कहानी संख्या -02,गोपालराम गहमरी कहानी प्रतियोगिता -2024,
रामलाल जी और उनकी धर्मपत्नी फूल देवी जिला कन्नौज फर्रुखाबाद से अजमेर आये थे। यहाँ लकड़ी का काम करके अपना जीवन गुजर करते थे । बाद मे कारखाने में काम मिल गया। पूरा महीना काम करने पर मात्र 150 रुपये मिलते थे। उसी पैसो से घर का खर्चा चलता था। वो समय भारत का अनमोल था। इंसान के लिए खाना और कमाना था। सब मेहनत करते थे, बुजुर्ग लोग कहते है, हमने जो पानी पिया है उसमें भी ताकत थी। आज का गेहूं, दाल, दूध सब में मिलावट है।हमारे ज़माने में एक रू किलो शुगर, चार आने किलो दूध, छह आने की नहाने का साबुन, चार आने का कपड़े धोने का साबुन, पूरे महीने के 70 रुपये का खर्च था। तिल्ली की दुकान से गेहू 40 रू का एक क्विंटल आ जाता था।सुबह 4:00 बजे उठ कर फूल देवी घर पर चक्की से गेहूं पीस लेती थी ।
नेहरू जी का समय था……………..फूल देवी के 16 बच्चों मे से दो पुत्र ही बचे थे। पुत्र सुरेश बड़े बेटे, जो कि सातवे महीने में ही जन्म हो गया था । बड़ी मन्नतों से पाल पोस कर बड़ा किया। मोहल्लों मे साफ सफाई करने वाली रानी जी से फूल देवी और उनके पति ने कहा था। मोहल्ले मे घूम कर सभी के घर से कपड़े लाओ । उन कपडों को सुरेश बेटे को पहनाया गया। रुई का बिस्तर था उसमें रखा जाता था, बड़ी मन्नतों से पाया था। कोई भी घर में आ जाए तो उनको नहीं दिखाते थे। घर के बुजुर्ग कहते थे बुरी आँखों से बचाओ। बाद में भगवान ने वापस सुनी और फिर से बेटे को जन्म दिया, पिता ने खुशियां मना कर कारखाने मे लड्डू खिलाए।
छोटे बेटे का नाम पिता ने रमेश रखा। दोनों बेटे माँ पिता के आज्ञाकारी थे। पूरे समाज मोहल्ले में राम, लक्ष्मण की जोड़ी थी। घर के सामने रामलाल जी के छोटे भाई ने शिव जी का मंदिर बन वाया था अपने माँ पिता की याद में। दोनों भाई प्रात: 4:00 बजे आरती करते, गायों भैस की सेवा करते, चारा देना, दूध निकालना घर के कामों को अपने हाथो से करना……………
आज से 50 साल पहले भारत में ये ही दिनचर्या रहती थी। मन्दिर के पास कुआ था वहीं सब नहा कर मंदिर में पूजा अर्चना करते माता पिता को चरण स्पर्श करते थे, घर से बाहर जाते समय माता पिता को चरण छू कर जाते थे। फूल देवी सुबह अपने घर परिवार को माखन डाल कर पराठे और दूध का नाश्ता करवाती थी। शाम को सभी घर के चबूतरा में चारपाई पर बैठते थे।भगवान ने छोटे बेटे बहू को उपहार दिया उनकी गोद में नन्ही परी को भेजा। प्यारी-सी बेटी के घर मे आने से खुशियां आयी थी, दादा दादी मम्मी पापा ,परिवार मे बड़ी दादी ने छत पर जा के थाली बजाई थी।
घर मे ताऊजी और पापा के जन्म के बाद लक्ष्मी आयी थी। घर मे हवन में पंडित जी ने नन्ही बिटिया का माधुरी नाम रखा। धीरे धीरे समय गुज़रता गया, माधुरी के जन्म दिन बनाने की तैयारियों से घर मे चहल पहल हो रही थी कि अचानक……….माधुरी को तेज बुखार आ गया, सारे घर ने खाना पीना बंद कर दिया।माधुरी ने नौ महीने में ही चलना शुरू कर दिया था। माँ की नौकरी सावित्री कॉलेज में थी। माधुरी को घर में प्यार से गुड्डी बोलते थे। अपने दादी दादा के साथ खेलती ,खाती ,खुश रहती थी।
