कहानी संख्या 42 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024
सुबह-सवेरे सामने वाले शर्मा जी के घर से आती खटर-पटर की आवाजों को जानने की उत्सुकता उनींदी सी मधु को अपने घर के गेट तक ले आई । उनके घर के आगे सामान से लदे ट्रक को देखकर समझ नहीं आया कि पड़ोसी अचानक कहां जा रहे हैं ?शर्मा आंटी परसों मिली थी, उसने यहां से शिफ्ट होने के लिए कुछ बताया तो नहीं था, लेकिन यह चंचल मन का घोड़ा तीव्र गति से उड़कर कयास लगाने लगा,“दोनों बुजुर्ग हो गए हैं, यहां कोई देखभाल करने वाला है नहीं, इसलिए बेटे आकाश के पास दिल्ली जाने का मन बना लिया होगा।” फिर सवेरे-सवेरे मन के तारों को उलझनें से बचाने के लिए, “ ठीक फैसला लिया है । पिछले महीने जब शर्मा जी अस्पताल में दाखिल हुए थे, तब सभी पड़ोसियों ने उनकी बड़ी मदद की थी।“तभी शर्मा आंटी कह रही थी, “बच्चों के पास जाने का सोच रहे हैं। बुढ़ापे में हारी-बीमारी में मदद के लिए बार-बार पड़ोसियों को कैसे परेशान करें ।” इतने सब में मधु की नींद गायब हो चुकी थी । तब तक नरेश भी सैर करके वापस आ गए । सुबह की चाय का कप पकड़ाते हुए,“सुनो जी, सामने वाले शर्मा जी यहां से शिफ्ट होकर अपने बेटे आकाश के पास जा रहे हैं । उन्हें लंच का निमंत्रण दे आते हैं, फिर पता नहीं कब मिलना संभव हो पाए।” नरेश, “तुम्हें किसने बताया ।” वह ट्रक में सामान…?नरेश – “अरी! पगली वह तो उनके बेटे आकाश का सामान है ।
वह परिवार सहित कनाडा जा रहा है । इसलिए सारा सामान यहां भिजवा दिया है।” अभी पार्क में शर्मा जी मिले थे । कह रहे थे, “अकेले कमाने वाले थे । दोनों बच्चों की मंहगी इंजीनियरिंग एवं डाक्टरी की पढ़ाई के चक्कर में जमा पूंजी तो कुछ बची नहीं, अब केवल पेंशन आती है। जिससे दोनों का गुजारा हो जाता है, इसलिए गाड़ी और महंगे सामान की तो सोच ही नहीं सकते थे ।”
दो साल पहले बड़ा बेटा अंकित कंपनी की तरफ से यूएसए गया था । फिर उसने स्थाई रूप से वहीं रहने का मन बना लिया। इसलिए उसका सारा सामान यहीं आ गया था कि बाजार में औने-पौने दामों में बेचने से अच्छा है आप इसे इस्तेमाल कर लेना। इस्तेमाल के साथ हिफाजत भी हो जाएगी । अब आकाश भी…, नरेश ने ठंडी सांस छोड़ते हुए, “आजकल इन बच्चों की तो पूछो ही मत, दरख्तों के सबल सहारे छोड़कर इन्हें तो विदेशों के आधारविहीन गलियारे ज्यादा भाने लगे हैं।” दशहरा उत्सव में मधु को पड़ोसियों से श्रीमती शर्मा के काफी लंबे समय से बीमार होने के बारे में पता चला । अतः हाल-चाल जानने उनके घर चली गई । श्रीमती शर्मा काफी कमजोर हो गई थी। घर के काम में मदद के लिए पूरे दिन के लिए काम वाली लगाई हुई थी । चाय के दौरान उन्होंने बताया “ आकाश ने यहां रहते हुए मेरे सारे टेस्ट करवा दिए थे तथा उसे मुझे कैंसर होने का पता चल गया था । यहां सारे डॉक्टर उसके जान-पहचान वाले थे। अतः उन्हें मेरे ऑपरेशन तथा ध्यान रखने की हिदायत दे गया था ।
”मधु , “आंटी, जब पता चल ही गया था तो अंकल, आकाश को जाने से मना कर देते ।”आंटी के चेहरे पर ममता और विषाद के कई भाव आए और चले गए । वह बच्चों की ममता में अंधी थी, इसलिए उनके विरुद्ध एक शब्द भी सुनना या बोलना उस ममतामयी माई को मंजूर नहीं था।”“मधु, तुम्हें तो पता ही है आजकल बच्चों की पढ़ाईयां कितनी एडवांस है। बस डॉक्टर दीप्ती आकाश की पत्नी चाहती थी कि बच्चों को विदेश में रहकर पढ़ाया जाए क्योंकि वहां पर पढ़ाई का स्तर काफी ऊंचा है । फिर उसे कनाडा में नौकरी मिल गई थी । अब मेरी समस्या आड़े आ गई । पर, उनका तो सब कुछ पहले से ही तय हो चुका था। अब विदेश का मामला था। वीजा, हवाईजहाज की टिकटें, नौकरी की अप्वाइंटमेंट डेट, ऐसे में मना भी कैसे करते ?”
