कहानी संख्या 08 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता -2024
“हेलो!.. .”
“हेलो! समधन जी ! कैसी हैं आप ?”
“बस ठीक ही हूँ . आप कहिये , आप कैसी हैं और बाकी सब घर में कैसे हैं ?”
“अब क्या बताएं ? जीवन है चलाना तो पड़ता ही है . मैं और राजेश के पापा तो राजेश और मनु ( पोता ) को देखकर दुःखी रहती हूँ, कि कैसे कटेगा आगे की जिंदगी इन लोगों का .”
“मनु, रोता रहता है ?”
“हाँ, अब चार साल का बच्चा .. . माँ के बिना.. . आप समझ सकती हैं . राजेश एकदम गुमसुम रहता है . छः महीने हो गए रुचि को गए, लेकिन अभी तक खुद को संभाल नहीं पाया है . मनु तो दादा-दादी से हंस बोलकर , खुश हो लेता है . पर राजेश.. .”
“हाँ, वो तो है ही . हम लोग भी कहाँ संभाल पाए हैं खुद को अभी तक . रुचि के पापा तो गुमसुम रहते हैं और सौम्या तो कभी भी रोने लगती है . दोनों बहनों में लगाव ही इतना था . ठहरी मैं , तो मैं अपना दुःख किसे बताऊँ ?…”
“ये बात तो सच है . माँ के दर्द की बात की तो बयां नहीं कर सकते . मैं सोच रही थी …” कह कर चुप हो गई समधन ( रुचि की सास ) .तो आभा (रुचि की माँ ) ने पूछा “क्या हुआ समधन ? आप कुछ कहते-कहते चुप हो गई ? क्या हुआ ?”
“अब क्या बताऊँ, मैं सोच रही थी राजेश की दूसरी शादी करवा दूं . बच्चों को माँ मिल जाएगी और राजेश की जिंदगी में भी कुछ खुशी आएगी . आखिर हमलोग कब तक संभालेंगे बच्चों को ?”
ये सुनकर कुछ बोल नहीं पायी आभा तो समधन ने ही कहा “यदि आपलोगों की सहमति हो तो सौम्या और राजेश का विवाह करवा दें ? बच्चों को प्यार करने वाली माँ मिल जाएगी . आखिर मौसी से ज्यादा कौन माँ जैसा प्यार देगी ? अब आपने भी दोनों बच्चियों को कोख जायी माँ से कम प्यार दिया है क्या ? आपको देखकर कौन कह सकता है कि आप जन्म देने वाली माँ नहीं मौसी हैं . समधन जी मौसी तो माँ जैसी ही होती है .”।
आभा को अचानक लगा जैसे किसी ने 20-22 साल पीछे धक्का दे दिया हो . इतने वर्षों में वो तो भूल ही गई थी कि वो बच्चियों की माँ नहीं मौसी है . ये तो आज समधन ने याद दिला दिया .।
‘ओह ! ‘ एक लम्बी सांस ली आभा ने .
उधर से समधन शायद कुछ-कुछ कह रही थी जो आभा के कानों के अंदर नहीं पहुंच पाई . पूरा शरीर जैसे शिथिल हो गया हो .
