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सुनीता मुखजी की कहानी कीमत

कहानी संख्‍या -9 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024

सुनीता मुखर्जी “श्रुति

शोभना मेरा ड्रेस कहाँ है अभी तक निकाला क्यों नहीं? मुझे ऑफिस जाने के लिए देर हो रही है रोहन जोर से आवाज दे रहा था।   जल्दी करो!!……शोभना  रसोई से दौड़ते-दौड़ते  आई और ड्रेस, टाई, रुमाल, और मैचिंग कैप सब निकाल कर दे दिया।  डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगा दिया है, आप जल्दी से नाश्ता कर लीजिए… तब तक पानी की बोतल, ग्लूकोस और दोपहर का खाना सब पैक कर बैग तैयार कर दिया।  अरे! आपने चाय नहीं पी? शोभना बोली। नहीं! अभी चाय पीने का समय नहीं है। शोभना ने जल्दी से चाय कटोरी में डाल- डाल कर ठंडा करके देने लगी। ओफ्फ्हो!! आज तुम्हारे कारण फिर लेट हो गया? तुम भी कुछ काम कर लिया करो शोभना मुस्कुराते हुए बोली। तुम अच्छे से जानती हो कि मुझे घर के काम करने की आदत नहीं है। बाहर तो काम करता ही हूंँ और अब घर में भी….तुम नानू को स्कूल छोड़ और ले आती हो, थोड़ा बहुत घर का काम है। मेरे ऑफिस जाने के बाद तो सारा दिन तुम फ्री रहती हो।

शोभना सुबह-सुबह अपना मूड खराब नहीं करना चाहती थी इसलिए कुछ नहीं बोली और मुस्कुराते हुए रोहन को विदा किया।रोहन के सहकर्मी  एक बार जरूर कहते…  वाह!! तुम्हारा ड्रेसिंग सेंस बहुत अच्छा हो गया है विवाह के बाद भाभी ने एकदम बदल दिया है। रोहन की एक-एक चीज का ख्याल शोभना रखती थी। यहां तक की रुमाल भी ड्रेस के साथ मैचिंग का देती थी।बड़े शहर में कामवाली बाई मिलना बहुत मुश्किल होता है अगर मिल भी जाए तो उसकी पगार बहुत ज्यादा होती है इसलिए शोभना घर के सभी काम स्वयं ही करती थी। कहती जो बाई को पगार देंगे वह पैसा किसी और काम आएगा? जो अधिकतर मध्यमवर्गी महिलाओं की सोच होती है। बाथरूम गई तो देखा  कच्छा और तौलिया सब गीले पड़े हैं ओफ्फ्हो!! इतना भी नहीं कर सकते हैं?जल्दी-जल्दी घर का काम निबटाकर नानू को स्कूल से ले आई।सब काम निपटाकर उसने हाथ में मोबाइल लिया ही था कि रोहन का व्हाट्सएप मैसेज देखकर रुक गई,  लिख रहे हैं….. सारा दिन ऑनलाइन रहती हो और कहती हो कि घर में काम बहुत है। शोभना ने गुस्से में तमतमा कर मोबाइल रख दिया। आखिर क्या चाहते हैं रोहन!!। खाना खाकर नानू भी सो कर उठ गया था उसे होमवर्क करवा कर शाम का नाश्ता तैयार करने लगी।दफ्तर से रोहन आए और सोफा पर पसर गए। बोले काम करते-करते बहुत थक गया हूंँ। शोभना ने चाय दी और रात के खाने की तैयारी करने लगी।

रोहन ने शोभना की प्रशंसा में कभी एक शब्द भी नहीं कहा, यदि काम करते-करते कुछ भी काम बिगड़ जाए तो रोहन के मुंह से तुरंत निकलता “बहुत बेवकूफ औरत हो तुम।” घर हो या बाहर, सरेआम बेइज्जत करने में वह कभी नहीं चूकते। रोहन का यह व्यवहार शोभना को बहुत आहत पहुंचाता, लेकिन वह चुपचाप सहन कर जाती।शुरुआत में एक दो बार विरोध करने की कोशिश की…. तो रोहन ने बहुत बड़ा बखेड़ा खड़ा कर दिया। इसलिए ज्यादातर वह चुप हो जाती है।पत्नी के ऊपर रौब चलाने में ही वह अपने आप को संपूर्ण मानता था।वही रोहन के सभी दोस्त कहते….यार!! तेरी जिंदगी तो जन्नत है। शोभना जैसी पत्नी तुम्हारी जिंदगी में बहार लेकर आई है।रोहन तपाक से बोलता….घर में काम ही क्या है? इतना भी नहीं करेगी तो समय कैसे कटेगा। एक दिन शोभना नानू को स्कूल से ला रही थी तभी एक गाड़ी ने उसे धक्का मारा। वह नानू को बचाने के चक्कर में खुद गाड़ी के नीचे आ गई। सिर में ज्यादा चोट लगने के कारण लगातार खून निकल रहा था। अस्पताल पहुंचने में भी देरी हुई जिस कारण शोभना 10- 12 घंटे जीवित रहने के पश्चात उसने दुनिया छोड़ दी।

