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विजय शंकर की कहानी स्वप्नावस्था

कहानी संख्‍या -15, गोपालराम गहमरी कहानी प्रतियोगिता -2024,

‘उफ़,ऐसी गरमी!’ पेड़ की छाँव में पसीने से लथपथ पसरकर बैठी हुई प्रौढ़ा महिला ने बगल बैठी नवोढ़ा महिला की ओर भेदभरी निगाह से देखा।नवोढ़ा जो उसके बगल बैठी अपने छोटे बच्चे की चंचलता में खोई हुई थी,उसने मुस्कुरा भर दिया।दोनों एक दूसरे के मन की बात ताड़ गई थीं लेकिन क्या कहें,कुछ समझ नहीं पा रही थीं।दोनों ही मौन अपनी-अपनी स्थिति पर निढाल होकर विचार कर रही थीं।दोनों के बटुए खाली थे।घर लगभग दस किलोमीटर दूर था।बच्चा जिद करके उनके साथ हो लिया था।दोपहरी में दस कदम पैदल चलना दूभर था,ऐसी स्थिति में बच्चे को गोद में उठाकर चिलचिलाती धूप में कैसे जाया जाए!

प्रौढ़ा महिला की स्थिति और दयनीय थी।शरीर का वजन भी अधिक था।रात में देर तक जागने के कारण सुस्ती भी थी।जागने का विशेष कारण था।खाते में पैसे आनेवाले थे और क्या-क्या खरीदना है,यही सोचते-सोचते काफी देर हो गई थी।एक बार सूची बनती दूसरी बार उसमें बदलाव हो जाता।अलसुबह घर से कुछ खा पीकर एक बार के किराए भर की रकम लेकर निकली थी।निराशा और अवसाद के कारण उसकी आँखें झपकने लगी थीं।एक-एक कर विगत दिनों की घटनाएँ स्वप्नवत् उसे मनोमस्तिष्क को तंद्रिल करने लगीं।उसने देखा कि जब वह बगल के टोले में गई थी तो टोले की लगभग सभी औरतें आकर उसके पास बैठ गई थीं।पहले सबने अपने-अपने घर की दशा,आमदनी, बच्चों की बीमारी आदि की चर्चा किया।कुछ ने मँहगाई का रोना रोया और कुछ बुजुर्ग औरतों ने महीने में मिलनेवाले राशन, मुफ्त बिजली,और आसानी से मिलनेवाले गैस सिलिंडर की भी चर्चा की।कुछ ने शौचालय और आवास की भी बात किया और बताया कि बिना घूस-पाती के उनका काम अच्छे ढंग से हुआ।कुछ बूढ़ी औरतों ने वृद्धावस्था पेंशन का भी जिक्र किया।

रामरती ने बताया था कि किस तरह दसियों साल पहले उसने कतरब्योंत करके बच्चों की जिद पूरी करने के लिए टीवी खरीदा था।दूसरे ही दिन ट्रांसफार्मर जल गया था।पूरा एक महीना लगा था दूसरा ट्रांसफार्मर लगने में।वह भी तब आया था जब गाँववालों ने चंदा करके पाँच हजार रुपये इकट्ठा किया और बाअदब बिजली विभाग के कर्मचारियों को समर्पित किया।गाँव के चौधरी ने अपने ट्रैक्टर से जले हुए ट्रांसफार्मर को जिले में पहुँचाया था और चार पाँच लोगों के साथ उसके मरम्मत हो जाने पर गाँव लेकर आए थे।एक महीने बिजली न आने से बहुतों की गन्ने की फसल सूख गई थी।जिस दिन ट्रांसफार्मर लगा और बिजली आई उसके दूसरे दिन गाँव में सामूहिक भोज हुआ था।लोगों ने टीवी देखा था, ट्यूबवेल पर नहानेवालों की भीड़ देखकर किसी स्नान पर्व की याद आ रही थी।सुभागी ने कहा कि बिजली कुछ ही घंटे आती थी और उसके फिर आने का कोई तय समय नहीं था।एक स्कूली लड़की ने कहा तब उतनी बिजली का उत्पादन ही नहीं होता था।बोर्ड परीक्षा के समय घोषणा होती थी कि बिजली की सप्लाई की जाएगी लेकिन एकाध दिन के बाद ऐसा हो नहीं पाता था।

