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यशोधरा की कहानी चेहरे

कहानी संख्‍या -14,गोपालराम गहमरी कहानी प्रतियोगिता -2024,

राम! राम! मैडम जी!” “राम!राम!”। रुक्मा की आवाज गदगद कर गई, आँखों में एक चमक आ गई। रुक्मा ही वह धुरी थी जिसने घर की साफ-सफाई आदि का सारा जिम्मा संभाला हुआ था। चार दिन से गायब थी!चार दिन! चार साल सम कितनी मुश्किल से निकले।काम कर कर के कमर टूट गई।और बर्तन मांज- मांज कर कंधे के दर्द ने सिर उठा लिया। दवाइयाँ लेती रही और काम-काज चलता रहा । आज रुकमा का आगमन बड़ी सुखद अनुभूति!  “कहाँ रह गई थी? फोन भी नहीं लग रहा था ।परेशान हो गई रे !अब तो पहले से काम भी.नहीं होता मुझसे !” “क्या करूँ मैडम जी कभी-कभी तो छुट्टी लेनी ही पड़ती है न। बेटी की शादी तय हो गई है, सो.…” “किसकी ?” ” रधिया की?”है । रुकमा को काम मेरे घर काम करते करीब बीस साल हो गए ।वह घर की सदस्य ही हो गई है।उसकी बेटी को मैंने अपनी बेटी  मिनी के साथ बढ़ते देखा है ।वही प्रेम, स्नेह,दुलार, ममता रुकमा की बेटी रधिया को भी दिया है। रुकमा भले

ही रहन-सहन मे फूहड़ हो पर रधिया बड़े सलीके वाली थी।  और किशोरी रधिया तो रूप और गुण की खान है ।सांचे में ढली कद काठी! तीखे नैन- नक्श और लावण्यमय सांवला रंग!उस मृगनयनी को देख नेत्र स्वतः  उसकी ओर पलट जाते।उसकी कोयल सी मीठी स्वर लहरी कानों में मिश्री घोल देती। “रुक्मा! रुक्मा!”मैं खीजते हुए बोली।

रुक्मा कुछ कहती उससे पहले ही गोटे सजा लाल दुपट्टा ओढ़े रधिया हिरणी सी कुलांचे भरती हुई, खिलखिलाते हुए बोली -आंटी देखो मैं कैसी लग रही हूँ?मैं हतप्रभ सी आंखें फाड़फाड़़ कर उसे देख रही थी।नन्हीं रधिया गुड्डे-गुड़िया से खेलने की उम्र में ही रधिया अपनी गुड़िया सी सजकर जीवन में गुड्डे गुड़िया का खेल खेलने को तत्पर थी।  एक  खिली- खिली मुस्कान! मानो धूप का एक टुकड़ा खिला हो!मैं हँसूं या रुक्मा को इस कृत्य के लिए दंडित करूँ ,कुछ समझ नहीं आ रहा था।  तभी माँ ! माँ !चिल्लाती  मिनी मुझसे आकर लिपट गई। माँ !माँ !मुझे इंग्लिश में हाईएस्ट मार्क्स मिले हैं। टीचर ने मेरे लिए क्लास में क्लैपिंग कराई।  वेरी गुड बेटा !मैंने उसका माथा चूम लिया। चलो अब जल्दी से  फ्रैश होकर,चेंज करके खाना खाओ।बस्ता कंधे पर टांगे मिनी उछलती -कूदती अंदर चली गई।   मैं समव्यस्क मिनी की तुलना न चाहते हुए भी रधिया से करने लगी ।

