कहानी संख्या 41 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024
रिटायर्ड सूबेदार अनिरुद्ध सिंह ड्राइंग रूम में बैठे टेलीविजन पर कोई न्यूज़ चैनल देख रहे थे। उनके चेहरे पर चिन्ता की लकीरें स्पष्ट परिलक्षित हो रहीं थीं। उनकी चिन्ता का कारण था भारत पाक सीमा पर सेना के जवान और आतंकवादियों के बीच आज सुबह से ही चल रही मुठभेड़, जो अभी भी जारी थी… और इस ऑपरेशन में उनका बेटा शिवम भी शामिल था। शिवम को सेना में भर्ती हुए अभी दो ही साल हुए थे, और अभी छः माह पहले ही उसकी शादी भी कर दी गई थी। सूबेदार साहब, उनकी पत्नी, पुत्र शिवम और बहु गौतमी यही छोटा सा परिवार था उनका। अरे शिवम की माँ! पानी पिला दो यार जरा एक गिलास।” अपनी पत्नी को आवाज दी थी सूबेदार साहब ने, जो किचन में बहू के साथ डिनर की तैयारी कर रही थी। और कुछ देर बाद पत्नी पानी लेकर आ गयी। अब दोनों ड्राइंग रूम में टीवी के सामने थे। “सुबह से मुठभेड़ चल रही है..आतंकवादी घिर चुके हैं..चार आतंकवादी मारे गये हैं, पर अभी तीन चार और आतंकवादी होने की खबर है, हमारे भी दो जवान इस मुठभेड़ में शहीद हो गये हैं।” एक सांस में ही कह गये थे सूबेदार साहब।अब चिन्ता उनकी पत्नी के चेहरे पर भी देखी जा सकती थी… “कुलदेवी सब ठीक करें।” इतना ही कह पाई थीं वह।
चिन्ता के बीच ही तीनों लोगों ने खाना खाया और सो गये। सुबह चार बजे उठते ही सूबेदार साहब ने मुठभेड़ की ताज़ा स्थिति को जानने के लिए टीवी ऑन किया, तो न्यूज़ चैनल पर न्यूज़ फ़्लैश हो रही थी, “भारतीय सेना के जाबाजों ने कल से चल रही मुठभेड़ में आठ आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा। मुठभेड़ में सेना के भी चार जवान शहीद हुए। शहीद होने वाले जाँबाज हैं सक्षम सक्सेना, विभूति नारायण, दिवाकर शर्मा और शिवम सिंह।” सूबेदार साहब की आँखों के आगे अंधेरा छा गया।उनका लाडला भी शहीद हो गया था। कहीं पत्नी न सुन ले, इसलिए उन्होंने टीवी बन्द कर दिया और वही सोफे पर निढाल बैठ गये। आंसुओं की अबिरल धारा उनके नैनों से बह रही थी। वे सुबक रहे थे…. और सुबकने की यह आवाज अन्दर बैडरूम में उनकी पत्नी के कानों तक पहुंच ही गई थी। वह घबराती हुई बाहर दौड़ी और एकदम से सूबेदार साहब के पास आ गईं। “क्या हुआ शिवम के पापा? आपकी तबियत तो ठीक है न? क्या बात हुई? आप रो क्यों रहे हैं??” एक सांस में ही कई प्रश्न पूछ डाले थे उन्होंने। इस वार्तालाप ने अन्दर अपने बैडरूम में सो रही बहू गौतमी को भी जगा दिया था, वह भी भागती हुई ड्राइंग रूम में पहुंच गई थी। वह भी जानना चाहती थी कि पापा को क्या हुआ था? सूबेदार साहब कुछ कह नहीं पाए, बस फूटकर रोते हुए इतना ही कह पाए कि… “शिवम की माँ.. हमारा शिवम..” और फिर दहाड़ें मारकर रोने लगे।
