कहानी संख्या 43 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024
“भैया कल आपका रिज़ल्ट आ रहा है, आपको मिलने वाले गिफ्ट्स में बराबर शेयर लूँगी।”सीनू ने कल रिज़ल्ट आने की न्यूज़ भैया को बताते हुए कहा।“अरे सीनू, गिफ्ट्स तो तब मिलेंगे जब मेरे नाइन्टी परसेंट से ऊपर आयेंगे।पापा की बात याद है ना।”नितिन बोला। सीनू ने भाई का हौसला बढ़ाते हुए बोला,”चिन्ता मत करो भैया।आपके तो नाइन्टी फाइव से भी ज़्यादा बनेंगे।”दोनों भाई-बहन ऐसे ही बातें कर रहे थे कि माँ ने उन्हें नीचे बुला लिया,खाने के लिए।प्रशान्त जी घर आ चुके थे।अपने बेटे के लिए वो आई आई टी के सपने देख रहे थे,पर उसे तो प्रशासनिक सेवा में जाने की इच्छा है।पापा के दबाव में ही उसने सांइस पढ़ी। परीक्षा परिणाम की चिन्ता में आज वह न ठीक से खाना खा पाया और न ही उसे नींद आ रही थी।मिताली ने उसका मन समझ लिया था, इसलिए आज वो बच्चों के कमरे में सोने आ गई। बातों में लगाकर बेटे का ध्यान बटाने का पूरा प्रयास किया उसने।इसी के चलते नितिन को सुबह होते थोड़ी नींद आ गई।“नितिन नीचे आ बेटा,कब तक सोयेगा?तेरा रिज़ल्ट आ गया।”पापा की आवाज़ से घबराकर वो बड़बड़ाते हुए उठा,”अब तू गया बेटा।”
प्रशान्त जी प्रसन्नता के साथ मिठाई का डिब्बा हाथ में लिए खड़े थे। नितिन की घबराहट कुछ कम हुई,पर नब्बे प्रतिशत के ऊपर परिणाम आया होगा,ये विश्वास उसे नहीं था।काँपते हाथों से उसने भगवान को हाथ जोड़े और मम्मी-पापा के पैर छुए।पापा ने उसे रिज़ल्ट की फ़ोटो कॉपी पकड़ाई।”पापा!”आश्चर्य से अपने पापा की तरफ़ देखते हुए नितिन रो पड़ा।
”साॅरी पापा, मैं आपकी इच्छा पूरी नहीं कर सका।”नितिन को बीच में ही रोकते हुए प्रशान्त जी ने बेटे को गले लगाते हुआ कहा,”ये क्या कम है,कि आर्ट्स पढ़कर प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते हुए भी मेरी इच्छा पूरी करने के लिए तू साइन्स पढ़ा और इकहत्तर परसेंट लाया।”उन्होंने उसे न केवल ख़ुशी से गले लगाया,बल्कि उसे अपनी इच्छा से पढ़ाई करने और आई ए एस की तैयारी के लिए अच्छी कोचिंग ढूँढ कर तैयारी में मदद करेंगे,ये भी कह दिया। नितिन को विश्वास नहीं हो रहा था कि ये उसके पापा ही कह रहे हैं। उसने माँ की तरफ़ देखा तो वो भी मुस्कुरा दी।पूरा दिन बड़ी ख़ुशी से बीता। प्रशान्त जी सभी दोस्तों और मिलने वालों को यही बात बता रहे थे कि मेरे बेटे ने मेरे लिए मेहनत की और जिस विषय में बिल्कुल रुचि नहीं थी, उसमें भी वह इकहत्तर परसेंट ले आया।
