कहानी संख्या 35 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024
हम पति पत्नी पेशे से डॉक्टर पर प्रकृति प्रेमी ,इसीलिए महाराष्ट्र के छोटे से हिल स्टेशन चिखलदरा में बस गये ,जब भी फुर्सत मिलती आसपास के आदिवासी इलाके में घूमते ,प्रकृति का नयन रम्य नजारा देखने निकल जाते ।एक दिन ऐसे ही फुरसत के पलों में हम निकले ,कोई 20–25 किलामीटर पर एक छोटा सा गांव है,जहाँ बारिश में पहाड़ो से गिरते पानी अक्सर,झरने और छोटी नदी का रूप ले लिया करते है ,हमलोग अक्सर वहाँ जाते रहते है ,हम पुराने गीत सुनते चले जा रहे थे ,अचानक बारिश सुरु हो गई ,रिमझिम बारिश की फुहार, मौसम को देख लगा कही चाय पी जाएं ,अचानक सड़क से कुछ दूरी पर एक टपरीनुमा झोपड़ी नजर आई।हम लोगो ने कार रोकी ,आवाज लगाई एक बुजुर्ग आदिवासी महिला बाहर आई चूंकि हम उसी इलाके में बरसों से रहते थे तो उनकी भाषा जानते थे,हमने उनकी भाषा मे कहा ,क्या हमें चाय मिलेगी ?
आदिवासी महिला –आप बैठिए लाती हूं। हमलोग बाहर बरामदे में पड़ी खाट पर बैठ गए —पत्नी बड़बड़ाई —आप भी ना कही भी चाय पीने बैठ जाते हो —-थोड़ी देर मे महिला गंदे से गिलास में चाय ले आई ,पत्नी ने मुझे आंखों ही आंखों में उलाहना दे दिया ,पर्स में से वाइप निकाल ग्लास को साफ कर चाय पीने लगे ,पहला घूट पीते ही मुँह से निकला वाह क्या चाय है ,बहुत ही जायकेदार चाय शायद जड़ीबूटियों से बनी थी। मैंने कहा —क्या एक एक कप चाय और मिलेगी ,आदिवासी महिला — साहब दूध खत्म हो गया। डॉक्टर सोनी —ठीक है ,चाय के पैसे कितने हुए।
आदिवासी महिला –साहब चाय के क्या पैसे लेना ,वह तो मैं अपनी बहू के लिए दूध गर्म करने जा ही रही थी ,की आप आ गए ,सो उसी दूध की चाय बना दी * इतने में अंदर से किसी की कराहने की दर्द भरी आवाज आई — डॉक्टर सोनी –ये कैसी आवाज है। आदिवासी महिला — साहब मेरा बेटा दाई को बुलाने गया है ,बहू की जचकी का समय हो गया है, बस आता ही होगा। डॉक्टर सोनी –मैंने कहा मेरी पत्नी डॉक्टर है आपकी बहू को देख लेगी ,पत्नी अंदर गई तो को देखा कि गन्दी से जगह पर एक युवती लेटी है ,प्रसव पीड़ा से तड़प रही है कभी भी बच्चे की जन्म दे सकती है पत्नी ने उस बुजुर्ग आदिवासी महिला से पानी गर्म करने कहा ,कुछ चादर वगैरह आवयश्यक सामग्री मांगी
आदिवासी महिला –पानी तो हमने पहले ही गर्म कर लिया है। इतने में दाई और उसके बेटे का आना हुआ।