तरह-तरह की चर्चाओं के बीच बात चुनाव पर आ गई।औरतें मिलनेवाली सहूलियतों का बखान कर रही थीं कि आगंतुक महिला ने खटाखट की बात छेड़ दिया।उसने बताया कि एक पार्टी को वोट देते ही दूसरे दिन वोटर के खाते में खटाखट एक मोटी रकम आ जाएगी और ऐसा हर महीने होता रहेगा।महिलाओं ने उसकी बात पर गौर किया और कहा कि यह तो बहुत अच्छा है।आखिर वोट देने के बाद वोटर को कौन पूछता है!नेता लोग फिर पाँच साल बाद ही तो गाँव में दर्शन देते हैं।यह सुनकर कुछ महिलाओं ने ऐसी तमाम योजनाओं का जिक्र भी किया जिनमें नियमित रूप से धनराशि खाते में आती रही है किंतु खटाखट की चकाचौंध कुछ महिलाओं पर भारी पड़ती दिखाई देने लगी।जितने मुँह उतनी बातें।समय भी बहुत अधिक हो गया था।इसके पूर्व कि बैठकी का विसर्जन होता मोबाइल नंबरों का आदान प्रदान हुआ और सब अपने अपने घर को चल पड़ीं।

घर में पहुँचकर गृहस्थी का जंजाल सिर पर सवार हो गया।सब खाने खिलाने में लग गईं और जब सारे काम निपटाकर बिस्तर पर गईं तो खटाखट का शब्द कानों में इस तरह गूँजने लगा कि आँखों से नींद काफूर हो गई।बार-बार सोने का ऊपक्रम करतीं, करवटें बदलतीं किंतु नींद उचट जाती।आखिर मोबाइल हाथ में आ गया।आगे-पीछे करते ही खटाखट दिखने लगा।लोभ ने अविवेक से गलबहियाँ किया और विवेक तिरोहित हो गया।जिस प्रकार एक भेड़ के कुएँ में गिरते ही सारी भेड़ें कूद जाती हैं यही स्थिति हो गई।

अगले कुछ दिन बहुत व्यस्तता भरे निकले।दिन भर फोन आते और खटाखट की चर्चा और मीमांसा होती।किसी झूठ को सौ बार बोलने से वह सत्य के रूप में प्रतिष्ठित हो जाता है,भले ही वह झूठ बाद में पाप के पहाड़ के समान आकर खड़ा हो जाए।मतदान हो गया और अब खाते में पैसे आने की प्रतीक्षा थी।प्रतीक्षा की लंबी घड़ियाँ बीत गई थीं और लाभार्थी घर से निकल पड़े थे अपनी-अपनी पासबुक लेकर।उसने लंबी कतारों में महिलाओं को खड़े देखा।उसने यह भी देखा कि दूर-दूर से आई महिलाओं की भीड़ काफी उत्तेजित थी।खटाखट नाम की कोई बात नजर नहीं आ रही थी।क्या कहा जा रहा है, कुछ समझ में नहीं आ रहा है।कुछ महिलाएँ चीख चिल्ला रही थीं तो कुछ धरने पर बैठने का मन बना बैठी थीं।भारी पुलिस बल भी तैनात था।

उस प्रौढ़ा की स्वप्नावस्था तब समाप्त हुई जब बादलों की गड़गड़ाहट के बीच उसने अपनी आँखें खोली।चारों तरफ घनघोर अँधेरा छा गया था और रह-रहकर चपला चमकने लगी थी।आँधी और पानी की संभावना के बीच दोनों अबलाओं ने आसन्न परिस्थिति से निपटने के लिए आँखों-आँखों में ही निर्णय लिया और थोड़ी ही दूरी पर आँगनवाड़ी भवन में शरण लेने के लिए तेज कदमों से बढ़ चलीं।छोटा बच्चा सो रहा था इसलिए नवोढ़ा ने उसे कंधे पर सँभाल लिया था।पहले धूलभरी आँधी, फिर ओला-पात और मूसलाधार बारिश हुई।ये तीन प्राणी चेतन और अचेतन मनःस्थिति में घंटों प्रकृति का खिलवाड़ देखते रहे।जब बारिश बंद हुई तो प्रौढ़ा की दृष्टि में अस्ताचल को चलायमान सूरज का दर्शन हुआ,साथ ही अपनी ओर आते एक मोटरसाइकिल सवार का भी।जब वह तेजी से इनके पास पहुँचा तो जान में जान आई,मानो डूबते को सहारा मिल गया हो।वह इन्हें ढूँढ़ते ढूँढ़ते इधर आ गया था।उसने छोटे बच्चे को आगे बैठाया और इन दोनों को पीछे बैठाकर अपने गंतव्य को रवाना हो गया।रास्ते में इनके बीच कोई बात नहीं हुई;कहने सुनने को बचा ही क्या था!

विजयशंकर मिश्र ‘भास्कर’ लखनऊ, 94500 48158

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