कहानी संख्या -04,गोपालराम गहमरी कहानी प्रतियोगिता -2024,
अभी सुबह के सात ही तो बजे थे लेकिन सूरज अपनी पूरी तरुणायी के साथ आसमान में अपनी प्रचंडता का एहसास करा रहा था। बैलों को चारा डालते हुए गोविंद विचारों में खोया हुआ था कि सोहन की मोटरसाइकिल आकर खेत की मेड़ पर रुकी। आओ सोहन भैया ,उसने मुस्कुराते हुए सोहन का स्वागत किया। फिर क्या सोचा तुमने? किस बारे में? गोपाल ने अनजान बनते हुए प्रश्न किया । देखो गोपाल,इससे अच्छी ऑफर तुम्हें नहीं मिलेगी। कॉलोनाइजर खेत का एक करोड़ दे रहा है ।तू जिंदगी भर बैठ कर खाएगा, फिर लड़के को भी तो आगे पढ़ना है । इस खेती में क्या धरा है, सुबह से शाम मेहनत ,कभी बरसात हुई ,कभी नहीं। फसल ठीक से आती नहीं। वह तो ठीक है पर पिताजी मानेंगे नहीं। तो उन्हें मना ,वह तो पुराने जमाने के हो गए ,उन्हें तो दो रोटी से मतलब होना चाहिए, मुझे देख मैं खेत बेचकर कितना सुखी हो गया । पक्का मकान ,गाड़ी सब हो गया, लड़के को दुकान डलवा दी। ठीक है मैं शाम को पिताजी से बात करता हूं।
शाम को गोपाल घर पहुंचा ,पिताजी कच्चे आंगन में बैठे चाय पी रहे थे। विनय की मां ने उसे भी चाय ला कर दी ।चाय पीते हुए उसने बात शुरू की। दादा (पिताजी )इस साल अपनी फसल को पानी कम मिला ,गेहूं बिल्कुल सूख गए। यह सब तो खेती में चलता ही रहता है, एक होल और करवा ले पानी निकल आएगा। पर दादा उसके लिए भी तो पैसा चाहिए ,खेत में इस साल भी ट्रैक्टर मजदूर में जितना पैसा लगाया उतना तो निकला नहीं और तो और विनय भी इंदौर पढ़ने की जिद कर रहा है। तो उसे समझा, यही शहर के कॉलेज में दाखिल कर दे ।इंदौर पढ़ना जरूरी तो नहीं और देख गांव में खेत बेचने की चर्चा चल रही है पर यह बाप दादा की जमीन अपनी मां है अन्नदाता उसे बेचने की मत सोच। सोहन निरुत्तर हो गया। मां के न रहने से वह पिता से बात करने लगा था पर बहस उसने कभी नहीं की। आज भी दोनों बेटियों की शादी ब्याह ,जमीन जायदाद में पिता का निर्णय सर्वोपरि था। लेकिन विनय को वह कैसे समझाएं, हायर सेकेंडरी में पूरी स्कूल में उसने टॉप किया था। आगे वह इंदौर के इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लेना चाहता था, पढ़ाई में वह अच्छा था इसलिए किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन का सपना गलत नहीं था परंतु उसकी फीस हजारों में थी, अभी वह बेटियों की शादी का कर्ज भी नहीं उतार पाया था। अंदर विनय की मां तनी हुई बैठी थी। क्या हुआ तुम्हें ?आज तो मेरी खैर नहीं लग रही । गोविंद ने मुस्कुराते हुए पूछा। जैसे तुम्हें मालूम ही नहीं ,विनय की मां दीपा चिढ़कर बोली थी। आज छोरा ने रोटी नहीं खाई तुम्हें मालूम है मैंने अपने लिए कभी कुछ नहीं मांगा ।इतनी दूर मैं भी भेजना नहीं चाहती हूं पर वह आगे पढ़ना चाहता है तो क्या बुरा है ,उसके दोस्त भी तो जा रहे हैं। ठीक है मैं कुछ ना कुछ व्यवस्था करता हूं… गोविंद ने बात समाप्त करते हुए कहा।
