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साधना शाही की कहानी एक वायदे की खातिर

कहानी संख्‍या 01 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता -2024

सुरभी के मुंँह से ऐसी बात सुनकर रैना काँप उठी। रैना के इस प्रकार चुप्पी साधने पर सुरभी पुनः रैना को कुछ झिंझोटते हुए और कुछ चिल्लाते हुए बोली, मम्मी आप कुछ बोलती क्यों नहीं क्या आप विधवा हैं? । रैना कुछ भी बोल सकने की स्थिति में नहीं थी। सुरभी की बात  सुनकर रैना लगभग  मुजरिम की तरह खड़ी हो गई। सुरभी फ़िर चिल्लाते हुए बोली,  मम्मी मैं आपसे पूछ कुछ रही हूंँ क्या आप विधवा हैं? सुरभि की बात को सुनकर रैना उसके प्रश्न का उत्तर देने में असहज महसूस कर रही थी? किंतु,सुरभी के इस प्रकार चिल्लाते हुए पूछने पर ,रैना भी चिल्लाते हुए बोली हांँ- हांँ मैं विधवा हूँ।5 साल से  विधवा हूँ बोलो क्या करना है? क्या सज़ा देना है तुम्हें मुझे ? तब सुरभी ने कहा, अगर आप विधवा हैं तो फिर सजती- संँवरती क्यों हैं ? और आज तक आपने मुझे  बताया क्यों नहीं? तब रैना ने सुरभि के ऊपर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा बेटा ‘एक वायदे के खातिर’।  सुरभी ने पूछा कैसा वायदा  मम्मी?  तब रैना ने रोते हुए कहा,  जब तुम्हारे पिताजी जीवन की अंतिम सांँसें से ले रहे थे तब उन्होंने मुझसे तुम्हें सदैव ख़ुश रखने का तथा मैं कभी विधवा के भेष में नहीं रहूंँगी का वायदा लिया था। उन्होंने कहा था, तुम मेरी बेटी को नहीं बताओगी कि उसके पिता दुनिया में नहीं हैं। तुम उसे यही बताओगी उसके पिताजी ज़िंदा हैं वो बहुत दूर नौकरी करने के लिए गए हैं। जब वह पढ़- लिखकर बड़ी आदमी बन जाएगी तब वो लौटकर आएंँगे। उसी वायदे को निभाने के लिए मैं सजती-संँवरती हूंँ और मैंने कभी भी तुम्हारे पापा के बारे में तुम्हें नहीं बताया। रैना की बातों को सुनकर सुरभी अपनी मांँ के गले लग गई। वह फूट फूट कर रोते हुए बोली,मांँ तुम मेरी ख़ुशी के लिए दुनिया वालों के ताने  सुनती रही,तुम एक वायदे को निभाने के लिए इतना कष्ट सहती रही। तुम महान हो वह तुरंत श्रृंगार दानी लाई और अपने हाथों से अपनी मांँ को सजाने लगी और उस दिन सुरभी ने भी अपनी मांँ से एक और वायदालिया कि मांँ आप आजीवन इसी प्रकार सज- सँवरकर, हंँसते- मुस्कुराते, खिलखिलाते हुए रहेंगी। आप कभी भी उदास नहीं होंगी। आप कभी भी विधवा के भेष में नहीं रहेंगी? क्योंकि मेरे पापा आपको जिस रूप में देखना चाहते थे मैं भी आपको उसी रूप में देखना चाहूंँगी। आप मुझसे भी एक वायदा करिए कि आप हमारे और पापा के वायदे को निभाते हुए हमेशा ख़ुश रहेंगी और जैसे आप रहती हैं वैसे ही रहेंगी। दुनिया वालों का क्या है उनका तो काम है कहना, लेकिन आप दुनिया वालों की परिवाह न कर हम दोनों के वायदे के अनुसार अपने आप को हमेशा ख़ुश रखने का हर संभव प्रयास करेंगी।

 इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमारा भारतीय समाज जिस स्त्री के पति दिवंगत हो जाते हैं उसके जीवन से उसकी हर खुशियों को छीन लेना चाहता है। जबकि, ऐसा नहीं होना चाहिए एक स्त्री का अपना भी जीवन है, क्या पति के चले जाने के बाद उसका जीवन समाप्त हो जाता है? यदि हांँ, तो ऐसी स्थिति में पत्नी के चले जाने के बाद पति का भी जीवन समाप्त हो जाना चाहिए। किंतु, ऐसा नहीं होता है तो यदि पत्नी के जाने के बाद पति अपने जीवन को सामान्य कर सकता है तो पत्नी को भी अपने जीवन को सामान्य करने लेना चाहिए। क्योंकि उसके का अधिकार होना चाहिए। उसके अंदर भी आत्मा होती है,किसी की आत्मा को दुखाने से बड़ा कोई पाप नहीं होता।

साधना शाही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश मोबाइल नंबर -8808314399

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    17 comments

    1. Chandrvir solanki nirbhay

      वाह वाह!
      बहुत सुंदर कहानी।
      हार्दिक बधाई आदरणीया।

    2. बहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण आपकी लेखन कला को बहुत बहुत साधुवाद

    3. Bahut hi marmik kahani….

    4. Viddut lata mishra

      अद्भुत , अद्वितीय लेख

    5. 🌹बहुत सुन्दर कहानी ढेर सारी बधाई एवं शुभकामनायें 🎉🎉

    6. Reena tripathi

      Excellent bahut bahut badhai ho

    7. मार्मिक

      100%सच
      अनेकानेक shubhkamnayen aapko लेखनी अविरल चले ❤️🌹

    8. Very very nice story,

    9. Very nice story

    10. रोचक और मर्म स्पर्शी कहानी
      बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं साधना जी💐💐

    11. Dr. Vibha Shrivastav

      सामाजिक रूप से बहुत ही सारगर्भित कहानी है ।
      बहुत बहुत बधाई ।

    12. प्रदीप कुमार मिश्रा

      बहुत सुन्दर प्रतुति।

      यैसी और कहानियां लिखते रहिये।

      बहुत बहुत शुभकामनाएं।

    13. Great story mam!

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