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सीमा की कहानी सुहागन

कहानी संख्‍या 33 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024

ढ़ेर सारे लिफाफे टेबल पर बिखरे पड़े थे, उनमें से एक गुलाबी निमंत्रण पत्र  अलग से ही चमक रहा था।अनानास ही उसे देखने की उत्सुकता हुई।   “चिरंजीवी संजय और आ: स्नेहा”।स्नेहा की शादी का कार्ड?मन में अनेक उथल-पुथल मचने लगे। पुरानी यादें दिल पर दस्तक देने लगी। स्नेहा मेरी बचपन की सहेली थी। स्कूल से ही हम साथ-साथ पढ़ते हुए कॉलेज तक का सफर तय किये।  स्नेहा काफी चंचल और हंसमुख थी।शायद यही वजह था कि हर लड़का या लड़की एक ही नजर में उसकी और आकर्षित हो जाते।उसके गुलाबी चेहरे पर बेहद मासूमियत थी। बड़ी-बड़ी आँखें और कमर तक लहराते बाल उसकी सुंदरता में चार चांद लगा देते थे। धीरे-धीरे हमदोनों मे गहरी दोस्ती हो गयी। संजय हम लोगों की कॉलेज में ही पढता था।स्नेहा से उसकी अच्छी दोस्ती थी। उन दोनों ही मेरी शादी अजीत से हो गई। स्नेहा के कारण मेरी शादी में बहुत रौनक हो गई थी। स्नेहा अपनी नटखट स्वभाव के कारण अजीत के दोस्तों के बीच अपनी पहचान बना ली थी। यह तो मुझे शादी के बाद  ससुराल में ही जाकर पता चला जब अजीत के दोस्तों के बीच सिर्फ स्नेहा की ही चर्चा होती ।   

अजीत से मिलकर मेरे जीवन के सारे सपने पूरे हो गए थे । वह बिल्कुल वैसे ही थे जैसा मैं चाहती थी।अपनी शादी के बाद मैं स्नेहा से हमेशा कहती -“अब तू भी शादी कर ले” , पर वह हर बार हँस कर टाल देती। शादी के बाद मैं जब भी मायके आती स्नेहा से जरूर मिलती। एक- दो बार संजय से भी मुलाकात हुई थी। कुछ दिनों बाद स्नेहा से मालूम हुआ कि संजय आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चला गया है।   वक्त की रफ्तार धीरे-धीरे बढ़ती गई और नन्हा से बिट्टू मेरी गोद में किलकारियां मारने लगा। उन दिनों बिट्टू को लेकर मैं अपने मायके आई हुई थी। वही स्नेहा की शादी का कार्ड मिला। स्नेहा की शादी के बारे में जानकर मैं बेहद खुश थी और स्नेहा के तो पैर जमीन पर पड़ ही नहीं रहे थे। राहुल के परिवार वाले स्वयं ही रिश्ता लेकर आए थे। खुद स्नेहा भी राहुल को पाने की कल्पना से ही बहुत खुश थी। स्नेहा शादी के दो-तीन दिन बाद ही ससुराल चली गई और मैं भी स्नेहा के सुखद भविष्य की कामना को आँचल में संजोये अपने घर आ गई।  फिर कई महीनो तक  मायके जाने का प्रोग्राम नहीं बना और मैं घर गृहस्थी के झमेला में इस कदर रम गई कि स्नेहा के बारे में जानने की फुर्सत ही ना मिली।करीब दो सालों बाद मायके जाने का मौका मिला। वही माँ ने बताया कि स्नेहा भी मायके आई है!
 मैं सब काम छोड़कर दौड़ती हुई उस से मिलने भागी।   शादी के बाद  पहली बार मै उससे मिलने जा रही थी इसलिए बहुत सी बातें उसके बारे में जानने की इच्छा हो रही थी।