बस… अब तो घर में कोहराम मच गया। सबका बहुत बुरा हाल था रो-रोकर।गौतमी की तो दुनिया ही लुट चुकी थी.. हाथों की मेंहदी भी अभी तक ठीक से उतर भी नहीं पाई थी…और यह वैधव्य का दंश। देखते ही देखते एक वर्ष का समय व्यतीत हो गया। कहते हैं समय सबसे बड़ा मरहम होता है, बड़े से बड़े घाव को भर देता है। गौतमी को हर समय और हर प्रयास से खुश रखना ही अब सूबेदार साहब के जीने का एकमात्र लक्ष्य रह गया था। वे जब जब भी गौतमी के मुरझाये हुए चेहरे को देखते,अन्दर तक दर्द से कराह उठते थे। वे उसकी खुशी के ही लिए जी रहे थे। एक दृढ निश्चय उनके चेहरे से झलकता था। गौतमी किचन में शाम का खाना तैयार कर रही थी, सूबेदार साहब अपनी पत्नी के साथ ड्राइंग रूम में बैठे हुए थे। आज उन्होंने अपनी पत्नी से कुछ बात करने का निश्चय किया था। “शिवम की माँ! क्या तुम जानती हो कि भगवान ने हमको बेटी क्यों नहीं दी?” सूबेदार साहब ने पूछा अपनी पत्नी से। पत्नी ने जबाब दिया, “ये कैसी बात पूछ रहे हैं आप? मुझे क्या पता? मुझे भगवान मिलते तो उनसे पूछती कि जब उसने हमसे खुशियाँ छीन ही लेनी थी तो कुछ दिन की खुशियाँ क्यों दीं?” ।”मैं बताता हूँ तुन्हे…( सूबेदार साहब बोले)- भगवान ने हमको पहले बेटी इसलिए नहीं दी क्यों कि उनको हमें गौतमी के रूप में ही बेटी देनी थी। गौतमी भी तो हमारी बेटी है न?” ।”हाँ.. हैं तो बेटी जैसी ही…पर आप आज यह बहकी बहकी सी बातें क्यों कर रहे हैं?” पत्नी ने पुछा। “शिवम की माँ.. मैंने एक निर्णय ले लिया है। मैं बहुत जल्दी गौतमी की शादी करने वाला हूँ। मैं एक पिता बनकर अपनी बिटिया की विदाई करूँगा। तुम भी माँ बनकर अपनी बेटी को विदा करोगी न? सूबेदार साहब ने मानों अपना फैसला सुनाया।
“मुझे आप पर गर्व है शिवम के पापा.. सच कहूँ तो मैं भी सोच रही थी कि अभी तो गौतमी का जीवन शुरू ही हो रहा है… कैसे कटेगा उसका पहाड़ सा जीवन? कैसे जी पाएगी वो? मुझे आपके फैसले पर गर्व है, मंजूर है मुझे आपका यह निर्णय। बस गौतमी की सहमति मिल जाय। वैसे.. आपकी नजर में कोई लड़का है क्या?” “हाँ शिवम की माँ… मेरे दोस्त हैं न कैप्टन मोहन? उनसे मेरी बात हो चुकी है….हमारे शिवम के ही साथ का उनका लड़का है, उससे भी बात कर ली है हमने… दोनों पिता पुत्र इस सम्बन्ध के लिए तैयार हैं। बस अब गौतमी मान जाय तो…”। “क्या मानने की बात कह रहे हैं पापा आप?” बीच में ही गौतमी बोल पड़ी, जो अभी अभी डाइनिंग टेबल सजाने के लिए किचन से बाहर आई थी। “बताता हूँ बेटा… पहले खाना खा लेते हैं, फिर बात करता हूँ आपसे।”
सूबेदार साहब ने कहा। खाने के बाद सूबेदार साहब और उनकी पत्नी ने गौतमी को संसार और समाज की भलाई-बुराई समझायी। प्राथमिक ना नुकर के बाद गौतमी ने भी अपने पितातुल्य ससुर की बात मान ली थी। एक माह बाद सुन्दर सा मुहूर्त निकालकर सूबेदार साहब और उनकी पत्नी विदाई की तैयारी कर रहीं थीं…अपनी बिटिया की विदाई की तैयारी… एक उजड़े हुए संसार को पुनः बसाने की तैयारी। सूबेदार साहब के चेहरे पर असीम संतुष्टि के भाव नजर आ रहे थे।
नरेश चन्द्र उनियाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड मोबाइल – 8954140998 मेल- nareshuniyal68@gmail.com
आदरणीय मंच /पटल/ पेज का हृदय की गहराइयों से आभार एवं धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। 🙏