उनकी इन बातों पर उसे बिल्कुल विश्वास नहीं हो रहा था।पूरी परिक्षाओं में वो ख़ुद रात-रात भर जागते थे, अपने ऑफ़िस से एक महीने की छुट्टी भी ली। बारहवीं का साल शुरू होते ही उसकी ट्यूशन शुरू करवाने वाले उसके पापा आज जो व्यवहार कर रहे थे,वो उसके लिए विश्वास योग्य बिल्कुल नहीं था।रात को सभी डायनिंग टेबल पर बैठे खाना खा रहे थे।उससे रहा नहीं गया और उसने आख़िर मौन तोड़ते हुए पूछा ही लिया,”पापा आप सचमुच मेरे रिज़ल्ट से ख़ुश हैं!? मैं इन्जिनियरिंग के लिए अपना मन बना चुका हूँ।आप चिन्ता मत कीजिए,मेरा नम्बर आ जायेगा। आप जो व्यवहार सुबह से कर रहे हैं, उससे मुझे लग रहा है कि आप दुःखी हैं और मुझसे गुस्सा भी।बताईए ना पापा,आप क्या सोच रहे हैं?” प्रशान्त जी बोले,”अभी खाना खा ले,फिर बात करते हैं।”मिताली सबके लिए आइसक्रीम लेकर लाॅबी में आई।सीनू भी जानना चाहती थी, पापा के व्यवहार में आए बदलाव का राज़। अतः वो भी आकर बैठ गई।
प्रशान्त जी-”निक्कू,तू जानना चाहता है ना कि मैं तेरे रिज़ल्ट से ख़ुश हूँ या नहीं,तो बेटा मैं बहुत ख़ुश हूँ। तूने पूरे साल मेहनत की।जिस गणित की परिक्षा में बचपन में तुझे डर से बुखार आ जाता था, उसे तूने सिर्फ मेरे लिए चुन लिया।कल मेरे दोस्त अतुल से बात हुई तो मैंने उसे तेरे बारे में बताया। वह दो मिनिट कुछ नहीं बोला, फ़िर उसने कहा कि जब रिज़ल्ट आने वाला हो तो तू या भाभी उसके साथ ही रहना, कहीं ये उसका जीवन का आख़िरी परिणाम न बन जाए।उसकी बात सुन मैं गुस्से में चिल्लाया कि वो ये क्या बोल रहा है,तब उसने बताया कि मेरी ही तरह उसके एक पड़ोसी ने भी अपनी बेटी पर दबाव बनाया था कि वो काॅमर्स में पढ़े और लाॅ कर उसकी कम्पनी सम्हाले।
जबकि वो साइन्टिस्ट बनना चाहती थी।उसके चौंसठ प्रतिशत से अधिक न बन पाये।पिता ने बहुत डाँटा,साथ ही उसका ये कह देना कि इतने घटिया परिणाम के बाद भी तू चैन से कैसे खा-पी रही है,कोई और होता तो शर्म से ही मर जाता,वो बच्ची ये मानसिक तनाव को झेल ना सकी और पंखे से झूल गई।जब तक घरवालों को पता चला,उसकी साँसें थम गई थीं।उसकी माँ भी अपना आपा खो बैठी है ।आखिर में वो मुझसे बस यही बोला कि अब मैं सोच लूँ कि मुझे क्या करना है और उसने मोबाइल बन्द कर दिया।”नितिन के सिर पर हाथ फेरते हुए वो आगे बोले,”बेटा! मैं तेरे रिज़ल्ट से इतना नाराज़ तो नहीं होता क्योंकि मैं इतना ज़िद्दी नहीं हूँ।पर मेरी नाराज़गी को सोच कर कहीं तू ऐसा कोई कदम उठा लेता तो मैं अपने-आप को कभी क्षमा नहीं कर पाता, शायद पागल ही हो जाता।बेटा अगर तेरे दादाजी ने मुझे शहर ना आने दिया होता और उस ज़माने में एक-एक रुपया बचाकर मुझे यहाँ पढ़ने ना भेजा होता तो आज मैं वहीं गाँव में खेती कर रहा होता।कॉलेज प्रोफ़ेसर बनना मेरा सपना था और बाबा ने मुझे अपने सपनों को जीने दिय। फ़िर मैं तो अपनी इच्छा तुझ पर थोप बैठा था।अपनी इच्छा और जिद में मैं तेरे सपने ही नहीं तेरा जीवन बर्बाद कर देता,बेटा।तेरी प्रतिभा,जो समाज को एक उत्कृष्ट प्रशासनिक अधिकारी के रूप में बहुत कुछ दे सकती है, वो सब कुछ ख़त्म करने वाला था।समय रहते मैंने ये सब बचाकर, ख़ुद को बहुत बड़ा उपहार दिया है,अपने बच्चों की हँसती-खिलखिलाती ज़िन्दगी का उपहार।”कहते हुए उन्होंने दोनों बच्चों को गले लगा लिया।
अरूणा अभय शर्मा जोधपुर (राजस्थान) 8875015952