आंटी आंसुओं को पीने की जितनी कोशिश कर रही थी, आंसू भी उतने ही जिद्दी थे । ना चाहते हुए भी गालों पर लुढ़क ही आए । गालों से आंसू पोंछकर आंटी जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश में इधर-उधर की बातों में मधु को उलझाने की कोशिश करती रही । मधु के संवेदनशील मन ने कई बार फोन पर मदद के लिए पूछा, लेकिन आंटी हंसकर बस मधु सब ठीक है। जब जरूरत पड़ी तो फोन कर दूंगी। आंटी, “मधु, तुम वास्तव में बहुत ही सहृदय, सहयोगी तथा संवेदनशील नारी हो। अपनी घर-गृहस्थी और नौकरी की व्यस्तता के बावजूद भी सबके सुख-दुःख में बराबर खड़ी रहती हो ।”हफ्ते बाद मधु, शर्मा आंटी से फिर मिलने चली गई, लेकिन वहां श्रीमती शर्मा को कांपते हाथों से कीमती सामानों की झाड़-फूंक करते देखकर हैरान रह गई । कामवाली बाई गीता को डांटा,”यह सब क्या है..?” गीता, “मैडम, मैं तो हरोज झाड़-फूंककर इनकी अच्छे से सफाई करती हूं और इनको भी कपड़ा लगाने से मना करती हूं । पर, यह मानती ही नहीं है ।”आंटी कांपते हाथों से मधु का हाथ सहलाते हुए, “कल जोर से आंधी आई थी। अब बच्चों का इतना कीमती सामान मिट्टी से खराब हो जाएगा।” मधु गुस्से में,” हां आंटी, बड़ा महंगा और कीमती सामान है। बच्चों के लिए महंगे और कीमती तो आप भी हो ।
आपके बदन ने भी इंजेक्शनों के शूल और चीर-फाड़ की आंधियों के प्रहार का सामना किया है। फिर आपके जख्मों को सहलाने और उनसे रिसते मवाद को पोंछने कोई नहीं आया । आपके डॉक्टर बेटे ने अपनी सहयोगी डॉक्टरों को आपकी हिफाजत का जिम्मा सौंपकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली।”
आंटी कांपती जुबान में केवल हां-हूं करके रह गई।हां, ठीक कह रहो हो आंटी, “विदेशों में बैठे बच्चे जब कभी वतन वापस आएंगे, उन्हें चाहे कंधों पर झुलाने वाले शजर सुरक्षित मिलें या ना मिले, पर, उन्हें उनका कीमती सामान जरूर सुरक्षित मिलेगा, क्योंकि उनकी हिफाजत उनके हिफाजतदारों के हाथों में थी ।” आंटी आवाक मधु की तरफ देखते हुए, लेकिन कांपते हाथों से सामान की झाड़-फूंक का सिलसिला अनवरत जारी थी।
अर्चना कोचर ,277 सुभाष नगर रोहतक हरियाणा ,फोन 7206140615
हिफाजतदार – मुझे इस कहानी को लिखने की प्रेरणा आधुनिक युग के परिवेश से मिली। जिसमें ऊंची उड़ान के सपने लिए ज्यादातर बच्चे विदेशों में या एमएनसी में स्थापित हैं तथा घर के बुजुर्गों के हिस्से में बच्चों की जगह केवल कीमती सामान की हिफाजत रह गई है।