कहानी संख्या 39 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024
जुबैदा अभी घर नही लौटी है । वह पांच बजे तक ही घर पहुँच पाती है।एक स्कूल में दाई का काम मिल गया है।बाहर ही बच्चों के झुंड ने जुबैदा को देख हाथ पकड़ लिया ,जुबैदा की खुशी चेहरे पर तैर गई,जुबैदा मेहरून को गले लगा अपने को सभाल नही पाती, आँखे दोनो की नम थी,,।राशिद की भी आँखे नम हो गई।मेहरून और रसूल मेहताब की पहली बीबी के बच्चे हैं ।राशिद और बिब्बो जुबैदा के। लेकिन जुबैदा ने कभी फर्क नही किया,और न ही बच्चो ने ।अगले दिन ही लड़की के घर पैगाम भेज और सारी बातें नक्की की गई ।दस दिन के भीतर ही निकाह,वलीमा सब कुछ। राशिद की छुट्टी बरबाद न हो,अगले हफ्ते निकाह हुआ और बानो दुल्हन बन घर आ गई, अगले दिन वलीमा।बानो और राशिद दोनो ही खुश थे।बानो सभी के साथ अच्छी तरह हिलमिल गई।कैसे ये डेढ़ महीने गुजर गये पता ही नही चला ।
राशिद को जाना था ।राशिद चला गया । कब आयेगा पता नही ।जाते वक्त मेहरून बानो को समझा गई-“चच्ची का ख्याल रखना।”बानो बस खड़ी गुमसुम जबरदस्ती मुस्करा रही थी। उसके भीतर का दुख कौन जाने।थोड़े समय का पति का साथ ।फिर लम्बा इंतजार ।
राशिद जाते वक्त पास के पीसीओ का नम्बर ले गया था और पीसीओ वाले ने वादा किया था कि वो राशिद से बानो की बात करवा देगा।हर हफ्ते राशिद बानो से बात कर लेता।कितना भी कम बात करो फिर भी बीस पच्चीस रुपये का बिल हो ही जाता।
आठ बच्चो की चच्ची ‘बानो’। जिठानी को भी कुछ न करने देती नजमा भी जिठानी बन सुख उठा रही थी। बानो सुबह पांच बजे जो उठती तो रात के ग्यारह से पहले कभी खटिया न नसीब होती।बस दस रोज के लिए नैहर रह पाई ।जुबैदा के रोकने के बावजूद नजमा ने रसूल को भेज बानो को बुला लिया।नजमा को भी आरामतलबी की आदत हो गई थी। कोठरी पर पहले रसूल और नजमा का कब्जा था ।लेकिन राशिद के निकाह के बाद वो बानो की हो गई।राशिद के न होने से हर वक़्त सभी उसमें घुसे रहते ।कोठरी के आगे बरामद भी था फिर दालान।परिवार भी बारह जनों का। गर्मी बहुत पड़ रही है,सारी खटिया बाहर दालान में पड़ती ।कुछ रोज से जुबैदा ने बानो को भी भीतर सोने से मना किया- ” भीतर कोठरी बहुत गरम है ,बाहर सो, वरना तबियत खराब होगी”और खटिया अपने बगल डलवा ली ।
पिछले साल इसी महीने राशिद का निकाह हुआ,दिन बीतते पता नही चलता,राशिद को गये दस महीने से ऊपर हो गया ।कैसा होगा कब आयेगा । पेट जो न कराये। रोजी रोटी के लिये मेरा बच्चा परिवार से दूर वहाँ परदेश में पड़ा है….इन्हीं बातों को सोचते सोचते आँखे भीगी,कब आंख लगी नही पता। कुछ आहट सी हुई ।जुबैदा को बरामदे में परछाई दिखी ,चोर समझ गोहार लगाती तभी -‘अरे ..ये क्या…. रसूल ।उसने रसूल को कोठरी में जाते देखा।उसके बगल की खटिया पर बानो नही थी ,माजिद सुकड़ा पड़ा था।दूसरी तरफ नजमा कमीज ऊपर किये,नन्हे उसकी छाती मुँह में लिए चभक रहा था ।वह दोनों टांग फैलाये बेखबर गहरी नींद में सो रही थी।बकरी खड़ी थी ,शायद बानो और रसूल के चहलकदमी से खड़ी हो गई हो।
