Breaking News

डा राजमती की कहानी आखिर कब तक

कहानी संख्‍या -07,गोपालराम गहमरी कहानी प्रतियोगिता -2024,
चारों ओर आसमान में काली घटाऐ छा रही थी।लगता था जैसे अभी जोरदार बारिश होगी ,और धरा पर बूँद बरसा उसे रुखे सुखे मन को तृप्त कर देगी।बहुत दिनों से गुम हो गई शीतलता,उसे शीतलता प्रदान करेगी।पर…..हमेशा की तरह आज भी बादल बिन बरसे निकल गए।      इसी मनःस्थिति से राज गुजर रही थी।मन की वेदना ,पीड़ा जो वो बरसों से झेल रही थी ,उस पीड़ा को बारिश की बूँदों के साथ बहाना चाहती थी ।पर…हर बार मन बादलों की तरह उसे दगा देख जाता था।

‘आखिर क्यों जी रही हूँ,और किसके लिये जाऊँ,कौन है मेरा यहाँ,” यही सोच सोचकर दुःखी होती रहती थी । कुछ दिनो पहले की ही तो बात थी। वरूण ने उसको कितनी खरी खोटी सुनाई थी, वो भी अकेले में नही, सबके सामने सुनाई थी । वरूण राज की इसी तरह दूसरो के बहकावे में आकर राज पर मानसिक, शारीरिक अत्याचार करता था  कभी राज से आकर नही पूछता कि तूने खाना खाया की नही।बस रात को मेहमान की तरह घर आता और सो जाता।राज अपने दिल की बात उसके साथ साझा करने की कोशिश करती ,उसके मन में जो पीड़ा का अथाह समन्दर हिलोरे मार रहा था,उसे बाहर निकालने का प्रयास करती। पर वहा उसकी कोई सुनने वाला ही था। राज के मन का अन्तर्द्वन्द्व, उसके हालातों का गवाह बन खड़ा था। वो सोचती ये घर छोड़कर ही चली जाऊं। फिर मन में विचार आता कि मै कहाँ जाऊंगी ,माँ बाप तो रहे नही ,यह सोच वापस अपना विचार बदल लेती। सारे दिन अश्को के सैलाब में डूबी रहती। किस्से कहे दिल की पीडा ।उसे लगता लोग उसकी मजाक बनायेंगे, इसलिए खामोशी से सब सहन करती रही ।

आज तो घर वालों ने अपनी सारी सीमाए ही पार कर दी । राज की जेठानी की बहू के बच्चा होने वाला था । घर वालो ने उसको शायद यह  सूचना देना जरुरी नही समझा था ।वरुण के पास फोन आया” वरुण भैया शैफाली को अस्पताल ले जाना है ,उसके लेबर पेन शुरू हो गया है ।”  फोन आते ही वरूण राज को बताए बिना उनको ले  घर से निकल गया। राज खिडकी मे से वरुण को उन्हें गाड़ी में ले जाते हुए देख रही थी। जब राज को बुखार आता था ,कभी बीमार होती तो घर वाले तो क्या वरुण भी उससे नही पूछता, तुम्हारी तबीयत कैसी है।….. और इन लोगो के लिए हर वक्त तैयार रहता है ।” आखिर मुझमें ऐसी क्या कमी है ,जो सभी का बर्ताव मेरे साथ रुखा है”- यह सोचती हुई बिस्तर पर आ तकिए के अंदर सिर छिपा जोर जोर से रोने लगी ।  अरे आंसू बहाने से क्या होगा ,कुछ तो कदम उठाना ही पडेगा। यह सोच वह उठकर बाहर गई ,अब जिन्दगी के साथ कोई समझौता नही करुँगी ।अपने हिसाब से जिन्दगी जीने की कोशिश करूंगी।…….पर हालातों के भंवर में फंसी राज फिर कमजोर पड गई। 

तभी वरूण को घर आते देखा ,उसे लगा वो बतायेगा ,उसे की लडका हुआ कि लड़की……वो तो आया और बच्चे के कपड़े और गुड का पानी लेकर वापस अस्पताल चला गया। तभी दौडी दौडी पड़ोसन आई “बोली मुबारक हो आप के