बेहतरीन कहानी है, आज के समाज में रिश्तों की जो अहमियत होनी चाहिए वह इस कहानी से परिलक्षित होता है, समाज विधुर पुरुष को तो आसानी से इजाजत दे देता है, लेकिन एक विधवा स्त्री को मान्यता देने से परहेज़ करता है, आपकी कहानी के माध्यम से महिलाओं के प्रति जो सम्मान उजागर हुआ है ,वह एक अच्छा संदेश है… इस कहानी में आपकी लेखनी आपकी सोच के साथ शब्दों को अच्छी तरह से पिरोने में सफल रही है, ….आगे भी सदैव यूं ही….शुभकामनाएं ।
जी.. हार्दिक आभार, धन्यवाद 🙏
Dinesh Dabral
यह कहानी मेरे दिल को छू गई बहुत ही सुंदर शब्द चयन किया है आपने । हमारे समाज के लिए अपने एक बहुत ही सुंदर संदेश दिया इस कहानी के द्वारा वह समाज जो कहते है कि हम बहुत मॉडर्न हैं, विकसित हो रहे हैं, वास्तव में देखा जाए तो अभी भी वही रूढ़िवादी और वही पिछड़ी बात लेकर चल रहे हैं। महिलाओं के लिए जो सो आज भी हमारे समाज में है बहुत लोग जागरूक होंगे इस कहानी से, वास्तव में आपकी यह कहानी मेरे दिल को छू गई ।।आपके लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं, ऐसे ही लिखते रहिए।
जी.. अनन्त आभार, धन्यवाद आपका 🙏
बहुत सुंदर रचना। समाज को संदेश देती उत्कृष्ट रचना।आपकी लेखनी मे गजब का आकर्षण है।बहुत बहुत शुभकामनाएँ।
नरेश जी, बहुत ही खूबसूरत, हृदयस्पर्शी कहानी है आपकी।समाज के लिए बहुत ही अच्छा संदेश दिया है इस कहानी के माध्यम से आपने। ऐसी ही प्रेरणा दायक रचनाएँ करते रहें।
बहुत बेहतरीन कहानी है जिसमें सेना से जुड़े परिवार की कहानी को बहुत अच्छे ढंग से शब्दों के माध्यम से दर्शाया गया है ।
जी.. हार्दिक धन्यवाद 🙏
समाज के लिए एक जागरूकता परक कहानी दिल छू गयी।हमारा समाज इस घटना से सीख लें। हमारी बहू भी हमारी बेटी की ही तरह होती हैं।बह भी दुनिया में सम्मान एवं आशीर्वाद की सदा हकदार हैं।
Bahut sundar
जी. सादर धन्यवाद 🙏
बड़ी ही मार्मिक,रूढ़िवादी विचारधारा से परे सामाजिक चेतना से ओतप्रोत, बहु-बेटी में एकरूपता, व देशप्रेम से सम्माहित कविता आधुनिक समाज के लिए प्रेरणास्रोत है।बहुत-बहुत शुभकामनाएं।एक आदर्श कहानी।
Dinesh Dabral
खट्टे मीठे अनुभव के साथ बहुत ही सुंदर और प्रेरक कहानी 🙏🙏
वाह बहुत ही सुंदर कथानक 👌👌👏👏
जब एक बेटा देश की रक्षा के लिए सीमा पर आतंकवादियों से लड़ रहा होता है उस समय माता-पिता पत्नी की क्या हालत होती है और फिर बेटे के शहीद हो जाने पर बहु को बेटी मानकर उसकी दूसरी शादी करना, समाज में फैली हुई रूढ़िवादी विचारों को दूर करने की बहुत अच्छी कोशिश है
कहानी का बहुत ही सुंदर,भावनात्मक,व हृदयस्पर्शी चित्रण काबिले तारीफ है👏👏👌👌
जी.. अनन्त धन्यवाद 🙏
जी.. हार्दिक आभार एवं धन्यवाद आदरणीय 🙏कृतज्ञ हूँ 🙏
कहानी देश प्रेम और सामाजिक दृष्टिकोण से प्रेरणास्रोत है। समाज में बहू को बेटी का स्थान देना प्रशंसनीय है।
मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ। 🌺🇮🇳🌺
बहुत ही उत्तम कहानी लिखी आपने आदरणीय भाई साहब
गौतमी के विधवा जीवन में फिर से हरी-भरी बहार लाने वाले बाबा ससुर का उद्देश्य अनुकरणीय है।
जी… आपकी सुन्दर टिप्पणी के लिए ह्रदय तल से आभारी हूँ.. 🙏
Very beautiful inspirational story which inspires everyone.