दाई — नमस्ते मैडम ,आप यहाँ पत्नी –नमस्ते,हा हमलोग घूमने निकले थे ,हमे लगा यहां चाय मिल सकती है सो यह रुक गए ,अभी अभी अंदर से आ रही हूं प्रसूता की हालत ठीक है ,पर कभी भी बच्चा हो सकता है। दाई —आप फिकर मत करो आ गए है ना ,सब कर देहि ,मानो वहाँ मैं एक लेडी डॉकटर भी है वह भूल ही गयी।पत्नी— -दाई ने उस बुजुर्ग आदिवासी महिला से गर्म पानी मांगा कुछ आवयश्यक सामग्री भी ,दोनों मिल बड़े ही आत्मविश्वास और धैर्य के साथ युवती को निर्देश दे रही थी ,मैं स्वयं भी उनके आत्मविश्वास एवम धैर्य को देख भूल गई की डॉक्टर हूं ,अलगथलग खड़ी उन तीनों को निहारते रही और निर्देश को सुनती रही ,गहरी गहरी साँस लो नीचे की और छोड़ो ,पेट पर हाथ घुमा बच्चे को नीचे की और लाने का प्रयास करने लगी ,दाई बार बार बच्चा कितना नीचे आया है देखने का प्रयास करती इतने में युवती की जोर से चीख निकली और बच्चे ने जन्म लिया,जितनी कुशलता से उस युवती की डिलिवरी दोनों ने करवाई काबिले तारीफ थी ,अच्छे अच्छे गायनिक डॉ को पीछे छोड़ दिया,बार बार मेरी ओर देख लेती –मानो कह रही हो कि देखिए मैडम हम पढ़े लिखे भले ही ना ही पर हममें हुनर की कोई कमी नही ,मैं तो उसके कार्य कुशलता की कायल हो गई।
एक प्यारी सी बेटी ने इस दुनिया मे कदम रखा ,बच्ची के रोने की आवाज से सबके चेहरे पर खुशी छा गई ,दाई की कुशलता से मैं बहुत प्रभावित हुई। मैंने कहा —-बधाई ही आपको बेटी हुई है ,बेटे से मैने कहा इतने में डॉ साहब कार से उतरते नजर आए, उनके हाथ मे कुछ सामान था ,पास आकर बोले लो यह समान अंदर दे दो , जरूरी दवाइयां ,कुछ खाने पीने का सामान मिठाई और दूध के पैकेट,कुछ बच्चें के कपड़े लेकर वह आये थे,आते ही आंखों ही आंखों में पूछा कि सब ठीक है ना मैंने कहा जच्चा और बच्चा दोनों ठीक है ,बेटी हुई है। डॉक्टर- बुजुर्ग आदिवासी महिला से मुस्कुराते हुए कहने लगे –क्या फिर से एक कप चाय मिलेगी।उसे समान दे कुछ हिदायतें दी। आदिवासी महिला —क्यो नही डॉ बाबू ,अभी लाई कह अंदर चली गई ,।गरमा गरम जायकेदार चाय ले वह आई ।इस बार इन ग्लास को देख पत्नी को कुछ अजीब नही लगा ,हमलोगों ने चाय पी और जाने के लिए खड़े हुए। डॉक्टर सोनी —आप को कोई भी परेशानी हो तो आप हॉस्पिटल आ सकते है।
रास्ते मे पत्नी ने कहा —देखो कितना साहस और धैर्य है इन लोगो मे ,कितने आत्मविश्वास और कुशलता से दाई ने युवती की डिलिवरी करवाई ,उस बुजुर्ग महिला को तो सचमुच नमन करने का मन कर रहा है ऐसी परिस्थिति में भी हमे उसने चाय पिलाई ,संस्कृति और सभ्यता तो इन लोगो मे रची बसी है,हम शहरी लोग तो सिर्फ अपने बारे में ही सोचते है। एक छोटी सी घटना ने मेरी सोच को नई दिशा दे दी। हम भी वही थे ,रास्ते भी वही थे ,पर समय और संजोग ने हमारा नजरियां बदल दिया , नई ऊर्जा से भर मैंने पत्नी से कहा –अब हम लोग इन आदिवासी लोगो से फीस नही लेंगे –।मैने पत्नी का हाथ हाथ मे ले अपनी मौन स्वीकृती दे दी। एक आदिवासी अनपढ़ महिला विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी संस्कृति को सहेज कर रख सकती है तो हम क्यो नही—-
लता सिंघई,अमरावती ,महाराष्ट्र मोबाइल नंबर —9823021185
सुन्दर कहानी