अपने घर की शैव संस्कृति के कारण मेरा कभी अन्य संस्कृति के लोगों से ज्यादा मिलना जुलना नहीं हो पाया। पिताजी हिंदी के प्राध्यापक होने के कारण अपने क्षेत्र के पहले निशुल्क हिंदी की शिक्षा देने वाले गुरु जी के रूप में विख्यात थे ।दूर-दूर से हिंदी की समस्याओं का समाधान करवाने छात्र-छात्राएं आते और संतुष्ट होकर चले जाते ।मेरा बचपन इसी माहौल में बीता। यौवन की दहलीज पर पैर रखते ही नई संस्कृति नए परिवेश नए लोग और पहनावा की तरफ मन अपने आप ही आकर्षित होने लगा । एक दिन मेरे घर एक लड़की काला बुर्का पहने आई ।हम तीनों भाई बहन उसे आश्चर्य से देखने लगे क्योंकि हमारे घर इससे पहले कभी कोई इस तरह की वेशभूषा पहने नहीं आया था। मेरे घर में आते ही उसे लड़की ने अपना बुर्का उतारा गौर वर्ण बड़ी-बड़ी आंखें ,आंखों में काजल लंबे काले बाल ,कानों में लंबे से झुमके, हाथ में सुंदर सी अंगूठी और पीले चटक रंग का सलवार कुर्ता पहने एक सुंदर सी लड़की खड़ी थी उसे देखकर मुझे ऐसा लगा शायद सौंदर्य को किसी की नजर ना लगे इसलिए ही यह लोग ऊपर से काला बुर्का डाल लेती है। पिताजी ने उससे कहा आओ बैठो बेटा क्या नाम है तुम्हारा ? क्या पूछने आई हो ?सबा नाम है मेरा गुरुजी, हिंदी पढ़ने आए हैं। कुछ समझ में नहीं आ रहा । मुझे अपने पास खड़ा देखकर बोली अपूर्व पानी पिला दो बहुत प्यास लगी है । अच्छा इन्हें तो मेरा नाम भी पता है मैं यह सोचते हुए उनके सौंदर्य से अभिभूत पानी लेने चली गई अब तो रोज सबादीदी हमारे घर आई और हिंदी पढ़ कर चली जाती ।
मेरे बाबा जी 90 वर्ष के बुजुर्ग थे उनकी एक आदत थी कि वह मेरे घर आने वाले हर व्यक्ति से कहते थे राम-राम। अब तो सबा दीदी रोज बाबा से राम-राम करती और सलाम भी ।मुझे उनकी यहआदत बहुत अच्छी लगती ।उनके कपड़े जेवर मुझे रोज नए सौंदर्य के दर्शन कराते मैं सबा दीदी के इसी सौंदर्य को देखने के लिए कभी पानी देने के बहाने ,कभी कोई किताब लेने के लिए उनके आसपास ही घूमती रहती। वह मुझे देखकर कहती अपूर्वा तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है ?अच्छी चल रही है दीदी मैं उत्तर देती ।एक दिन मैंने दीदी से पूछा दीदी आपका नाम का अर्थ क्या है सुबह ।की हवा वह मुस्कुराते हुए बोली मैंने कहा हां दीदी आप तो सच में सुबह की ताजी हवा ही है ।एक दिन मुझे पता चला की सबा दीदी को शेरो शायरी का भी शौक है वह अपनी कॉपी के पीछे के पन्नों पर शेर लिखती और कभी-कभी मुझे सुनाती जब मुझे उर्दू के शब्दों का अर्थ समझ में नहीं आता तो वह बताती ऐसे ही मैं कभी उनसे पूछती?दीदी आपका कुर्ता तो बहुत अच्छा सिला है आपका ये दुपट्टा कहां का है बहुत सुंदर लग रहा है ।वह कहती यह जंफर हमारी अम्मी ने सिला है और यह दुपट्टा अब्बू पाकिस्तान से लाए हैं और फिर मैं अपने साधारण सिले हुए कपड़ों की तुलना उनके जंपर सलवार से करने लगती। वह कहती मैं तुम्हारे लिए जंपर बनवा दूं अम्मी से
