कहानी संख्या 48 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024
अनिश्चितताओ से भरी इंसान की ज़िंदगी में जिस तरह मौत निश्चित है उसी तरह इंसान के दिल-दिमाग को पल-पल घेरे रहने वाले हालात भी अनिश्चित रूप कब क्या निश्चित कर जायेंगें समझना बहुत मुश्किल है। इसलिए शायद कहते है कि हालात इंसान से कुछ भी करवा सकते है। इंसान अपने हालात से कभी-कभी इतना मजबूर हो जाता है कि फिर इंसान का दिल और दिमाग एक साथ जैसे हालात के वशीभूत हो जाते है। और फिर इंसान अच्छा-बुरा, गलत-सही, उचित-अनुचित से परे होकर सिर्फ उस हालात से मुक्ति या समाधान पाने के लिए कोई फैसला करता है। ऐसा ही एक फैसला कैलाश ने अपने परिवार के हित में अपने बिगड़े हालात से तंग आकर लिया था।अभी कल ही की बात है, लंच टाईम से कुछ देर पहले मेरे ऑफीस में कार्यरत कैलाश मेरे पास आकर धीरे से बोला, “राकेश भाई ज़रा वहा बरामदे में आओगे एक मिनिट के लिए, कुछ काम है आपसे।” कैलाश को जब भी पैसों की जरूरत होती वो इसी तरह अकेले में बुला कर मुझसे पैसे उधार मांगा करता। उसके बेटे की बीमारी के लिए उसे हर बार पैसों की ज़रूरत पड़ती थीं। बरामदे में पहुंचते ही मैने पूछा, “क्या बात है कैलाश? बेटा कैसा है तुम्हारा? वहीं जानी पहचानी सी फीकी मुस्कान लिए कैलाश ने कहा, “क्या बताऊं, अब बेटे को दुसरी आंख से भी धुंधला दिखाई देने लगा है। 18 साल का मेरा बेटा न जाने मेरे बाद अपनी जिंदगी आँखों की रौशनी के बिना कैसे जिएगा। यही सोच-सोच कर मै बहुत घबरा जाता हूँ राकेश भाई।
कैलाश को दो बेटियां भी थी और सबसे छोटा एक बेटा था जो दुर्भाग्य से किसी दिमाग की बीमारी के चलते उसके एक आंख की रौशनी समय के साथ धुंधली होती चली गई थी और अब ये हालात थे कि उसे दुसरी आंख से भी धुंदला दिखाई देने लगा था। कैलाश के बड़ी बेटी की शादी हो चुकी थीं और अभी 2 साल पहले उसकी 18 साली की बेटी ने ट्रेन के नीचे आकर अपनी जान दे दी थी। मात्र 18 साल की जवान बेटी ने न जाने किस हालात से तंग आकर अपनी जान दे दी थी ये बात खुद कैलाश भी नहीं समझ सका था। इन सदमों को जाने किस तरह झेलते हुए कैलाश अपनी जिंदगी जी रहा था। बेटे के इलाज़ के लिए उसने कई लोगों से कर्जा उधार ले रखा था जिसे उसके वेतन से चुकाना उसके लिए असंभव होता जा रहा था। लगभग अंधे होते जा रहे बेटे को स्कूल ले जाना और लाने का काम कैलाश की पत्नी किया करती ।
कैलाश अपने इन पारिवारिक दुखों के चलते अंदर ही अंदर टूट कर बिखरता जा रहा था। मैने पूछा, “कैलाश! क्या बेटे के आंखों की रौशनी वापस आ जाए ऐसा कोई इलाज संभव नहीं है? कैलाश बहुत उदास हो कहने लगा, “बहुत पैसा खर्च हुआ है बेटे के इलाज़ में, वो कहने लगा, “डॉक्टर उम्मीद तो बंधाते है पर कोई खास परिणाम सामने नहीं आया है अब तक राकेश भाई