रोहन कुछ समझ नहीं पा रहा था कभी नानू कभी शोभना के पार्थिव शरीर को देख रहा था। शोभना के बिना एक कदम भी नहीं चल सकता था। कुछ सोच नहीं पा रहा था बस दहाड़े मार- मार कर रोने लगा। बार-बार कह रहा था कि मैं नानू को लेकर कैसे रह पाऊंगा। क्रिया कर्म होने के बाद नानू बोला पापा भूख लगी है। वह कुछ सोचते हुए किचन में गया जहां उसे कहां क्या है कुछ मालूम नहीं और वापस आ गया।नानू ने फिर कहा पापा मुझे भूख लगी है, कुछ खाने को दो।उसके अनवरत आंसू बहे जा रहे थे उसे एक-एक पल काटना मुश्किल हो रहा था क्योंकि वह पूरी तरह से शोभना पर निर्भर था। शोभना के जीवित रहते उसकी कीमत रोहन कभी नहीं समझ पाया, लेकिन अब कदम- कदम पर शोभना की हर बात सता रही थी।छः महीने के बाद घर वालों ने रोहन का दूसरा विवाह रेणुका के साथ कर दिया। रेणुका अपनी मर्जी की मालकिन थी। सुबह 8:00 बजे सोकर उठती। सासू मां थी वह खाना बना रही थी। कुछ दिन रहने के पश्चात वह वापस गांव चली गई। 

एक दिन रोहन ने रेणुका से कहा….. यदि तुम इतनी देर से सो कर उठोगी तो कैसे घर संभाल  पाओगी…. मुझे ऑफिस और नानू को स्कूल जाना है इतनी देर तक सोने से कैसे चलेगा। रेणुका ने कहा आपको ऑफिस जाना है तो अपना खाना स्वयं बनाकर ले जाइए। यह सब मेरे बस की बात नहीं है कि मैं सुबह-सुबह खाना बनाऊँ और इतना काम का बोझ लादे फिरूं मुझसे नहीं होगा। एक सलाह देती हूं किसी खाना बनाने वाली को रख लो जो समय पर खाना बना कर तुम्हें दे सके। और हां रही बात नानू की…. “वह तुम्हारा बच्चा है तुम समझो उसे कैसे पालन-पोषण करना है।”मेरी मानो तो उसे हॉस्टल में ही रख दो।”रोहन के काटो तो खून नहीं”… उसे रेणुका से ऐसी उम्मीद नहीं थी। उसे शोभना की एक-एक बात याद आ रही थी …….सचमुच मेरी शोभना गृह लक्ष्मी थी उसके जीते जी मैंने उसकी कीमत कभी नहीं समझ पायी। मैं इसी लायक हूं मुझे सजा मिलनी चाहिए। सचमुच शोभना मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूंँ।

सुनीता मुखर्जी “श्रुति” हल्दिया पूर्व मेदिनीपुर पश्चिम बंगाल मोबाइल नंबर 9013246508

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8 comments

  1. नरेश चन्द्र उनियाल

    बेहतरीन कथा शिल्प… हार्दिक बधाई 🌹🌹

    • नरेश चन्द्र उनियाल

      बहुत सुन्दर कथानक…. बहुत घर, बहुत मर्द हैं ऐसे जो परिवार की गृहणी को तुच्छ समझते हैं, उसके काम का कोई मूल्य ही नहीं समझते.. वे भूल जाते हैं कि यही महिलाएं homemaker होती हैं…
      सुन्दर विषय चयन एवं उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए साधुवाद..

  2. नरेश चन्द्र उनियाल

    बहुत सुन्दर कथानक…. बहुत घर, बहुत मर्द हैं ऐसे जो परिवार की गृहणी को तुच्छ समझते हैं, उसके काम का कोई मूल्य ही नहीं समझते.. वे भूल जाते हैं कि यही महिलाएं homemaker होती हैं…
    सुन्दर विषय चयन एवं उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए साधुवाद..

  3. हकीकत को बयां करती कहानी

  4. अजय झा

    बेहतरीन अहसास की अभिव्यक्ति।

  5. Anand kumar Dubey

    बहुत सुंदर और प्रेरक कहानी ,

  6. कवि छगनलाल मुथा, मुम्बई

    बहुत ही दिल को छू लेने वाली कहानी।
    सत्य बयां करती है।
    पति-पत्नी जीवन की गाड़ी के २ पहियें हैं,एक दूसरे के बिना जीवन अधूरा है।

  7. बहुत ही सुंदर और मन को छू जाने वाली कहानी

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