लेंकिन तुम पहनो गी नहीं ,हमारा तुम्हारा पहनावा अलग है अपूर्वा हां दीदी हम ऐसा नहीं पहन सकते पर आप तो बहुत सुंदर लगती है दीदी इन कपड़ो में ।इस तरह धीरे-धीरे दिन बीते गए साल के अंत का पता चला की सबा दीदी का निकाह हो गया और वह सऊदी चली गई। फिर तो मेरा उनका कभी मिलना नहीं हुआ मैं भी एम ए करने के बाद अपनी रिसर्च में लग गई इसी बीच पता चला की सबा दीदी के पति की मृत्यु हो गई और उनके बेटा भी है उनके पति को ब्रेन ट्यूमर था। मुझे बड़ा अफसोस हुआ लेकिन मेरा उनसे मिलना नहीं हो पाया।
विवाह के बाद मेरे भी दो बच्चे हो गए और मैं भी अपनी गृहस्थी में लगी रही । एक दिन शाम को फोन पर एक नंबर आया उधर से आवाज सबा दीदी की थी हेलो अपूर्वा में सबा बोल रही हूं सब खैरियत तो है तुम कैसी हो ? अरे सबा दीदी आपको मेरा नंबर कहां से मिला आप तो बाहर थी कब आई मैंने कई प्रश्न एक साथ कर दिए हां मैं यहीं लखनऊ में हूं तुम्हारी मदद चाहिए अपूर्वा
हां दीदी बताइए मेरा बेटा इस बार दसवीं कक्षा में है उसे हिंदी में कुछ पूछना है तुम बता दोगी ना उसको जैसे गुरु जी हमको बताते थे अब तुम बता दो हां दीदी क्यों नहीं ,आप रविवार को घर आ जाइए बेटे को लेकर मैंने कहा। मेरा मन सबा दीदी का वही सौंदर्य देखने के लिए मचल रहा था। उन्होंने फोन काट दिया क्या सबा दीदी अभी भी वैसी होंगी उनका बेटा तो बहुत बड़ा हो गया है यही सोचते सोचते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला रविवार को सुबह से ही हलुआ और कचौड़ी बनाकर मैं उनका इंतजार करने लगी करीब 11:00 बजे सबा दीदी मेरे सामने खड़ी थी ।इतने दिनों बाद उनको देखकर मैं असमंजस में पड़ गई ।
उन्होंने आगे बढ़कर मुझे गले लगा लिया पीछे देखा एक सांवला सा प्है स्मार्ट सा लड़का खड़ा था ।आंटी नमस्ते मैं माजिद हूं वह बोला अंदर आओ बेटा मैंने कहा नाश्ता लगा कर मैं सबा दीदी को गौर से देखा हो तो साधारण कपड़े का सूट पहने, सफेद दुपट्टा ओढ़े कोई भी जेवर उनके शरीर पर नहीं था वह मुझे आज सुबह की ताजी हवा नहीं बल्कि शाम का ढलता हुआ सूरज लग रही थी शायद जिंदगी की जिम्मेदारियां के थपेड़ों ने उन्हें ऐसा बना दिया था ।
माजिद के सवालों को बताने के बाद मैं दीदी के पास बैठ गई वह बोली आज तो मैं इसके लिए आई थी फिर किसी दिन बैठकर बात करेंगे । मुझे उनका बदला हुआ रूप बिल्कुल अच्छा नहीं लगा कितनी सुंदर थी वह लेकिन आज उनके गोरे रंग पर कितने काले धब्बे पड़ गए थे।अब तो अक्सर दीदी से बात होती वह बताती उनकी अम्मी अब्बू भाई सब उनकी मदद करते हैं यह लखनऊ में भी अपने भाई के पास रह रही है बेटे की पढ़ाई के लिए बेटा पढ़ाई में अच्छा है अगर कहीं निकल गया उनकी जिंदगी कट जाएगी मेरा क्या है आधी उम्र तो कट गई बस अब क्या करना है । एक दिन मैंने धीरे से पूछा दीदी आपने दोबारा शादी नहीं कि वे मुस्कुरा कर के बोली मेरे नसीब में सुख नहीं है अपूर्वा मैं चुप हो गई उनकी दर्द भरी आवाज सुनकर और कुछ कहने की मेरी हिम्मत नहीं पड़ी ।
