कहानी संख्या 49 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024
जिंदगी के 45 बसंत पार कर चुकी शैली, आज दोराहे पर खड़ी थी। पारिवारिक दायित्वों को निभाते हुए, उसके कोरे-क्वारे सपने साकार नहीं हो सके थे। जागते नयनों से देखें गए वे सुनहरे स्वप्न अधमुंदी पलकों पर आकर कुछ देर के लिए, ठहरे तो जरुर थे, लेकिन बेदर्द जिंदगी ने उसके साथ एक ऐसा दाँव खेला, कि वो स्वर्णिम स्वप्न कुछ पल बाद ही छिन्न-भिन्न होकर बिखर गये थे।आज अतीत के उमड़ते-घुमड़ते, श्वेत-श्याम बादलों के बीच दिनेश का मनोहर मुखड़ा बिजली की मानिंद उसकी आँखों के सामने रह-रहकर कौंधने लगा। न चाहते हुए भी अतीत के पृष्ठ दर पृष्ठ खुलते चले गए।कॉलेज में पढ़ाई करने के साथ-साथ अपने परिवार को आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से शैली ने एक ऑफिस में कम्प्यूटर ऑपरेटर का काम करना शुरू कर दिया था । उसी समय कार्यालय में अपने सहकर्मी बलिष्ठ कद-काठी वाले गोरे-रंग के सुदर्शन नवयुवक, दिनेश के व्यक्तित्व से वह बहुत अधिक प्रभावित रहने लगी थी।दूसरी ओर, देखते ही मन-मोह लेने वाली आकर्षक गौर वर्णा, लंबी, पतली और मधुर भाषणी शैली भी बहुत खूबसूरत लड़की थी। उसका इठलाता यौवन, गदराया बदन और कमर तक झूलते काले-काले, लंबे-लंबे घुँघराले बाल और भूरे रंग की बादामी आँखें देखने वाले को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी। सामने वाला ऐसी सुंदर लड़की से बातें करके स्वयं को भाग्यशाली समझने लगता।
दिनेश भी उसके आकर्षक एवं निर्दोष रूप जाल पर मोहित हो चुका था। सुदर्शन नवयुवक दिनेश का शैली के आगे पीछे भँवरों की तरह चक्कर लगाना, कार्यालय में किसी से छिपा नहीं था। वैसे तो परिवार की रजामंदी से इन दोनों की सगाई भी हो चुकी थी। और कुछ माह बाद यह दोनों शीघ्र ही विवाह बँधन में बँधने वाले थे। कार्यालय में दोनों का आपसी प्रेम और लगाव देखकर साथी सहकर्मियों ने इन्हें सोहनी-महिवाल का नाम दे रखा था।अब जबकि सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था कि तभी, अचानक शैली की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया, कि उसके मधुर, सुहाने सपने साकार होने से पहले बीच राह में ही दम तोड़ गए। उसका प्यारा सा हँसता- खेलता परिवार अचानक तहस-नहस हो गया।एक दिन रात्रि में शैली के पिताजी को हृदयाघात हुआ और अस्पताल जाने से पूर्व उनके प्राण पखेरु उड़ गए। शैली के परिवार में शैली उसकी मम्मी और तीन छोटे भाई-बहन थे । वे तीनों अभी पढ़ रहे थे। उसके परिवार का पालन-पोषण उसके पिताजी की खून- पसीने की कमाई गई धनराशि से हो रहा था। शैली के नौकरी करने से अब बस किसी तरह से ठीक-ठाक गुजर-बसर होने लगी थी। लेकिन अचानक शैली के परिवार पर बिगड़े नसीब का ऐसा वज्रपात हुआ, कि उसके पिताजी के स्वर्ग सिधार जाने के कारण अब शैली अपनी माँ और छोटे भाई-बहनों के साथ, बेसहारा खड़ी रह गई।
और इस तरह से बदली विपरीत परिस्थितियों में शैली ने हिम्मत नहीं हारी। उम्र के चौबीसवें पड़ाव पर अब वह काफी समझदार हो चुकी थी। उसकी कर्तव्यनिष्ठता और परिश्रम से किए गए काम को देखकर कार्यालय के बॉस ने शीर्घ ही उसकी पदोन्नति भी कर दी थी। अपने परिवार की भलाई के विषय में सोचकर अब शैली ने दिनेश से दूरी बनाने के लिए सतर्कता बरतनी शुरू कर दी। दिनेश के प्यार में शैली की गुलकंद सी मिठास घोलती मुलाकातों पर अब विराम लग चुका था। सच में तो, इन परिस्थितियों ने शैली को निर्मोही बना दिया। अतः प्रेम उद्गार प्रकट करने वाले, झंकृत हृदय तारों से निकलने वाले प्रणय- गीत के मधुरिम
