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चंद्रवीर की कहानी कच्ची उमर का प्यार

कहानी संख्‍या 27 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024

“हां… हां… मैं उससे प्यार करती हूं, उसे छोड़ नहीं सकती।” नज़रें झुकाते हुए उसने उत्तर दिया। “…लेकिन तुम्हारी मम्मी और पापा का क्या होगा..? सोचा है कभी। वह भी तो तुमसे प्यार करते हैं…. उन्होंने तुम्हें पाला पोसा है। उनकी इज्जत का क्या होगा…? समाज में उनकी नाक नहीं कट जाएगी। बेटी, तुम्हारा प्रेम वास्तव में केवल आकर्षण है यह प्रेम नहीं है।” मैंने उसे तसल्ली से समझाते हुए कहा। “जब तुम्हारा प्रेम का ये भूत उतरेगा तब तक बहुत देर हो जाएगी।” वह सिर झुकाए सुनती जा रही थी। “तुम्हें पता भी है कि तुम्हारे माता पिता और भाई तुम्हें कितना प्यार करते हैं….? वास्तव में तुम भी अपनी मम्मी पापा से बहुत प्यार करती हो और यह प्यार समय के साथ कभी कम नहीं होता। सच्चा प्यार यही है। तुम्हारे मां-बाप हमेशा तुम्हारे बारे में अच्छा सोचते हैं, सपने में भी बुरा नहीं सोच सकते और तुम्हारे जैसा ये आकर्षण चार दिन का बुलबुला है न जाने कब फूट जाए।” मैं कहता गया और वह बेमन से सुनती रही। मैंने उसे समझाते हुए कहा- ” देखो, तुम बहुत समझदार और होशियार हो, अपने कैरियर के बारे में सोचो और तुमने हमसे वकालत पास करने का वायदा भी किया है उसका क्या होगा…?” इस पर उसने गर्दन ऊपर उठाई थोड़ा-सा मुस्कराकर बोली- “सब हो जाएगा” अब मैं जाऊं…? ” हां… जाओ… यह जिंदगी तुम्हारी है तुम जो चाहे फैसला कर सकती हो लेकिन तुम्हारे फैसले से तुम्हारे घर परिवार का सम्मान धूमिल हो शायद तुम भी यह नहीं चाहोगी।” मेरा लंबा भाषण सुनकर वह बोर हो गई थी।

तेजी से बड़बड़ाते हुए चली गई।वह अभी केवल सोलह साल की हुई थी और सत्रहवीं साल में प्रवेश ही किया था। वह बी.ए. प्रथम साल की छात्रा थी और कुछ समय पहले से ही कोचिंग जाना शुरू किया था इकलौती पुत्री होने के कारण घर वालों का लाड प्यार कुछ अधिक ही था । वह जैसे कहती थी घरवाले मान जाते थे। जब उसने कोचिंग में जाने का प्रस्ताव रखा तो मां के अलावा किसी ने विरोध नहीं किया। भाई तो खुलकर उसके पक्ष में खड़ा हो गया था। और फिर कोचिंग शुरु हुई। कोचिंग वाला उसके भाई का दोस्त भी था इसी भरोसे पर उसे कोचिंग जाने की अनुमति मिल गई। उसका भाई भी चाहता था कि उसकी बहिन भी पढ़ लिख कर अपना और अपने घर वालों का नाम रोशन करें। कोई ऊंचा पद पाकर गांव का नाम रौशन करे। हाई स्कूल की बोर्ड परीक्षा में उसने अच्छे नंबर प्राप्त किए थे इससे उसके भाई की उम्मीद और बढ़ गई वह उसके पढ़ाई में बाधा बना नहीं चाहता था। उसका भाई एक बड़ी कंपनी में था। रूपए पैसे की कोई दिक्कत नहीं थी उसके पिता एक कंपनी के मैनेजर रह चुके थे। भले ही उसकी माता घरेलू महिला थी लेकिन बच्चों पर तेज नजर रखती थी। उन्हें पता था बच्चों को ज्यादा प्रेम बिगाड़ देता है इसलिए उनका कहना न मानने पर उसकी पिटाई भी कभी-कभी कर देती थी लेकिन वह भी उसकी दुश्मन नहीं थी।

