कहानी संख्या -20,गोपालराम गहमरी कहानी प्रतियोगिता -2024,
रमा व उमा दो बहने थीं । रमा छोटी व उमा बड़ी थी । पिताजी ने दोनों की शादी अच्छा घर व अच्छा वर देखकर सरकारी मुलाज़िमों से कर दी थी । रमा नैनीताल में रहती थी और उमा जयपुर में रहती थी । रमा के दो बेटियां थी , परंतु उमा के कोई संतान नहीं थी ।रमा इस बार फिर से उम्मीद से थी कि इस बार तो उसके बेटा ही होगा । परंतु कभी-कभी वह सोचती कि यदि तीसरी बार भी बेटी हुई तो वह उसे नहीं रखेगी किसी को भी दे देगी या रात के अंधेरे में कहीं छोड़ आएगी । रमा ने अपनी बड़ी बहन को बच्चा होने पर मदद के लिए बुलाया था । बच्चा होने के 10 दिन पूर्व उमा भी अपनी बहन के यहां नैनीताल पहुँच गई। अब सारे घर का काम उमा ही करती रमा को उमा के आने से काफी आराम मिल रहा था ।
वह दिन भी आ गया जब रमा को अस्पताल ले जाना था । एक घंटे बाद ही उसने साधारण प्रसव से कन्या को जन्म दिया । रमा ने डॉक्टर से पूछा कि डॉक्टर क्या हुआ है ??लड़का या लड़की डॉक्टर ने बड़े ही प्यार से मुस्कुराते हुए बताया कि आपके नाम के अनुसार आपकी बहन यानी लक्ष्मी आई है अब तो रमा का जो रोना शुरू हुआ कि बस वह फिर बोली डॉक्टर आप सही तो बता रही हैं कहीं लड़का तो नहीं हुआ है ! डॉक्टर ने कहा अरे नहीं कन्या ने हीं जन्म लिया है। आप तो बड़ी भाग्यशाली हैं जो आपके कन्या रत्न प्राप्त हुआ है और मैं आपको एक बात और बता दूं मेरे अस्पताल में यदि कन्या जन्म होता है तो हम उसका मुफ्त में पूरा काम निपटाते हैं । एक पैसा भी आपका नहीं लगेगा । और जब आप घर जाएंगे तो आपको एक मिठाई का डब्बा और ₹1000 का लिफाफा जिस पर कन्या का नाम बेबी रमा लिखा होगा देकर और आपको व कन्या को माला पहनाकर अस्पताल से विदा किया जाएगा । पर रमा को तो पुत्र चाहिए था । उसके पहले से दो पुत्रियाँ थी । जब यह बात डॉक्टर को पता लगी तो वह बोली की अरे बहन जी जिनके पुत्रियाँ होती हैं वे दुनिया के सबसे अमीर लोग होते हैं । मैं तो डॉक्टर होते हुए भी बहुत गरीब हूँ क्योंकि मेरे दो पुत्र हैं ।
साधारण प्रसव होने के कारण रमा को 24 घंटे बाद अस्पताल से छुट्टी मिल गई । और वह अपने घर आ गई । परंतु उसके दिमाग में तो चल रहा था कि इस तीसरी पुत्री को कहीं ना कहीं ठिकाने लगाना है । नहीं तो अब मैं ही आत्महत्या कर लूंगी । पर उमा के पति को जब यह बात पता चली तो उन्होंने उस पुत्री को खुद लेना स्वीकार किया जैसे ही यह बात रमा को पता चली उसने बड़ी खुशी-खुशी अपनी तीसरी पुत्री को उमा को दे दिया । उमा भी 15 दिन की कन्या को अपने घर ले आई । उमा की सासू माँ ने घर को खूब फूलों और रंग-बिरंगे कागजों से सजवाया और शहनाई व बैंड बाजे बजवाए । उमा व कन्या की आरती उतार कर घर में प्रवेश दिलवाया । सबसे पहले कन्या को घर में बने मंदिर पर ठाकुर जी के आगे धोक दिलवाई गई ।
