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सुमन की मातृत्व की जीत

कहानी संख्‍या 11 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता -2024 ,

आज सुबह से ही घर के सभी लोग मन ही मन  किसी चिंता में डूबे हुए चुपचापअपने कार्यों में व्यस्त थे।बस घर भर का लाडला सोलह वर्षीय अमित ही इस बात से बेखबर था। उसने दसवीं की परीक्षा उत्कृष्टअंकोंके साथ उत्तीर्ण की थी। इस  कारण विद्यालय  प्रबंधन ने उसका फोटो  अन्य होनहार विद्यार्थियों के साथ शहर में जगह-जगह होर्डिंग्स पर लगा रखा था।अमित के दादा दादी और मम्मी पापा को उसकी उपलब्धि पर बहुत गर्व था। उसके दोनों बड़े भाई सुश्रुत और सौरभ भी उसे बहुत प्यार करते थे।आज अमित अपनी अंक तालिका लेने के लिए  विद्यालय गया हुआ था और यही सबकी  चिंता का कारण था। अंक तालिका के साथ ही खुलने वाले राज और अमित की संभावित प्रतिक्रिया सोच सोच कर घरवाले आशंकित थे।क्या पता अमित सच्चाई जानकर सभी से नाराज हो जाये?कहीं अवसाद में आ गया तो?क्या पता घर छोड़ने को आमादा हो जाए?कहीं विद्यालय से विमुख हो गया तो?

ये  प्रश्न भावी की आशंका से  सभी के मन को मथे जा रहे थे।तभी अमित अपनी अंक तालिका लिए लौट आया। दादी ही सबसे पहले सामने पड़ीं  ।मन ही मन डरते हुए उन्होंने अमित से कहा, “आ बेटा, थक गया होगा।गर्मी भी तो बहुत है। मैंने तेरे लिए लस्सी बना रखी है, पी ले।””अरे दादी, लस्सी तो पी लूँगा ,लेकिन पहले मेरी अंक तालिका तो देखो। बोर्ड परीक्षा वाले देखो कितनी गलतियां करते हैं।पापा और मम्मी का नाम ही गलत लिख दिया। पहले तो ये नाम ठीक करवाना होगा।”  बैचेनी से कहते हुए अमित दादी को अपने अंक तालिका दिखाने लगा।दादी अंक तालिका हाथ में लेकर देखने लगीं।”बता, क्या गलत लिखा है?””देखो दादी, मांँ का नाम ‘सरिता ‘ , पिता का नाम  ‘सोमेश ‘ लिख दिया है। बोर्ड की अंक तालिका में भला ऐसी गलतियाँ होती हैं?दादी मन ही मन स्थिति का सामना करने का साहस बटोर कर धीरे से बोलीं, “सही लिखा है बेटा।”

” दादी आप ठीक तो हो? क्या बोल रही हो? मेरी मम्मी का नाम सरोज और पापा का नाम सुनील है। क्या आप भूल गईं?””तेरी मम्मी का नाम सरिता और पापा का नाम सोमेश ही है।”  दादी का गंभीर स्वर गहरी खाई से आता प्रतीत हुआ।”क्या कह रही हो दादी?” अविश्वास और झुंझलाहट से भरकरअमित बोल उठा।”जब तू नौ माह का था तभी मेरा छोटा  बेटा सोमेश और बहू सरिता  एक्सीडेंट में मारे गए थे। मैं और तेरे दादा तब सदमे मे आ गये थे। तुझ अबोध को देखकर हमारा रुदन फूट पड़ता था। तब सरोज ने माँ बनकर अपने आँचल की   छाँव  तुम्हें दी।  तब हम  तुम्हें लेकर इस दूरस्थ शहर में जहां सुनील की नौकरी थी आगये थे।।