।ना जाने कितनी बातें कहनी और सुननी थी। मैं बेतहाशा भागती हुई उसके घर के अंदर चली गई। ऐसा महसूस हो रहा था मानो पुराने दिन फिर लौट आए हो। अंदर घुसते के साथ ही स्नेहा मेरे सामने थी ।पहले तो मैं उसे पहचान ही नहीं सकी और एकटक से देखती रह गई। अचानक वह आकर मुझसे लिपट गई। मेरे सारे जिस्म कांपने लगे। सफेद साड़ी में पचीस वर्ष के स्नेहा मुझे अपनी बिट्टू के समान दिख रही थी। मैं कभी सोंच भी नहीं सकती थी कि मैं उसे कभी इस रूप में भी देखूंगी।  स्नेहा मुझे अपने कमरे में ले गई। वह पहले से काफी बदल चुकी थी। वह उसकी चंचलता और शोखी उससे काफी दूर जा चुके थे। पता नहीं कब तक मैं उसे अपने सीने से लगाए रोती रही। स्नेहा के सब्र का बांध भी जैसे टूट चुका था वह भी फूट-फूट कर रोये जा रही थी। काफी देर के बाद जब उसका मन शांत हुआ तब जाकर वह मुझसे कुछ बोल पाई। अपने एक-एक शब्दों में उसने असीम दर्द छुपा रखा था। बहुत पूछने के बाद उसने अपने हृदय मेरे सामने खोल कर रख दिया।
 “उसने बताया कि ससुराल में वह बहुत खुश थी पर खुशी कहाँ सबके पास टिकती है। शादी के करीब छ: महीने बाद ही कर एक्सीडेंट में राहुल की मृत्यु हो गई। तन्हाइयों में सर को फोड़ती हुई वह बिल्कुल अकेली रह गई थी।” हालांकि घर वाले को उससे बहुत हमदर्दी थी पर राहुल के बिना सब कुछ अधूरा लगता था। सब के बीच रहते हुए भी तन्हाईयां जैसी काटने को दौड़ती थी। वह अंदर से बिल्कुल टूट गई थी। पर मर भी नहीं सकती थी क्योंकि वह मांँ बनने वाली थी। पुनीत के जन्म के बाद भी स्नेहा का खालीपन नहीं भर सका। एक-एक दिन काटना उसके लिए मुश्किल हो गया था। कुछ महीने बाद ससुराल वालों की मर्जी से उसने नौकरी के लिए आवेदन कर दिया। करीब पाँच छ: महीने बाद ही दिल्ली में उसकी नौकरी लग गई। पुनीत तो ज्यादातर अपनी दादी के पास ही रहता था। छुट्टियों में कभी-कभी वह उससे मिलने जाती थी इसलिए मांँ के पास भी बहुत कम आ पाती थी। अब तो दो-तीन दिन बाद ही दिल्ली लौट जाऊंगी स्नेहा बोलते जा रही थी।   

बातों ही बातों में शाम हो आयी और मैं स्नेहा से विदा लेकर घर आ गयी। “कैसे वो पहाड़ सी जिंदगी काटेगी? भगवान ने उसके साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है।। पर होनी को कौन टाल सकता है।” यही सोंचकर मन को तसल्ली देने की व्यर्थ कोशिश करते हुए मै सोने की कोशिश करने लगी।  स्नेहा और मेरे बीच एक पत्र का ही सहारा था, जो हमारे बीच निरंतर चलता रहता। उन्हीं खतो से मालूम हुआ कि स्नेहा की मुलाकात संजय से हुई थी। दिल्ली के एक अस्पताल में वो डॉक्टर था। यह जानकर मुझे भी खुशी हुई कि परदेश में कोई तो परिचित हैं। अब स्नेहा के हर खतो में संजय का जरूर जिक्र होता था।  इसी बीच अजीत का तबादला दूसरे शहर में हो गया और मैं अजीत के साथ ही चली आई। स्नेहा और मेरे बीच पत्रों का सिलसिला भी कुछ कम हो गया था।.   नई जगह में अपने आप को व्यवस्थित करने में भी मुझे काफी वक्त लग गया था बिट्टू तो मुझे एक मिनट के लिए भी नहीं छोड़ता था। इसलिए अब मैं भी स्नेहा को ज्यादा पत्र नहीं लिख पाती थी।  आज  महीनों बाद उसकी शादी का कार्ड मेरे हाथों में था। अंदर एक छोटा पत्र भी था जिसमें स्नेहा ने लिखा था-
“मेरी प्यारी रूमी,  मैं और संजय काफी सोचने समझने के बाद विवाह के बंधन में बंधने का फैसला किये हैं। पुनीत भी इन दिनों  यहीं रहता है। संजय से काफी घुलमिल गया है। शादी के ऑफर संजय ने दिया था। पहले तो मैं दुविधा में थी। पर आज दुविधा के सारे बादल छंट गए हैं। मेरे परिवार वालों की भी इसमें सहमति हैं। उम्मीद है तुम मेरे फैसले से सहमत रहोगी।  तुम और बिट्टू जीजाजी के साथ शादी के दो-तीन दिन पहले ही आ जाना तुमसे बहुत सी बातें करनी है।

तुम्हारी स्नेहा
मैंने फिर से एक बार कार्ड को खोल कर देखा। तीन दिन बाद ही शादी थी। आज मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था।मेरा मन संजय को कोटिश: धन्यवाद कह रहा था। मेरे लिए एक-एक पल काटना मुहाल हो रहा था। मैं सब काम छोड़कर जाने की तैयारी करने लगी।  अजीत ऑफिस से एक सप्ताह की छुट्टी ले लिए थे। क्योंकि आज ही रात के गाड़ी से दिल्ली भी जाना था अपनी प्यारी स्नेहा की शादी में शामिल होने।          

नाम- सीमा रानी, पटना ,फोन – 7004645606

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