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ज़ह किसने अकिलि बताई अल्ला – रामभोले शर्मा

बेडीजोर गाँव के ठलुहाप्रमुख बाँके की  राय पर अमल करके डॉ सलमुद्दीन ने एक लाख रुपए चुनावी आग के हवाले कर दिए। बाँके ने उन्हें बीमा एजेण्ट की तरह डील करके यह कहके फँसा दिया कि तुम चिंता क्यों करते हो? बी डी सी बनने के बाद कम से कम दो गुना तो निश्चित रूप से मिल ही जाएगा। अब अगर तुमने कहीं ऐसी बैंक देखी हो तो बता दो  जो एफ डी को एक -डेढ़ महीने में ही दुगुना कर दे? कहे सुने दीवालें चल जाती हैं। आखिर धरि के पानी मयाराम पर चलतू बिगुल बजवा दिया। कुदा दिया चुनावी दंगल में। पंचायत चुनाव सम्पन्न हुए । बेडीजोर प्रथम से सलमुद्दीन,द्वितीय से छटांकी लाल और इसी प्रकार पड़ोस के गाँव हेकडगंज से सिधारे लाल और रामनिहोरे भी दुर्भाग्यवश चुनावी ओलम्पिक में बीडीसी पदक हासिल करने में सफल रहे। दुर्भाग्य शब्द का इस्तेमाल इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि विद्वानों के परामर्शानुसार कुछ काम लटुआ बिरादरी को बिल्कुल नहीं करने चाहिए जिनमें बुढ़ापे में शादी,व्यवहार बाँटना(रुपया उधार देना),आदि के साथ ही बीडीसी का चुनाव भी है।

सत्ता के विकेंद्रीकरण की वजह से लटुआ वर्ग को भी अब नाम के लिए ये तमगे मिलने लगे हैं। किन्तु अधिकांशतः हुकूमत कुटिल सोचें ही करती हैं। प्रत्याशियो के सपोटरों के सबके अपने मतलब होते हैं जैसे ठलुहा क्लब का उद्देश्य दारूआचमन और मुर्ग मुसल्लम,न खड़े हो पाने वालों का अपना प्रत्याशी जिताकर भावी ब्लाक प्रमुख उम्मीदवार और क्षेत्रीय विधायक की नजर में अपनी हनक कायम रखना,जातिवालों का बिरादरी में व्यक्ति के आगे माननीय शब्द का जुड़ना और जनता जनार्दन के लिए विकास बाबू के अतिशीघ्र अवतरित होने की उम्मीद का फिर दिवास्वप्न। राजनीति में गंदगी का रोना रोने वाले ईमानदार,कर्तव्यनिष्ठ और शिक्षित उम्मीदवारी का गला घोंट रहे हैं क्योंकि उन्हें घनी आशंका है कि ऐसे लोग उनका राजनैतिक भविष्य चौपट करके छाती पर मूँग दलने का काम करेंगे। अतः अपना भविष्य बचाए रखने के लिए उनकी सीट न होने बावजूद वे मैदान में हैं। लड़ नहीं पाए इसलिए अपना कैंडिडेट लड़ा रहे है।बेडीजोर ग्राम सभा से नवनिर्वाचित सलमुद्दीन झोलाछाप डॉक्टर हैं। जिनकी गाँव मे ही क्लीनिक है। जो कि खूब चलती है।सुकून की जिंदगी है।आटे में घाटा नहीं है।द्वितीय से निर्वाचित छटाँकीलाल हुड़क और नौटंकी आदि में लेडीज रोल अदा करने वाले नचकहिया हैं।शेष समय साइकिल मरम्मत का काम कर लेते हैं। अलमस्त रहते हैं ऊधो का लेना न माधो का देना।