वह भी उसे बहुत प्रेम करती थी जब इंटरमीडिएट की परीक्षा में हाईस्कूल के मुकाबले कम अंक आए तो उसकी मां ने कहा- “बहुत हो गई तुम्हारी पढ़ाई, अब पढ़ना लिखना छोड़ो, घर के कामों मैं हाथ बटाना सीखो। आखिर तुम्हें पराए घर जाना है, कोई क्या कहेगा…? लड़की कुछ भी नहीं जानती है। तुम्हारी मम्मी ने क्या सिखाया है…?” वह मम्मी को अपना दुश्मन समझती थी। कभी-कभी अपने घर की बातें मुझे बताया करती थी। अब उसके भाई की भी शादी हो गई उसकी भाभी घर के काम करवाने लगी। मन ही मन वह अपनी भाभी से भी नफरत करती थी लेकिन कभी दिखाती नहीं थी। उसे आजाद जीवन पसंद था। वह उड़ना चाहती थी खुली आकाश में, पक्षियों की तरह की।कोचिंग में उसे एक लड़का घूर घूर के देखता था वह मुझे बताया करती थी कि वह उसे बिल्कुल पसंद नहीं करती। उसे देखकर उसे चिढ़ होती है। कभी-कभी वह फोन करके मुझे कोचिंग में क्या हुआ बताया करती थी। जब भी फोन करती थी उस लड़के की बुराई अवश्य करती थी। मैं उसे समझाता था कि किसी से नफ़रत नहीं करनी चाहिए। तुम्हें वह पसन्द नहीं तो उसकी ओर देखती ही क्यों हो..? धीरे धीरे उसके फोन का आना कम हो गया। कभी कभी तो पूरा महीना भी बीत जाता था। मैं जानता था कि वह अपनी बी. ए. पढ़ाई के साथ साथ कोचिंग में व्यस्त हो गई थी।

वक्त का पहिया चलता रहा कई महीने बीत गए।एक दिन मुझे नींद नहीं आई। सोने की कोशिश बेकार रही तो मोबाइल खोलकर व्हाट्सअप चैक करने लगा। घड़ी में एक बजा था। अचानक उसका नंबर सामने आ गया। वह ऑन लाइन थी। मैं समझ गया कि वह पढाई के प्रति ज्यादा ही गंभीर हो गई होगी। उसे अपने सपने जो पूरे करने हैं। ये लड़की अवश्य ही कुछ करके दिखाएगी ऐसे विचार मन में आए तो उसे मैसेज भेज दिया रात में सो भी लिया करो दिनरात ऐसे पढ़ोगी तो पागल हो जाओगी। उसका भी हंसी की इमोजी के रूप में तुरंत मैसेज आया और वह ऑफ लाइन हो गई। कुछ दिन बाद पता चला कि वह जिस लड़के से चिढ़ती थी उसी के प्रेम में पड़ चुकी है। रात में उसका ऑन लाइन होना उस लड़के के साथ चेटिंग के लिए था। इसी दौरान उसके भाई ने उसे नई स्कूटी दिला दी थी। अब वह अपनी प्रेम उड़ान पर थी। कोचिंग से घंटों गायब हो जाना अब आम बात हो चुकी थी। मैंने उसे खूब समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी। अब वह विद्रोही हो गई थी। उस लड़के के लिए कुछ भी कर गुजरने और

किसी से भी लड़ने को तैयार थी। हद तो तब हो गई जब वह मुझे ही धमकाने लगी। मैं हतप्रभ उसे देखता रह गया वह स्कूटी स्टार्ट करके धुआं उड़ाते हुए चली गई। कई साल बीत गए। अब ख़बर है कि उसका नाम लोगों की जुबान पर है और वह उड़ान पर।