अब दोनों पति-पत्नी को तो एक नन्हा खिलौना मिल गया और उनके घर में भी किलकारी गूंजने लगी ।उधर उमा की सास भी बहुत खुश रहने लगी उमा को बार-बार हिदायतें देती ऐसे पकड़ो ,ऐसे रखो, ऐसे सुलाओ ,ऐसे बच्ची से बातें करो आदि- आदि । 6 माह बाद कन्या का नामकरण व अन्नप्राशन भी किया गया ।कन्या का नाम उन्नति रखा गया । उन्नति कब घुटने चलते-चलते पैरों में पायल पहने चलने लगी पता ही नहीं चला । उसकी पायल की छम -छम से घर गुंजायमान रहता और सबको बहुत अच्छा लगता । उम्र के हिसाब से अच्छा मुहूर्त देख बसंत पंचमी को उन्नति को स्कूल में प्रवेश दिलवाया गया। हर वर्ष कक्षा में प्रथम आते-आते दसवीं कक्षा में भी योग्यता सूची में उन्नति का नाम प्रथम स्थान परआया । सभी समाचार पत्रों में फोटो भी छपी । साथ ही स्थानीय मुख्यमंत्री जी ने भी योग्यता सूची में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर बधाई दी । इसी प्रकार 12वीं कक्षा में भी विज्ञान विषय से योग्यता सूची में उन्नति ने प्रथम स्थान पाया । माता-पिता भी पढ़ाई कर रही उन्नति का पूरा ध्यान रखते थे तथा बोले उसी का परिणाम आज उन्हें भी मिल रहा है । आगे फिर उसने आईआईटी खड़गपुर से पढ़ाई की उसके बाद प्रशासनिक सेवा की परीक्षा भी दी । उसमें भी उसका चयन हो गया । परंतु उसकी दोनों बङी बहनें इस तरह से पढ़ाई नहीं कर पाई थी । अब उन्नति ने अपनी दोनों बहनों को अपने पास बुलाकर प्रशासनिक सेवा की पढ़ाई करने को कहा । जिसमें बड़ी बहन ने दो बारी में सफलता प्राप्त की व छोटी दीदी ने तो उन्नति की भांति एक बार में ही सफलता हासिल कर ली ।
अब उन्नति की नैनीताल व सारे रिश्तेदारों में बहुत वाह- वाही हो रही थी । वहीं उन्नति जो तीसरी व अनचाही संतान मानी गई थी ने अपने माता-पिता व मौसी -मौसा का नाम भी रोशन किया । एक दिन उन्नति को भारत सरकार की तरफ से राजदूत बनने का संदेश प्राप्त हुआ ।इस शुभ अवसर को वह गंवाना नही चाहती थी । फिर मौसा -मौसी की अनुमति से वह भारत सरकार की राजदूत बन गई । और अब उसका निवास स्थान अमेरिका हो गया था । राजदूत का पद मिलने पर उन्नति का साक्षात्कार टेलीविजन के विभिन्न चैनलों पर आ रहा था । तो वही माता-पिता सभी को बता रहे थे कि वह उनकी बेटी है । आज इतने ऊंचे औहदे पर विराजमान होने के कारण उन्नति के माता-पिता भी उसे फिर से स्वीकारने को तैयार थे । परंतु जयपुर वाले मौसी- मौसा व दादी ने साफ इनकार कर दिया । और कहा कि सरकारी कागजों में आपका ही नाम माता-पिता के रूप में लिखा हुआ चल रहा है । यही आपके लिए बहुत है। उधर उन्नति ने भी अपनी यशोदा समान माँ के पास ही रहना स्वीकारा । और यह भी कहा कि आप मेरे पास कभी भी किसी भी समय आकर रह सकते हैं । आपका आदर व पूरा सम्मान है परंतु मैं अपनी यशोदा माँ व पिता और दादी को किसी कीमत पर भी नकारने को तैयार नहीं हूँ । क्योंकि माँ आपने मुझे कोख में रखा बेशक पुत्र समझ कर ही मुझे पूर्ण विकसित होने दिया ,व आप दोनों का खून मेरी रगों में बह रहा है उसका कर्ज तो मै नही चुका सकती परंतु जन्म देने वाले माता-पिता से पालन पोषण करने वाले माता-पिता का अधिकार ज्यादा होता है ।यह तो पुराने शास्त्रों में भी लिखा है ।
संतान तो चाहे बेटी हो या बेटा सभी अच्छे होते हैं जितनी तकलीफ बेटा पैदा करने व पालने में होती है उतनी ही तकलीफ बेटी पैदा करने व पालने में भी होती है । पर संतान जो भी हो उन्हें माहौल सही मिले खुद भी मेहनत करें और माता पिता भी अगर बच्चे पर ध्यान दे तो सफलता जरूर मिलती है ।उन्नति ने हर कदम पर अपने नाम को सार्थक किया ।
शुभदा भार्गव ,अजमेर ।मोबाइल नंबर–9460603795