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अजीत की कहानी दूध

कहानी संख्‍या -21,गोपालराम गहमरी कहानी प्रतियोगिता -2024,

मंगर बूढ़े मां-बाप का एक मात्र सहारा था। वह बहुत ही आज्ञाकारी और सुशील लड़का था। वह अत्यंत गरीब था। उसके पास संपत्ति के नाम पर विरासत में मिले रहने के लिए एक टूटे-फूटे घर के अलावे और कुछ भी नहीं था। वह एक दैनिक मज़दूर था। उनके माता-पिता भी दैनिक मज़दूर थे। उसी परंपरा को मंगर आगे बढ़ा रहा था। मंगर दो वक्त की रोटी आराम से जुटा पाता अगर मां-बाप की दवाइयों में खर्च न होते। वह अपने घर की हालत सुधारने हेतु जी-तोड़ मेहनत करता था, फिर भी चेहरे पर मलिनता का भाव नहीं आने देता था।
उसके घर में मां-बाप को देख-भाल करने वाला कोई नहीं था। इसीलिए मंगर अपने मां-बाप की इच्छा के अनुसार शादी कर लिया। जीवन साथी के रूप में मंजरी को पाकर वह बहुत खुश था। मंजरी किस्मत की मारी लड़की थी। बचपन में ही उसके सिर से मॉं-बाप का साया उठ चुका था। उसके मामा जी उसे पाल-पोसकर बड़ा किए थे। उसे मॉं-बाप का प्यार कभी नहीं मिला था। वह अपने मामा जी के लिए एक बोझ मात्र थी। एक अनाथ बच्चा अक्सर संतानवानों के लिए एक बोझ ही होता है। ये सब समय का खेल है। समय हर ज़ख्म को भर देता है। समय ने मंजरी का भी ज़ख्म भर चुका था। वह मॉं-बाप के रूप में सास-ससुर को पाकर बहुत खुश थी। वह अपने सास-ससुर को अपने माता-पिता के समान सेवा करती थी। सास-ससुर भी उसे अपनी बेटी के समान मानते थे। सबकुछ ठीक चल रहा था। मंगर के घर की खुशियॉं लैटने लगी थी।


दो साल बाद मंजरी मॉं बन चुकी थी। घर में लक्ष्मी आई थी। मंगर खुशी से फुला न समाता था। अब उसके घर में बच्चे की किलकारियां गूंजेगी। बूढ़े मां-बाप को जीने की गई थी। भगवान से मौत की दुआ मांगने वाले अव ज़िन्दगी मांग रहे थे ताकि कुछ दिन बच्चे के साथ बिता सकें। मंगर की जिम्मेदारी बढ़ चुकी थी। बिटिया की पढ़ाई-लिखाई, शादी-ब्याह तथा अन्य खर्चे। वह अपने परिवार को खुशहाल रखने के लिए अधिक पैसे कमाना चाहता था। वह काम के आगे दिन-रात की परवाह नहीं किया करता था। उसके घर की स्थिति बेहतर होने लगी थी कि किसी की नज़र लग गई। एक बार वह ट्रक से अनाज से भरी बोरियों को उतार रहा था। एक बोरा खींचा ही था कि उसके उपर कई बोरे खिसक गए। मंगर बोरे के नीचे दब गया। बड़ी मुश्किल से उसे बाहर निकाला गया । हॉस्पिटल ले जाने के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। इस तरह से मंजरी के पति उसकी गोद में दो महीने का बच्चा छोड़कर दुनिया से चल बसा। उसकी शादी के दो साल ही तो हुए थे। उसकी उम्र ही क्या थी। वह ठीक से दुनिया-दारी समझ भी नहीं पाई थी। उसके घर में एक मात्र उसके पति ही कमाने वाला था। अब वह दाने-दाने को मोहताज थी। तिस पर बूढ़े सास-ससुर का बोझ अलग। औरत आदमी के बिना कितनी अकेली हो जाती है।