समधन ने कहा “ठीक है समधन जी रखती हूँ . आप आराम से विचार करके बताईएगा . नमस्कार .”।
“जी, नमस्कार” कह कर आभा ने फोन काट दिया और उसी शिथिलता से वहीं सोफा पर बैठ गई . आभा सोच रही थी –
‘हाँ सच में मैं बच्चियों की अपनी माँ कहाँ हूँ , मैं तो मौसी हूँ . विभा दी की सौत .’।
विभा दी आभा से पाँच साल बड़ी थी . विभा की जब शादी हुई थी तब आभा 18 साल की थी और जीजा ( विनोद ) विभा से पाँच साल बड़े . विभा की शादी बड़ी धूमधाम से हुई . आभा अपनी दीदी की शादी में खूब मस्ती की थी . बस दीदी की विदाई में फूट-फूटकर रोई . आखिर सबसे करीब वही तो थी आभा की . जिससे अपनी हर बात शेयर करती थी . विभा भी अपनी छोटी बहन आभा को दिलोजान से प्यार करती थी . समय बीतते गए . विभा को दो प्यारे प्यारे बच्चे हुए . आभा को विभा के ससुराल कम ही जाने दिया जाता था, क्योंकि तीस चालिस साल पहले कुंवारी जवान बेटियों को बहन के ससुराल या कहीं और कम ही जाने दिया जाता था . विभा के बच्चों से आभा को बहुत लगाव था . उसे देखने दो चार बार ही जा पायी थी . विभा को ही मायका बुला लिया करती थी ।
एक दिन दोपहर में फोन की घंटी घनघना उठी . तीस चालीस साल पहले मोबाइल था नहीं . लैंड लाईन टेलीफोन ही होता था .
फोन अक्सर घर में वही उठाया करती थी . इसी फोन पर घंटो दीदी से बात भी करती थी. आज भी दौड़कर फोन उठाई .
“हेलो ! “
“हाँ, हेलो ! समधी जी हैं क्या ? विलासपुर से राजेश का फादर बोल रहा हूँ .” बहुत ही गंभीर आवाज थी .
“प्रणाम अंकल जी, बाबूजी अभी घर पर नहीं हैं . कोई है तो मुझे बताईए, मैं उन्हें बता दुंगी .”
“वो क्या है न… .”
“जी अंकल , …”
“वो .. . विभा बिटिया अब नहीं रही… . गैस ब्रस्ट कर गया था, जिसमें बिटिया …” इतना कहते-कहते उनकी आवाज भर्रा गई .
“क्या ? .. कब ?…” आभा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था .
“दोपहर का खाना बना रही थी कि.. . मैं अभी अस्पताल से बोल रहा हूँ . बेटी! समधी जी के पहुँचते ही घर पर बात करवाना . हमलोग अब घर जा रहे हैं .” कहकर उन्होंने फोन रख दिया .
आभा के कान और दिमाग दोनों सुन्न पर गए थे . ना तो कहते कुछ बन रहा था और ना ही सुनते . कुछ देर तक यूँ ही फोन को हाथ में पकड़े रही जैसे रखना भूल गई हो . आभा की माँ “आभा ! आभा !” पुकारते हुए आयी .
आभा को फोन पकड़े बुत बने खड़े देखा तो पूछती है , “अरे क्या हुआ ? ऐसे क्यों खड़ी है ? किसका फोन था ?”
आभा ने कोई जवाब नहीं दिया . उसने तो जैसे कुछ सुना ही नहीं .
माँ फिर उसकी बांह पकड़कर हिलाते हुए पूछा “बोल क्या हुआ ?..”
आभा के हाथ से फोन का रिसीवर गिरकर झूलने लगा .
आभा अपनी माँ से लिपटते हुए रोते-रोते “माँ दीदी … “
“क्या हुआ दीदी को ? हाँ क्या हुआ उसे ?..बोलो…”
“माँ दीदी के ससुर जी का फोन आया था अस्पताल से .”
“हाँ तो ?..” माँ कंपकपाते हाथों से आभा को झकझोरते हुए पूछा . “बोलो क्या बोल रहे थे समधी जी ?..”
हिचकते-हिचकते वह “माँ दीदी अब नहीं …” इसके आगे नहीं बोल पायी वह । तभी उसके बाबूजी भी बाहर से आ गए . दोनों को इस तरह देख आसंकित होकर पूछा “क्या हुआ तुम दोनों इस तरह क्यों हो ?”
माँ घबराते हुए बोली “सुनिए जी, जल्दी से समधी जी को फोन लगाईये .”
“क्यों ? क्या बात है ?”
“आप लगाइए तो सही .”
