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साधना शाही की कहानी एक वायदे की खातिर

कहानी संख्‍या 01 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता -2024

साधना शाही

अखंड सुहाग के व्रत तीज को सोसायटी की सभी सौभाग्यवती महिलाएंँ अपनी सुहाग की रक्षा हेतु रखी थीं। तीज की संध्या भक्ति रस में  पूरी तरह सराबोर थी। सभी विवाहित महिलाएंँ सोलह ऋंगार करके समिति के पास वाले मंदिर में सोलह ऋंगार की सामग्री, फल- फूल, मिठाइयांँ, मेवे आदि लेकर पूजा-अर्चना कर शिव- पार्वती के भजन गा रही थीं। तभी रैना भी सोलह श्रृंगार करके अपने हाथ में पूजा की थाली लिए शंकर- पार्वती के भजन गुनगुनाते हुए जैसे ही मंदिर में प्रवेश की सभी महिलाओं की प्रश्नवाचक नज़रें उसे घूर-घूर कर ऐसे देखने लगीं मानो उसने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो।सबकी नज़रें उससे यही सवाल कर रही थीं,यह विधवा आखिर किसके लिए इतना सजी-धजी हुई है?यह कुल्टा है ज़रूर इसका किसी न किसी से अफेयर है। इसके पति को मरे हुए पाँच साल हो गए फिर यह कैसे और क्यों इतना श्रृंगार की हुई है। इस तरह सभी की प्रश्नवाचक नजरें उसको घूरकर उसके अंतर्मन को लहूलुहान कर रही थीं।  किंतु, रैना बिना किसी को ज़वाब दिये मंदिर के अंदर प्रवेश कर भक्ति- भाव से भगवान की पूजा-अर्चना कर भगवान को प्रणाम की और जिस तरह से सिर झुकाकर मंदिर में प्रवेश की थी उसी तरह से सिर झुकाए वह मंदिर से बाहर आकर अपने घर चली गई । 

अपने घर आकर वह हाथ में कुछ पकड़कर(रमन की फोटो) फूट-फूट कर रोने लगी। उसी समय उसकी सात साल की बेटी सुरभी उसके पास आई और उसे इस तरह रोते हुए देखकर उसके रोने का कारण पूछने लगी। तब उसने अपनी बेटी को गले लगाकर कहा बेटा मैं मंदिर गई थी पैर स्लिप कर गया और गिर गई, चोट लग गई है। चूँकि सुरभी अभी बहुत छोटी थी इसलिए वह मम्मी का झूठ पकड़ नहीं पाई और उसे यही लगा कि मम्मी गिरकर चोट लगने की वज़ह से ही रो रही हैं। साल दो साल और बीतने के पश्चात समय के साथ-साथ सुरभी बड़ी हुई वह बाहर बच्चों के साथ खेलने जाने लगी, तभी कुछ बच्चे सुरभी को ताना मारते हुए बोले, तेरी मम्मी तो विधवा हो कर भी पता नहीं क्यों सजती-संँवरती  हैं, जबकि विधवा औरतें नहीं सजती-संँवरती हैं।  तेरी मम्मी बिल्कुल अच्छी नहीं है। बच्चों की यह बातें सुरभी   कोमल मन पर अमिट छाप छोड़ दी। सुरभी रोते हुए अपनी मम्मी के पास आई और वह पूछने लगी मम्मी क्या तुम विधवा हो?

सुरभी के मुंँह से ऐसी बात सुनकर रैना काँप उठी। रैना के इस प्रकार चुप्पी साधने पर सुरभी पुनः रैना को कुछ झिंझोटते हुए और कुछ चिल्लाते हुए बोली, मम्मी आप कुछ बोलती क्यों नहीं क्या आप विधवा हैं? । रैना कुछ भी बोल सकने की स्थिति में नहीं थी। सुरभी की बात  सुनकर रैना लगभग  मुजरिम की तरह खड़ी हो गई। सुरभी फ़िर चिल्लाते हुए बोली,  मम्मी मैं आपसे पूछ कुछ रही हूंँ क्या आप विधवा हैं? सुरभि की बात को सुनकर रैना उसके प्रश्न का उत्तर देने में असहज महसूस कर रही थी? किंतु,सुरभी के इस प्रकार चिल्लाते हुए पूछने पर ,रैना भी चिल्लाते हुए बोली हांँ- हांँ मैं विधवा हूँ।5 साल से  विधवा हूँ बोलो क्या करना है? क्या सज़ा देना है तुम्हें मुझे ? तब सुरभी ने कहा, अगर आप विधवा हैं तो फिर सजती- संँवरती क्यों हैं ? और आज तक आपने मुझे  बताया क्यों नहीं? तब रैना ने सुरभि के ऊपर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा बेटा ‘एक वायदे के खातिर’।  सुरभी ने पूछा कैसा वायदा  मम्मी?  तब रैना ने रोते हुए कहा,  जब तुम्हारे पिताजी जीवन की अंतिम सांँसें से ले रहे थे तब उन्होंने मुझसे तुम्हें सदैव ख़ुश रखने का तथा मैं कभी विधवा के भेष में नहीं रहूंँगी का वायदा लिया था। उन्होंने कहा था, तुम मेरी बेटी को नहीं बताओगी कि उसके पिता दुनिया में नहीं हैं। तुम उसे यही बताओगी उसके पिताजी ज़िंदा हैं वो बहुत दूर नौकरी करने के लिए गए हैं। जब वह पढ़- लिखकर बड़ी आदमी बन जाएगी तब वो लौटकर आएंँगे। उसी वायदे को निभाने के लिए मैं सजती-संँवरती हूंँ और मैंने कभी भी तुम्हारे पापा के बारे में तुम्हें नहीं बताया। रैना की बातों को सुनकर सुरभी अपनी मांँ के गले लग गई।