 आंटी!आंटी! मेरे ब्याह में आओगी ना ।माँ मुझे सुंदर सा लाल घेरदार घाघरा दिलाएगी और पाजेब, बैंदा,नथ,कंगना और ढेर सारे गहने दिलाएगी। अच्छा-अच्छा खाना बनेगा। पूरियाँ छनेंगी, लड्डू बनेंगे ,नाच गाना होगा और जैसे गुड्डे गुड़िया की शादी रचाते हैं न वैसे ही….वह गुड्डे गुड़ियों की दुनिया में खो गई। और अपने ही संसार में डूबी बन्नी गा रही थी… सजन जी मुंबई जाना जी, वहां से हरवा लाना जी।  शायद से उसके लिए शादी का यही अर्थ था ।मैडम जी शादी के लिए एडवांस दे दोगी ?दस हजार रुपए। मैं  मूक सी खड़ी रही।ब्याह है तो पैसा तो चाहिए। लड़के का अपना काम है। फर्नीचर बनाता है ।अपना पक्का घर है ,बस एक पैर से थोड़ा लचक कर चलता है ।अपनी रधिया से बस दस साल बड़ा है। अच्छा रिश्ता ,अच्छा घर मिल गया तो बस तय कर दिया ।    अच्छा घर!अच्छा रिश्ता !मुँह कसैला सा हो गया ।शायद निबोरी की कड़वाहट से ज्यादा कड़वाहट मेरे मुंह में घुल गई और बुदबुदाई… रुकमा तूने अच्छा नहीं किया ।फूल सी बच्ची को पढ़ा लिखा लेती।अपने पैरों पर खड़ी हो जाती ।तूने अच्छा नहीं किया ।

रधिया गुड़िया की चोटी गूंधते ,गाना गा रही थी …सजन जी  बंबई जाना जी !वहाँ से कंगना लाना जी…।  तभी फोन की घंटी बजी- हेलो! दूसरी ओर से रुचिता का रुंधा-रुंधा सा स्वर (रुचिता मेरी पर सखी नमिता की बेटी रुचि)आंटी मुझे शादी नहीं करनी पर पापा-मम्मी मानते ही नहीं। हाल ही

में उसकी शादी उसी शहर में समृद्ध परिवार में एक इंजीनियर लड़के  से तय हुई थी ।ससुराल वाले दकियानूसी थे।बात- बात पर अभी से टोका -टाकी करने लगे थे ।रुचि थक चुकी थी।रोज-रोज की चिकचिक… यह मत पहनो, ऐसे मत बोला करो, तुमने यह क्यों खरीदा ?कितना खर्चा कर दिया! देख कर खर्चा किया करो खरीदने से पहले दीदी से पूछा क्यों नहीं? रुचिका का फूल सा चेहरा मुरझा गया था।मुझे भी उसकी चिंता रहने लगी थी। नमिता से बात भी की पर उसने उल्टा मुझे ही चार बात सुना दीं- “तुम्हें कुछ भी नहीं पता अभी… अच्छा लड़का ढूंढने में जूते घिस जाते हैं। बड़ी मुश्किल से तो ….।” उसके चेहरे पर भी लड़की की माँ की निरीहता झाँकने लगी।मैंने भी अपने होठ सी लिए। आखिर उनका अपने परिवार का मामला था।

रुचिता का रुंधा-रुंधा स्वर…”आंटी आप सुन रही हैं न!   मम्मी -पापा भी मेरी बात ही नहीं सुनते।कहते हैं -रोका हो गया,कार्ड छप गए हैं ,दूर वालों को तो कार्ड भेज भी दिए,शादी कर लो।बाद में देखेंगे।आंटी मै घुट -घुट कर मर जाऊंगी।” फ़ोन पर सिर्फ  सुबकने  की आवाज़! कहीं मैं भी घुट रही थी ।और एक ‘आह’ के साथ मैंने फोन रख दिया।  विचार मग्न नजरें छत पर टिक गईं ,जहाँ शनैः-शनैः तीन चेहरे उभर आए…रधिया ,रुचिका और….मिनी।  और फिर सभी चेहरे गडमड हो गए…. सिर्फ एक चेहरा सामाजिक मर्यादा और सम्मान की वेदी पर एक आहुति! 

यशोधरा भटनागर,देवास,मध्यप्रदेश 94253 06554

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