यहाँ लडका हुआ है ।” सुनकर खुशी तो बहुत हुई पर लगा काश घर वालों के मुँह से यह खबर सुनती तो ज्यादा अच्छा लगता।” खैर….. मै अपेक्षा रखूं तो भी किससे रखूं। जब अपना पति अपनी पत्नी की इज्ज़त नही करता तो घर वाले खाक मेरी इज्ज़त करेंगे।” और राज मनमसोस कर रह गई।     शाम को वरूण जब घर आया तो राज बोली- “वरूण डिलीवरी का काम तो औरतों का है तुम तो सुबह से ही वहाँ लगे हुए हो और कम से कम भाभी जी का तो एक फोन आता ना मेरे पास की लडका हुआ है ,तुम घर से ये ये सामान भेज देना। पर यह कहना उन्होंने उचित नही समझा।”    तभी झल्लाते हुए वरूण बोला ” मै तो तुम दोनो औरतों के बीच में फंस गया हूँ।”  “दोनों औरतें , तुम्हारी भाभी तुम्हारी औरत कब हो गई। ” राज गुस्से में बोली  । राज का चेहरा क्रोध से तमतमा रहा था । राज ने वरुण को बहुत सुनाया और सुनाती भी क्यों नहीं।उसकी भाभी ने राज की जिन्दगी हराम कर रखी थी ।पति उसका पर…. उसकी भाभी उसके पति पर अधिकार जमाये बैठी थी ।कब तक आखिर कब तक उधार की जिन्दगी जीने पर राज मजबूर रहती  । उसने अब इस एक फैसला लेने की ठान ली।वरूण से बोली- ” मुझे अब तुम्हारे साथ नही रहना ।वैसे भी तुम तो मुझे शायद पसंद ही नही करते हो ।सारे दिन अपनी भाभी के कामों में ही व्यस्त रहते हो। मुझसे ज्यादा ध्यान केंद्रित आपका तो उन पर ही रहता है।”

  “नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीहै तुम तो गलत समझ रही हो ,” वरूण तपाक से बोला।   “मै गलत समझ रही हूं,अरे वरूण मैं सही समझ रही हूँ। मुझे पता है तुम्हारी आदत,मै बस मूक होकर देखती रहूं, और तुम उन पर अपना समय व्यतीत करते रहो।कभी मेरे लिये किया तुम ने।पड़ी रहती हूँ घर के कोने में कभी तुम ने मेरे बारे में,मै क्या चाहती हूँ,सोचा है ,कदापि नही। ” राज बोली । यह सुनकर वरूण ने क्रोध की सीमा ही लाँघ दी,पास में पडे पीतल के भारी गुलदस्ते को लेकर राज को मारने दौडा। तभी राज का दस साल का बेटा माँ के सामने आ गया।माँ को जैसे तैसे बचा लिया ,गुलदस्ता खिड़की के कांच से इतना तेज टकराया कि उसके टुकड़े टुकड़े हो गए। राज और उसका बेटा जोर जोर से रोने लगे। पर ….उनकी आवाज सुन कर घर से कोई उन्हें बचाने नहीं आया।  आज राज के जीवन में एक ऐसा मोड़ आया कि उसने अपनी ज़िन्दगी का सही फैसला लेना उचित समझा। वह वरूण का घर हमेशा के लिए छोड़कर अपने बच्चे के साथ दूसरे शहर की ओर पलायन कर गई। एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत करने,नई राह पर चल पडी।जहाँ सिर्फ वो थी ,सिर्फ वो थी ,और उसका अपना अस्तित्व और स्वाभिमान था। 

डा राजमती पोखरना सुराना, भीलवाड़ा राजस्थान मोबाइल 8104639622

About sahityasaroj1@gmail.com

Check Also

झूला का रहस्य-

झूला का रहस्य-

गाँव के पास एक बहुत पुराना पीपल का पेड़ था और उस पर एक झूला …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *