कहानी संख्या 44 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024
फोन पर रोती हुई माँ की आवाज से द्रवित सोनी ने कहा, ‘‘माँ जैसा आप चाहें करें मैं आपके साथ पहले भी थी और आज भी हूँ।’’ सोनी की ममतामयी वाणी से सहारा पाती हुई आशा ने फोन रख दिया और अपने जीवन के विषय में सोचने लगी। पाँच भाई बहनों में वह चौथे नम्बर पर थी उसका पालन-पोषण वैसे ही हुआ जैसे बीच के बच्चों का होता है अर्थात् जितना प्रेम व महत्व घर के सबसे बड़े व सबसे छोटे का होता है, वैसा उसे घर पर कभी न मिला, फिर भी वह अपने दोस्तों के प्रेम में सराबोर खुशी से जी रही थी वह खेलने में, अनुशासन में पढ़ने में अव्वल थी पर घर वाले उसकी इन उपलब्धियों से तब तक उदासीन रहे, जब तक हाईस्कूल में वह प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। हाईस्कूल से एम0ए0 तक लगातार प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होते हुए जब अपने जीवन के लक्ष्य के बिल्कुल करीब थी, तभी उसे एक झटका लगाऔर सब कुछ बिखर गया, वह दिशाहीन सी हो गयी। उसका लक्ष्य विभागीय स्कालरशिप प्राप्त कर रिसर्च करने व यूनिवर्सिटी में लेक्चरर बनने का था, किन्तु विभागीय पक्षपात के चलते उसे स्कालरशिप से वंचित कर दिया गया।
तभी भाग्यवश उसका एडमिशन एल0टी0 में हो गया व उसको पास कर एम0एड0 कर वह राजकीय शोध संस्थान में शोध सहायक के पद पर कार्य करने लगी। तभी उसका विवाह आकाशवाणी में कार्यरत सुधांशू से हो गया।
ससुराल व मायके के वातावरण में कोई सामंजस्य नहीं था। ससुराल में पर्दा प्रथा, छुआछूत व अंधविश्वासों की प्राथमिकता थी पहले ही बार मायके आते ही उसने पिता से शिकायत की, जिस पर उन्होंने उसे यह कहकर शान्त कर दिया कि ट्रान्सफर वाली नौकरी है कुछ दिन काट लो, लड़का तो ठीक है। अब वह क्या बताती कि लड़का मुँह से कम हाथ से ज्यादा बात करता है कहीं से भी वही अफसर वाली पद की गरिमा के अनुकूल व्यवहार नहीं करता। बीमार पिता अधिक परेशान न हो। अतः इसे ही अपनी नियति समझकर वह शान्त हो गयी।
समय बीतने के साथ उनके एक बेटा व एक बेटी हुए व सुधांशू का भी विभिन्न राज्यों में ट्रान्सफर होता रहा, प्रशिक्षित होने के कारण उसे भी हर जगह टींचंग मिल जाती थी। समय बीतते देर नहीं लगती, अचानक उसे अपने होम टाउन में सरकारी स्कूल में शिक्षिका के पद पर नौकरी मिल गई, जिसका सहारा लेते हुए सुधांशू ने भी अपना ट्रान्सफर वहीं करवा लिया, और रिटायरमेन्ट तक जोर-तोड़ लगाकर वही रहा। समय बीतने के साथ सुधांशू एवं उसने मिलकर सुधांशू के आफिस के पास ही अपना घर खरीद लिया वहाँ से बच्चों का स्कूल भी पास था वे साइकिल से चले जाते थे। अपने घर को आशा ने बड़े मन से सजाया, नौकरी के बाद उसकासमय केवल अपने बच्चों के साथ बीतता था, कभी-कभी अम्मा पापा के यहाँ भी चली जाती थी।
