कहानी संख्या 05 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024
यमराज जी सोनी की आत्मा को साथ लिए अपनी ही धुन में यमलोक की तरफ चले जा रहे थे । तभी उन्हें अपने पीछे चलने वाली आत्मा की रोने की आवाज सुनाई दी । वो ठिठक कर रुक गये , “क्या हुआ आत्मे ?क्यों रो रही हो ? अब तो तुम सभी दुनियादारी के दु:ख दर्द , पीड़ा से मुक्त हो गयी हो , सब पीछे छोड़ आई हो , फिर ये क्रन्दन क्यों ? ” यमराज ने ममतामई आवाज़ में सोनी से पूछा। अब सोनी की आत्मा का विलाप पहले से भी तेज़ हो गया। उसको रोते देख यमराज कुछ परेशान हो गये और पूछा ,” हे देवी ,क्या चाहती हो ? शायद तुम्हें दुःख हो रहा कि तुमने जिस मानव पर आँख मूँदकर सारी दुनिया को एक किनारे रख कर ,भरोसा करके उसके साथ बिन फेरे , हम तेरे बनकर रहने लगी , उसी ने तुम्हें इतनी बेहरमी से काट – काटकर, आरी से न जाने कितने टुकड़ों में काट डाला , मिक्सी में पीस डाला , कुकर में उवाल डाला , कुत्तों को खिला दिया , और इंसान की इतनी बेहरम देखकर तो मेरा कलेजा भी मुँह को आ गया । तुम्हें यही सब सोचकर रोना आ रहा है न?” तभी तपाक से सोनी बोली “अरे – अरे नहीं भगवन , ऐसा नहीं है, मुझसे ही कोई गलती हो गई होगी, वह तो लाखों में एक था , मेरी ही मेरी ही किसी बात पर उसे इतना गुस्सा आ गया होगा और गुस्से में तो इंसान अंधा हो जाता है ना । ” उसकी ये बात सुनकर यमराज की आंखें फटी की फटी रह गई और सोचने लगे , हां सही में, वह लाखों में ही तो एक था तभी तो तुम जैसी मासूम को इतनी बेरहमी से काट दिया ।
तुम्हारी दर्द से भरी चीख़ों से भी उसका हाथ नहीं कांपा। तुम्हें इस तरह से काट – काट कर कुत्तों को खिला दिया । मैंने तो सुना था कि मृत लोक में प्यार अंधा होता है ,लेकिन यहां तो गुस्से में इंसान इतना अंधा हो जाता है कि दिल के टुकड़े हजार लिए,कोई यहां फेंका तो कोई वहां फेंका। और विडम्बना तो देखो, इस मासूम को उस दानव पर गुस्सा नहीं आ रहा। यमराज भी बहुत भोले थे, और कोमल हृदय वाले भी , उनको लगने लगा जैसे कि कहीं वह ही गलत तो नहीं सोच रहे हैं। उन्होंने ख़ुद को दिलासा दिया कि मनुष्य लोक में कुछ ऐसा ही सिस्टम होगा शायद। फिर उन्होंने सोनी से पूछा , “अच्छा तो तुम्हें अपने माता-पिता के बर्ताव पर रोना आ रहा है क्योंकि वह तो तुम्हें एक एक कांटा भी नहीं चुभने देते थे ।तुम अपने पापा की परी थीं। तुम्हारी एक मुस्कान से उनकी दुनिया खिल उठती थी। एक बार तुम्हें याद है जब तुमसे एक कांच की शीशी टूट गई थी, तब तुम्हारे पिता कैसे दौड़ते हुए तुम्हें बचाने के लिए आए थे कि कहीं तुम अपने आपको उस कांच से चोट ना पहुंचा लो। और वही कांच का टुकड़ा उनके पैर को चीरता चला गया। कितना रक्त बहा उनका, कितनी पीड़ा हुई उन्हें।परंतु उन्हें इस बात की खुशी थी कि तुम्हें कहीं चोट नहीं लगी। और अपनी माता की तो तुम प्राण थीं।” तभी तपाक से सोनी बीच में ही बोली,”यदि मैं इतनी ही लाडली थी तो मानव का हमेशा विरोध क्यों किया वह मान जाते तो हमें यूं छिप छिपकर नहीं रहना पड़ता । और सभी परिवार वाले साथ देते तो मानव कभी ऐसा नहीं करता उसे डर होता कि कुछ मेरे साथ वह गलत करेगा तो मेरा पूरा परिवार उसको सबक सिखा देगा।”