माजीद का रिजल्ट आ गय94% पास हो गया दीदी ने बताया कि माजिद के लिए उन्होंने कोचिंग लगा दी है वह अनवर साहब उसे बहुत ध्यान से पढ़ाते हैं और अपने बेटे की तरह उसकी देखभाल करते हैं। इसी बीच पता चला की सबा दीदी की अम्मी उनके पास आई और गिरने के कारण उनके पैर में फ्रैक्चर हो गया और दीदी उनकी देखभाल कर रही है उसे समय मुझे उनका सुनाया हुआ शेर याद आयालोग बेटों से ही रखते हैं तवक्को,लेकिन बेटियां अपने बुरे वक्त में काम आती है। फिर एक साल ऐसे ही निकल गया कभी-कभी दीदी का फोन करके हाल-चाल पूछ लेती । एक दिन शाम को चाय बनाने जा रही थी कि दरवाजे की घंटी बजी मैंने दरवाजा खोला तो सबा दीदी खड़ी मुस्कुरा रही थी मैंने कहा अरे दीदी आप अचानक कैसे? बताते हैं अंदर तो आने दो।
आज मैंने देखा की सबादीदी कुछ अलग सी लग रही है उन्होंने हल्का गुलाबी रंग का सुंदर सा कुर्ता पहना था कानों में छोटे झुमके गले में पतला सा नेकलेस और आंखों में काजल लगाई प्यारी सी लग रही थी मेरे मुंह से निकल ही गया दीदी आज आप बहुत प्यारी लग रही हो ऐसे ही रहा करिए ना वे हंसने लगी हां तुम्हारी दुआ लगी है मुझे देखो मेरा निकाह हो गया अपूर्वा मैं आश्चर्य देखने लगी, कहां दीदी आपने बताया नहीं हां अपूर्वासब कुछ अचानक ही हुआ तुम्हें तो पता है कि मेरे पहले शौहर के इंतकाल के बाद मुझे कई लोगों ने कहा कि दोबारा शादी कर लो पर मैं नहीं की क्योंकि माजिद उस समय बहुत छोटा था यदि मैं उसे समय शादी कर लेती तो वह उपेक्षित हो जाता, शायद मेरे और भी बच्चे हो जाते तो मैं उसे उतना ध्यान नहीं दे पाती। पर अब मुझे ऐसा व्यक्ति मिला है जो मुझे इस उम्र में माजिद के साथ अपनाना चाहता है तो मैं मना नहीं कर पायी। अच्छा तो कौन है मेरे जीजा जी जो हमारे हवा को ले गए मैंने हंसते हुए पूछा ?
अनवर साहब मैंने तुम्हें बताया था की माजिद को कोचिंग में भेजा था वही अनवर साहब एक दिन मुझे पता चला कि वह बहुत बीमार हैउनके पास कोई नहीं है तो मैं तो मैं माजिद को साथ लेकर उनके घर गई डॉक्टर को बुलाया उन्हें चाय जूस पिलाया ऐसे ही हमारी मुलाकात आगे बढी मेरी अम्मी जब मेरे पास थी और गिर गई थी तब भी अनवर साहब ने मेरी बहुत मदद की फिर रोज हमारे घर आते और एक दिन मम्मी के सामने ही उन्होंने निकाह का प्रस्ताव रखा वह बोले खुदा ने ही मेरी तनहाई पर तरस खा कर ,फलक से मेरे लिए आपको उतारा है। बस उसके बाद मै इंकार नहीं कर पाए मैंने दीदी से पूछा? दीदी अब आप जीजा जी से पूरी तरह खुश है? तो सबा दीदी ने मेरा हाथ दबाते हुए कहा हर एक को गिला है। मुझे बहुत कम मिला है अपने आसपास देख जरा, क्या इतना भी औरों को मिला है। और हम दोनों खिल खिलाकर हंस दिए।
डा अपूर्वा अवस्थी
लखनऊ, 97941 18960
बहुत बढ़िया