देखने की चाहत में विघ्न न खड़ा कर हैं तो दूसरी तरफ बङ्गी जंपिंग भी बच्चों को कुछ समय व्यस्त कर ही देती है।आज की महँगाई भरी जिंदगी में दैनिक जीवन यापन के लिए जंग करने वाले मध्यम आय वर्ग का इन अजूबों को वास्तव में देखना तो एक स्वप्न मात्र है, लेकिन इन्हीं सपनों को ,आंशिक रूप से ही सही, प्रतिबिंब स्वरूप इन अजूबों को प्रदर्शित कर राजस्थान के दिल कहे जाने वाले अजमेर ने अपने जनों के दिल को समझा और मनोकामनाओं की आंशिक पूर्ति तो कर ही दी है। दुनिया के आश्चर्यों में सात धरोहरों के अलावा अनेक ऐसी संरचनाएं और प्राकृतिक विरासतें हैं जिन्हें भी सहेजा जा रहा है, कल को जानने हेतु साथ ही कल से कल को मिलवाने की उम्मीद में। दुनिया के वर्तमान सात में से चार अजूबों संग अन्य तीन प्रसिद्ध प्राचीन कलाकृतियों के हूबहू छोटे स्वरूप की ईमानदारी भरी कोशिश ने यहाँ इन्हें देखने वालों का ताँता ही लगवा दिया है।
इस पार्क में प्रवेश द्वार के पास ही स्थित एफ़िल टॉवर ताजमहल से द्वंद्व कर अपनी ओर आकृष्ट करता नजर आता है। पेरिस में मीलों दूर से दिखता यह टॉवर 1889 में बनाया गया और उस समय की सबसे ऊंची इमारत होने से दुनिया में प्रसिद्धि पा गया। यहाँ पार्क में भी लगता है कि एफ़िल टॉवर अपने कई रहस्यों को खुद की जालीदार संरचना में छिपाये बैठा है। हर शाम ये भी उतना ही जगमग हो उठता है जितना कि असली एफ़िल टॉवर। दूर तक ऊंची चमचमाती रोशनी दिखेगी तो वहाँ शौकीन जनता की उपस्थिति लाजिमी है। यहाँ अजमेर ने दोस्ती के इतिहास को पुनः दोहराते हुए पेरिस को न्यूयॉर्क के इतना करीब कर दिया कि ‘स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी’ अब एफ़िल टॉवर से भी देख सकते हैं। न्यूयॉर्क हार्बर की यह तांबे की मूर्ति फ़्रांस द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका को अमेरिकी क्रांति के दौरान दोनों देशों की दोस्ती की यादगार भेंट के रूप में प्रदान की गई थी। स्वतंत्रता और लोकतंत्र के एक स्थाई प्रतीक स्वरूप ‘स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी’ का अजमेर के वंडर्स में खूबसूरती भरा, असली सा दिखना इंजीनियरों और निर्माण कलाकारों के प्रयास को सार्थक कर देता है। इन्हीं अजूबों में मौजूद ‘लीनिंग टॉवर ऑफ पीसा’ अपने में एक अजूबा है, जिसे छोटे बच्चे उत्सुकता और कौतूहल से झुककर देखते हैं कि किसी ऐंगल पर वह सीढ़ी नजर आ जाए।
इटली के पीसा में आठ मंजिला इस मीनार का निर्माण सन् 1173 में वास्तुकार बोनेनो पिसानो की देखरेख में शुरू हुआ लेकिन लगातार युद्धों की वजह से पूर्ण होने में दो सौ साल लग गए। आज भी झुके होने के बावजूद भूकंप में न गिरना और प्राकृतिक आपदाओं में भी डटे रहना इसकी विशेषता बन पर्यटकों को अपने पास खींच लाता है। अपने निर्माण के बाद से लगातार और झुकते जाना इसके आकर्षण का कारण है, मगर अब यह बहुत खतरनाक स्थिति तक झुक चुकी है। आनासागर के किनारे इटली के ही ‘कोलोसियम’ के नजदीक खड़ी यह मीनार बच्चों और बड़ों सभी के लिए ध्यानाकर्षक है।
अजमेर स्मार्ट सिटी द्वारा अगस्त 2022 से आम जन के आगमन से उत्सुक यह कलाकृतियों को दुख जरूर होगा कि यूनेस्को द्वारा कम्बोडिया स्थित अंगकोरवाट मंदिर आठवां अजूबा पूर्व में ही घोषित हो जाता तो वह यहाँ भी अपनी मौजूदगी लिए आठवां
अजूबा बन आकर्षक का केंद्र बन जाता। अजमेर के यह सात आश्चर्य सुबह साढ़े सात बजे से रात नौ बजे तक आपके आगमन की प्रतीक्षा में खड़े हैं, जिनका इंटरनेट पर समय सुबह साढ़े ग्यारह से शाम सात बजे तक ही बताया गया है, लेकिन शायद प्रसिद्धि ने द्वार शीघ्र खोलने को मजबूर कर दिया।
राजस्थान की विश्वविख्यात माँड गायिका अल्लाह जिलाई बाई के प्रसिद्ध गीत से अतिथियों का अपने अजमेर में स्वागत करते हुए पुनः अपनी कलम को विश्राम देती हूँ, “पधारो म्हारे देश रे …” अब पधारिए अजमेर औऱ ले जाइए साथ कुछ ऐसी चुनींदा यादें जो गाहे बगाहे आपके यायावर दिल पर दस्तक देती रहें।स्वागत।
प्रतिभा जोशी

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