कुछ समय बाद बड़े होने पर बच्चे नौकरी के लिये कोचिंग करने बड़े शहर में चले गये, शीघ्र ही बेटी को बैंक में व बेटे को एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई। आशा सुधांशू से ज्यादा बात नहीं करती थी क्योंकि वह अत्यन्त गुस्सैल था व उसका ज्यादातर समय बाहर ही बीतता था, घर तो वह केवल खाने व सोने आता था। नौकरी करते रहने से वह भी बिजी थी कि अचानक एक फोन काल ने उसको सोते से जगा दिया व अपनी गृहस्थी बचाने हेतु उसने वी0आर0एस0 लेने का निश्चय कर लिया। हुआ यह कि सुधांशू का मोबाइल ठीक नहीं था अतः वह लैण्डलाइन से बात करके घर से निकला ही था कि लैण्डलाइन की घंटी बजी। आशा ने फोन उठाया तो उधर से किसी औरत की आवाज आई, जो सुधांशू से बात करना चाहती थी। आशा के यह पूछने पर कि वह कहाँ से बोल रही है उसने बताया कि वह सुधांशू के घर से बात कर रही है आशा सन्न रह गई, उसने जब उस औरत से उसका नाम पूछा तो उसने फोन काट दिया।
आशा का सर चकरा गया, उसे अब सुधांशू का अपने प्रति बदलते व्यवहार का कारण समझ में आने लगा, आये दिन वह उससे मारपीट करता, वह कहता भी था तुझे घर से निकाल दूँगा। उसके बार-बार कहने पर भी कि अब तो सुधर जाओ, इस उम्र में मार खाने में शारीरिक कम मानसिक पीड़ा ज्यादा होती है शर्म आती है, पर वह उसको छोटी-छोटी बातों पर मारता था। उसने उसका बैंक एकाउन्ट देखा तो सन्न रह गई, रिटायरमेन्ट में पाये लाखो रूपये उसने उड़ा दिये थे, हर दूसरे दिन 10 हजार रूपये बैंक से निकाले गये थे। उसी समय तबियत खराब होने के कारण बेटी घर आयी थी देखा पापा तो दिन में भी शराब पीये रहते हैं व कम्प्यूटर में पोर्न पिक्चर आदि में व्यस्त रहते है, उसने माँ से बताया। दोनों माँ बेटी ने प्लैनिंग की और घर में रिनोवेशन का कार्य आरम्भ किया, जिसमें उन्होंने सुधांशू का ज्यादा से ज्यादा पैसा घर पर लगाया। इसी बीच बेटी की शादी भी तय हो गयी, उसकी शादी धूमधाम से हुई, पर बाद में आशा को पता चला कि सुधांशू ने अपने दो दोस्तों से लाखों रूपये कर्ज लिया, लेकिन वह ऐसी बनी जैसे उसे कुछ पता नहीं, क्योंकि उसे पता था कि उनका पैसा तो वह चुकायेगा ही।
सत्तर साल के सुधांशू के मोबाइल पर ढेरो लड़कियों से गन्दी-गन्दी चैटिंग देखकर जब वह उससे बात करती तो तुरन्त कह देता अरे किसी ने मोबाइल हैक कर लिया है या तुम देहाती हो या आज कल 90ः लोग यह करते हैं। इसके साथ ही उसके प्रति उसका व्यवहार उग्र हो रहा था, एक दिन तो उसने उसे इतना मारा कि आशा की सहनशीलता समाप्त हो गयी, मजबूर होकर उसने 100 नं0 डायल कर दिया, उधर से कोई फोन उठाता उससे पहले सुधांशू ने मोबाइल छीनकर उसे कमरे में बंद कर दिया।
सुबह होते ही मोबाइल मिलते ही उसने अपने भाई व बेटे को फोन कर दिया, भाई-भाभी तुरन्त आये और सुधांशू को डाँटा और आशा को हास्पिटल ले गये, क्यों कि सीने में बहुत दर्द था, बाद में बेटे ने भी फोन करके सुधांशू को हड़काया तो वह कुछ सहमा सा लगा और कुछ दिन उसका व्यवहार ठीक रहा, किन्तु पुनः वह दूसरी औरतों की संगत व पैसे उड़ाने में लिप्त हो गया।
सुधांशू से अलग होने पर बच्चों के विवाह में कोई अड़चन न आये, इस सामाजिक भय के कारण उसके गुस्सैल स्वभाव को तो आशा सहती रही, किन्तु अपने स्त्रीत्व का अपमान अब वह सहने को तैयार नहीं थी। सुधांशू के रवैये में कोई अन्तर नहीं आ रहा था। अतः उससे अलग होने के अपने निर्णय को उसने बेटे व बेटी को बताया, जिसमें उनका साथ पा उसे लगा कि वह एक कैद से मुक्त हो स्वतंत्र वातावरण में साँस ले पा रही है। उसने तुरन्त वकील को फोन मिला दिया।
डॉ0 अलका श्रीवास्तव, प्रयागराज (उ0प्र0) मो0नं0-9794273789