स्वर मंद पड़ गए।अभी साल भर पहले ही तो शैली के अन्तस में दिनेश के प्रेम का अंकुर फूटकर हरियाली लताओं सा लहराया था। जब उसकी मुहब्बत का सहारा मिला तो, उसकी पतझड़ सी सूनी जिंदगी हरे-भरे सावन सी महक उठी। हँसती, गुनगुनाती, खिलखिलाती शैली हसीन सपनों के पंखों पर सवार थी। जहाँ वह हाथ बढ़ाकर सारा जहान मुट्ठी में भर लेना चाहती थी। लेकिन, वो कहते है न.. कि इंसान के चाहने से कहाँ कुछ होता है..? सच में तो, वही होता है, जो मंजूरे खुदा होता है।
अपने जीवन में बदली परिस्थितियों से सामंजस्य स्थापित करती शैली टूटकर बिखरने से पहले ही सँभल गई।अतः उसने अपनी आँखों में बसे स्वप्निल संसार को छोड़कर अब जिम्मेदारी के पायदान पर पैर रख लिया था । तभी तो उसने क्रूर नियति के हाथों मजबूर होकर, मन के हरे-भरे लहलहाते संसार को तपते मरुस्थल में बदल दिया। इसलिए बार-बार विद्रोह करने पर उतारु मन को काबू में करने का यत्न करती रही। अकेले में अपने प्यार के लिए आसूँ बहाकर वियोगी मन को मनाती रही। तब कहीं जाकर, उसने प्यार भरी झमाझम बरसात को पहले जुदाई में बदला और फिर विरह-अंगारों पर चलना मंजूर कर लिया।
एक दिन पूरी रात झमाझम बरसात होती रही। ऐसा लग रहा था, जैसे आज बादल भी किसी के गम में टूट पड़ने को आतुर हैं। यूँ ही पूरी रात बादल उमड़-घुमड़ कर गरजते- बरसते रहे। अतः अगले दिन कार्यालय में बहुत कम लोग आए थे। दिनेश ने आज अच्छा मौका देखकर शैली की बेरुखी के विषय में पूछ लिया। निराश शैली ने दिनेश से कुछ नहीं छिपाया और अपने परिवार के सुख-दुख की बातें और छोटे भाई-बहनों को पढ़ाकर काबिल बनाने की सारी कहानी उसने दिल खोलकर बता दी। साथ ही उसने ऐसी स्थिति में दिनेश से उसका साथ देने के लिए जबाब भी माँगा। यदि शैली शादी के बाद भी अपनी सारी कमाई अपने परिवार पर लुटाती रहेगी, तो मैं अपने माता-पिता को क्या जबाब दूँगा? ऐसा सोचकर अब दिनेश चुप लगा गया।
जल्दी ही दिनेश का प्यार उसकी नजरों में सूखा और निपट भावहीन साबित हो गया। कुछ दिन बाद शैली के व्यवहार से उकता कर दिनेश ने उस कार्यालय से अपना स्थानांतरण अपने माता-पिता के पास कानपुर में करवा लिया। शैली ने अपने तीनों भाई-बहनो को पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाया और उनके विवाह आदि के सारे कार्य खूब अच्छी तरह से निभा दिए । अब तो वे सभी अपनी-अपनी जिंदगी में मस्ती से दिन काट रहे थे। कभी-कभी वे सब शैली से मिलने पुराने घर पर चले आते थे। शैली की मम्मी की अब मृत्यु हो चुकी थी। अपने जीवन की मधु मास भरी खुशियों को कुर्बान करने वाली शैली की परवाह अब किसी को नहीं थी। इस शुगर फ्री जिंदगी के दोराहे पर शैली आज भी अकेली खड़ी थी।
सीमा गर्ग ‘मंजरी’मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश मोबाइल नं 9058449093
बेहतरीन कथा शिल्प… वाह 👌👏
उत्कृष्ट सामजिक कहानी.. वास्तव में आज भी कई शैली हैं जो अपने परिवार के लिए अपनी खुशियों को कुर्वान कर देती हैं…
सुन्दर विषय चयन, बेहतरीन लेखन… साधुवाद.. बधाई…
नमन आपकी कलम को. 🙏
धन्यवाद भाई साहब नमस्कार
गंभीर और जीवन की विविध रंगों का दर्शन कराती कहानी
धन्यवाद आपका
Lajawab
धन्यवाद आपका