यमराज सोनी की बात सुनकर फिर से एक बार सोचने को मजबूर हो गए, वह बोले “अरे पगली! माता-पिता की अनुभवी आंखों ने मानव के अंदर के जानवर को देख लिया होगा न। वह अपनी लाडली को उस दानव को कैसे सौंप सकते थे। लेकिन तुम्हारी आंखों पर तो पता नहीं कौन सा पर्दा पड़ा था कि माता-पिता के बरसों के लाड़ -प्यार और सुरक्षा के सभी पर्दों के तार -तार कर इस दानव के साथ सारी दुनिया से अलग एक अजनबी दुनिया, में अंधेरी दुनिया में अपने आपको गुम कर लिया।”सोनी अभी भी रोए ही जा रही थी ,लग रहा था वह दर्द से कराह रही थी। जैसे कि उसके दिल से थोड़ा-थोड़ा खून अभी भी रिस रहा हो। उसको देखकर यमराज ने महसूस किया कि जैसे उनकी आंखें भी नम हो गई है । फिर वह सोचने लगे कि आजकल की संतान को क्या हो गया है,कौन सी अंधी दौड़ में शामिल है यह सभी ,माता-पिता का हृदय तो वही है चाहे पशु पक्षी हों या इंसान। उनका हृदय तो हमेशा अपनी संतान की सुरक्षा और खुशी ही चाहता है। माता माता-पिता ने अपने जीवन का एक लंबा सफर तय किया होता है और उनकी पारखी नजरों से कुछ भी छिपना,बचना कठिन होता है। और फिर कुछ जंगली जानवरों की वजह से यह दुनिया भी तो एक जंगल जैसी ही है। हर तरफ ये जानवर , बेहरूपिए बनकर,अपने शिकार की तलाश में घात लगाए बैठे रहते हैं।इनके लिए उन पापा की परियों का शिकार करना आसान हो जाता है जो अपने माता-पिता की दी गई सुरक्षा कवच को दरकिनार कर उनकी पकड़ को जकड़ समझ, झटक कर बिंदास निकल पड़ती हैं । तथा कभी उनसे छिपते छिपाते अपने सपनों के संसार में खो जाती हैं, और फिर इन बहरूपियों के जाल में फंस जाती हैं और फ़िर अपनी जान से जाती हैं।
अरे नादानों! अपने सपनों को पूरा करो लेकिन अपने परिवार के संस्कारों धर्म सभ्यता , और मर्यादा को मत भूलो।अपने परिवार और माता-पिता की सुनो और समझो । यदि तुम्हें कुछ गलत लगता है कि तुम्हारे माता-पिता सही नहीं हैं तो उन्हें आराम से समझाया जा सकता है लेकिन घर मत त्यागो । परिवार एक संगठन है और परिवार साथ है तो तुम्हारा कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता। इसीलिए बच्चो, संगठित रहो और सुरक्षित रहो। कुछ पल के लिए यमराज भी भूल गए कि वह यम हैं या मनुष्य तभी खुद को अपने यमलोक के मुख्य द्वार पर पाकर खुद को संभाला और सोनी की आत्मा को अपने पीछे आने की आज्ञा दी।
अलका गुप्ता “अक्की” नई दिल्ली89204 25146