इसी प्रकार हेकड़ गंज प्रथम से निर्वाचित होने वाले सिधारे लाल किसान हैं जिनके पास तीन बीघा खेत है। बाकी कुछ खेत सझियारी कर लेते हैं। जबकि द्वितीय से किला फतह करने वाले रामनिहोरे ताँगा ड्राइवर हैं।परिवार मजे में पल रहा है।ब्लॉक प्रमुख चुनाव की घोषणा हो गयी है। उम्मीदवारों और उनके चमचों के फोन बीडीसीगणों का जीना हराम किये हैं। दबंग बीडीसी विजेताओं को साधने के लिए पार्टी एजेंट सौदा तय करने निकल पड़े है। ये भी पूछ रहे हैं कि तुम्हारे संपर्क में औऱ कितने हैं?मोलभाव जारी है। उम्मीदवार पक्ष बोलियां लगा रहे हैं।लोकतंत्र खुलेआम नीलाम हो रहा है। मंत्र चतुष्टय साम,दाम,दण्ड भेद सभी का धड़ल्ले से प्रयोग चल रहा है।
फ़ोनबाजी के बाद अब अन्य बाजियां जवानी पर हैं जिसमें धनबाज़ी, रंगबाजी,नक़्शेबाजी के साथ ही अब अपहरणबाज़ी का दौर भी शुरू हो चुका है। सिधारेलाल अंगौछा बनियान पहने खरबूजे सींच रहे थे।तभी झपोटरों की एक असलाहधारी गाड़ी सड़क पर आकर रुकी। एक दढ़ियल ने उन्हें बुलाया और कहा रामनिहोरे के घर का पता बता बता दीजिए दद्दा।उन्होंने कहा सीधे चले जाओ आगे से दाएँ मुड़ने के बाद बरगद वाला मकान उनका ही है। दढ़ियल खुशामद करते हुए बोला, गाड़ी में बैठो अभी आपको यहीं छोड़ देंगे आकर। आदमी हो कि पैजामा! देख रहे हो फटफटिया चल रही है। अकेले खेत सींच रहे हैं। फिर भी ऐसी बातें कर रहे हो ? सिधारे झल्लाए। दढ़ियल धीरे-2 उनकी ओर बढ़ने लगा। खतरे का आभास होते ही सिधारे भागे किन्तु दो तीन ने उन्हें इज्जत से उठाकर गाड़ी में डाल लिया। घर में खबर हो गयी कि फलाने लोकलतांत्रिक उपासक प्रत्याशी महोदय के द्वारा वे मेहमाननवाज़ी खातिर उठवा लिए गए हैं। यह सुनते ही निहोरे ने पकड़े जाने के डर से ताँगा चलाना बन्द कर दिया और अन्तःपुरवासी हो गए। लैट्रीन भी घर में ही करने लगे। पड़ोसियों को भी अब उनके दर्शन दुर्लभ रहने लगे। घरवाले कहीं रिश्तेदारी में जाने की बात बता रहे हैं। किंतु जब् जी ऊब गया तो एक दिन शाम के समय खेत की ओर टहलने निकल गए । सियासी चमचों की जासूसी से लौटते समय सपोटर तेंदुओं ने घेर लिया और नानुकर करने पर घेंचिआते हुए उनका वहीं सुस्वागत प्रारम्भ कर दिया।
सारी न्यायिक,दंडादि व्यवस्थाएं सुप्तावस्था को प्राप्त हो चुकी हैं।सब नेत्रधारी होने के बावजूद सत्ताई हनक से मोतियाबिंद ग्रस्त हो चुके हैं।अतःकहीं इस मामले में कोई सुनवाही नहीं हो रही है। मीडिया का युग होने के बावजूद चौथे खम्भे ने मौन व्रत धारण कर लिया है।बी डी सी वोटर जो कि सत्तापक्ष को वोट नहीं करना चाहते हैँ उनकी हालत जयंत सी हो गई है जिन्हें प्रत्याशी के अलावा तीनों लोकों में कोई चरण-शरण में लेने वाला नहीं बचा है। अब परिवार का सुकून और जान संकट में कौन डाले। एक-आध घटनाओं के वीडिओ वायरल भी हुए हैं तो जिम्मेदारों ने कह दिया कि जाँच कराएँगे। चूँकि अपराधी कौरव हैं अतः धृतराष्ट्र उन्हें दण्डित भी कैसे कर सकता है? अतः सब जानते हैं ऐसी जाँचों और कार्यवाहियों का घुटनों के बल चलना ही असम्भव है।