दूसरे दिन सोहन घर आ धमका। गोविंद ने आंख के इशारे से उसे बाहर आने का इशारा किया। चल तुम्हें घुमा के लाऊं,सोहन ने मोटरसाइकिल मोढ़ते हुए कहा। गोविंद पीछे बैठ गया ,गाड़ी वहां जाकर रुकी जहां सोहन और उसके भाई का खेत हुआ करता था। उस जगह पर एक आलीशान इमारत आकार ले रही थी। काफी बड़ा सीमेंट कंक्रीट से घिरा कैंपस था। सब तरफ जैसे सीमेंट के जंगल उग आए थे। गोविंद देखो यहां कितनी बड़ी फैक्ट्री डाली जा रही है ।अपने गांव के कई लोगों को रोजगार मिल जाएगा। गोविंद खामोश रहा, समझ रहा था की खेती के मनचाहे दाम मिल जाने से सोहन बहुत खुश था और वह कॉलोनाइजर का कमीशन एजेंट भी था। देखिए पड़ोस वाला खेत बिक चुका है। यहां कॉलोनी कटेगी ,एक से एक सुविधा कैंपस में मिलेगी । मंदिर, स्विमिंग पूल ,बच्चो का गार्डन,स्कूल और वह क्या कहते हैं क्लब ।
शहर के लोगों को एकांत जगह बहुत पसंद आती है।सोहन हैरानी से देख रहा था। कुछ ही दिनों में अन्नदाता धरती मां का गांव से जैसे नामोनिशान मिटने जा रहा है। हर तरफ सीमेंट कांक्रीट के जंगल आकर ले रहे थे। और देख मैंने व्हाइट मारुति भी बुक कर दी है। सोहन ने मोबाइल में फोटो दिखाते हुए कहा। अब गोविंद प्रभावित दिखाई दिया। खेत पर जाते हुए वह विचारों के झंझावात मैं डूब उतर रहा था। उधर गोविंद के दादा खेत पर पहुंच चुके थे ।सोहन के भाई ने उन्हें सब बता दिया था। जानते थे सोहन उनसे नहीं कह पा रहा। उन्होंने बड़ी हसरत से खेत के किनारे लगे हुए आम के पेड़ को देखा जो फलों से लदा हुआ था । इसी में झूला बांधकर गोविंद की दोनों बेटियां झूला करती थी। गोविंद के बेटे को कंधे पर बैठाकर खेत के पास तालाब तक लाते थे ।वह जब तक नहाता, वहीं खड़े रहते थे। उसी पोते को उन्होंने किसी को डांटना नहीं दिया और वह आज पढ़ना चाहता है ।
इधर पोते और इधर बाप दादा के खेत का मोह उन्हें विचलित कर रहा था। आखिरकार उन्होंने अपनी कशमकश पर विजय पाली थी। गोविंद!! उन्होंने आवाज दी..जी दादा..। बेटा मैं कितने दिन का हूं और विनय के सामने भविष्य खड़ा है। कल तू उस कॉलोनी वाले को हां कर दे, मैं दस्तखत कर देता हूं। नहीं दादा, खेत नहीं बिकेगा, मैं इसी फैक्ट्री में काम कर लूंगा और विनय की मां खेत संभाल लेगी और अपनी रकम बेच देगी। विनय की पढ़ाई पर आंच नहीं आएगी। यह जमीन मेरी मां है इसका सौदा नहीं होगा। दोनों घर पहुंचे, घर पर विनय मौजूद था। उसके चेहरे पर मुस्कान थी ,पिता को देखते ही बोला…पिताजी मैने शहर के कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का इंतजाम कर लिया है। वह अपने गांव के ही है, वह मुझे एडवांस देने को तैयार है। इस तरह फीस का इंतजाम हो जाएगा। मैं किसान का बेटा हूं ,मेहनत से नहीं घबराता। अब हमारी जमीन का सौदा नहीं होगा, तीनों की आंखों से खुशी के आंसू छलक उठे थे।
साधना गुप्ता पता:- 57,मृदुल विहार,बालगढ़ रोड,देवास(मध्य प्रदेश) मोबाइल नंबर :- 94248-99323सुजाता
Bahut hi sundar kahani👏🏼👏🏼👏🏼