बाबूजी फोन लगाकर “कोई नहीं उठा रहा है .”
“अरे फिर से मिलाकर देखिए . “
बाबूजी पूछते हुए “बताओगी भी कुछ…” और फिर फोन मिलाने लगे . उधर से आवाज आई “समधी जी ?”
“हाँ, हाँ, समधी जी नमस्कार “
“समधी जी बहुत बुरी खबर है . विभा बेटी खाना बनाते समय गैस की आग में झुलस गई . हम उसे लेकर अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया .”
“क्या !…?”
“अभी वहीं से आ रहे हैं . आपलोग आ सकें तो आ जाईये . अंतिम दर्शन कर लीजिए .”
बाबूजी तो वहीं थोड़ी देर बैठ गए और आंखों से टप-टप आंसू बहने लगे . फिर कुछ देर बाद दीदी के ससुराल जाने के लिए निकल गए . इच्छा तो मेरी भी हो रही थी किन्तु हमारे लिए बहुत पाबंदियां थी . इसलिए नहीं जा पायी।
इधर माँ के मुंह से एक ही बात बार-बार निकल रहा था कि बच्चे कैसे रहेंगे ।
दस-पंद्रह दिन बीत गए . एक दिन विभा के ससुर जी का फोन आया जिसे बाबूजी ने उठाया . अब फोन आभा नहीं उठाने जाती थी . उसे फोन की घंटी से डर लगने लगा था। बाबूजी को दीदी के ससुर ने अपने बेटे यानी जीजा जी की शादी मुझसे करवाने को कह रहे थे । ये सुनकर तो दीदी के जाने के गम के साथ साथ आभा को डर लगने लगा।वो जीजा जी के साथ शादी की बात सोच कर ही मन उदास रहने लगा . आभा सोचती कि उस व्यक्ति के साथ मैं कैसे शादी कर सकती हूँ जो दीदी के सर्वस्व थे .
जब से दीदी के ससुर ने बाबूजी से मेरी शादी की बात की , तब से माँ बाबूजी को गंभीर मुद्रा में विचार विमर्श करते देखती थी . कभी बाबूजी कहते ‘दामाद जी दस साल बड़े हैं हमारी आभा से . ये ठीक नहीं रहेगा । तो माँ कह देती ‘आप तो मुझसे बारह साल बड़े हैं । ‘अरे वो जमाना कुछ और था . अब कुछ और है . बाबूजी बीच में ही बात काटकर कहते।
पर माँ को दीदी की दोनों बेटियों के प्रति ममता सताता और कहती ‘अजी दामाद जी की शादी तो कहीं न कहीं होगी ही . उस फूल सी बच्चियों को सौतेली माँ पता नहीं क्या करेगी . बेटे रहते तो फिर भी कोई और बात होती .
दोनों ने सोच विचार कर फैसला किया कि आभा की शादी दामाद जी से कर दी जाए . आभा से पूछने की जरूरत कहाँ थी . वैसे भी उस समय पूछा कहाँ जाता था . बस फैसला सुनाया जाता था .
उसी तरह माँ ने भी आभा को बताया कि ‘तेरी शादी तेरे जीजा से कर रही हूँ . उम्र में तुम से दस साल बड़े हैं, पर कोई बात नहीं . तेरे बाबूजी मुझसे बारह साल बड़े हैं . मर्दों का काम काज , धन संपत्ति देखी जाती है . उम्र इतना महत्व नहीं रखता . सबसे बड़ी बात उस बच्चियों को देखो . क्या करेगी बच्चियों के साथ, यदि कोई सौतेली माँ आ जाएगी तो . मैं तो सोचकर ही डरती हूँ . इतना ही नहीं दामाद जी स्वभाव के भी तो बहुत अच्छे हैं . तेरी दीदी को हथेली पर रखते थे .’
आभा सोच रही थी कि ‘वही तो बात है . दीदी की तरह मुझसे प्यार कर पाएंगे जीजा जी कभी , या मैं उन्हें जीजा छोड़ पति की तरह कभी समझ पाऊँगी ?