। कुछ समझ में नहीं आता कि आगे उसका क्या होगा। मेरे रिटायर्डमेंट में 2 साल बचे हैं। मैं और मेरी पत्नी आखिर कब तक उसका साथ देंगे। हमारे बाद उसका क्या होगा। कैसे जिएगा वो अपनी ज़िंदगी इन हालात में। बस यही सोच कर बहुत घबरा जाता हूं। ऊपर से कर्जदारों की रोज़ बाते सुननी पड़ती है सो अलग। इसलिए ही महीने के आखिर मे मुझे छुट्टी लेनी पड़ती है। क्योंकि कर्जदार अब ऑफिस मे भी आने लगे है अपना कर्जा वसूलने। इस तरह सबसे मुह छिपा कर जिंदगी जीना बहुत तकलीफ देता है राकेश भाई । इतना कह कर उसने मुझसे कुछ पैसे उधार मांगे। मैने कल देने की बात कही तो वो जैसे कुछ निश्चिंत सा हो कर अपने टेबल की ओर चल दिया।
मैं सोचता रहा कि वाकई कैसे जी रहा है ये इंसान। इतने दुःख, तकलीफ़ से भरी उसकी जिंदगी में सुख और खुशियों ने इतने फासले बना रखे हैं कि वो चाह कर भी कभी मुस्कुरा नहीं पाया। जिंदगी के इतने दर्दनाक फैसलों के खिलाफ़ आख़िर कब तक और कैसे लड़ पाएगा कैलाश अकेला। कैसे ढूंढ पाएगा वो इन समस्याओं का समाधान जो लगभग असंभव सा लग रहा था मुझे। इनकम के नाम पर उसकी ये नौकरी ही थी। और अन्य कोई आय का साधन नहीं था। और मुझ जैसे दोस्त या शुभचिंतक आखिर कब तक उसकी सहायता कर पायेंगे। इंसान का वक्त बुरा चल रहा हो तो रिश्तेदार भी मुंह मोड लेते है। कोई साथ नहीं देता।
मैं यहीं सब सोचता हुआ घर लौटा था और फ्रेश हो कर चाय पी ही रहा था कि मोबाइल पर ऑफीस के व्हाट्स ऐप ग्रुप पर मैसेज देखा। लिखा था, “कैलाश ने ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली।” मैं स्तब्ध रह गया। दिल दिमाग जैसे जम गए थे मेरे। दोपहर ऑफीस में कहीं उसकी सारी बातें याद आने लगी। उसने कहा था,” दो साल रहे गए हैं रिटायर्डमेंट को। उसके बाद बेटे का क्या होगा। सर पर इतना कर्जे का बोझ है, कैसे चुकाऊंगा इसे ? शायद उसकी ज़िंदगी ने उसके लिए किए इतने दर्दनाक फैसलों के खिलाफ़ कैलाश ने अपने बेटे के भविष्य और कर्जदारों से मुक्ति की राहत के लिए बस यही आत्महत्या का फ़ैसला चुन लिया था। कैलाश शायद समझ गया था कि जीते जी उसके जिंदगी की कीमत कुछ भी नहीं है सिवा दर्द,चिंता,तकलीफ,परेशानियों और जिल्लतों के। किन्तु उसकी मौत की कीमत उसकी जिंदगी से इतनी ज्यादा बड़ी दिखाई दी होगी उसे कि उस कीमत से उसकी और उसके घर-परिवार की सारी समस्याओं का,परेशानियों का हमेशा के लिए खात्मा हो सकता था। उसकी मौत के बाद उसकी जगह उसके बेटे को नौकरी मिल जानी थी जिससे वो आत्मनिर्भर हो जाता। उसकी पेंशन तथा ग्रॅजुटी की रकम भी पत्नी को मिलेगी और जो कर्ज कैलाश ने लोगों से लिया था वो अपनी जिम्मेदारी पर लिया था जो उसकी मौत के साथ खत्म हो गया था
। उसकी पत्नी के नाम से तो कोई कर्जा नहीं था इसलिए कैलाश ने लिए कर्जे के प्रति वो जिम्मेदार भी नहीं थी। कैलाश का यह फ़ैसला कितना उचित-अनुचित था, ये सवाल भी बेहद सदमे में हैं।
किशोर एस.कुदरे कल्याण पूर्व,Pin code-421306 जिला-ठाणे (महाराष्ट्र) Mo.No.7977775737
हकीकत को बयान करती , कई बार इन्सान अपने दुखों से इतना परास्त हो जाता है कि वह आत्महत्या जैसा कदम उठा लेता है। हिम्मत रखता तो शायद कोई ओर रास्ता भी निकल आता।
हालात कभी कभी अपनी हिम्मत पर भी हावी हो जाते है नीलम जी। बहुत शुक्रिया आपका मेरे कहानी को मन से पढ़ने समझने और उस पर अपनी टिप्पणी से मुझे अवगत कराने के लिए 🙏