जब पहली बार स्कूल में तुम्हारा नाम लिखवाना था तब माता-पिता के नाम पर हम सबने बहुत चिंतन किया था।हम सबको यह  चिंता थी कि जैसे ही तुम समझने लगोगे और सोमेश -सरिता (पिता-माता) के बारे में पूछोगे हम तुम्हें क्या बताएंगे ? यह कि तुम्हारे माता-पिता नहीं है ?तुम्हारा कोमल दिल यह जानकर कहीं टूट न जाए। हम चाहते थे कि  तुम्हारे बचपन को बस खुशियां ही मिलें,गम की परछाई भी तुम्हें छू न पाये। तुमने होश सम्हालते  ही सुनील और सरोज को पिता और माँ के रूप में जाना था । हम सब  चाहते थे कि सुनील तुम्हें कानूनन गोद ले ले। तब प्रवेश फाॅर्म में भी इन्हीं का नाम लिखा  जा सकेगा लेकिन इसमें भी एक बड़ी समस्या थी। सुनील सरकारी नौकरी में था। उसकी दोनों संतानों की जानकारी पहले ही विभाग में दी हुई थी। तीसरी संतान के रूप में तुम्हारी जानकारी विभाग को मिल जाती तो सुनील को नौकरी मे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता। वैसे ही उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ नहीं थी। जैसे तैसे घर का खर्च पूरा पड़ता था।

सुनील की नौकरी पर किसी प्रकार की मुसीबत हम सबके जीवन यापन का संकट बन सकता था। स्थिति ऐसी थी कि इधर पड़ो तो कुँआ और  उधर पड़ो तो खाई।तब हम सबने मिलकर यह समाधान निकाला कि विद्यालय में तुम्हारे पिता माता का नाम सोमेश व सरिता ही लिखवाया जावे।  लेकिन विद्यालय के प्रधानाध्यापक जी को परिस्थिति  से अवगत करवा कर अनुरोध किया कि विद्यार्थी को देने वाले परीक्षा परिणाम में सुनील व सरोज का नाम अंकित कर दिया जावे।  कैसे भी करके प्रधानाचार्य जी ने अपना वचन निरंतर निभाया।लेकिन दसवीं कक्षा में बोर्ड परीक्षाओं में यह व्यवस्था संभव नहीं थी। वैसे भी तुम्हारे बड़े होने पर तुम्हें  वास्तविकता बतानी ही थी । सच्चाई यही है मेरे बच्चे,सरोज तेरी यशोदा माँ है और सुनील तेरा नंदराय पिता है।उनके लिये तो तू सुश्रुत और सौरभ से भी बढ़कर है ,बेटा। ”  दादी का यादों के भँवर में डूबता उतराता गंभीर स्वर एकाएक वात्सल्य से भर गया । दादी के चुप होते ही वातावरण में एकाएक गहन शांति छा गयी। दादी अमित के चेहरे की और देख उसके मनोभाव पढ़ने लगी।

अमित के मुख  पर विभिन्न गहरे विचारों  का आवागमन  लगा हुआ था । दृष्टि  एकटक दूर कहीं  टिकी हुई थी, फिर भी वह कहीं देखता हुआ न दिखता था जैसे गहन चिंतन में लीन हो। दादी ने  प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,”अमित, तू ठीक तो है ना?”हड़बड़ाते हुए अमित सचेत हुआ फिर बोला,  ” “दादी मैं  ठीक हूँ ।  माँ कहाँ हैं ?””अंदर कमरे में ही होगी, जा मिल ले।”कमरे में दरवाजे की ओट से सारा वार्तालाप सुनते  हुए सरोज आगत की आशंका से काँप उठी।”माँ……कहाँ हो..?” कहते हुए अमित कमरे  की ओर बढा। अमित की पुकार सुनकर  सरोज धड़कते दिल से दरवाजे की ओट से बाहर निकल आई ।”माँ….” कहते हुए अमित सरोज के गले से  चिपक गया।सरोज ने अमित को अपनी बाहों में कस लिया जैसे  खोया हुआ बेटा फिर से पा लिया हो।

सुमन लता शर्मा, बूंदी ,राजस्थान,9414000102

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