आभा को मना करने की हिम्मत नहीं थी और ना ही स्वीकार कर पा रही थी . बस अकेले में रोती थी . रोते-रोते आंखे सूज गई थी . किसी से बात करने का भी मन नहीं करता था . आभा अपनी शादी को नियति मानकर स्वीकार कर ली थी .
जीजा से शादी हो गई और ससुराल भी आ गई . अब दीदी का ससुराल उसका ससुराल हो गया और जीजा उसका पति .
पति से प्यार का तो पता नहीं , लेकिन यंत्रवत फर्ज निभाती रही . दीदी की दोनों बेटियों से तो पहले भी प्यार था और अब भी बल्कि पहले मौसी थी, अब माँ हो गई . दोनों बच्चियाँ माँ ( मौसी ) का हमेशा का साथ पाकर खुश रहने लगी . धीरे-धीरे एक साल बीत गया और आभा गर्भवती हो गई . लेकिन बच्चियों से प्रेम कम नहीं हुआ .
फिर घर में नन्हा मेहमान आ गया . दोनों बच्चियों को भाई और उस घर को चिराग मिल गया . आभा तीनों बच्चों को अपने कोखजायी की तरह ही पालती थी . पुत्र के पैदा होने के बाद पति ( जीजा ) का स्नेह भी बढ गया . लेकिन आभा को पति में जीजा नजर आना बंद नहीं हुआ . इसलिए अधिकतर औपचारिकता की बातें ही होती थी . प्रेम मोहब्बत की बातें तो जैसे उसके लिए काल्पनिक बातें थी .उसका समय इन्हीं तीनों बच्चों के इर्द-गिर्द घूमता था . धीरे-धीरे वह भूल गई कि दोनों बच्चियों की वह मौसी से माँ बनी है ।
समय पंख लगा कर उड़ रहे थे . बड़ी बेटी रुचि की पढाई खत्म होते ही शादी कर दी . जल्दी ही एक प्यारा सा नाती की नानी भी बन गई। छोटी बेटी सौम्या मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी . अपने पैरों पर खड़े होने से पहले तो शादी की बात सुनना भी नहीं चाहती थी। फिर अचानक रुचि की तबीयत क्या बिगड़ी जो ठीक ही नहीं हुई . बहुत इलाज करवाया पर होनी को कौन टाल सकता है . एक बार ये विचार आया कि ‘सच में मनु कैसे रहेगा माँ के बिना ?’ फिर दूसरे ही क्षण ‘पर इसलिए सौम्या के ऊपर इस जिम्मेदारी का बोझ जबरदस्ती डालना कहाँ का न्याय है ? नहीं उसे भी मौसी से माँ बनने के लिए मैं मजबूर नहीं करूंगी . पुनः इतिहास दोहराने नहीं दुंगी .’ एक लम्बी सांस लेकर दृढ़संकल्प के साथ समधन को फोन मिला दिया “हेलो ! समधन जी, बहुत सोच-विचार कर मैंने ये विचार किया है कि सौम्या पर जिम्मेदारी थोपना सही नहीं है . आखिर बेटियों को भी अपना जीवन साथी चुनने की आजादी होनी चाहिए . जहाँ तक मनु की बात है तो मैं और आप हैं न उसे संभालने के लिए .” एक सांस में कह गई आभा . उसे लगा जैसे सीने पर से बहुत बड़ा बोझ था जो हट गया हो .
पूनम झा ‘प्रथमा’ जयपुर, राजस्थान 9414875654
रूढ़िवादिता पर करारा प्रहार करती हुई बढ़िया कहानी। अक्सर समाज में इसी तरह बच्चों की इच्छा जाने बिना ही उन्हें अनचाहे रिश्ते में बांध दिया जाता है। आज समाज में बदलाव की नितांत आवश्यकता है