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डॉ प्रदीप की कहानी सच्‍चा प्‍यार

“रमेश, मुझे लगता नहीं कि मेरे परिवार वाले हमारी शादी के लिए कभी भी तैयार होंगे।” रजनी बोली।
“हाँ…, मुझे भी ऐसा ही लग रहा है कि वे शायद ही हमारे रिश्ते के लिए तैयार होंगे। वर्तमान में हमारी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में जमीन और आसमान का फर्क जो है।” रमेश बोला। “पर मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती रमेश। किसी और के साथ जीवन बिताने के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकती।” रजनी बोली।
“वही हाल मेरा भी है रजनी, पर मेरे समझ में नहीं आ रहा है कि करें तो आखिर क्या ?” रमेश बोला।
“एक बार बात करके देखते हैं, यदि वे नहीं मानें, तो हम भागकर शादी कर लेंगे।” रजनी बोली।
“नहीं, हम ऐसा कभी भी नहीं करेंगे।” रमेश बोला।
“क्यों ? क्या तुम्हें मुझसे प्यार नहीं है या फिर…” रजनी बोली।

“अरे यार, तुम तो मेरी बात का बुरा मान गई। सच्चाई तो ये है कि मैं तुम्हारे अलावा किसी दूसरे के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकता।” रमेश बोला।
“यदि ऐसी बात है तो फिर तुम भागकर मुझसे शादी करने से डर क्यों रहे हो ?” रजनी बोली।
“देखो, तुम्हें पता है कि मैं किसी से भी डरता नहीं, पर अपने माता-पिता के विरुद्ध जाकर शादी करना मुझे किसी भी दृष्टि से सही नहीं लग रहा है।” रमेश बोला।
“इसमें उचित-अनुचित की क्या बात है? दुनिया में हजारों लोग भागकर शादी करते हैं। एक हम कर लेंगे, तो कौन-सा पहाड़ टूट पड़ेगा ? आफ्टरऑल हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं और हमारा प्यार सच्चा प्यार है।”  रजनी बोली।

“ऑफकोर्स हमारा प्यार सच्चा है, पर हमारे माता-पिता का हमसे प्यार भी झूठा और दिखावा तो नहीं है न ? कैसे भूल जाएँ हम उनके प्यार को ? हम तो एक दूसरे को पिछले तीन-चार साल से ही जानते हैं, जबकि मम्मी-पापा तो हमारे पैदा होने से आठ-नौ महीने पहले से ही हमें जानते और हमसे बेपनाह प्यार करते आए हैं। हम उन्हें यूँ एक झटके में कैसे नज़रअंदाज़ कर दें ? नहीं रजनी, हम ऐसा हरगिज नहीं करेंगे। सोचो, क्या बीतेगी उन पर जब उन्हें हमारे भागकर शादी करने की बात पता चलेगी ? क्या वे समाज में सर उठाकर चलने लायक रहेंगे ? नहीं…। हमारा प्यार सच्चा है, एकदम चौबीस कैरेट सोने-सा, वह इतना स्वार्थी नहीं कि हम अपने माता-पिता को ही दगा दे दें।” रमेश बोला।

“अरे…? क्या हुआ…? और तुम ये… रोने क्यों लगी ? क्या मैंने कुछ ग़लत बात कह दी ? सॉरी यार, तुम तो जानती ही हो कि मैं बहुत जल्दी भावुक हो जाता हूँ ? और अपनी धुन में कुछ भी कह देता हूँ । सॉरी, यदि मेरी बात तुम्हें बुरी लगी हो तो…” रमेश बोला ।
“नहीं रमेश, तुम्हारी कोई भी बात मुझे बुरी नहीं लगी। पता नहीं कैसे मैं प्यार में अंधी होकर स्वार्थी हो गई थी ? तुम्हारी बातें सुनकर मुझे अपनी ग़लती का एहसास हो रहा है। पता नहीं मेरे मन में ऐसे गंदे विचार कैसे आ गए ? थैंक्स, तुमने मुझे सही समय पर आइना दिखा दिया। आशा है कि भविष्य में भी मुझे ऐसे ही इमोशनल सपोर्ट देते रहोगे।” रजनी आँसू पोंछते हुए बोली।
“वाह… क्या बात है ? हमारी बेबी तो बहुत समझदार निकली। अब लगी है चने के झाड़ पर चढ़ाने।” रमेश बोला।
“अरे नहीं यार, तुम्हारी इसी अदा पर तो फिदा हूँ मैं। तुम कब सीरीयस हो जाते हो और कब सड़कछाप मजनूँ, कुछ पता ही नहीं चलता।” रजनी बोली।
“हूँ… पर हमारी समस्या अभी भी सुलझी नहीं है ? उसका क्या ?” रमेश मूल समस्या की याद दिलाते हुए बोला।
“जब इतने बड़े ज्ञानी-महात्मा बने हैं, तो इस बारे में भी कुछ तो सोचे ही होंगे ? रजनी उसकी आँखों में आँखें डालते हुए बोली।
“हाँ, सोचा तो है, पर उसमें मुझे तुम्हारी भी बराबरी का साथ चाहिए, क्योंकि यह काम मेरे एक अकेले के बस की बात नहीं है।” रमेश बोला।
“क्या हुक्म है मेरे आका ? आदेश फरमाइए। साथ तो क्या, आपके लिए तो हमारी जान भी हाजिर है ?” रजनी नाटकीय अंदाज में बोली।
“हमें आप प्यारी हैं मोहतरमा, हमें आपकी जान लेने का कोई शौक नहीं।” रमेश भी उसी अंदाज में बोला।
“देखो, तुम पहेलियाँ मत बुझाओ, सीधे-सीधे बताओ कि हमें करना क्या है ?” रजनी ने पूछा।
“हाँ, मेरी बात सुनो। तुम्हारे पापा हैं एक बड़े ऑफिसर; जबकि मेरे पापा हैं एक मामूली से दुकानदार और मैं ठहरा तुम्हारे ही पापा के ऑफिस का एक अदना-सा क्लर्क। उस पर से तुम हो एक हूर परी। तुमसे शादी के लिए तो एक से बढ़कर एक लड़कों की लाइन लग जाएगी। ऐसी स्थिति में मुझे ही अपनी स्टेटस को अपडेट करने की जरुरत होगी, जिसके लिए मैं लगातार प्रयास कर रहा हूँ। मुझे विश्वास है कि मैं जल्द अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर लूँगा और मैं जब कुछ बन जाऊँगा, तो तुम्हारे फॅमिली वाले मुझे अपने दामाद के रूप में जरूर स्वीकार कर लेंगे। तब तक तुम्हें मेरी प्रतीक्षा करनी होगी। और हाँ, बहरहाल तो तुम्हें अपनी पढ़ाई भी पूरी करनी है। इसके अलावा जब तक हम दोनों अपने लक्ष्य की प्राप्ति न कर लें, अपने-अपने अभिभावकों को यह विश्वास दिलाना न भूलें कि हम दोनों एक दूसरे के लिए परफेक्ट हैं।” रमेश बोला।