वह बिल्कुल टूट जाती है। वक्त भी क्या-क्या इम्तिहान लेता है। अब उसे मॉं, बाप और बेटा तीनों का फर्ज निभाना था। वह छोटे बच्चे को लेकर खेतों में काम करने नहीं जा सकती थी। बाजुओं में इतनी ताकत थी नहीं कि भारी-भारी सामान उठा सके। वह किसी के घर झाड़ू-पोछा का काम करना चाहती थी। संयोग से उसे गांव के सेठ के घर आया का काम मिल गया। वह सेठ के घर आया का काम करने लगी, जिससे किसी तरह से दो वक्त की रोटी नसीब हो जाती थी। कभी तबीयत बिगड़ गई तो और मुसीबत।
मंजरी के सामने दुखों का पहाड़ पड़ा था जिसे हटा पाना उसके लिए नामुमकिन था। वह भोजन के अभाव में अक्सर भूखी रह जाया करती थी। नतीजतन उसके स्तन का दूध जाता रहा। उसके बच्चे को भर पेट दूध नहीं मिल पाता था, जिससे वह हमेशा रेंकता रहता था। सेठ के घर कपड़ा बिछाकर बच्चे को लेटा देती थी और काम में लग जाती थी। बच्चा रोते-रोते सो जाता था। बच्चे की हालत देखी नहीं जाती थी, पर क्या करे दूसरा कोई चारा नहीं था। एक दिन मंजरी मालकिन से पूछ ली, “थोड़ा सा दूध मिल जाता तो बच्चे को पिला देती।”
मालकिन ने डांट दिया था, पुनः पूछने की हिम्मत नहीं हुई। अपने बच्चे के लिए एक मॉं कुछ भी कर सकती है। वह मालकिन के किचेन से चोरी-चुपके अपने बच्चे को दूध पिला दिया करती थी। एक दिन वह पकड़ी गई। काफी भला-बुरा सुनने को मिला। नौकरी जाते-जाते बची। चोरी का ठप्पा अलग। मजबूरी इंसान से क्या नहीं कराता है ?
मंजरी सोची, “बच्चे की जान जितनी ज़रूरी है उतनी ही नौकरी भी जरूरी है।” भगवान ऐसा दिन किसी को न दिखाए। आगे इस समस्या से उबरने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। वह बिल्कुल असहाय थी।


मंजरी दुसरा काम भी नहीं कर सकती थी क्योंकि उसका बच्चा छोटा था। एक दिन सेठ के घर मेहमान आने वाले थे। काम अधिक था। मंजरी एक तरफ बच्चे को लेटाकर जल्दी-जल्दी काम निपटाने लगी। बच्चा हमेशा की तरह रोते-रोते शांत हो गया। काम से फुर्सत मिलते ही बच्चे को उठाया। बच्चा खामोश पड़ा था, सिर्फ सांसें चल रही थी। उसने अपनी छाती उसके मुंह में दी। बच्चा दूध खिंचने की कोशिश कर रहा था। परन्तु दूध न मिलता था। बच्चा हिचकियां लेने लगा, तभी मालकिन किचेन में दूध लेने आई। मंजरी आंखों में आंसू लिए रूआंसी आवाज में बोली, “मालकिन, दूध के बिना मेरे बच्चे की जान निकली जा रही है, थोड़ा सा दूध मिल जाता तो मेरे बच्चे की जान बच जाती।

मालकिन ने बड़ी रूखाई से ज़वाब दी, “तुम्हारा बच्चा तुम जानो। ये दूध मेरे कुत्ते के लिए है। उससे बच जायेगा, तो जरूर दें दूंगी।” मालकिन दूध लेकर चली गई। बच्चा हिचकियां लेते-लेते शिथिल पड़ गया। हाय ! बड़े लोगों के लिए गरीबों की ज़िंदगी कुत्ते से भी सस्ती है। मंजरी दहाड़े मारकर रोने लगी, परन्तु पत्थर दिल वाले उसे रोने भी नहीं दिए, क्योंकि उनकी शांति भंग हो जाती और मेहमानों के बीच उनकी नाक कट जाती। उसे बाहर निकाल दिया गया। क्या यही इंसानियत है ? मंजरी अपने बच्चे की पार्थिव शरीर को लेकर बेसुध अपने घर की ओर चल दी। लोग उसे फटी आंखों से नि:स्तब्ध होकर देखते रह गए।
अजीत कुमार, ग्राम – करमा, पोस्ट – गुरारू ,जिला – गया, (बिहार) मो.न. – 9097185840

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