This story of our martyrs and brave soldiers tells the reality.
Suparb Chachaji.
Million thanks dear rashmi ji 🙏
कहानी बहुत बढ़िया है…अक्सर इस प्रकार की घटनाएं होती रहती हैं इसलिए सास ससुर का फर्ज बनता है कि यदि उनको बहू के रूप में बेटी प्राप्त होती है तो उसका कन्यादान करें.. यही सबसे बड़ा पुण्य है…
बहुत सुंदर रचना। समाज को संदेश देती उत्कृष्ट रचना।आपकी लेखनी मे गजब का आकर्षण है।बहुत बहुत शुभकामनाएँ।
Bahut achi kahani hain lekin Esme Shivam ke sahid hone or gotmi ki Sadi ka time thoda Kam ho gaya Esme or rochak tatya ho sakte the or khanai bahut rochak ho sakti thi ye mere hisab se hain jese ki kahani main gotmi kuch din dipression m rehti subedar sahab usko usse bahar nikalte or fir gotmi desh seva ke liye army join karate or fir uska kanyadan karte ek beti ki tereh
जी.. आपकी बेहतरीन टिप्पणी के लिए अनन्त आभार, धन्यवाद 🙏
आपकी यह कहानी समाज को एक नयी सोच और मार्गदर्शन देती हैं| इतनी उत्कृष्ट कहानी के लिए साधुवाद
जी… आपकी टिप्पणी के लिए शुक्रगुजार हूँ.. 🙏
बहुत शानदार ,मार्मिक रचना ।हमारे समाज के प्रेरणादायक कहानी जो समाज की सोच,दिशा को बदलने में सहायक होगी। सरल,सुंदर भाषा में कहानी लिखी है जिसे पढ़कर आंसू आ जाते है। आप अपनी लेखनी को आगे बढ़ाते रहिए मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है।
जी.. आपकी सुन्दर टिप्पणी के लिए अनन्त आभार, धन्यवाद 🙏
फौजी परिवार की संघर्ष की कहानी है के साथ ही एक बहु को बेटी सा सम्मान देना और हर सास ससुर को पितातुल्ल्य मानना , जीवन के संघर्ष को सरल कर लेती है
जी.. हार्दिक आभार एवं धन्यवाद आदरणीय 🙏कृतज्ञ हूँ 🙏
सुन्दर कहानी अक्सर देखा गया है कि बहुत सी बहू बेटियां इस दुःख में अपनी पूरी जिंदगी निकाल देते हैं कुछ समाज के कारण और कुछ “विधवा ” के रूप में लोगों दिमाग में उपजी सोच की वजह से ।
काश ऐसा हो तो उस बेटी को भी फिर से जीने का अवसर मिले । सुबेदार साहब की सोच को सेल्यूट है ।
अनन्त आभार, धन्यवाद आदरणीय जी… सादर प्रणाम 🙏
काफी अच्छी कहानी है यदि समाज में सभी लोगों मानसिकता इस तरह की हो जायेगी तो समाज के लिए अच्छा होगा। विधवा पुनर्विवाह हमारे देश में अच्छा नहीं माना जाता है, जो कि एक सामाजिक बुराई है। इस तरह साहित्य के माध्यम से समाज को संदेश देना अनुकरणीय है।
जी… सादर आभार, धन्यवाद आदरणीय sir जी.. प्रणाम 🙏
कहनी देश भक्ति के साथ सामाजिक दृष्टिकोण को उजागर करने वाली है। कहानी जहाँ देश पर मर मिटने की प्रेरणा देती है वहीं समाज में विधवाओं को सम्मान एवं सुरक्षा की प्रेरणदेती है। कहानी समाज को संकीर्णता से ऊपर उठाकर देश हित एवं समाज हितों को प्रदर्शित करती है।
मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ 🌺🇮🇳🌺
अनन्त आभार एवं धन्यवाद आदरणीय ji.. प्रणाम 🙏
बहुत शानदार कहानी है सर 👏 🙏
कहानी दिल को छू गई।🥹
आंख भर आईं इस कहानी को पढ़कर।🥹🥹
आपने एक एक वाक्य को इस तरीके से लिखा है मानो मैं कोई सचमुच की घटना देख रही हूं। 🙏👏❤️🥹
बेहद मार्मिक और भावनात्मक कहानी है,कहानी का ताना-बाना आजकल के प्रगतिशील समाज को ध्यान में रखकर बुना गया है, वास्तव में लैंगिक समानता को स्थापित करती एक सशक्त कहानी है। सुखद और सकारात्मक अन्त ने कहानी को एक आदर्श स्वरूप प्रदान किया।पूरा कथानक एकदम जीवन्त लगा। एक अच्छी आशावादी कहानी के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय उनियाल जी को। शुभकामनाएं।
Thanks जी 🙏
A heart touching, emotional, wrenching and a very beautiful story tauji. Thanks for such a lovely story, It will inspire many.