रसूल और बानो …. जुबैदा के हाथ -पैर में झनझनाहट होने लगी।पेट मे इतने जोरो की मरोड़ लगा अभी कपड़े खराब हो जायेंगे। जुबैदा सुन्न पड़ी रही।थोड़ी देर बाद कोठरी से रसूल निकला और अपनी खाट पर लेट गया। जुबैदा चीखना चाहती थी ।तभी बानो निकली उसने मटके से पानी निकाल कर पिया और बगल की खटिया पर आ गई।।
जुबैदा के भीतर एक हूक सी उठी ,वो आँसू नही रोक पा रही थी ।उसने किसी से कुछ नही कहा। सुबह बिना कुछ खाये,”तबियत ठीक नही” कह कर स्कूल चली गई।दिनभर उदास बेचैन।क्या करे ,किससे कहे।अपनी एक टांग खोलती है तो और दूसरी खोलती है तो ,नंगी तो जुबैदा ही होगी।उसकी भूख प्यास सब गायब थी ।छुट्टी के बाद वो सीधे बगल के पोस्टऑफिस में पहुची। तार बाबू के पास जाकर हाथ जोड़ कर उसने कहा–
मुहम्मद राशिद
खोली नम्बर-12,देवीहाट,
हाबड़ा,पश्चिम बंगाल-743262
इस पते पर तार मार दीजिये।
“फौरन आ जाओ ,अम्मा बहुत बीमार है।”
तार करवाने के बाद उसे थोड़ी शांति मिली।
दूसरे रोज तार पाकर मेहरून परेशान हो उठी क्या हुआ चच्ची को।राशिद के फैक्ट्री से लौटने से पहले ही उसका सामान रख दिया।बानो के लिये एक सलवार कमीज रख दी।नई दुल्हन है उसके भी अरमान है रास्ते का खाना बांध दिया। राशिद जब घर पहुँच कर तार पढ़ा । बाजी ने सब तैयारी कर रक्खी थी वह तुरन्त निकल पड़ा। ट्रेन में भीड़ के बीच किसी तरह बैठने की जगह मिली।मन इतनी आशंकाओं से भरा था तरह-तरह के विचार घूम रहे थे ।घबराहट हो रही थी।खाना खाने की न जगह थी, न ही इच्छा।बस पानी पीता रहा।अगले दिन शाम को घर पहुचा ,जाने क्या देखने को मिले इसी भय से ग्रस्त।जुबैदा पास की दुकान से पापे और बन खरीद कर जा रही थी,अन्यमनस्क सी ।
राशिद ने पुकारा -“अम्मा!”जुबैदा ने राशिद को देखा और फूट कर रो पड़ी । पांच दिन से जो ज्वार सम्भाले हुये थे वह फट पड़ा।राशिद ने अम्मी को इस कदर झर -झर रोते नही देखा था।वह उसे पकड़ घर ले आया। जरूर अम्मा मरते -मरते बची है,।”क्या हो गया”-राशिद ने पूछा “बस ऐसे ही घबराहट हुई तो बुला लिया”,जुबैदा ने कहा अचानक राशिद को देख ,बानो,रसूल, नजमा,बच्चे सब चौक पड़े थे। हँसी- खुशी कैसे दस दिन बीते पता ही नही चला राशिद दस दिन रहने के बाद जब टिकट कराने लगा जुबैदा ने कहा -“बेटा, दो टिकट बनवाना ,बानो भी जाएगी।अपने साथ रक्खो उसे।”बानो ने चौक कर जुबैदा को देखा था,फिर सर झुका पैर के अंगूठे से फर्श कुरेदने लगी थी।।
डा रेनू सिंह ,गौतमबुद्ध नगर ,8506914478
पारिवारिक ज़िम्मेदारी को जु़बैदा ने जिस तरह कुछ तथ्यों को छुपा
कर आवांक्षनीय स्तिथि उत्पन्न होने से बचा लिया, उससे परिवार की परतिष्ठा बनीं रही….
बहुत बहुत आभार, ,कहानी पर अपना समय देने एवम एक सधी हुई टिप्पणी के लिए
साहित्य सरोज पटल का बहुत बहुत आभार।
पारिवारिक व्यभिचार की कहानी को आपने कम शब्दों में अच्छे से बयां किया है जुबेदा के पास इसके अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था राशिद उसका बेटा जिसके लिए उसके दिल में बहुत अरमान रहे हुए होंगे किंतु घर में ही ऐसा होना उसके जीवन के लिए बहुत दुखद घटना है किंतु उसने बानो को रशीद के साथ भिजवा कर बहुत अच्छा किया उत्तम कहानी के लिए आपको बधाई