थाने में रपट लिखवाने गए परिजनों से दारोगा गोरे लाल जी ने रहस्यमय मुस्कान बिखेरते हुए कहा ,अरे! चिन्ता की कोई बात नहीं है। निश्चिंत होकर घर जाओ।चुनाव के बाद सब अपने आप घर आ जाएँगे…….।
छटाँकी कई दिनों तक चकमा देते रहे।किन्तु आज पक्की मुखबिरी हो गयी। अतः दिन मुंदे ही भेड़ियों-सियारों द्वारा उनका घर घेर लिया गया और सुस्वागतम हेतु बाहर मिलने की पुकारें होने लगीं।किन्तु पैंतरेबाजी में छटाँकी भी कम न थे। तुरन्त साड़ी-चूड़ियाँ पहनी,क्रीम पावडर,लाली लिपिस्टिक पोती और घूँघट मार लैट्रीन के बहाने लोटा लेकर घर से निकले।सपोटरों के पूछने पर लेडीज आवाज में बोले,”हम उनके घरवाले हैं। वे अभी आ रहे है।”इतना कहके वे तेजी से निकले।बेचारे कुछ ही दूरी तय कर पाए कि,लेकिन मुखबिर के इशारे उसी अवस्था में धर लिए गए ..खुलेआम चौराहे पर सबके सामने लोकतान्त्रिक पंचाली का चीर हरण हो गया। चुनाव होने तक उनकी किसी ने परछाईं नहीं देखी।
अब बात मियाँ सलमुद्दीन की जिनके फोन और क्लीनिक दोनों इस समय छुट्टियों पर चले गए थे। हालाँकि अभी तक वे सौभाग्य से किसी के हत्थे नहीं चढ़े थे। आजकल मकई वासी हो लिए थे। वहीं खाना मँगा लेते थे । किसी भी गाड़ी की आवाज उन्हे खतरे की घण्टी लग रही थी । प्राण सुखा देती उनके। जोकि उन्हें मकई में ठिकाना बदलते रहने के लिए मजबूर कर देती थी। प्रतिपल आशंकित हैं कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाये। रह रह के उस घड़ी को कोस रहे हैं ठलुओं की बातों में आकर बीडीसी का पर्चा भरा था। बैठे-बिठाए आ बैल मुझे मार । बार-2 अल्लाह मियाँ के हुजूर में गिड़गिड़ा रहे थे कि इस बला से इस बार बचालो नाती-पोते सबको समझा के जाएंगे की कुछ भी कर लेना परन्तु कभी इस एबीसीडी मत पढ़ना यानी कि बी डी सी का चुनाव न लड़ना । उन्हें इस वक्त गाँव के रामलाल द्वारा सुनाई गयी किसी जुलाहे की कहानी की याद आ रही थी जो इस धुनही से हाथ से रुई धुनता था। मियाँ बीबी दोनों की मजे की जिंदगी थी। किन्तु ठलुहों के कहने पर फौज में भर्ती हो गया। तभी जंग छिड़ गयी। बूटों की लगती ठोकरे ,कान के पास से सनसना के निकलती गोलियां की आवाजों से उनके कंपकपाते मुखारबिंद से आदि कवि की तरह ये पंक्ति फूट पड़ी….. धुन्नक बेंचि के तुप्पक लीन्ही टप्पहि गोली ख़ाइ अल्ला…ज़ह किसने अकिलि बताई अल्ला।
राम भोले शर्मा पागल
हरदोई

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