Thanks ji 🙏
बहुत सुंदर कहानी लिखी गई है। यह कहानी हमारे दिल को छू गई। इस कहानी के किरदार एवं इस कहानी की अवधारणा बहुत ही सुंदर है। यह कहानी आजकल कई घरों मे पाई जाने वाली रूढ़िवादी सोच को मात देती है और इसका निष्कर्ष अत्यंत ही मनोहर है। हम आम इंसान नही जानते एक देश के सिपाही और उसके परिजनों के साथ होने वाली समस्याएं, उनका बलिदान, व उनका साहस । यह कहानी ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुंच नि चाहिए मेरा यही मानना है।
हार्दिक आभार, धन्यवाद आदरणीय जी 🙏
बहुत ही सुंदर कहानी।।।आपके लेखन का कायल हो गया नरेश भाई।।। समाज हेतु अनुकरणीय संदेश,इस कहानी के माध्यम से आपने प्रस्तुत किया है।।। साधुवाद।।।
बहुत सुंदर कहानी ।
कहानी में दुख,प्यार और फर्ज तीनों को बहुत ही गहरे से बताया गया है।
सुंदर कहानी सर जी 🙏
प्रेरक कहानी । हृदय की उदारता परिलक्षित करती कहानी। स्वार्थ से ऊपर उठकर उचित निर्णय।
उनियाल जी क्या कहानी लिख दी यार? ग़ज़ब. सूबेदार साहब जैसे लोगों की आज समाज मे आवश्यकता है. आपकी कहानी मार्गदर्शक की भूमिका निभाने में अग्रणी रहेगी.
शानदार रचना भाई साब सदा की तरह। युद्ध या किसी आतंकरोधी घटना के समय सैनिक परिजनों की क्या मनादशा होती है का सटीक विश्लेषण।
बहु को बेटी के रूप में विदा करना एक नई सोच के साथ आगे बढ़ने को प्रेरित करता है
Wow uniyal ji. Very good. Hum sab ki shoch yahi honi chahiye. Aapki kahani prernadayak h. Sabhi ko apani soch subedar sahab ki tarah hi rakhani hogi.
कहानी बहुत बढ़िया है…अक्सर इस प्रकार की घटनाएं होती रहती हैं इसलिए सास ससुर का फर्ज बनता है कि यदि उनको बहू के रूप में बेटी प्राप्त होती है तो उसका कन्यादान करें.. यही सबसे बड़ा पुण्य है…
बहुत ही अच्छी कहानी है । आआज के समय में इस तरह के विषयों पर कहानियों का आना स्वागत योग्य है । मार्मिक व समाज को दिशा देने वाली कहानी के लिये नरेश उनियाल जी बधाई के पात्र हैं ।
बहुत ही सुंदर कहानी लिखी आपने… हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ज़ी….
आदरणीय गुरुदेव सादर अभिनन्दन वंदन। बहुत ही सुन्दर कहानी है। सामाजिक बदलाव के लिए इस तरह की कहानियां अत्यंत उपयोगी हैं। समाज इस तरह की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। हंसता खेलता परिवार से आरंभ ,मध्म में दुःख और अंत सुख की अनुभूति कहानी में चार चांद लगाते हैं। हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय गुरुदेव।🙏