माधुरी के बाबा जी साफा पहनते थे, किसी काम से बाहर गए थे। माधुरी को बुखार तेज था। नन्ही सी जान के सिर पर गीली पट्टी रखी, पर कोई फर्क नहीं। दादी ने घर पर ही डॉक्टर भट्टाचार्य जी को बुलाया था।डॉक्टर भी सिर पर साफा बाँध कर आए।
जैसे….ही माधुरी ने बुखार में डॉक्टर को देखा। एक दम से बाबा बोल उठी। उसे लगा बाबा आ गए। तेज बुखार में बच्चे अपने बाबा को पहचान जाते हैं…..जब बुखार नहीं उतरा ,माँ रोने लगी। तुरंत माधुरी को विक्टोरिया अस्पताल ले जाओ, दादी फूल देवी ने कहा। कार में बैठा कर गए। अस्पताल मे डॉक्टर ने देख कर दवा दी, घर ला कर माधुरी को दवा दी। माधुरी सो गई। बाद मे खड़ी नहीं हो पा रही थीं…….ओहो……भाग्य में क्या लिखा है घबराये हुए विक्टोरिया गये। डॉक्टर ने इतनी आसानी से कह दिया। पोलियो हो गया है , इसका अब चलना मुश्किल है……….भगवान से विनती ,मन्नत , पूजा अर्चना सभी लोग करने लगे ।हे भगवान मेरी बेटी पर रहम करो।कभी माता पिता जयपुर, दिल्ली जाते सब जगह निराशा हाथ लगती पता नहीं किस कर्म की सजा मिली है……………माँ का हृदय रोता था, किसी को अपना दुःख कैसे कहें, दादी फूल देवी बहुत प्यार से समझाती दुःख देने वाला जो है वहीं सब ठीक करेंगे माँ अपने मन को कैसे समझाये, सब संकट में थे…….डॉक्टर की सलाह थी जब पाँच साल की होगी तब दिल्ली मे पूरा इलाज होगा तब तक का समय बहुत कष्ट का रहा।…………….
पाँच साल तक माँ इंतजार करती रही कब बड़ी होगी, कब इसका इलाज होगा। कब मेरी बेटी चलेगी।माँ दुर्गा की पूजा करती थी, कोई मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजाघर नहीं छोड़ा।उस माँ को भगवान शक्ति दे रहे थे, परीक्षा ले रहे थे।नवरात्रों में व्रत करना ,घर मे पाठ हवन करवाना, दान करना।फूल देवी दादी घर पर ही कहानी, कविता सुनाती थी।……….
भगवान ने माधुरी को सुंदरता, बुद्धिमत्ता, जागरुकता, दया ,करुना सबसे परिपूर्ण बनाया था।अब सब्र खत्म होने वाला था। अब दिल्ली मे उसके पैर का एक साँचा तैयार हो रहा था, जिसको पहन कर चल सके ।माधुरी बहुत खुश थी, में भी अब स्कूल जाऊँगी, चलूँगी। माधुरी की खुशी देख सब की आंखे भर जाती, पर उसके सामने कोई रोता नहीं था।………….सभी अभिप्रेरणा के साथ उसको खुश रखते थे। दिल्ली से नाप का पैर बना।भगवान को धन्यवाद किया, बनाने वाला भी वो बिगाड़ने वाला भी वो, शत शत नमन ………
स्कूल में माइक पर गाने, गाती स्पीच देती, फ़ूलों की बारिश होती शुरू से अव्वल आना। अपने घर का नाम रोशन कर रही थी।जो भी देखता बस देखता रह जाता। सुंदरता ,मीठी बोली, मुस्कुराना सबको प्यार देना। जब बड़ी हुई विवाह के लिए देवता स्वरूप पति मिला। एक बेटा है, एक बिटिया है। भगवान ने सब कुछ दे दिया आज माधुरी दादी, नानी बन गई, सबको खुश रखती है, भगवान ने जैसा उनकी रक्षा करी ,सभी की करो माधुरी के माँ, पिता अब नहीं है पर भगवान उनके साथ है। धन्यवाद प्रभु ।
पुष्पा शर्मा राजस्थान अजमेर 9414611430