चंद्रवीर सोलंकी “निर्भय”,कागारौल, आगरा, उ.प्र.,मोब. 6396890238

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5 comments

  1. वाह जी साहब, आप तो समर्पित कहानीकार भी हैं।
    बधाई, शुभकामनाएं।
    कहानी पढ़ी मैंने, बड़ी सघनता से बुना आपने विषय पर।
    कहानी का अंत लेकिन एकदम से अचानक से कर दिया,
    ऐसा लगा लास्ट में।

  2. Chandrvir solanki nirbhay

    बहुत सुंदर प्रस्तुति ! वर्तमान की सच्चाई दिखाती कहानी।

  3. सुनील सोलंकी सक्षम

    आजकल के बच्चों को जागरूक करने के लिये बहुत अच्छी कहानी लिखी है। इस कहानी से बच्चों को प्रेरणा लेनी चाहिए। किसी सिरफिरे के झांसे में आकर अपने परिजनों को धोका न दें।

  4. Chandrvir solanki

    महोदय, यह कहानी प्रतियोगिता निश्चित रूप से कहानी साहित्य के लिए वरदान साबित होगी। इस प्रतियोगिता के द्वारा आदरणीय अखंड गहमरी जी ने नए कहानीकारों को विश्व स्तरीय मंच उपलब्ध कराया है जो अत्यंत सराहनीय कार्य है।
    एक कहानीकार के रूप में हमारी यह शुरुआत हुई है। कहानी आजकाल के युवा बच्चे बच्चियों में आकर्षण रूपी प्रेम का चित्रण किया गया है जिसके कारण बच्चे अपने करियर को दाव पर लगा देते हैं। कोचिंग सेंटर/कॉलेज में घटित होने वाली ख़बर आए दिन अखबारों में छपती हैं। यहीं से कहानी लिखने की प्रेरणा मिली।
    सादर
    चंद्रवीर सोलंकी निर्भय

  5. Shannon Aggarwal

    चंद्रवीर जी, कहानी अच्छी लगी।

    कुछ बच्चे कच्ची उम्र में ही अपना भला-बुरा न सोचकर विद्रोही हो जाते हैं। और अगर यह प्यार का मामला हुआ तो उस पर परिवार तक को न्योछावर करने से भी नहीं हिचकते। कितना भी अच्छा पालन पोषण होने पर भी वह अपनी जिद के आगे झुकते नहीं। जिसका परिणाम आज के समाज में देखने व सुनने को मिल रहा है।

    कलियुगी बच्चे अपने से बड़ों की इजाजत नहीं माँगते बल्कि अपनी मनमानी करके स्वयं के लिये निर्णय लेने लगे हैं। वह भविष्य के बारे में चिंता न करते हुये साहसी कदम उठाने लगे हैं।
    बाद में उनकी किस्मत।

    कभी तकदीर साथ देती है कभी नहीं। शत्रुघन सिन्हा की बेटी को ही देखिये। ऐसे ही न जाने कितने ही किस्से होते रहते हैं। ऐसे बच्चों के लिये परिवार गया भाड़ में।

    फिर उनके भविष्य में क्या होता है यह तो किस्मत का लेखा है। कितनी ही वारदातें सुनने में आयी हैं कि प्यार की कलई उतर जाने पर प्रेमी लोग एक दूसरे की जान तक ले लेने पर उतारू हो जाते हैं। न जाने कितने ही लोगों का प्यार वीभत्स रूप लेकर मौत की भेंट चढ़ने लगा है।

    कच्ची उम्र का प्यार
    सावन की फुहार
    घटा आई और
    बरस कर चली गई
    कुछ समय के
    आकर्षण में
    कभी भंवरा गया
    कभी कली गयी।

    -शन्नो अग्रवाल

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