“हाँ…, तुम सही कह रहे हो। अब से मैं वैसा ही करूँगी, जैसा कि तुम बता रहे हो। अब हम दोनों की पहली प्राथमिकता कैरियर होगी। तब तक हमें एक दूसरे से मिलना-जुलना भी कम करना होगा।” रजनी बोली।
“और हाँ, कोई भी गुड न्यूज होगी, तो सबसे पहले हम उसे एक दूसरे से ही शेयर करेंगे।”  रमेश ने कहा।
“बिलकुल, हम ऐसा ही करेंगे। वो कहते हैं न कि ‘हिम्मत-ए-मर्दा, मदद-ए-खुदा’। मुझे आशा ही नहीं, वरन पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर भी हमें एक दूसरे से मिलाने में हमारी मदद जरूर करेंगे ।” रजनी बोली।
“हाँ रजनी, पर आज से यही हमारा आदर्श होगा कि “खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बन्दे से पूछे, बता तेरी रजा क्या है ?” रमेश ने कहा।
बहुत जल्द हमेशा के लिए मिलने के दृढ़-संकल्प के साथ उन्होंने खुशी-खुशी एक दूसरे से विदा ली।
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा  रायपुर, छत्तीसगढ़ 492010 Mobile No. 9827914888

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6 comments

  1. बहुत सुंदर कहानी। काश ! आज के युवा ऐसी सोच रखें, तो माता-पिता की चिंता दूर हो जाए।

  2. Very nice story.
    प्रेरक रचना। आज के युवक – युवती को ऐसे अच्छे संस्कार/प्रेरणा देने के लिए लेखक को बधाई और शुभकामनाएँ।

  3. PRADEEP KUMAR DASH

    बहुत सुन्दर संदेश, समाज को दिशा प्रदान करती हुई बेहतरीन कथा ।

  4. सच्चाई को दर्शाती कहानी

  5. विनोद कुमार विक्की

    माता-पिता के लंबे प्रेम और यौवनकाल के प्यार के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए पुनः मिलन की अटूट आस के बीच जुदा होने की मार्मिक कहानी। बहुत बढ़िया

  6. नमस्कार।
    गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता में मेरी लिखी हुई कहानी को शामिल करने के लिए संयोजक आदरणीय श्री अखंड प्रताप सिंह उर्फ अखंड गहमरी जी का हार्दिक आभार। इस प्रतियोगिता के बहाने स्थापित और नवोदित सभी रचनाकारों के रचनाकर्म को सामने लाने का एक अच्छा प्रयास है। अखंड प्रताप सिंह जी समय-समय पर ऐसी प्रतियोगिताओं का आयोजन कर रचनाकारों को सक्रिय बनाए रखते हैं।
    हाँ, इस प्रतियोगिता में शब्द सीमा का बंधन था, जो कि अधिकतम 1000 शब्दों का था। कहानी थोड़ी-सी लंबी होनी थी, पर नियम तो नियम हैं। नियम का पालन तो करना ही था। सो हमने 1000 शब्दों के भीतर ही कहानी लिखी है।
    सनातन संस्कृति के उन्नायक अखंड गहमरी जी की विचारों से प्रभावित होकर मैंने यह कहानी ‘सच्चा प्यार’ लिखने का निश्चय किया। इसकी प्लाट मुझे अपने पड़ोस से ही मिली, जहां कुछ ऐसी ही शादी हुई थी। बस फिर क्या ? कल्पना का पुट देकर लिख दिया।
    आशा है यह आपको भी पसंद आएगी।

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