वह फूट फूट कर रोते हुए बोली,मांँ तुम मेरी ख़ुशी के लिए दुनिया वालों के ताने  सुनती रही,तुम एक वायदे को निभाने के लिए इतना कष्ट सहती रही। तुम महान हो वह तुरंत श्रृंगार दानी लाई और अपने हाथों से अपनी मांँ को सजाने लगी और उस दिन सुरभी ने भी अपनी मांँ से एक और वायदालिया कि मांँ आप आजीवन इसी प्रकार सज- सँवरकर, हंँसते- मुस्कुराते, खिलखिलाते हुए रहेंगी। आप कभी भी उदास नहीं होंगी। आप कभी भी विधवा के भेष में नहीं रहेंगी? क्योंकि मेरे पापा आपको जिस रूप में देखना चाहते थे मैं भी आपको उसी रूप में देखना चाहूंँगी। आप मुझसे भी एक वायदा करिए कि आप हमारे और पापा के वायदे को निभाते हुए हमेशा ख़ुश रहेंगी और जैसे आप रहती हैं वैसे ही रहेंगी। दुनिया वालों का क्या है उनका तो काम है कहना, लेकिन आप दुनिया वालों की परिवाह न कर हम दोनों के वायदे के अनुसार अपने आप को हमेशा ख़ुश रखने का हर संभव प्रयास करेंगी।

 इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमारा भारतीय समाज जिस स्त्री के पति दिवंगत हो जाते हैं उसके जीवन से उसकी हर खुशियों को छीन लेना चाहता है। जबकि, ऐसा नहीं होना चाहिए एक स्त्री का अपना भी जीवन है, क्या पति के चले जाने के बाद उसका जीवन समाप्त हो जाता है? यदि हांँ, तो ऐसी स्थिति में पत्नी के चले जाने के बाद पति का भी जीवन समाप्त हो जाना चाहिए। किंतु, ऐसा नहीं होता है तो यदि पत्नी के जाने के बाद पति अपने जीवन को सामान्य कर सकता है तो पत्नी को भी अपने जीवन को सामान्य करने लेना चाहिए। क्योंकि उसके का अधिकार होना चाहिए। उसके अंदर भी आत्मा होती है,किसी की आत्मा को दुखाने से बड़ा कोई पाप नहीं होता।

साधना शाही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश मोबाइल नंबर -8808314399

About sahityasaroj1@gmail.com

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17 comments

  1. Chandrvir solanki nirbhay

    वाह वाह!
    बहुत सुंदर कहानी।
    हार्दिक बधाई आदरणीया।

    • सीख भरी कहानी
      मध्यवर्गीय समाज पर करारा बैंक

  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण आपकी लेखन कला को बहुत बहुत साधुवाद

  3. ♥️♥️bht badhiya mam ..

  4. Priyanka Singh

    Bahut hi marmik kahani….

  5. Viddut lata mishra

    अद्भुत , अद्वितीय लेख

  6. 🌹बहुत सुन्दर कहानी ढेर सारी बधाई एवं शुभकामनायें 🎉🎉

  7. Reena tripathi

    Excellent bahut bahut badhai ho

  8. मार्मिक

    100%सच
    अनेकानेक shubhkamnayen aapko लेखनी अविरल चले ❤️🌹

  9. Priti Malviya

    Very very nice story,

  10. Priti Malviya

    Very nice story

  11. रोचक और मर्म स्पर्शी कहानी
    बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं साधना जी💐💐

  12. Dr. Vibha Shrivastav

    सामाजिक रूप से बहुत ही सारगर्भित कहानी है ।
    बहुत बहुत बधाई ।

  13. प्रदीप कुमार मिश्रा

    बहुत सुन्दर प्रतुति।

    यैसी और कहानियां लिखते रहिये।

    बहुत बहुत शुभकामनाएं।

  14. Great story mam!

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